सोमवार, 30 सितंबर 2013

पशु चारा किसके मुंह में ?

गौशाले में गाय खुश, बछिया दिखे प्रसन्न |


बछिया के ताऊ खफा, छोड़ बैठते अन्न |

छोड़ बैठते अन्न, सदा चारा ही खाया |



पर निर्णय आसन्न, जेल उनको पहुँचाया |

करते गधे विलाप, फायदा लेने वाले |


चारा पाती गाय, हुई रौनक गौशाले ||



गैयों में आनंद, विलापें गधे दुवारे -
वारे न्यारे कब किये, कब का चारा साफ़ |
पर कोई चारा नहीं, कोर्ट करे ना माफ़ |

कोर्ट करे ना माफ़, दिखे करनी सी भरनी |
गौशाला आबाद, ,पार करले वैतरणी |

फटता अध्यादेश, कहाँ अब जाय पुकारे |
गैयों में आनंद, विलापें गधे दुवारे  |

                                               ---------------------------------------------
                                कविवर रविकर (दिनकर -दिनेश भाई  

                       फैजाबादी )लिंक लिखाड़ी 
             

पशु चारा किसके मुंह में ?




झारखंड की अदालत ने चारा खोरी के आरोप में लालू को रांची की जेल भेज दिया है। दिग्विजय कोर्ट की  अवमानना करते हुए लालू के 

समर्थन में ये कहते हुए उतर आयें हैं -चारा लालू ने नहीं खाया है उनके खिलाफ षड्यंत्र किया गया है। दिग्विजय के इस वत्तव्य को 

लेकर जनता के मन में बड़ा आक्रोश है क्योंकि वह ९५० करोड़ रुपया जनता का था जो सरकारी कोष से चारा खरीद के लिए निकाला 

गया था। लालू ने चारा खाया नहीं जैसा दिग्विजय सिंह जी कह रहे हैं हालाकि उनका चारा खाना कोई अनहोनी नहीं है वह पशुओं के 

बीच रहते आयें हैं। भूख में आदमी कुछ तो खायेगा अन्न न  मिला तो चारा ही सही। धुला हुआ चारा था। 

अब दिग्विजय सिंह जी कह रहें हैं चारा लालू ने खाया नहीं फिर चारा गया कहाँ ?क्या वर्चुअल चारा था लेकिन बिल तो असली थे पैसा 

तो सरकारी कोष  से निकला था। 

क्या दिग्विजय खा गए उस चारे को ?उस पैसे को ,जांच होनी चाहिए इस बात की भी हो सकता है चारा इन्होनें ही खाया हो। 

भारत के लोगों में ये आम जिज्ञासा है फिर चारा किसने खाया। पशुओं के मुंह तक पहुंचा नहीं बकौल दिग्विजय लालू प्रसाद ने खाया 

नहीं फिर क्या खुद दिग्विजय उसको खा गए ये लोगों में आम चर्चा है कि दिग्विजय इसका राज बताएं। क्या वह लोकतंत्र का सम्मान 

करते हुए लोगों की भावनाओं को देखते हुए ये बताने की कृपा करेंगे कि चारा गया तो आखिर कहाँ  गया? 

जिसे हम आत्म प्रताड़ना समझ रहे हैं

जिसे हम आत्म प्रताड़ना समझ रहे हैं 


क्या ये आत्मा की बीमारी है ?आत्मा बीमार है हमारी 

या मन ?

आत्मा तो परमात्मा का अंश है इसलिए वह निरंतर दिव्य है सनातन काल से। दिक्कत यह है आत्मा अपने को शरीर ,मन और बुद्धि से बूझ रही है ,मन बुद्धि और काया को ही अपनी पहचान माने बैठी है। इसलिए मन के विक्षोभ को आत्मा अपना विक्षोभ समझ बैठती है। ऐसे में सपने में भी अगर आप किसी पीड़ा से गुज़रते हैं तो उसे भी सच मान लेते हैं जब तक कि आपकी आँख  खुल न जाए।

ठीक इसी प्रकार हमारी दिव्य आत्मा  मन की हताशा की भोगना को भोगने लगती है। वजह इसकी खुद को शरीर (भौतिक ऊर्जा की एक अवस्था मात्र )मान लेना है। प्रताड़ित मन होता है आत्मा तो उस पीड़ा की तदानुभूति करती है मन की उस स्थिति से ही असर ग्रस्त होती है। मन निर्मल हो जाए तब साफ़ साफ़ पता चले  ये तो मेरा मन है मैं मन नहीं हूँ। ये मेरा शरीर है मैं शरीर नहीं हूँ। ये मेरा घर है मैं घर नहीं हूँ। 


तब यह दुविधा ये द्वैत अपने आप चला जाएगा। इसलिए हमारी कोशिश निरंतर मन की मैल हटाना होनी चाहिए। विक्षुब्ध मन आत्मा को भी अपनी चपेट में ले लेता है। माया मोह भौतिक साधनों के  पचड़े में पड़े लोग भी ऐसा मानते हैं। इसीलिए आत्मा अपने मूल स्वभाव को प्राप्त करने के लिए छटपटाती है। 

जब तक हम यह नहीं समझेंगे कि हमारा मन माया(Material energy ) की सृष्टि है। और माया (भौतिक ऊर्जा के रूप में भी )परमात्मा की शक्ति है हम इससे पार नहीं पा सकते।परमात्मा की कृपा से ही  माया की गिरिफ्त से मन बाहर आयेगा। सेल्फ हेल्प बुक्स बांचने से नहीं। 

इसलिए परमात्म प्रेम और ईश्वर भक्ति ही सहज सरल उपाय है मन को मांजने का। सभी वैदिक ग्रंथों ,धर्मों का यही सार है। भगवदगीता में स्वयं भगवान् कृष्ण कहते हैं -माया के सत्व ,राजस (रजस )और  तमस तीन गुण हैं। ये तीनों ही गुण मन को भी घेरे रहते हैं। जिस भी गुण से  ये मन आकृष्ठ होता है  बाहरी वस्तु या अपने आसपास के परिवेश को देखकर मन की आसक्ति उसी गुण में हो जाती है। 

परमात्मा इन तीनों गुणों से परे है इसीलिए उसे गुणातीत कहा गया है। वह सदैव ही परम पावन है इसीलिए जब भी हमारा मन उससे लगता है  उसकी रौ में बहता है ये मन भी उसके संग के असर से पावन हो जाता है गुणातीत हो जाता है। रामायण(रामचरित मानस को ही जन मानस में रामायण कहा जाने लगा है ) कहती है :

प्रेम भगति जल बिनु रघुराई ,अभिअन्तर मल कबहुँ न जाई। 

उसके प्रेम जल से जब तक हम मन का धावन नहीं करेंगे ,धोना -मांजना नहीं करेंगे मन की मैल नहीं उतरेगी। जब तक मैल नहीं उतरेगी मन यूं ही हताश होता रहेगा ,प्रताड़ित होता रहेगा। दंश आत्मा भी भुक्तेगी। 

भागवतम में कहा गया है :

धर्म : सत्यदयोपेतो विद्या वा तपसान्विता ,

मद्भक्त्यापेत्मात्मानं न सम्यक प्रपुनाती हि (श्रीमद भागवतम ११. १४.२२   )

भले हम उचित व्यवहार की आचार संहिता को पूर्णरूप से अपना लें ,लाख संयम रख  लें ,गुह्य से गुह्य   विद्या सीख लें लेकिन भक्ति के बिना कुछ होने वाला नहीं है मन की मैल नहीं उतरेगी भक्ति बिना।   

CUTTING EDGE MEDICAL TECNOLOGY :WHAT IS NANOKNIFE ?

अभिनव चिकित्सा प्रोद्योगिकी का शिखर है -नैनो नाइफ़ 


What is NanoKnife  ?

कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां कैंसरगांठ ,कैंसर ग्रस्त अंग को  को काट के नहीं फैंका  जा सकता परम्परागत शल्य के दायरे से ये बाहर बने रहते हैं जैसे यकृत का कैंसर (Liver Cancer ),अग्नाशय का कैंसर (Pancreatic Cancer ).,गुर्दों और अधिवृक्क ग्रंथि के कैंसर (Cancers of Kidneys and Adrenal glands )लसिका (Lymph nodes )  श्रोणी क्षेत्र (Pelvis )का कैंसर आदि , जहां मरीज़ के रोगमुक्त हो जाने की संभावना बहुत क्षीण बनी रहती है (Poor prognoses)वहां भी एक आस की किरण है नैनोनाइफ़ जिसमें  न कोई चीरा है न चाक़ू, सिर्फ बिजली की ताकत (विद्युत ऊर्जा ,विद्युत धारा ),Electric current का इस्तेमाल किया जाता है। 

परम्परागत रेडिओफ्रीकुवेंसी एबलेशन (Radiofrequency ablation )एवं माइक्रोवेव एबलेशन(Microwave ablation ) में ताप ऊर्जा (Heat energy )का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें ट्यूमर के पास के हिस्से भी नष्ट हो सकते हैं ,क्षति पहुँच सकती है कैंसर गांठ के आसपास वाले हिस्सों को। यहाँ ट्यूमर एबलेशन का काम विद्युत् स्पन्दें करती हैं। एक दमसे संकेंद्रित रहतीं हैं ये स्पंद।



Irreversible -electroporation (अ -परिवर्त्य विद्युत् छिद्रण )कहा जाता है इस प्राविधि को जिसमें सुईंनुमा इलेक्ट्रोड अर्बुद (Tumor)के गिर्द फिट कर दिए जाते हैं।
दरअसल  मृदु ऊतक से बनी कैंसर गांठ हमारे बहुत ही मह्त्वपूर्ण  अंगों को ,रक्त वाहिकाओं ( Blood vessels )और तंत्रिका तंतुओं (नर्व्ज़ )को घेरे रहतीं हैं। इसीलिए इनको अलग करना बड़ा दुस्साध्य क्या असम्भव ही सिद्ध होता है।

यहीं पर नैनोनाइफ़ की प्रासंगिकता और कारगरता दोनों काम आतीं हैं बा -शर्ते ट्यूमर्स का आकार तीन सेंटीमीटर या उससे भी कम रहा हो। इससे बड़ी कैंसर गांठों को कभी कभार क्रमिक (श्रृंखला बद्ध )इर्रिवर्सिबिल इलेक्टोफोरेशन (विद्युत् छिद्रण )से ठीक कर लिया जा सकता है। 

जहां शल्य मुमकिन ही न हो उन अंगों के लिए ही इसका अपना अप्रतिम स्थान है फिलाल। 

किनके लिए नहीं है यह प्राविधि ?

जिन्हें, जिनको  या तो कार्डिएक पेसमेकर लगा हुआ है या फिर जिनकी हार्ट बीट असामान्य रहती है ,जिन्हें नर्व उद्दीपन का सहारा लेना पड़ता है उनके लिए नहीं है यह अभिनव प्राविधि।  


BHAGVAD GITA 


श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (१५ - २०      )



एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म , पूर्वैर अपि मुमुक्षुभि :

कुरु कर्मैव तस्मात् त्वं ,पूर्वै: पूर्वतरं कृतं (४. १५) 


प्राचीन काल  के मुमुक्षुओं ने इस रहस्य को जानकार कर्म किये हैं। इसलिए तुम भी अपने कर्मों 

का 

पालन उन्हीं की तरह करों। 


सकाम ,निष्काम ,और निषिद्ध कर्म 

श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (१५ - २० )

श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (१५ - २०      )




एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म , पूर्वैर अपि मुमुक्षुभि :

कुरु कर्मैव तस्मात् त्वं ,पूर्वै: पूर्वतरं कृतं (४. १५) 


प्राचीन काल  के मुमुक्षुओं ने इस रहस्य को जानकार कर्म किये हैं। इसलिए तुम भी अपने कर्मों 

का 

पालन उन्हीं की तरह करों। 


सकाम ,निष्काम ,और निषिद्ध कर्म 


किं कर्म किम अकर्मेति ,कवयोप्य अत्र मोहिता :

तत ते कर्म प्रवक्ष्यामी ,यज ज्ञात्वा मोक्ष्यसे अशुभात (४. १६ )


विद्वान मनुष्य भी भ्रमित हो जाते हैं कि कर्म क्या है तथा अकर्म क्या है ,इसलिए मैं तुम्हें कर्म के रहस्य को समझाता हूँ ;जिसे जानकर तुम कर्म के बंधनों से मुक्त हो जाओगे। 


कर्मणो हियपि बोद्धव्यं ,बोद्धव्यं च विकर्मण :

अकर्मणश्च बोद्धव्यं ,गहना कर्मणो गति :(४. १७ )


सकाम कर्म ,विकर्म अर्थात पापकर्म तथा निष्काम- कर्म (अर्थात अकर्म )के स्वरूप को भलीभाँति जान लेना चाहिए ,क्योंकि कर्म की गति बहुत ही न्यारी है। 

सकामकर्म स्वार्थपूर्ण कर्म है ,जो कर्मबंधन पैदा करता है। निषिद्ध कर्म को विकर्म कहते हैं ,जो करता और समाज दोनों के लिए हानिकारक है। अकर्म या निष्काम कर्म निस्वार्थ सेवा है ,जो मुक्ति की ओर ले जाता है। 



कर्मयोगी को कर्मबंधन नहीं 


कर्मण्य अकर्म य : पश्येद ,अकर्मणि च कर्म य :

स बुद्धिमान मनुष्येशु ,स युक्त : कृत्स्नकर्मकृत (४.  १८ )


जो मनुष्य कर्म में अकर्म तथा अकर्म में कर्म देखता है ,वही ग्यानी ,योगी तथा समस्त कर्मों का करनेवाला है। (अपने को कर्ता नहीं मानकर प्रकृति के गुणों को ही कर्ता मानना कर्म में अकर्म तथा अकर्म  में कर्म देखना कहलाता है। ). 

सभी कर्म निष्काम सक्रिय कर्ता ब्रह्म के हैं। बाइबिल का कथन है -शब्द ,जो तुम बोलते हो ,तुम्हारे नहीं हैं। उनमें तुम्हारे परमपिता ,प्रभु की आत्मा बोलती है। सुधिजन ब्रह्म की अन्तर्निहित ऊर्जा (Potential Energy ) के निष्क्रिय ,अनंत और अदृश्य भण्डार में ब्रह्माण्ड की समस्त प्रभासित गतिमान ऊर्जा (Kinetic Energy )का मूल स्रोत देखते हैं,वैसे ही जैसे बिजली के पंखे की गति अदृश्य विद्युत् के संचरण से होती है। कर्म की प्रेरणा और शक्ति ब्रह्म से ही आती है। अत :व्यक्ति को समस्त कर्मों को अध्यात्ममय  बना देना चाहिए ,यह आभास कर  कि व्यक्ति स्वयं कुछ भी नहीं करता है ;सब कुछ हमें मात्र माध्यम बनाते हुए ब्रह्म की ऊर्जा से ही होता है। 

त्यक्त्वा कर्मफलासंगगं ,नित्यतृप्तो निराश्रय :

कर्मण्य अभिप्रवृत्तो अपि ,नैव किंचित करोति स :(४.२० )

जो मनुष्य कर्मफल में आसक्ति का सर्वथा त्यागकर ,परमात्मा में नित्यतृप्त रहता है तथा भगवान् के सिवा किसी का आश्रय नहीं लेता ,वह कर्म करते हुए भी (वास्तव में )कुछ भी नहीं कर्ता (तथा अकर्म रहने के कारण कर्म बंधनों से सदा मुक्त रहता है। )


CUTTING EDGE MEDICAL TECHNOLOGY 


अभिनव चिकित्सा प्रोद्योगिकी का शिखर है -नैनो नाइफ़ 


What is NanoKnife  ?

कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां कैंसरगांठ ,कैंसर ग्रस्त अंग को  को काट के नहीं फैंका  जा सकता परम्परागत शल्य के दायरे से ये बाहर बने रहते हैं जैसे यकृत का कैंसर (Liver Cancer ),अग्नाशय का कैंसर (Pancreatic Cancer ).,गुर्दों और अधिवृक्क ग्रंथि के कैंसर (Cancers of Kidneys and Adrenal glands )लसिका (Lymph nodes )  श्रोणी क्षेत्र (Pelvis )का कैंसर आदि , जहां मरीज़ के रोगमुक्त हो जाने की संभावना बहुत क्षीण बनी रहती है (Poor prognoses)वहां भी एक आस की किरण है नैनोनाइफ़ जिसमें  न कोई चीरा है न चाक़ू, सिर्फ बिजली की ताकत (विद्युत ऊर्जा ,विद्युत धारा ),Electric current का इस्तेमाल किया जाता है। 

परम्परागत रेडिओफ्रीकुवेंसी एबलेशन (Radiofrequency ablation )एवं माइक्रोवेव एबलेशन(Microwave ablation ) में ताप ऊर्जा (Heat energy )का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें ट्यूमर के पास के हिस्से भी नष्ट हो सकते हैं ,क्षति पहुँच सकती है कैंसर गांठ के आसपास वाले हिस्सों को। यहाँ ट्यूमर एबलेशन का काम विद्युत् स्पन्दें करती हैं। एक दमसे संकेंद्रित रहतीं हैं ये स्पंद।



Irreversible -electroporation (अ -परिवर्त्य विद्युत् छिद्रण )कहा जाता है इस प्राविधि को जिसमें सुईंनुमा इलेक्ट्रोड अर्बुद (Tumor)के गिर्द फिट कर दिए जाते हैं।
दरअसल  मृदु ऊतक से बनी कैंसर गांठ हमारे बहुत ही मह्त्वपूर्ण  अंगों को ,रक्त वाहिकाओं ( Blood vessels )और तंत्रिका तंतुओं (नर्व्ज़ )को घेरे रहतीं हैं। इसीलिए इनको अलग करना बड़ा दुस्साध्य क्या असम्भव ही सिद्ध होता है।

यहीं पर नैनोनाइफ़ की प्रासंगिकता और कारगरता दोनों काम आतीं हैं बा -शर्ते ट्यूमर्स का आकार तीन सेंटीमीटर या उससे भी कम रहा हो। इससे बड़ी कैंसर गांठों को कभी कभार क्रमिक (श्रृंखला बद्ध )इर्रिवर्सिबिल इलेक्टोफोरेशन (विद्युत् छिद्रण )से ठीक कर लिया जा सकता है। 

जहां शल्य मुमकिन ही न हो उन अंगों के लिए ही इसका अपना अप्रतिम स्थान है फिलाल। 

किनके लिए नहीं है यह प्राविधि ?

जिन्हें, जिनको  या तो कार्डिएक पेसमेकर लगा हुआ है या फिर जिनकी हार्ट बीट असामान्य रहती है ,जिन्हें नर्व उद्दीपन का सहारा लेना पड़ता है उनके लिए नहीं है यह अभिनव प्राविधि।  

अभिनव चिकित्सा प्रोद्योगिकी का शिखर है -नैनो नाइफ़ What is NanoKnife ?

अभिनव चिकित्सा प्रोद्योगिकी का शिखर है -नैनो नाइफ़ 


What is NanoKnife  ?

कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां कैंसरगांठ ,कैंसर ग्रस्त अंग को  को काट के नहीं फैंका  जा सकता परम्परागत शल्य के दायरे से ये बाहर बने रहते हैं जैसे यकृत का कैंसर (Liver Cancer ),अग्नाशय का कैंसर (Pancreatic Cancer ).,गुर्दों और अधिवृक्क ग्रंथि के कैंसर (Cancers of Kidneys and Adrenal glands )लसिका (Lymph nodes )  श्रोणी क्षेत्र (Pelvis )का कैंसर आदि , जहां मरीज़ के रोगमुक्त हो जाने की संभावना बहुत क्षीण बनी रहती है (Poor prognoses)वहां भी एक आस की किरण है नैनोनाइफ़ जिसमें  न कोई चीरा है न चाक़ू, सिर्फ बिजली की ताकत (विद्युत ऊर्जा ,विद्युत धारा ),Electric current का इस्तेमाल किया जाता है। 

परम्परागत रेडिओफ्रीकुवेंसी एबलेशन (Radiofrequency ablation )एवं माइक्रोवेव एबलेशन(Microwave ablation ) में ताप ऊर्जा (Heat energy )का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें ट्यूमर के पास के हिस्से भी नष्ट हो सकते हैं ,क्षति पहुँच सकती है कैंसर गांठ के आसपास वाले हिस्सों को। यहाँ ट्यूमर एबलेशन का काम विद्युत् स्पन्दें करती हैं। एक दमसे संकेंद्रित रहतीं हैं ये स्पंद।



Irreversible -electroporation (अ -परिवर्त्य विद्युत् छिद्रण )कहा जाता है इस प्राविधि को जिसमें सुईंनुमा इलेक्ट्रोड अर्बुद (Tumor)के गिर्द फिट कर दिए जाते हैं।
दरअसल  मृदु ऊतक से बनी कैंसर गांठ हमारे बहुत ही मह्त्वपूर्ण  अंगों को ,रक्त वाहिकाओं ( Blood vessels )और तंत्रिका तंतुओं (नर्व्ज़ )को घेरे रहतीं हैं। इसीलिए इनको अलग करना बड़ा दुस्साध्य क्या असम्भव ही सिद्ध होता है।

यहीं पर नैनोनाइफ़ की प्रासंगिकता और कारगरता दोनों काम आतीं हैं बा -शर्ते ट्यूमर्स का आकार तीन सेंटीमीटर या उससे भी कम रहा हो। इससे बड़ी कैंसर गांठों को कभी कभार क्रमिक (श्रृंखला बद्ध )इर्रिवर्सिबिल इलेक्टोफोरेशन (विद्युत् छिद्रण )से ठीक कर लिया जा सकता है। 

जहां शल्य मुमकिन ही न हो उन अंगों के लिए ही इसका अपना अप्रतिम स्थान है फिलाल। 

किनके लिए नहीं है यह प्राविधि ?

जिन्हें, जिनको  या तो कार्डिएक पेसमेकर लगा हुआ है या फिर जिनकी हार्ट बीट असामान्य रहती है ,जिन्हें नर्व उद्दीपन का सहारा लेना पड़ता है उनके लिए नहीं है यह अभिनव प्राविधि।  

रविवार, 29 सितंबर 2013

कायदे की बात तो यह है संविधानिक संस्था संसद की अवमानना के लिए मंद बुद्धि बालक पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

पार्टी की थूक सरकार के मुंह में 

राहुल ने थूका सरकार ने खुश होकर गटक लिया। यही मंत्री थे जिनका वह फैसला था। पूरी काबिना का संविधानिक फैसला था यह 

जिसे राहुल ने यूं बरतरफ़ कर दिया। और उनकी बगल में खड़े वही मंत्री जिनका यह फैसला था फूले नहीं समा रहे थे। कई दिनों से 

इन्हें जूते नहीं पड़े थे। सुस्ती चढ़ी हुई थी इन्हें जूते खाकर उतर गई। अब ये जूते खाके परमानंद को प्राप्त हुए हैं। 

धन्य है यह भारत देश देट इज इंडिया जहां संविधानिक फैसलों  की यूं धज्जियां उड़ाई जाती हैं और पार्टीजन हर्षित हैं सरकारी मंत्री 

प्रमुदित हैं । 

राहुल को कुछ कहना था तो तब कहते जब यह फैसला लिया जा रहा था कि दागी संसद की शोभा हैं उन पर सब बलिहारी हैं। अब जब 

लगा राष्ट्रपति आभा वाले हैं यह फैसला पिटेगा ही पिटेगा तब दिग्विजय के मंद बुद्धि चेले ने आस्तीन चढ़ाके वह सब बोला जो 

मीडिया 

सेंटर में भारत के लोगों ने देखा। ये मदारी भोपाली अभी और भी करतब दिखलाएगा।  

इसे कहते हैं खुला खेल भोपाली झमूरा विलायती। 

कल को ये झमूरा सुप्रीम कोर्ट के बारे में भी कुछ भी प्रलाप कर सकता है -"ये सुप्रीम कोर्ट वोर्ट कुछ नहीं होता मैं फाड़के फांकता हूँ 

इसके निर्णय को "

सोचे कांग्रेस ये दिग्विजय इसे कौन सी विजय दिलवा रहे हैं ?

कायदे की बात तो यह है संविधानिक संस्था संसद की अवमानना के लिए मंद बुद्धि बालक पर 

मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कमसे कम छ :साल के लिए इन्हें निलंबित किया जाए अयोग्य 

घोषित किया जाए इस अवधि के लिए चुनाव लड़ने से। 

शनिवार, 28 सितंबर 2013

पार्टी की थूक सरकार के मुंह में

पार्टी की थूक सरकार के मुंह में 

राहुल ने थूका सरकार ने खुश होकर गटक लिया। यही मंत्री थे जिनका वह फैसला था। पूरी काबिना का संविधानिक फैसला था यह 

जिसे राहुल ने यूं बरतरफ़ कर दिया। और उनकी बगल में खड़े वही मंत्री जिनका यह फैसला था फूले नहीं समा रहे थे। कई दिनों से 

इन्हें जूते नहीं पड़े थे। अब ये जूते खाके परमानंद को प्राप्त हुए हैं। 

धन्य है यह भारत देश देट इज इंडिया जहां संविधानिक फैसलों  की यूं धज्जियां उड़ाई जाती हैं और पार्टीजन हर्षित हैं सरकारी मंत्री 

प्रमुदित हैं । 

राहुल को कुछ कहना था तो तब कहते जब यह फैसला लिया जा रहा था कि दागी संसद की शोभा हैं उन पर सब बलिहारी हैं। अब जब 

लगा राष्ट्रपति आभा वाले हैं यह फैसला पिटेगा ही पिटेगा तब दिग्विजय के मंद बुद्धि चेले ने आस्तीन चढ़ाके वह सब बोला जो 

मीडिया 

सेंटर में भारत के लोगों ने देखा। ये मदारी भोपाली अभी और भी करतब दिखलाएगा।  

इसे कहते हैं खुला खेल भोपाली झमूरा विलायती। 

कल को ये झमूरा सुप्रीम कोर्ट के बारे में भी कुछ भी प्रलाप कर सकता है -"ये सुप्रीम कोर्ट वोर्ट कुछ नहीं होता मैं फाड़के फांकता हूँ 

इसके निर्णय को "

सोचे कांग्रेस ये दिग्विजय इसे कौन सी विजय दिलवा रहे हैं ?

कायदे की बात तो यह है संविधानिक संस्था संसद की अवमानना के लिए मंद बुद्धि बालक पर 

मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कमसे कम छ :साल के लिए इन्हें निलंबित किया जाए अयोग्य 

घोषित किया जाए इस अवधि के लिए चुनाव लड़ने से। 

श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ न मां कर्माणि लिम्पन्ति , न मे कर्मफले स्पृहा इति मां योअभिजानाती ,कर्मभिर न स बध्यते

श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ 


न मां कर्माणि लिम्पन्ति , न मे कर्मफले स्पृहा 

इति मां योअभिजानाती ,कर्मभिर न स बध्यते 


मुझे कर्म का बंधन नहीं लगता ,क्योंकि मेरी इच्छा कर्म फल में नहीं रहती है। इस रहस्य को जो व्यक्ति भलीभांति समझकर मेरा अनुसरण करता है ,वह भी कर्म के बंधनों से नहीं बंधता है। 

भाव यह है जो कोई  सर्वप्रमुख होना चाहे ,वह सबसे पीछे होकर सबका सेवक बने। सारे कर्म प्रार्थना सहित -मात्र व्यक्तिगत लाभ के लिए न करके किसी अच्छे उद्देश्य और जनकल्याण के लिए करने चाहिए। 

Activities do not taint me ,nor do I desire the fruits of action .One who knows me in this way is never bound by the karmic actions of work .

God is all pure ,and whatever he does also becomes pure and auspicious .The Ramayana states:


samaratha  kahun nahin doshu gosain,rabi pavaka sursari ki nain.

समरथ काहुना दोषु गोसाईं ,रबि पावका सुरसरि कि नाईं 

"Pure personalities are never taited by defects even in contact with impure situations and entities ,like the sun ,the fire , and the Ganges." The sun does not get tainted if sun light falls on a puddle of urine .The sun retains its purity ,while also purifying the dirty puddle .Similarly if we offer impure objects into the fire ,it still retains its purity -the fire is pure ,and whatever we pour into it it also gets purified .In the same manner ,numerous gutters of rainwater merge into the holy Ganges ,but this does not make the Ganges a gutter -the Ganges is pure and it transforms all those dirty gutters into the holy Ganges .Likewise ,God is not tainted by the activities he performs .

Even Saints who are situated in  God-consciousness become transcendental to the material energy .Since all their activities are effectuated in love for God ,such pure hearted Saints are not bound by the fruitive reactions of work .The Shrimad Bhagvatam states :

             yat pada pankaja paraga nisheva tripta 

             yoga prabhava vidhutakhila karma bandhah 

              saviram charanti munayo ' pi na nahyamanas 

              tasyechchhayatta vapushah kuta eva bandhah 



"Material activities never taint the devotees of God who are fully satisfied in serving the dust of his lotus feet .Nor do material activities taint those wise sages who have freed themselves from the bondage of fruitive reactions by the power of Yog .So where is the question of bondage for the Lord himself who assumes his transcendental form according to his own will ?"

BONUS READING 

The word "guru " has now been adopted by the English language as well ,and so we here terms such as Marketing guru ,Economics guru ,Finance guru ,etc .However ,when you refer to the true Guru ,you are enquiring about the spiitual connotation of the word as described in the scriptures .The meaning of the word "Guru "is :

गु शब्दस्त्वंधकारस्यात रु शब्दस्तन्निरोधक :

अन्धकार निरोधत्वात गुरुरित्यभिधीयते। (अद्वय तार्कोपनिषद १ ६ )

"The syllable "gu" means "darkness" ,and "ru"means "to destroy ".Hence ,one who dispels our nescience and brings to us the light of true wisdom is the Guru .

यहाँ शब्दांश (सिलेबल ) "गु "का अर्थ "अन्धकार "(अज्ञान अन्धकार )है तथा "रु "का शब्दार्थ "विनष्ट 

"करना है। अर्थात जो हमारा अज्ञान नष्ट करे तथा हमें ज्ञान के आलोक में लाये ,ज्ञानोदय करे हमारा 

वही गुरु है। 

The true Guru  must have two qualifications .Firstly ,he or she should possess theoretical knowledge of the scriptures -this is called Shrotriya (श्रोत्रीय ).Secondly ,he or she should have realized that knowledge and be seated in the Truth -this is called Brahm Nishth (ब्रह्म निष्ठ ).Hence, a true Guru is one who is both -Shrotriya and Brahm Nishth.

In these ,the second criterion is most important ,i.e .the Guru must be God -realized .Only one who has attained God can help others attain Him .If one is a beggar himself ,how can he give money to others ;if one has no knowledge himself ,how can he teach others ?If one has not attained the Bliss of Divine love ,how can he give it to others ?

Hence , a Guru who has attained God is the true Guru ,and such a Spiritual Master is called "Sadguru ,"or One who is seated in the Truth."

जो स्वयं भगवान् को प्राप्त हो चुका है वही सच्चा- सच्चा गुरु है ,ऐसा 

अध्यात्म दक्ष शिक्षक ही सद्गुरु है जो स्वयं सत्य में अवस्थित है 

,स्थापित है। 

ब्रह्म ,गुरु ,जीव ,माया ,संत और भगत इन सबको मिलाकर ही भगवान् 

(पर्सनल गाड )बनता है। गुरु और ब्रह्म दोनों समकक्ष हैं ,

बराबर हैं ,न इनमें कोई छोटा है न बड़ा। 

Reference Material :Spiritual Dialectics -by Swami Mukundananda 

Radha Govind Dham 

XVII /3305 ,Ranjit Nagar

New Delhi -110-008

India 

www.jkyog.org


What is a True Guru ?गु शब्दस्त्वंधकारस्यात रु शब्दस्तन्निरोधक : अन्धकार निरोधत्वात गुरुरित्यभिधीयते। (अद्वय तार्कोपनिषद १ ६ )

The word "guru " has now been adopted by the English language as well ,and so we use  here terms such as Marketing guru ,Economics guru ,Finance guru ,etc .However ,when you refer to the true Guru ,you are enquiring about the spiitual connotation of the word as described in the scriptures .The meaning of the word "Guru "is :

गु शब्दस्त्वंधकारस्यात रु शब्दस्तन्निरोधक :

अन्धकार निरोधत्वात गुरुरित्यभिधीयते। (अद्वय तार्कोपनिषद १ ६ )

"The syllable "gu" means "darkness" ,and "ru"means "to destroy ".Hence ,one who dispels our nescience and brings to us the light of true wisdom is the Guru .

यहाँ शब्दांश (सिलेबल ) "गु "का अर्थ "अन्धकार "(अज्ञान अन्धकार )है तथा "रु "का शब्दार्थ "विनष्ट 

"करना है। अर्थात जो हमारा अज्ञान नष्ट करे तथा हमें ज्ञान के आलोक में लाये ,ज्ञानोदय करे हमारा 

वही गुरु है। 

The true Guru  must have two qualifications .Firstly ,he or she should possess theoretical knowledge of the scriptures -this is called Shrotriya (श्रोत्रीय ).Secondly ,he or she should have realized that knowledge and be seated in the Truth -this is called Brahm Nishth (ब्रह्म निष्ठ ).Hence, a true Guru is one who is both -Shrotriya and Brahm Nishth.

In these ,the second criterion is most important ,i.e .the Guru must be God -realized .Only one who has attained God can help others attain Him .If one is a beggar himself ,how can he give money to others ;if one has no knowledge himself ,how can he teach others ?If one has not attained the Bliss of Divine love ,how can he give it to others ?

Hence , a Guru who has attained God is the true Guru ,and such a Spiritual Master is called "Sadguru ,"or One who is seated in the Truth."

जो स्वयं भगवान् को प्राप्त हो चुका है वही सच्चा- सच्चा गुरु है ,ऐसा 

अध्यात्म दक्ष शिक्षक ही सद्गुरु है जो स्वयं सत्य में अवस्थित है 

,स्थापित है। 

ब्रह्म ,गुरु ,जीव ,माया ,संत और भगत इन सबको मिलाकर ही भगवान् 

(पर्सनल गाड )बनता है। गुरु और ब्रह्म दोनों समकक्ष हैं ,

बराबर हैं ,न इनमें कोई छोटा है न बड़ा। 

Reference Material :Spiritual Dialectics -by Swami Mukundananda 

Radha Govind Dham 

XVII /3305 ,Ranjit Nagar

New Delhi -110-008

India 

www.jkyog.org



श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ 


न मां कर्माणि लिम्पन्ति , न मे कर्मफले स्पृहा 

इति मां योअभिजानाती ,कर्मभिर न स बध्यते 


मुझे कर्म का बंधन नहीं लगता ,क्योंकि मेरी इच्छा कर्म फल में नहीं रहती है। इस रहस्य को जो व्यक्ति भलीभांति समझकर मेरा अनुसरण करता है ,वह भी कर्म के बंधनों से नहीं बंधता है। 

भाव यह है जो कोई  सर्वप्रमुख होना चाहे ,वह सबसे पीछे होकर सबका सेवक बने। सारे कर्म प्रार्थना सहित -मात्र व्यक्तिगत लाभ के लिए न करके किसी अच्छे उद्देश्य और जनकल्याण के लिए करने चाहिए। 

Activities do not taint me ,nor do I desire the fruits of action .One who knows me in this way is never bound by the karmic actions of work .

God is all pure ,and whatever he does also becomes pure and auspicious .The Ramayana states:


samaratha  kahun nahin doshu gosain,rabi pavaka sursari ki 

nain.

समरथ काहुना दोषु गोसाईं ,रबि पावका सुरसरि कि नाईं 

"Pure personalities are never taited by defects even in contact with impure situations and entities ,like the sun ,the fire , and the Ganges." The sun does not get tainted if sun light falls on a puddle of urine .The sun retains its purity ,while also purifying the dirty puddle .Similarly if we offer impure objects into the fire ,it still retains its purity -the fire is pure ,and whatever we pour into it it also gets purified .In the same manner ,numerous gutters of rainwater merge into the holy Ganges ,but this does not make the Ganges a gutter -the Ganges is pure and it transforms all those dirty gutters into the holy Ganges .Likewise ,God is not tainted by the activities he performs .

Even Saints who are situated in  God-consciousness become transcendental to the material energy .Since all their activities are effectuated in love for God ,such pure hearted Saints are not bound by the fruitive reactions of work .The Shrimad Bhagvatam states :

             yat pada pankaja paraga nisheva tripta 

             yoga prabhava vidhutakhila karma bandhah 

              saviram charanti munayo ' pi na nahyamanas 

              tasyechchhayatta vapushah kuta eva bandhah 



"Material activities never taint the devotees of God who are fully satisfied in serving the dust of his lotus feet .Nor do material activities taint those wise sages who have freed themselves from the bondage of fruitive reactions by the power of Yog .So where is the question of bondage for the Lord himself who assumes his transcendental form according to his own will ?"


शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ

श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ 


न मां कर्माणि लिम्पन्ति , न मे कर्मफले स्पृहा 

इति मां योअभिजानाती ,कर्मभिर न स बध्यते 


मुझे कर्म का बंधन नहीं लगता ,क्योंकि मेरी इच्छा कर्म फल में नहीं रहती है। इस रहस्य को जो व्यक्ति भलीभांति समझकर मेरा अनुसरण करता है ,वह भी कर्म के बंधनों से नहीं बंधता है। 

भाव यह है जो कोई  सर्वप्रमुख होना चाहे ,वह सबसे पीछे होकर सबका सेवक बने। सारे कर्म प्रार्थना सहित -मात्र व्यक्तिगत लाभ के लिए न करके किसी अच्छे उद्देश्य और जनकल्याण के लिए करने चाहिए। 

Activities do not taint me ,nor do I desire the fruits of action .One who knows me in this way is never bound by the karmic actions of work .

God is all pure ,and whatever he does also becomes pure and auspicious .The Ramayana states:


samaratha  kahun nahin doshu gosain,rabi pavaka sursari ki nain.

समरथ काहुना दोषु गोसाईं ,रबि पावका सुरसरि कि नाईं 

"Pure personalities are never taited by defects even in contact with impure situations and entities ,like the sun ,the fire , and the Ganges." The sun does not get tainted if sun light falls on a puddle of urine .The sun retains its purity ,while also purifying the dirty puddle .Similarly if we offer impure objects into the fire ,it still retains its purity -the fire is pure ,and whatever we pour into it it also gets purified .In the same manner ,numerous gutters of rainwater merge into the holy Ganges ,but this does not make the Ganges a gutter -the Ganges is pure and it transforms all those dirty gutters into the holy Ganges .Likewise ,God is not tainted by the activities he performs .

Even Saints who are situated in  God-consciousness become transcendental to the material energy .Since all their activities are effectuated in love for God ,such pure hearted Saints are not bound by the fruitive reactions of work .The Shrimad Bhagvatam states :

             yat pada pankaja paraga nisheva tripta 

             yoga prabhava vidhutakhila karma bandhah 

              saviram charanti munayo ' pi na nahyamanas 

              tasyechchhayatta vapushah kuta eva bandhah 

"Material activities never taint the devotees of God who are fully satisfied in serving the dust of his lotus feet .Nor do material activities taint those wise sages who have freed themselves from the bondage of fruitive reactions by the power of Yog .So where is the question of bondage for the Lord himself who assumes his transcendental form according to his own will ?"

BONUS READING 

The word "guru " has now been adopted by the English language as well ,and so we here terms such as Marketing guru ,Economics guru ,Finance guru ,etc .However ,when you refer to the true Guru ,you are enquiring about the spiitual connotation of the word as described in the scriptures .The meaning of the word "Guru "is :

गु शब्दस्त्वंधकारस्यात रु शब्दस्तन्निरोधक :

अन्धकार निरोधत्वात गुरुरित्यभिधीयते। (अद्वय तार्कोपनिषद १ ६ )

"The syllable "gu" means "darkness" ,and "ru"means "to destroy ".Hence ,one who dispels our nescience and brings to us the light of true wisdom is the Guru .

यहाँ शब्दांश (सिलेबल ) "गु "का अर्थ "अन्धकार "(अज्ञान अन्धकार )है तथा "रु "का शब्दार्थ "विनष्ट 

"करना है। अर्थात जो हमारा अज्ञान नष्ट करे तथा हमें ज्ञान के आलोक में लाये ,ज्ञानोदय करे हमारा 

वही गुरु है। 

The true Guru  must have two qualifications .Firstly ,he or she should possess theoretical knowledge of the scriptures -this is called Shrotriya (श्रोत्रीय ).Secondly ,he or she should have realized that knowledge and be seated in the Truth -this is called Brahm Nishth (ब्रह्म निष्ठ ).Hence, a true Guru is one who is both -Shrotriya and Brahm Nishth.

In these ,the second criterion is most important ,i.e .the Guru must be God -realized .Only one who has attained God can help others attain Him .If one is a beggar himself ,how can he give money to others ;if one has no knowledge himself ,how can he teach others ?If one has not attained the Bliss of Divine love ,how can he give it to others ?

Hence , a Guru who has attained God is the true Guru ,and such a Spiritual Master is called "Sadguru ,"or One who is seated in the Truth."

जो स्वयं भगवान् को प्राप्त हो चुका है वही सच्चा- सच्चा गुरु है ,ऐसा 

अध्यात्म दक्ष शिक्षक ही सद्गुरु है जो स्वयं सत्य में अवस्थित है 

,स्थापित है। 

ब्रह्म ,गुरु ,जीव ,माया ,संत और भगत इन सबको मिलाकर ही भगवान् 

(पर्सनल गाड )बनता है। गुरु और ब्रह्म दोनों समकक्ष हैं ,

बराबर हैं ,न इनमें कोई छोटा है न बड़ा। 

Reference Material :Spiritual Dialectics -by Swami Mukundananda 

Radha Govind Dham 

XVII /3305 ,Ranjit Nagar

New Delhi -110-008

India 

www.jkyog.org



श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ

श्रीमद भगवदगीता चौथा अध्याय :श्लोक चौदहवाँ 


न मां कर्माणि लिम्पन्ति , न मे कर्मफले स्पृहा 

इति मां योअभिजानाती ,कर्मभिर न स बध्यते 


मुझे कर्म का बंधन नहीं लगता ,क्योंकि मेरी इच्छा कर्म फल में नहीं रहती है। इस रहस्य को जो व्यक्ति भलीभांति समझकर मेरा अनुसरण करता है ,वह भी कर्म के बंधनों से नहीं बंधता है। 

भाव यह है जो कोई  सर्वप्रमुख होना चाहे ,वह सबसे पीछे होकर सबका सेवक बने। सारे कर्म प्रार्थना सहित -मात्र व्यक्तिगत लाभ के लिए न करके किसी अच्छे उद्देश्य और जनकल्याण के लिए करने चाहिए। 

Activities do not taint me ,nor do I desire the fruits of action .One who knows me in this way is never bound by the karmic actions of work .

God is all pure ,and whatever he does also becomes pure and auspicious .The Ramayana states:


samaratha  kahun nahin doshu gosain,rabi pavaka sursari ki nain.

समरथ काहुना दोषु गोसाईं ,रबि पावका सुरसरि कि नाईं 

"Pure personalities are never taited by defects even in contact with impure situations and entities ,like the sun ,the fire , and the Ganges." The sun does not get tainted if sun light falls on a puddle of urine .The sun retains its purity ,while also purifying the dirty puddle .Similarly if we offer impure objects into the fire ,it still retains its purity -the fire is pure ,and whatever we pour into it it also gets purified .In the same manner ,numerous gutters of rainwater merge into the holy Ganges ,but this does not make the Ganges a gutter -the Ganges is pure and it transforms all those dirty gutters into the holy Ganges .Likewise ,God is not tainted by the activities he performs .

Even Saints who are situated in  God-consciousness become transcendental to the material energy .Since all their activities are effectuated in love for God ,such pure hearted Saints are not bound by the fruitive reactions of work .The Shrimad Bhagvatam states :

             yat pada pankaja paraga nisheva tripta 

             yoga prabhava vidhutakhila karma bandhah 

              saviram charanti munayo ' pi na nahyamanas 

              tasyechchhayatta vapushah kuta eva bandhah 

"Material activities never taint the devotees of God who are fully satisfied in serving the dust of his lotus feet .Nor do material activities taint those wise sages who have freed themselves from the bondage of fruitive reactions by the power of Yog .So where is the question of bondage for the Lord himself who assumes his transcendental form according to his own will ?"

श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (११-१३ )

श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (११-१३ )


प्रार्थना और भक्ति का मार्ग 



ये यथा मां प्रपद्यन्ते ,तांस तथैव भजाम्यहम 

मम वर्त्मानुवर्तन्ते ,मनुष्या : पार्थ   सर्वश :(४. १ १ )


हे अर्जुन ,जो भक्त जिस किसी भी मनोकामना से मेरी पूजा करते हैं मैं उनकी मनोकामना की पूर्ती 

करता हूँ।मनुष्य अनेक प्रकार की इच्छाओं की पूर्ती  के लिए मेरी शरण लेते हैं। 

मांगो और तुम पाओगे ,खोजो और तुम्हें मिलेगा ,दस्तक दो और तुम्हारे लिए द्वार खुल जाएगा। 

माया के कारण अधिकतर लोग  स्वास्थ्य ,धन ,सफलता आदि अस्थाई भौतिक लाभ खोजते हैं 

,आत्म ज्ञान और प्रभु के चरणों की भक्ति नहीं। 

भगवान् कहते हैं मुझे जो  जिस रूप में भजता है जैसे भी प्रेम करता है मैं भी  उसे उसी रूप 

मेप्राप्त होता हूँ ,प्रेम करता हूँ। सन्देश यह है जीवन में कहीं भी आप हों जिस भूमिका में भी हो 

भगवान की तरफ जाने के लिए कोई न कोई रास्ता मिल ही जाएगा। 


जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तिन तैसी (रामचरितमानस )



सुदामा को मित्र रूप में भगवान् कृष्ण मिले द्रौपदी को रक्षक के रूप में। दुर्योधन साड़ी खींचता 

खींचता खुद ही कोमा में चला गया।द्रौपदी ने इतना ही कहा था -द्वारकाधीश आओ रक्षार्थ। 

भगवाना कहते हैं मेरे तुम्हारे बहुत रिश्ते हैं मुझे किसी भी भाव से याद करो मैं उसी भाव से 

तुम्हारे पास आऊँगा।  होता हूँ। 

लंका विजय के बाद जब श्री राम अयोध्या लौटे तो उन्होंने नगर वासियों की सुविधा के लिए एक 

साथ अनेक रूप धरे ताकि सब अपने अपने भाव से उन्हें देख सकें। जिस रूप में तुम भजोगे उसी 

रूप मेतुम्हें भगवान् मिलेंगे। 


काङ्ग्क्शन्त : कर्मणाम सिद्धिं ,यजन्त इह देवता 

क्षिप्रं हि मानुषे लोके ,सिद्धिर भवति कर्मजा। (४ १२ )


कर्मफल के इच्छुक संसार के साधारण मनुष्य देवताओं की पूजा करते हैं ,क्योंकि मनुष्य लोक में 

कर्म फल शीघ्र ही प्राप्त होते हैं। 

आपने देखा होगा जितनी भीड़ शनि  के मंदिर में होती है उतनी और किसी मंदिर में नहीं होती और 

शनि में भी शनि के किसी ख़ास मंदिर का रुख करते हैं भगत (सांसारिक प्राणि )लेकिन ये 

प्राप्तियां अल्पकालिक होती हैं जल्दी ही चुक भी जाती हैं। 

भाव यहाँ यह है कर्मों के फलों की शीघ्र प्राप्ति चाहने वाले देवताओं की पूजा करते हैं। कर्मों से होने 

वाली सिद्धि फिर जल्दी समाप्त  भी हो जाती है। भले कोई किसी देवता से कोई सिद्धि उसे खुश 

करके प्राप्त  कर ले। 

चातुर्वणर्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागश :

तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम। (४. १ ३ )

मेरे द्वारा ही चारों वर्ण अपने अपने गुण ,स्वभाव और रूचि के अनुसार बनाए गए हैं। सृष्टि की रचना आदि कर्म के कर्ता होने पर भी मुझ परमेश्वर   को अविनाशी अकर्ता ही जानना चाहिए। (क्योंकि प्रकृति के गुण ही संसार को चला रहे हैं ). 

गौर तलब है वर्ण व्यवस्था पर ही सनातन विचारधारा ,सनातन धर्म की इमारत खड़ी  है।कर्म के द्वारा कृति बनती है जो ज्ञान में प्रवीण है वह ब्राहमण है ,जो लड़ाई में माहिर है वह क्षत्रिय है देश की सीमा के रक्षा  करता है ,जो व्यापार में प्रवीण है वह वैश्य है। शूद्र में विनम्रता का गुण होता है।वह सेवा करता है। 

The four categories of  occupations were created by me according to people's qualities and activities .Although I am the creator of this system ,know me to be the non -doer and eternal .


The  Vedas classify people into four categories ,not according to their birth ,but according to their natures.Such varieties of occupations exist in every society .Even in communist nations where equality is the overriding principle ,the diversity in human beings cannot be smothered .There are the philosophers who are the communist party think tanks,there are the military men who protect the country ,there are the farmers who engage in agriculture ,and there are the factory workers .

The Vedic philosophy explains this variety in more scientific manner ,It states that the material energy is constituted of three gunas (modes ):sattva guna (mode of goodness ),rajo guna(mode of passion ),and tamo guna (mode of ignorance ).The Brahmins are those who have a preponderance of the mode of goodness .They are disposed towards teaching and worship .The Kshatriyas are those who have a preponderance of the mode of passion mixed with a small amount of goodness .They are inclined toward administration and management .The Vaishyas are those who possess the mode of passion mixed with some mode of ignorance .Accordingly ,they form the business and agriculture class .Then there are the Shudras ,who are predominated by the mode of ignorance .They form the working class .This classification was neither meant to be according to birth ,nor was it unchangeable .Shree Krishana explains in this verse that the classification of the Vranashram system was according to people's qualities and activities.


Although God is the creator of the scheme of the world ,yet he is the non -doer .This is similar to the rain .Just as rain water falls equally on the forest ,yet from some seeds huge banyan trees sprout ,from other seeds beautiful flowers bloom ,and from some thorny bushes emerge.The rain ,which is impartial ,is not answerable for this difference .In the same way ,God provides the souls with the energy to act ,but they are free in determining what they wish to do with it ; God is not responsible for their actions .


गुरुवार, 26 सितंबर 2013

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत , अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ,

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम। 


YADA YADA HI DHARMASYA GLANIR BHAVATI BHARATA 

ABHYUTTHANAM ADHARMASYA TADATMANAM 

SRIJAMYAHAM


yada yada -whenever ;hi -certainly ;dharmasya --of  

righteousness ;glanirh -decline ;


bhavati -is ;bharata -Arjun ,descendent of Bharat ; 

abhyutthanam -increase ; 


adharmasya -of unrighteousness ; atmanam -self ;  srijami -

manifest;aham -I.


Whenever there is a decline in righteousness and an 

increase in unrighteousness 

,O Arjun ,at that time I manifest myself on earth .

Dharma is verily the prescribed actions that are conducive to 

our spiritual growth 

and progress ;the reverse of this is adharma 

(unrighteousness ).When 

unrighteousness  prevails ,the creator and administrator of 

the World intervenes by 

descending and  re -establishing dharma .Such a 

descension of God is called an 

Avatar .The word "Avatar " has been adopted from Sanskrit  

into English and is 

commonly  used for people's images on the media screen .In 

this text ,we will be 

using it in its original Sanskrit connotation ,to refer to the 

divine descension of God .

Twenty  four such desensions have been listed in the 

Bhagavatam .However ,the Vedic scriptures state that there 



are innumerable descensions of God:


janma -karmabhidhanani santi me riga sahasrashah

na shakyante 'nusankhyatum anantavan mayapi hi 

(Bhagvatam 10.51.36)


"Nobody can count the infinite Avatars of God since the 

beginning of 

eternity."These Avatars are classified in four categories ,as 

stated below :

1.Aveshavatar -When God manifests his special powers in an 

individual soul and 

acts though him .The sage Narad is an example of 

Aveshavatar .The Buddha is 

also an example of Aveshavatar .



2.Prabhavavatar -these are the descensions of God in the 

personal form ,where he displays some of his divine powers.

Prabhavavtaras are also of two kinds :

@Where God reveals himself only  for a few moments 

,complete his work ,and then departs .Hansavatar  is an 

example of this ,where God manifested before the Kumaras 

,answered their question, and left . 

(b)Where the Avatar remains  on the earth for many years 

.Ved Vyas ,who wrote the eighteen puranas and the 

Mahabharat,and divided the Vedas into four parts ,is an 

example of such an Avatar.

(3 )Vaibhavatar-When God descend in his divine form , and 

manifests more of his divine powers .Matsyavtar ,Kurmavtar 

,Varahavtar are all examples of Vaibhavatars.

(4 )Paravasthavatar -When God manifests all his divine 

powers in his personal divine form .Shree Krishana ,Shree 

Ram,and Nrisinghavatar are all Paravashthavatar .

This classification does not imply that any one Avatar is 

bigger than the other .Ved Vyas ,who is himself an Avatar 

,clearly states this :

sarve purnah shashvatashcha dehastasya parmatmanah 

(Padam Puran)

"All the descensions of God are replete with all divine 

powers ;they are all perfect and complete ."Hence ,we 

should not differentiate one Avatar as bigger and another as 

smaller .However in each descension ,God manifests his 

powers based on the objectives he wishes to accomplish 

during that particular descension .The remaining powers 


reside latently within the Avatar .Hence ,the above 

classifications were created .