बुधवार, 30 जून 2010

टमाटर की टिकाऊ किस्म तैयार की गई ...

साइंस- दानों ने अब टमाटर की एक ऐसी किस्म तैयार कर ली है जो ज्यादा देर तक तरो-ताज़ा बनी रहेगी ,जल्दी से खराब नहीं होगी जिसकी भंडारण अवधि (सेल्फ लाइफ )भी ज्यादा होगी ।
इस एवज ब्रूइंग ,बेकिंग आदि में स्तेमाल खमीर(ईस्ट )की एक जीवन इकाई से परम्परागत टमाटर को संयुक्त किया गया है ,टमाटर में ईस्ट की जीन मिलाई गई है ।
इस काम को अंजाम देने वाले साइंसदान भारतीय मूल के श्री अवतार हांडा साहिब हैं .आप पुर्दुए (पर्द्यु) विश्व -विद्यालय में कार्यरत हैं ।
इस किस्म में डाली गई जीन एक ऐसे यौगिक की मात्रा टमाटर में बढा देती है ,जो माइक्रोब्स द्वारा फल के खराब किये जाने को देर तक मुल्तवी रखता है .इसे 'फाउन्तैन ऑफ़ यूथ 'कहा जा रहा है सन्दर्भ -सामिग्री :-नाव ,तोमतोज़ (तूमातोज़ )विद एक्स्टेंदिद लाइफ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ३० ,२०१० )

हिमनदों के पिघलाव को कम करने के लिए ...

इन दिनों पेरू के एन -डीज़ शिखरों को (दक्षिण अमरीकी परबत माला तंत्र जो पश्चिमी तट के पनामा से लेकर तिएर्रा देल फ्येगो तक फैली हैं )वाईट -वाश किया जा रहा है .दसवा हिस्सा सफेदी से धक् भी दिया गया है .ऐसा हिमनदों के पिघलाव को रोकने ,मुल्तवी रखने के लिए किया जा रहा है ।
हम जानतें हैं किसी सतह को सफेदी से ढक देने पर उसका "एल्बिडो "कम हो जाता है .क्योंकि अब आपतित सौर विकिरण का ज्यादा अंश सतह से लौट ने लगता है ।
"एल्बिडो इज दी फ्रेक्सन ऑफ़ इन्सिडेंट लाईट देत इज रिफ्लेक्तिद बाई ए (एन ओब्जेक्त सुच एज ए प्लेनेट और मौंतें टॉप ऑर एनी अदर ओब्जेक्त ) सर्फेस ।"
इस एवज श्रमिकों को वाईट- वाश की मोर्टार्स को ४७०० मीटर की ऊंचाई तक ले जाना पड़ता है .यही पेरुवियन एन -डीज़ का ज्ञात एलटी -त्युद है .(समुन्द्र तल से ऊंचाई है )..इस अभ्याँ के पीछे एक गैर सरकारी संगठन "'ग्लासिअरेस दे पेरू "का अभिनव प्रयास है ।
इसकी कल्पना और इस विचार को अमली जामा पहनाने की ठानी है ,"एडुँर्दो गोल्ड" ने .आप विश्व -बैंक के उन २६ विजेताओं में से एक हैं ,जिन्होंने पृथ्वी को बचाने वाले १०० मूल विचारों में से एक को प्रस्तुत किया है ।
आपने "सेव दी प्लेनेट कोम्पितिसन -२००९" में भाग लिया था .आपने अपनी योजना पर काम ज़ारी रखा हुआ है हालाकि अभी इनामी राशि दो लाख डॉलर्स उन्हें मिलने बाकी हैं ।
तीन शिखरों का कुल १७३ एकड़ क्षेत्र सफेदी से ढका जाना है .यह शिखर दक्षिणी पेरू के एन -दियन इलाके "अयाकुचो "में हैं ।
शिखरों पर सफेदी करने के लिए जगों का स्तेमाल किया जा रहा है ,ब्रश का नहीं .इस एवज लूज़ रोक्स पर सफेदी (चुनापैंट )छिडका जा रहा है .दो एकड़ क्षेत्र पर सफेदी की जा चुकी है ।
गर्मियों में सफ़ेद कपडे क्यों पहने जातें हैं ?
ठंडा रखतें हैं इसीलिए ना ?.सूरज की रोशनियो का बहुलांश लौटा देतें हैं ,जबकि काली सतह उसे रोक लेती है ।
सफेदी सेव ढके शिखर ना सिर्फ विकिरण का बहुलांश लौटा -एंगें आसपास के क्षेत्र को ठंडा भी रखेंगे .इस प्रकार एक माइक्रो -क्लाइमेट ही पैदा हो जायेगी .ठंडक से और भी ज्यादा ठंडक और गर्मी से गर्मी पैदा होती है .यह विज्ञान है ,मुहावरा मात्र नहीं .लोक व्यवहार में भी ऐसा ही होता है .इन्फ्रा -रेड विकिरण तो हर ताप पर बाहर जाता ही है जो ग्रीन हाउस गैसों को रोके रहता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एन -डीज़ पीक "वाईट-वाश्ड " तू स्लो डाउन ग्लेशियर मल्ट (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ३० ,२०१० )

वह लड़कीहर पंद्रह मिनिट के बाद कुछ ना कुछ खाती है ,क्यों ?

वोमेन ई -ट्स एवरी फिफ्टीन मिनिट्स तू स्टे अलाइव (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ३० ,२०१० )।

वह लडकी दिन भर में तकरीबन ६० बार (सिक्सटी मिल्स )खाती है .एनर्जी लेविल को बनाए रखने के लिए उसे हर पंद्रह मिनिट के बाद कुछ ना कुछ खाना पड़ता है .दिन भर में ५,०००-८,००० केलोरीज़ का भोजन चाहिए उसे .फिर भी उसका वजन मात्र २५ किलोग्रेम वेट है .बॉडी फैट जीरो है .हाईट है :5 FEET 2 INCH ।

दुनिया भर के डॉक्टरों को हैरत में डाला हुआ है '२१ साला इस युवती ने जो अमरीका के ऑस्टिन में संचार पाठयक्रम की छात्रा है ।
इन दिनों एक भारतीय मूल के माहिर इसे एक जेनेटिक स्टडी का विषय बनाए हुए हैं .इस युवती को जिसका नाम लिज्जिए वेलस्क़ुएज़ है ज़िंदा रहने के लिए ही हर पंद्रह मिनिट बाद क्यों खाना पड़ता है ?
यह एक बहुत ही बिरले रोग "निओनतल प्रोजिरोइड सिंड्रोम से ग्रस्त है .इस रोग में शरीर से चर्बी का क्षय ,ऊतकों का अप -विकास (तिस्यु दीजेनरेसन ),तथा बुढापा बहुत तेज़ी से आ घेरता है ।
अभिमन्यु गर्ग इस अध्धययन के अगुवा हैं .आप टेक्सास विश्व -विद्यालय में शोध रत हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-वोमेन ई -ट्स १५ मिनिट्स तू स्टे अलाइव (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ३० ,२०१० .).

शारीर के कुदरती प्रति -पिंड (एंटी -बॉडी )ही देंगें -फ्लू का टीका ...

हमारे शरीर का प्रकृति प्रदत्त रोग निरोधी तंत्र तरह - तरह की इम्म्युंन सेल्स से लैस है .बी -कोशायें ही शरीर पर बेक्टीरिया या फिर वायरस का हमला होने पर (एक एंटीजन )एक एंटी- बॉडी एंटीजन के सन्गत बनाने लगता है .फ्लू का हमला होने पर भी ऐसे ही प्रति -पिंड बनतें हैं .चाहें कैसा भी आम या ख़ास किस्म का फ्लू हो सभी के संगत प्रति -पिंड बनतें हैं जो हर प्रकार के फ्लू की काट में कारगर हैं (इसीलियें फ्लू को सेल्फ लिमिटिंग डिजीज भी कह दिया जाता है )।
इन्हीं प्रति -पिंडों को बूस्ट कर ,संपुष्ट कर ज्यादा असर कारी बनाने का मतलब एक असर -कारी टीका कहलायेगा ।
विस्कोंसिन तथा सीट्तले(सिएटल )विश्व -विद्यालय के साइंस दानों ने इन इम्म्युंन सिस्टम्स प्रोटीनों की आज़माइश माइस पर की है .फ्लू की लीथल डोज़ की काट में इन प्रोटीनों को कारगर पाया गया है .इसका मतलब यह हुआ ,इन्हीं प्रोटीनों का और भी ज्यादा सुधरा रूप लैब में गढ़ा जा सकता है .जो हर किस्म के फ्लू (एंडेमिक,या पैन -डेमिक )की काट कर सकता है .शरीर में ही छिपा है फ्लू का इलाज़ ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'बॉडी मेक्स एंटी -बॉडीज देत केंन फाईट आल फ्लू वायरस -इज '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ,३० ,२०१० )

आघात ,ह्रदय -रोग ,उच्च रक्त चाप के खतरे को कम कारने के लिए ...

एक भारतीय मूल के ब्रितानी साइंसदान के नेत्रित्व में संपन्न एक ताज़ा तरीन अध्धययन से पता चला है ,चुकंदर का ज्यूस आघात ,ह्रदय -रोगों और हाइपर -टेंसन के खतरे के वजन को कम करता है .अध्धययन के नतीजे 'हाइपर -टेंसन 'जर्नल के नवीनतर अंक में प्रकाशित हैं ।
अध्धययन क्वीन मेरी कालिज ,लन्दन कैम्पस की अमृता अहलुवालिया के नेत्रित्व में संपन्न हुआ है ।
दरअसल बीट-रूट्स में नाइट्रेट पाया जाता है .यही उच्च रक्तचाप को जादुई तरीके से कम करता है ,आघात ,हृद -रोग के खतरे के जोखिम को घटाता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-बीट- रूट ज्यूस ऋ-द्युसिज़ स्ट्रोक रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून ३० ,२०१० )

डायबिटीज़ जीन सर्च की दिशा में एक और कदम .....

इन दिनों माहिरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम अब तक के सबसे बड़े अध्धय्यन में मशगूलडी एन ए और डायबिटीज़ अंतर -सम्बन्ध के नए क्षितिज आन्ज़ रही है .ताकि जाना जा सके -सेकेंडरी डायबिटीज़ की वर्किंग को थोड़ा और करीब से ;.. एक नै रन -नीति के तहत असरकारी दवाएं इस ला -इलाज़ रहे जीवन शैली रोग के खिलाफ मुहीम में तैयार की जा सकें ।
१२ नए जेनेटिक रीजन्स (आनुवंशिक इलाकों )की खोज ऐसे जीवन खण्डों की संख्या को जिनका सम्बन्ध डायबिटीज़ से जोड़ा जा रहा है ,बढ़ाकर ३८ कर देती है ।
अंतर -राष्ट्रीय रिसर्चरों के संघ का कहना समझना है -इन अन्वेसनों से ऐसी जैविक क्रियाओं का खुलासा होगा जिन्हें लक्षित कर ला -इलाज़ रहे आये मधु -मेहरोग के इलाज़ के लिए कारगर दवाओं की खोज को एक नै परवाज़ मिलेगी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-डायबिटीज़ जीन सर्च फाइंड्स १२ न्यू लिनक्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ .)

जूँ (बॉडी लाउस)के जीनोम का खुलासा .......

साइंसदानों ने पहली मर्तबा सबसे छोटे जीनोम बॉडी -लाउस -जीनोम के तमाम जीवन खण्डों का क्रम पढ़ समझ लिया है .इससे लाइस -एंड ह्यूमेन -बायलोजी एंड इवोल्युसन को समझने में बड़ी मदद मिलेगी ।
आजिज़ आजाती हैं जूँ और लीख से लम्बे घने केशवाली सुंदरियांऔर सुदर्शन कुमार ,यह चुपके -चुपके रात दिन खून चूसता रहता है और बा -मुश्किल दिखलाई देता है तेज़ -बीनाई वालों को ही ।
बर्री पित्तेंद्रिघ ने एक अंतर -राष्ट्रीय टीम के साथ इस अध्ययन का समन्वय किया है .आप इलिनॉय यूनिवर्सिटी में कार्य रत हैं ।
अलावा इसके मस्सचुसेत्त्स विश्व -विद्यालय और सियोल नेशनल यूनिवर्सिटी के साइंसदानों ने इसके एंजाइम्स का विसलेसन प्रस्तुत किया है ।
पता चला है लाउस में न्यूनतम डी -तोक्सिफिकेसन एंजाइम्स (विष को नाकार करने वाले किण्वक) हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-एक्सपर्ट्स सीक्वेंस जीनोम ऑफ़ लाउस तू स्टडी इवोल्युसन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ )

मंगलवार, 29 जून 2010

पुरुषोंके लिए दवा युक्त केंडी(फ्लू -लोज़ेन्ज़िज़)...

थोड़ा सा बीमार हुए नहीं ,हाय तोबा शुरू .ज़रा सा फ्लू और हाय मर गए ,करहाना शुरू .औरतें आजिज़ आजातीं हैं ,पुरुषों की इस आदत से .वैसे भी औरत में पुरुष की बरक्स दुःख दर्द ,गर्मी -सर्दी ,हारी -बीमारी सहने झेलने कीक्षमता पुरुषों से ज्यादा रहती है .इम्म्युंन सिस्टम रोग प्रति -रोधी तंत्र मजबूत होता है ।
इन्तार्फेरोंन -अल्फा युक्त एक लोज़ेन्ज़ अब ख़ास -कर केपुरुषों लिए उतारी गई है जो फ्लू के लक्षणों से पैदा बे -चैनी को कम करके पुरुषों को चीयर फुल रखती है .कामसे नदारद नहीं रहना पड़ेगा फ्लू केदौरान इसके रोजाना सेवन से .अलबत्ता फ्लू होने की दर कमनहीं होगी .१५ बरसों के शोध कार्य केबाद यूनिवर्सिटी ऑफ़ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया,पर्थ कैम्पस के रिसर्चरों ने इसे तैयार किया है .यह पुरुषों के इम्म्युं सिस्तमको मुह मेघुलते ही बरगला देगी ,खबरदार कर्देगी ,वायरस के हमले केबारे में .वास्तव में इन्तार्फेरोंन - अल्फा एक बचावी प्रोटीन है जो वायरल हमला होने पर रोगप्रति -रोधी तंत्र के अनुदेश पर हमारा शरीर बनाने लगता है कुदरती तौर पर .अब से ५० बरस पहलेही लोज़ेन्ज़िज़ तैयार कर ली गईं थीं .तब इन्हें 'विषाणु -विज्ञान केमुकुट का सबसे कीमती हीरा कहा गया था .क्राउन -ज्वेल ऑफ़ वाय्रोलोजी कहा गया था ।
अब यही औरत की मदद पुरुषों किहारी बिमारी में घर सिर पर उठाने कीआदत से निजात दिलवाएगी ।
लेकिन क्यों यह सिर्फ पुरुषों के लिए ही असर कारी पाई गई है .सिर्फ अनुमेय ही है यह अजूबा .शायद इसकी वजह पुरुषोंके इम्म्युंन सिस्टम का औरतों से कमज़ोर रह जाना है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-नाव, ए लोज़ेन्ज़ तू ट्रीट मैंन फ्लू (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० )

डायबिटीज़ की एक दवा ही बनी ख़तरा -ए -दिल ....

डायबिटीज़ ड्रग रेज़िज़ हार्ट अटेक रिस्क ?(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ ,टाइम्स ट्रेंड्स ।)
ग्लेक्सो -स्मिथ -क्लाइन पीएलसी की एक दवा है 'अवन्डिया 'यह मधुमेह( डायबिटीज़ )के लिए तैयार की गई थी ।
हालिया संपन्न दो अध्धय्यनों से इस दवा की और शक की ऊंगली उठ गईं है ,यह दिल के लिए गंभीर ख़तरा बन सकती है .अब यह अमरीकी दवा विनियामकों (रेग्युलेटर्स )को देखना समझना है -दवा की बिक्री ज़ारी रखी भी जाए या नहीं ।
२८-३९ फीसद तक यह दवा हार्ट अटेक के मौके पैदा कर देती है .यही विसलेसन है ५६ के करीब क्लिनिकल ट्रायल्स का .क्लीवलैंड क्लिनिक ,ओहायो ,२००७ में संपन्न एक अध्धय्यन के अपडेट में यही खबर दी है ।
एक और अध्धययन में गमेंट रिसर्चरों ने २,२७ ,००० US Medicaretients के विसलेसन के baad ptaa lagaayaa है ,'अवन्डिया 'jyaadaa khatarnaak है दिल के लिए iski pratiyogi दवा "Takeda फर्मसुतिकल कम्पनी 'की बनाई "एक्तोस '(ए सी टी ओ एस )के बनिस्पत ।
"अवन्डिया "का जान्रिक नाम है "रोसी -ग्लिताजोंन '(आर ओ एस आई जी एल आई टी ए जेड ओ एन ई ).

ज्यादा सताता है आपका अपना जीवन -साथी ....

स्पौसिज़ कॉज मोर स्ट्रेस देन बोसिज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९,२०१० )।
एक नवीन अध्धययन से पता चला है घर में अपने जीवन साथी (स्पाउस )के साथ रहना दफ्तरी बोसिज़ के संग साथ काम करने से ज्यादा दबाब पूर्ण और अंग्जायती (बे -चैनी)का वायस बनता है .अध्धययन ब्रिटेन में तकरीबन ३००० लोगों की पड़ताल के बाद संपन्न हुआ है ।
बेशक घर जैसी दुनिया में कोई और जगह नहीं लेकिन अगर थोड़ा सा रिलेकसेसन भी चाहिए तो दफ्तर ही बेहतर सिद्ध होगा .बेशक कहा गया -ईस्ट और वेस्ट हाउस इज दी बेस्ट ।
लेकिन थोड़े से बस थोड़े से सुकून के लिए काम करने की जगह बेहतर रहती है यही अध्धययन का लब्बोलुआब है ।
आइये सर्वे के कुछ आंकड़ों पर गौर करतें हैं -पति लोग पत्नियों का ब्लड प्रेसर बढाने वाला व्यवहार ज्यादा करतें हैं ,बनिस्पत बीवियों के .(बेशक ब्रितानी शौहर ऐसा कर्तेब होंगे )।
सर्वे में शामिल कुल ५८ फीसद लोग मानते हैं ,उनका पार्टनर ही उनके लिए तनाव का तम्बू खडा किये रहता है .जबकि केवल ४३ फीसद लोग ऐसा अपने मेनेजर (दफ्तरी बोस या सीनियर्स )के बारे में सोचते कहतें हैं ।
१८ फीसद महिलाए तनाव के लिए अपने पार्टनर को जिम्मेवार मानती है ,जबकि १२ फीसद मर्द अपनी संग्नियों के बारे में ऐसा ही सोच रखतें हैं .इलेक्ट्रोनिक्स एंड हेल्थ केयर मेंयुफेक्च -रर फिलिप्स के सौजन्ने से संपन्न हुआ है यह पोल ।
पता चला ,महिलाओं को अपनी पगार (वेज़िज़ ,तनखा )से ज्यादा चिंता अपने वेट (वजन )की सताती रहती है .सर्वे में शामिल तकरीबन ५० फीस्वाद महिला वेट को अपने स्वास्थ्य और खुश हाली का एक महत्व पूर्ण घटक मानती है जबकि २७ फीसद ही यह बात अपनी सेलरी के बारे में कहतीं हैं ।
वेट के दुष्प्रभाव को आइन्दा के लिए भी महिलाए अपने स्वास्थ्य के लिए हाई -कोलेस्ट्रोल से ज्यादा ,कैंसर से भीज्यादा असर डालने वाला समझतीं हैं .जबकि ३६ फीसद मर्द ही ऐसा सोचतें हैं .३३ फीसद मर्द यही बात अपनी सेलरी के बारे में कहते समझतें हैं ।
तीन चौथाई महिलायें अपने स्वास्थ्य की खातिर ,खुश- हाली की खातिर घर और दोस्तों के साथ समय बिताना पसंद करतीं हैं जबकि ५९ फीसद मर्द भी ऐसा ही सोचतें हैं ।
सर्वे में शरीक सभी लोग अपने भविष्य के प्रति आश्वस्त हैं ,आश्वादी हैं ,आधे ऐसा भी मानतें हैं उनकी उम्र औसत उम्र ७९ बरस से ज्यादा रहने वाली है .तीन फीसद १०० साला होने की बात कहतें हैं .कितने ही कहतें हैं ,भविष्य की मेडिकल टेक्नोलोजी आदमी को आज के ला -इलाज़ रोगों से भी निजात दिलवाएगी .वह भी ज़िंदा है उस दिन के लिए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-

उच्च रक्त चाप के इलाज़ में थोड़ी सी मदद के लिए डार्क चोकलेट ..

रिसर्चरों ने अपने एक अध्धययन में पता लगाया है ,रोजाना डार्क चोकलेट का सेवन हाइपर -टेंसन के प्रबंधन में आधा घंटा व्यायाम की तरह ही मदद पहुंचाता है .इतना ही नहीं स्ट्रोक का ख़तरा भी २० फीसद कम हो जाता है ।

यह करिश्मा है डार्क चोकलेट में एक रसायन समूह 'फ्लाव्नोल्स 'का .यह रसायन काया की सारी ब्लड वेसिल्स को पूरी तरह खोल देता है .रक्त वाहिकाएं अब पूरा रक्त उठाने लगती हैं .रक्त चाप घट जाता है ।
यह अध्धय्यन १९५५ -२००९ के बीच संपन्न उन १५ अध्धय्यनों का निचोड़ है जो इस दरमियान चोकलेट और कोकोआ को लेकर किये गए .पता चला जो लोग रोजाना डार्क चोकलेट का सेवन करतें हैं उनका रक्त चाप ५ फीसद कम हो जाता है .लेकिन यह फायदा उन्हें ही मिल पाता है जो उच्च रक्त चापसे ग्रस्त रहतें है उन्हें नहीं जिनका रक्त चाप सामान्य ११० /७० रहता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-चोकलेट हेल्प्स ट्रीट हाई बीपी ,कट्स स्ट्रोक रिस्क बाई २०%(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० )

सन्दर्भ -

कैंसर सेल्स के खात्मे के लिए 'गैस बबिल्स '

रिसर्चरों ने कैंसर ग्रस्त कोशिकाओं के खात्मे के लिए एक नै तरकीब ढूंढ ली है .इसके तहत असर ग्रस्त हिस्से तक एक्स्प्लोडिंग गैस बबिल्स पहुंचाए जातें हैं .इनके विस्फोट के साथ ही कैंसर ग्रस्त कोशायें भी उड़ जातीं हैं ।
यह तकनीक लीड्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने ईजाद की है जिसमे माइक्रो -स्कोपिक बबिल्स (बाल से दस गुना कम आकार )की सहायतासे केमोथिरेपी के तहत दिए जाने वाले रसायन ट्यूमर तक पहुंचाए जातें हैं .इस प्रकार असर ग्रस्त हिस्से तक ज्यादा से ज्यादा दवा पहुँचती है .क्योंकि दवा सीधे सीधे कैंसर ग्रस्त कोशाओं तक पहुँचती है .माइक्रो -स्कोपिक बबिल्स देखते ही देखते कैंसर कोशिकाओं के गिर्द गुच्छ बना लेतें हैं ,दीज़ क्लंप अराउंड दी ट्यूमर ।
अब एक अल्ट्रा -साउंड स्पंद (पल्स )बुलबुले के अन्दर की गैस को कम्पित करती है ,कम्पन पैदा करती है बुलबुले में ज़ोरदार ,फलस्वरूप बुलबुले एक विस्फोट के साथ फट जातें हैं .विस्फोट से पैदा शोकवेव (शाक वेव )कैंसर कोशिकाओं को छलनी कर देती है नतीज़न दवा अन्दर तक असर करती है .कीमोथिरेपी के अवांछित प्रभाव भी कमतर हो जातें हैं ,क्योंकि दवा असर ग्रस्त कैंसर कोशाओं तक ही पहुँचती है ,आसपास की स्वस्थ कोशायें नष्ट होने से बच जातीं हैं ।
अल्ट्रा साउंड स्केन्स में साफ़ तस्वीर के लिए इन्हीं बुलबुलों का स्तेमाल किया जाता रहा है ।
फिलवक्त इसकी आज़माइश कोलो -रेक्टल कैंसर के इलाज़ में ही की जा रहीं हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-गैस बबिल्स तू बिलों अवे कैंसर सेल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २९ ,२०१० )

सोमवार, 28 जून 2010

बॉडी फेट और मसल सेल्स से फिर उगाई गईं अस्थियाँ (बोन्स).

इन ए ब्रेक थ्रू ,बोन ऋ -ग्रोन फ्रॉम फैट ,मसल सेल्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २८ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ )।
पेशीय ऊतकों एवं वसीय कोशिकाओं(फैट सेल्स ) से साइंसदानों ने एक बार फिर से क्षति ग्रस्त अस्थि (बोन )एवं उपास्थि (कार्तिलिज )बढ़ाकर दिखलाई है .यह कोशिकाएं मरीज़ से ही ली गईं तथा इन्हें क्षति ग्रस्त हिस्से पर रोप दिया गया।
यह करिश्मा हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइंसदानों के नेत्रित्व में माहिरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने कर दिखाया है muscle और फैट सेल्स को कामयाबी के साथ पहले कार्तिलेज़ और फिर बोन में तब्दील किया गया .इसके लिए एक ख़ास किस्म की जींस थिरेपी आजमाई गई ।
रोदेंट्स (चूहे ,कुतर कर खाने वाले अन्य कृन्तक )पर किये गए परीक्षणों से पता चला ,प्रत्यारोपित (इम्प्लान्तिद )पेशी और फैट जल्दी ही भंग अस्थियों के बीच एक पुल (एक ब्रिज )बना लेतें हैं ।
चोट ग्रस्त होने के ८ सप्ताह के बाद अस्थियों की पूरी ताकत (इलास्टिक स्ट्रेंग्थ ,रेजिलिएंस )लौट आती है .हम मनुष्यों में एक बार हड्डी टूट जाए ,उसे जुड़ने सुधरने में ,क्षति पूर्ती करने में महीनो लग जातें हैं .संदर्भित आनुवंशिक प्रोद्योगिकी ,अभिनव आनुवंशिक चिकित्सा नी -इन्जरीज़ की ऋ -कवरी को पंख लगा सकती है .अस्थि और उपास्थि की चोट को शीघ्र और दक्षता के साथ ठीक कर सकती है .यह काम अपेक्षाकृत कम कीमत पर हो सकता है ,सस्तें में .अध्धययन के अगुवा रहेक्रिस एवंस का यही कहना समझना है ।
जिन्हें जीन एक्तिवेतिद मसल त्रास्प्लांत किया गया (प्रत्यारोप लगाया जीन -एक्तिवेतिद पेशी का )उनमे १० दिनों के अन्दर क्षतिग्रस्त अंग के गिर्द ब्रिज बनने से जल्दी ही लाभस्वास्थ्य मिला.८ हफ़्तों में असर ग्रस्त अंग पूरी क्षमता के साथ काम करने लगा ।
एक बहुत ही बिरला रोग होता है जिसमे मरीज़ की पेशियों में अस्थियाँ बनने लगतीं हैं .दीज़ पेशेंस केरी ए वेरिएसन ऑफ़ ए जीन देत कोड्स फॉर ए मोलिक्युल काल्ड 'बोन -मोर्फो -जेनेटिक प्रोटीन '.इस रोग का नाम है -फाइबरो -डिस्प्लेजिया -ओसिफिकेंस प्रोग्रेसिवा 'इसी विकार का फायदा उठाया है संदर्भित जीन थिरेपी ने .


कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज की योजना खटाई में पड़ सकती है लीकेज से ....

कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज की प्रोद्योगिकी अभी अपनी शैशवास्था में ही है ,अभी ठीक से काम शुरू भी नहीं हुआ है आशंकाएं फल फूलने लगीं हैं .योजना थी स्रोत पर ही कार्बन डायोक्साइड को बिजली उत्पादन संयंत्रों से जो दिनरात जीव-अवषेसी ईंधन तेल ,गैस और कोयला फूंक रहें हैं ,अलग करके समुन्दर या फिर ज़मीन के नीचेरीत चुके गैस ,दिस्यूज्द ,नाकारा पड़े गैस फील्ड्स में दफन कर दिया जाए .दसियों अरब डॉलर का पूँजी निवेश इस एवज अमीर देशों ने रख छोड़ा है ।
लेकिन यहाँ तो सिर मुंडाते ही ओले पड़ें हैं .इस प्रोजेक्ट के आलोचक बारहा यह आशंका व्यक्त करते रहें हैं ,समुन्दर में गहरे दफ़्न की गई कार्बन डायोक्साइड के एक बार रिसाव शुरू होने के बाद समुन्दर का अमलीकरण बढ़ने लगेगा .इसका प्रभाव समुंदरी खाद्य श्रृंखला पर पड़े बगैर नहीं रहेगा ।
गैस के वायुमंडल में लौटने के नतीजे भी कम घातक नहीं रहेंगें .डेनिश सेंटर फॉर अर्थ सिस्टम साइंस ,हुम्लेबैक ,के साइंसदानों ने ऐसी ही आशंका ज़ाहिर की है ।इनके द्वारा संपन्न ताज़ा अध्धय्यन के यही नतीजे रहें हैं .अध्धय्यन के मुखिया रहें हैं गरी शाफ्फेर .आप डेनिश सेंटर फॉर अर्थ सिस्टम साइंस ,हुम्लेबैक में प्रोफ़ेसर के बतौर कार्य रत हैं .
लेदेकर कार्बन -डायोक्साइड को ज़मीन के नीचे सुरक्षित चेम्बरों में दफ़्न करने का विकल्प ही अपेक्षाकृत सुरक्षित प्रतीत होता है ,बा -शर्ते भूमि के नीचे चलने वाली हरारत ,भू -कंप एवं इतर विक्षोभ इस भू -गर्भीय कक्ष में रिसाव की वजह ना बनें ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-लीक रिस्क अंडर-माइंस कार्बन -डायोक्साइड कैप्चर ,सेज स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २८ ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ २८ ).

चेहरों को पहचानने पढने में औरतें मर्दों से आगे रहतीं हैं ...

चेहरों को पहचानने पढने में संवेगों को भांपने में औरतें मर्दों से आगे रहतीं हैं .कहा समझा भी गया है -वोमेन हेव दा सिक्स्थ सेन्स ।
साइंसदान इसकी आनुवंशिक वजहें बतला रहें हैं .आखिर औरत को बच्चे के हाव भाव से ही कयास लगाना रहता है ,किस पल छिन बच्चे को क्या चाहिए .बच्चे की देखभाल का जिम्मा भी परम्परा से उसका ही रहा आया है ।
एक अध्धययन में १२० लोगों को पहले १०-२० अजनबी चेहरे को तस्वीरें दिखलाई गईं .केवल २० सेकिंड्स के लिए ..इन तस्वीरों को दिखलाने से पहले डिजिटली तब्दील कर दिया गया था ,दाग धब्बे ,तिल आदि मार्क्स साफ़ कर दिए गए ताकि कोई अलग से निशानी बाकी ना रहे .सिर्फ चेहरे के नाक नक्स ही याद रहें ।
अब इन्हें ३०-५० और तस्वीरों के ढेर में मिला दिया गया .अब पहले दिखलाए गए चेहरे अलग करने को कहा गया ।
योर्क यूनिवर्सिटी ,टोरोंटो के माहिरों के अनुसार औरतें मर्दों से चेहरे पहचानने के मामले में पांच अंक आगे रहीं ।
गे -मेंन स्ट्रेट -मैंन से आगे रहे .लेफ्तीज़ भी बाज़ी मार गए ।
मनो -विदों की राय में ऐसा प्रतीत होता है ,गेज़ और औरतें अपने दिमाग के दोनों अर्द्ध गोलों का स्तेमाल करतें हैं .

फुट- बाल एक आयाम यह भी ......

फ़ुटबाल रीप्ले हेल्प्स फाईट डिमेंशिया इन मैंन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २८ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ ।).

ग्लासगो कालेदोंनियन विश्व -विद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है कुछ ख़ास स्मरणीय फुट बाल मुकाबलों से जुडी यादें रीप्ले देखने पर लौट सकतीं है डिमेंशिया से ग्रस्त लोगों की भी .वह अपने पूर्व जीवन की स्मृतियों में लौट सकतें हैं .ता -उम्र जिनके लिए फुट बाल मैच देखना एक पेशन बना रहा हो ,कुछ स्मरणीय क्षण इस खेल के यादों में बस जातें हैं .कुछ ख़ास मुकाबलों से जुडी घटनाएँ भूलती कहाँ है ?।

एक प्रोजेक्ट के तहत इस तथ्य का खुलासा किया है रिसर्चरों ने .अध्धययन के तहत मैच फातोग्रेफ्स ,प्रोग्रेम्स पर चर्चा चली ।

मेमर -बिलिया से जुडी यादों को चर्चा के दौरान स्मृति में लौटते देखा गया .सब्जेक्ट्स में डिमेंशिया ग्रस्त लोगों को शामिल किया गया था .यादों के समुन्दर में सबको लौटते देखा गया .खुल कर चर्चा की सबने खिलाड़ियों के यादगार पलों की . .

अब मर्दों के लिए भी "गर्भ -निरोधी "टिकिया ...

औरतों के लिए खुशखबरी :नाव कोंटासेप्तिव पिल जस्ट फॉर मैंन (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २८ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ )।
साइंसदानों की एक इजरायली टोली ने 'स्सपर -मेटा-ज़ोआ'शुक्राणु बनाने वाली जैव -रासायनिक -फेक्टरी को नाकारा ,बेअसर कर ,पुरुषों के लिए तैयार कर ली है एक गर्भ -निरोधी टिकिया .अभी तलक इस एवज मर्दों को हारमोन की सुइयां ही लगवानी पड़तीं थीं ।
वास्तव में शुक्राणु के अन्दर एक जीवन क्षम (वाइटल,बहुत आवश्यक )प्रोटीन मौजूद रहती है .इसे अलग निकाल देने पर शुक्राणु मुरदार हो जाता है ,जीवन क्षमता खों देता है .रिसर्चरों ने इसे ही बेअसर बनाने वाली टिकिया तैयार की है ।
इस प्रोटीन के बिना औरत गर्भ धारण नहीं कर सकती .सबसे बड़ी बात यह ,तीन माह में बस एक टिकिया अवांछित प्रेगनेंसी को मुल्तवी रखेगी .कोई दुष्प्रभाव नहीं हैं इस गोली के ऐसे भी दावे हैं .अब परिवार नियोजन के मामले में औरतें मर्दों का भरोसा कर सकेंगी .रोज़ मर्रा गोली खाने का झंझट जो नहीं है .

खिलाड़ियों में एस्मा की वजह बन जाती है कसरत .....

एक्सर -साइज़ कौज़िज़ एस्मा इन एथलीट्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ )।
माहिरों के अनुसार तकरीबन खिलाड़ियों में से आधे खिलाड़ी एक्सर -साइज़ की वजह से ही दमे (एस्मा )की चपेट में आ जातें हैं ।
आंकड़ों की जुबानी जहां ब्रितानी आबादी में दमे की दर ८ फीसद ही है वहीँ खेल खुद प्रतिभागियों में यह इसकी सात गुना ज्यादा है ।
माहिरों के अनुसार यह आकडे १९८९ -२००६ के दरमियान एक्सर -साइज़ से पैदा (ट्रिग्गर के रूप में )श्वसन सम्बन्धी ,दमे की शिकायतों से ताल्लुक रखने वाले तमाम अध्धय्यनों के विसलेसन के बाद प्राप्त हुएँ हैं ।
पता चला इसका (व्यायाम का )दुष्प्रभाव ५४ फीसद एलीट एथलीट्स पर पड़ता है .जब की खिलाड़ी के लिए खेल कूद एक आवश्यक चीज़ है .यही एक ट्रिग्गर बन जाए दमे के लिए इससे बुरी और क्या बात हो सकती है इन अव्वल दर्जे के खिलाड़ियों के लिए ।
इनमे भी ज्यादा असर ग्रस्त तैराक ,विंटर स्पोर्ट्स की तैयारी में जुटे , तथा एन्द्युरेंस -एथलीट्स होतें हैं .स्पोर्ट्स मेडिसन के माहिर भी ऐसे में हैरान परेशान हैं .

अति एच डी एल की भी भली नहीं ...

कहा गया है "अति सर्वत्र वर्ज्यते "अति हर चीज़ की बुरी .अब तक यही समझा जाता है ,हाई -डेंसिटी-लिपो -प्रोटीन (खून में घुली एक प्रकार की चर्बी ,चिकनाई )दिल के लिए अच्छी तथा एक और किस्म "लो -डेंसिटी -लिपो -प्रोटीन्स 'बुरी रहती है .पहले प्रकार की चिकनाई हृद रोगों से अपेक्षाकृत बचाए रहती है और दूसरे किस्म की उन्हें न्योता देती है ।लेकिन यह बात अमूमन उन पर ही लागू होती है जो दायाबेतिक नहीं है ।

लेकिन यही बात "प्राइमरी दाय्बेतिक्स "पर लागू नहीं होती है .खासकर दाय्बेतिक वोमेन के लिए जबकि वह जन्मना इसकी गिरिफ्त में रही आई हो यानी प्राइमरी दायाबितीज़ से ग्रस्त हो ।
पित्त्स्बुर्घ (पिट्सबर्ग )के रिसर्चरों ने अपने एक अध्धय्यन में बतलाया है ,प्राइमरी डायबिटीज़ से ग्रस्त उन महिलाओं के लिए जिनमे एच डी इल का स्तर खून में बढा रहता है हृद रोगों के खतरे का वजन बढ़ जाता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-"तू मच गुड कोलेस्ट्रोल इज बेड "(टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,टाइम्स ट्रेंड्स ,जून २८ ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ १५ .)

बरसों पहले ही रजो -निवृत्ति की इत्तला देगा रक्त परीक्षण.

सून ,ब्लड टेस्ट तू प्रिडिक्ट मिनोपौज़ :साइंटिस्ट्स (दी इंडियन एक्सप्रेस ,इंटर -नेशनल ,जून २८ ,लेट सिटी एडिसन ,नै -दिल्ली ,पृष्ठ ११ ।).
योरोपीय फर्टिलिटी कोंफरेंस(रोम में आयोजित ) के समक्ष शीघ्र ही इरानी साइंसदान अपने उस अध्धय्यन के बारे में खुलासा करेंगे जिसमे इन्होनें २०-४० साला २६६ महिलाओं के खून के नमूने लेकर एक 'एंटी -मुल्लेरियन हारमोन 'की मौजूदगीकितनी है , दर्ज़ की है ।
इस हारमोन "ए एम् एच "की मात्रा यह खबर दे सकती है ,अब अंडाशय (ओवरीज़ )में कितने अंडे बचे हैं .जन्म के समय इनकी तादाद सुनिश्चित संख्या लिए होती है ।
इसके बाद के ६ बरसों में एक बार फिर दो और ब्लड साम्पिल्स इन महिलाओं के लिए गए .अलावा इसके इनका फिजिकल एग्जामिनेसन भी किया गया ।
इसी हारमोन की मात्रा पर आधारित अब एक गणितीय माडिल तैयार किया गया .यह एक प्रकार से भविष्य कथन ,एक प्रागुक्ति ,बन सकता है .बतला सकता है -"कब महिला मिनो -पौज़ल हो सकती है ,रजो -निवृत्त हो सकती है ,कब तक मेन्स्त्र्युअल् ब्लड फ्लो छीज कर बंद हो सकता है मुकम्मिल तौर पर "
इस परीक्षण की कामयाबी उन महिलाओं के लिए बड़े काम की साबित हो सकती है ,जो जल्दी मीनो -पौज़ल हो जायेंगी (चालीस के आसपास ही प्रौढावस्था से पहले ,फोर्तीज़ में ही )।
वक्त रहते महिला माँ बनने के वक्त का निर्धारण कर सकती है .मिनो -पोज़ से दस बरस पहले ही फर्टिलिटी छीज सकती है . अध्धय्यन के दरमियान ६३ महिलायें रजो -निवृत्त भी हो गईं .चार माह का बामुश्किल फर्क दर्ज़ किया गया ,प्रिदिक्सनऔर वास्तव में मीनो -पोज़ल होने में ।
भरोसे मंद माना जा सकता है इस प्रागुक्ति ,भविष्य -कथन को .१९९८ से ज़ारी है यह अध्धय्यन ।
इस मोडिल के कामयाब सिद्ध होने के गहरे अर्थ निकलेंगें .२० साल की उम्र में ही इस ब्लड टेस्ट के ज़रिये रजो -निवृत्ति की उम्र जानी जा सकेगी .यही कहना है डॉ रमजानी तेहरानी का .आप शहीदबेहेष्टि यूनिवर्सिटी ऑफ़ मेडिकल साइंसिज़ ,तेहरान में असोशियेत प्रोफ़ेसर है ,इस अध्धययन के मुखिया भी आप ही हैं .

टेक्नोलोजी का एक और करिश्मा :मेडिकल असिस्टेंस

अब डॉक्टरों की मदद के लिए ऐसे मेडिकल असिस्टेंस आ गए हैं जो बाल -रोगों (पिदियात्रिक एल्मेंट्स )के लक्षणों की जानकारी रखतें हैं .हमारी आपकी भाषा समझतें हैं ,मरीज़ की केस हिस्टरी तैयार कर सकतें हैं .आइन्दा आने के लिए आपको डॉ का अपोइन्त्मेन्त दे सकतें हैं ।
गर्ज़ यह ,ये प्रिल्मिनारी डायग्नोसिस (आरंभिक रोग निदान का जायजा ले सकें हैं )।
कंप्यूटर साइंसदान एरिक होर्विट्स (माइक्रो -सोफ्ट रिसर्च लेबोरेटरी )कहतें हैं :मशीनों से संवाद सहज संभव है ,हमारे आज के नौनिहाल और आइन्दा आने वाली संतानें इसे एक स्वाभाविक बात मानेगें समझेंगें ।
कंप्यूटर साइंसदान आखिर "कृत्रिम बुद्धि "आर्टिफिशियल -इंटेलिजेंस 'पर लगातार काम को आगे और आगे बढा रहें हैं .परवान चढ़ेगी उनकी यह कोशिश और कशिश .इसीलिए इनदिनों ऐसी मशीने दिखलाई दे सकतीं हैं जो हमारे साथ बातचीत कर समझ सकतीं हैं .सुन समझकर यह तर्क भी कर सकतीं हैं ।
मानव -मशीन संवाद एक नै परवाज़ ले रहा है .कुछ नए 'जोब्स 'पैदा होंगें .कुछ लोगों की जो नाकारा हैं ,छटनी भी हो सकती है .कुल मिलाकर रोज़गार के अवसर कम नहीं होंगें ।
कंप्यूटर सुन समझने लगें हैं 'कृत्रिम -बुद्धि 'क्षेत्र का यह एक विकाश -मान आयाम है ।
गत तीन बरसों में हीऐसे अमरीकी डॉक्टर्स की संख्या तीन गुना बढ़ गई है ,जो स्पीच सोफ्ट वेयर का स्तेमाल मरीजों की विजिट्स और इलाज़ आदि का पूरा ब्योरा रखने के लिए कर रहें हैं .मानव -मानवी का चेहरा लिए अब एक मशीन बा -कायदा आप से संवाद करती है .मरीज़ का हालचाल पूछती है .लक्षणों की बाबत जान कारी दर्ज़ करती है ,जानती भी है ,सिम्त्म्स को ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-टेक्नोलोजी :कम्प्यूटर्स असिस्ट्स डॉक्टर्स ,लिसिन तू पेशेंट्स एल्मेंट्स (दी इंडियन एक्सप्रेस ,जून २८ ,लेट सिटी एडिसन ,पृष्ठ ११ ,इंटर -नेशनल .)

रविवार, 27 जून 2010

क्या है 'कार्निवल -ग्लास '?

कार्निवल ग्लास एक प्रेस्ड ग्लास है ,एक ऐसा पिघला हुआ गरम ग्लास है(हॉट मोल्टन ग्लास है )जिसका अपना कोई रंग (कोई रंगत ,कोई कलर) भी हो यह ज़रूरी नहीं है जब .इसे मेटल मोल्ड्स (धातु से बने हुए सांचों) में डाला जाता है ,यह उन्हीं के रूपाकार में ढल जाता है ।
अभी यह उत्तप्त अवस्था (गरमागरम )में ही होता है ,इसकी सतह पर धात्वीय लवणों (मेटलिक साल्ट्स )के तरह तरह के घोलों से छिडकाव कर दिया जाता है .अब इसे एक बार फिर से गरम किया जाता है ॥
इस प्रकार तैयार हो जाता है एक इंद्र -धनुषी आभा युक्त 'इरिदेसेंत ग्लास वेयर '।
इरिदेसेंत :एक ऐसा ग्लास वेयर जिसकी इंद्र -धनुषी छटा लगातार अपना रंग संयोजन बदले ,चलती -फिरती नजर आये .,शर्त यही है उसे अलग अलग कोणों से निहारा जाए ।
फैंटन आर्ट ग्लास कम्पनी ने सबसे पहले इन्हें १९०८ में प्रस्तुत किया .तब इन्हें कहा जाता था ,'इरिडिल'यूं 'तिफ्फान्य एंड स्तयूबें 'ने इसे 'फाइन ब्लोन आर्ट ग्लास के रूप में परोसा लेकिन फैंटन आर्ट ने इसे सस्ते दामों पर मुहैया करवा लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचाया ।
इनका स्तेमाल 'कार्निवल इनामात 'के रूप में किया गया ,इसीलिए इन्हें 'कार्निवल ग्लास कहा गया ।
कार्निवल :कार्निवल एक आम आदमी का मेला होता है ,मौज मस्ती ,तफरी ,संगीत सभी कुछ होता है इस,जन - पर्व में .गली गली नृत्य और सगीत प्रस्तुत करती टोलियाँ फिजा को एक आनंद -उत्सव का रंग दे देतीं हैं .तरह तरह की पोशाकें इसमें लोक की झलक देतीं हैं..

अल्जाइ -मर्स निदान की दिशा में एक कदम और ...

(गत पोस्ट से आगे ...)
अल्जाइ -मर्स की शिनाख्त के लिए मरीज़ को पहले एक पेट स्केंन सेंटर पर पहुंचकर रेडियो -एक्टिव डाई का इंजेक्सन लगवाना होगा .डाई के दिमाग तक पहुँचने के बाद ही स्केनलिया जाएगा .बेशक खासा महंगा है यह परिक्षण लेकिन एक बार प्रारम्भिक चरण में ब्रेन -स्लाइस से चस्पा प्लाक अल -जाई -मर्स की पुष्टि कर देगा ..फिर यह भी जाना जा सकेगा कौन सी दवा कितना असर करती है .अभी तलक सिर्फ दावेथे .हर दवा कम्पनी अपनी दवा को असरकारी बतलाती थी लेकिन रोग निदान के अभाव में सब कुछ अन -अनुमेय ही था ।
डॉ स्कोव -रोंसकी ने अपने परिक्षण के लिए उन मरीजों को चुना जो डेथ बेड पर थे .इन्हें मरना ही था .आरंभिक परिक्षण स्वयं उन की टीम ने किये .इसके बाद के आंकड़े एक कम्पनी ने स्टडी के अंत तक विश्लेषित किये .अध्धय्यन १४ मई को संपन्न हुआ .डॉ स्कोव -रोंसकी पहले ६ मरीजों के नतीजों से प्रभावित हैं ।
आगामी ११ जुलाई को होनोलूलू में 'अल -जाई -मर्स असोशिएसन की बैठक में अध्धय्यन के विसलेसन के बाद ही अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था हरकत में आएगी ।
अभी तक रोग निदान मरीज़ की मृत्यु के बाद ही हो पाता था .मरीज़ के दिमाग के स्लाइसिज़ से प्लाक चस्पा होना ही रोग का पक्का निदान (डायग्नोसिस )समझी जाती थी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-पोस्ट जुलाई ११ ,यु केंन फोरगेट अबाउट अल -जाई -मर्स (दी हिन्दुस्तान टाइम्सएचटी एज ,जून २६ ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ ०६)

अल्ज़ाइमर्स के पुख्ता निदान (डायग्नोसिस ) की ओर..

एविड रेडियो -फार्मासितिकल्स ,फिलाडेल्फिया ,के संस्थापक डॉ स्कोव -रोंसकी एक दाई ओर ब्रेन स्केन की मदद से एक ऐसा नैदानिक परिक्षण विकसित कर लिया है ,जो बुढापे के रोग 'अल -जाई -मार्स की समय रहते शिनाख्त कर लेगा .प्लाक का पता लगा लेगा यह परीक्षण जो अल्जाइ -मर्स का एक ख़ास लक्षण है ,फीचर है .अल्जाइ -मर्स असोशिएसन की आगामी जुलाई ११ को संपन्न होने वाली बैठक में इसका पूरा खुलासा किया जाएगा ।
तभी इस परीक्षण की प्रामाणिकता को ऍफ़ डी ए से मंजूरी मिल सकेगी .१९०६ में जर्मनी के डॉक्टर अलोइस ने सबसे पहले इस रोग का ब्योरा प्रस्तुत किया .तब से इसकी शिनाख्त मरीज़ की मृत्यु के बाद ब्रेन बायोप्सी से ही एक पैथेलोजिस्तकर paat

'स्लीप -वर्किंग' 'कम्प्यूटर्स के लिए सोफ्ट वेयर तैयार ...

इसे ग्रीन कंप्यूटर तो नहीं कहेंगें अलबता ऊर्जा बचाने ,माहौल को स्वच्छ रखने की मुहीम के इस दौर में एक भारतीय मूल के माहिर ने इस दिशा में पहला कदम बढा दिया है ।
अमरीकन साइंसदान ,भारतीय मूल के युवराज अग्रवाल के नेत्रित्व में एक ऐसे 'स्लीप सर्वर 'का विकास कर लिया गया है .अब ऊर्जा बचाने की जुगत में कम्प्यूटर्स 'स्लीप वर्किंग 'करेंगे .६० फीसद तक ऊर्जा बचा सकेंगे इस 'मोड' में पर्सनल कम्प्यूटर्स ।
स्लीप वर्किंग एन -टर-प्राइज़ पीसीज तक रिमोट की सहायता से पहुंचा जा सकेगा .वोईस ओवर 'आईपी 'इनटर्नेट प्रोटोकोल एड्रेस ,पर भी यह बने रहेंगें .इंस्टेंट मेसेजिंग तथा पीअर-तू पीअर नेटवर्क्स का कं यह लो -पावर -स्लीप मोड में भी अंजाम दे सकेंगें ।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया ,सन -डिएगो कैम्पस ने यह अध्धय्यन प्रस्तुत क्या है .२४/७ घंटा काम करने वाले पीसीज एन टर -प्राइज़ अब ऊर्जा की खपत ६० फीसद कम कर सकेंगें ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-नाव ए सोफ्ट वेयर तू मेक कम्प्यूटर्स 'स्लीप वर्क '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २६ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ २१ )

पारदर्शी नहाने के साबुन किसके बने होतें हैं ?

किस पदार्थ अथवा यौगिक के बने होतें हैं 'ट्रांसपरेंट -सोप्स 'नहाने के खुशबूदार बेहतरीन दिखने वाले पारदर्शी साबुन ?
ग्लीसरीन से बने हैं -पार्दर्शी साबुन .यह आधे सोप तथा आधे विलायक (सोल्वेंट्स )होतें हैं ।
सोल्वेंट्स क्या हैं ?
चीनी का शरबत बनाने के लिये आप जल और चीनी का घोल बनातें हें .यहाँ जल विलायक है .चीनी विलेय तथा शरबत विलियन (शरबत ,घोल,सोल्यूसन )है ।चीनी सोल्युत है ।जो घुला है वह सोल्युत कहलाता है .
सोडियम -हाइद्रोक्साइद जो क्रिस्टल्स बनाता है वही सोप को 'ओपेक 'यानी अ -पारदर्शी बना देतें हें .
अब यदि हम -
साबुन पारदर्शी बनाना चाहतें हें ,तब हमें क्रिस्टल्स (मणिभों)का आकार घटाना पडेगा .,ताकि प्रकाश जो इन पर पड़े वह आरपार चला जाए .इसके लिये साबुन बनाने के लिये ज्यादा सोल्वेंट्स चाहिए होगा ।
कोई जादुई नंबर नहीं है हमारे पास इसकी(विलायक ,सोलवेंट ) मात्रा के निर्धारण के लिये .शुरुआत ६०/४० सोप /सोलवेंट ,अनुपात से कर सकतें हें .इसे बदल कर ५०/५० सोप/सोलवेंट ,रेशियो पर लाया जा सकता है .बस पारदर्शी साबुन तैयार .

लैप टॉप को स्विच ऑफ़ करने बाद बाद भी इसकी घडी समय दर्शाती रहती है .कैसे ?

जब आप लैप टॉप या अपने पी सी से काम लेने के बाद उसे बंद करके रख देतें हैं ,तब भी उसकी घडी चलती रहती है ,समय का सही हिसाब रखती है .आखिर कैसे मुमकिन होता है ऐसा होना ?
डेस्क टॉप पर्सनल कंप्यूटर ,डिजिटल डायरियां आदि लिथियम सेल ,लिथियम बैटरी अपने सीपीयू (सेन्ट्रल प्रोसेसिग यूनिट )में समाहित किये रहतीं हैं इन्हें 'बीआइओएस सेल 'भी कहा जाता है .तथा इन्हें मदरबोर्ड से जोड़ दिया जाता है जो समय का हिसाब तब भी रखता है जब पावर ऑफ़ कर दी जाती है ।
लैप टॉप में यही काम लैप टॉप की अपनी बैटरी करती चलती है ।
यही बैटरी 'बूट -ओप्रेसन 'के दौरान आवश्यक सेटिंग्स को सेव किये चलती है .

क्या है 'नैप पैड '?

नैप पैड दफ्तर के कर्मचारियों के लिए तैयार एक ऐसी कुर्सी है जो लागातार काम के बाद पल भर सुस्ताने ,झपकी लेने के लिए बनाई गई है .सु -विख्यात है बाद दोपहर का पावर -नैप जो व्यक्ति को ऊर्जित कर देता है .फिर से काम के लिए तरोताजा कर देता है ।
नैप पैड एक ऐसी ही स्लीप चेयर है जो एक सुरक्षित ककून (महीन धागों से कीटों दवारा तैयार कोया या कृमिकोष )की तरह तैयार की गई है . कम्पनियां इसेअपनेफर्नीचर में शरीक करने लगीं हैं .कैट नैप मुहैया करानेवाली कुर्सी की तरह इसे refereshing aur utpaadaa badhaane में madadgaar maanaa ja rahaa है ।
in kursiyon को thaki maandi kamar (back )aur dilo-dimaag (Head )को rakt की aapoorti badhaane की takneek का sahaaraa lekar तैयार kiyaa gayaa है .daftari shor sharaabe (office noise )से bachaaye rakhne vaalaa ककून (cacoon )है yah कुर्सी .isme workers को jagaane के लिए एक alarm bhi lagaayaa gayaa है ।
Ergonomics का sahaaraa liyaa gayaa है इसे तैयार करने में ।
Ergonomics is the study of how a work place and the equipment used there can best be designed for comfort ,safety ,efficiency ,and productivity .

शनिवार, 26 जून 2010

क्या गर्भपात के वक्त फीटस को एनास्ठेतिक दिया जाना चाहिए ...

स्त्री -रोगों एवं प्रसूति -विज्ञान से सम्बद्ध 'रोयल कोलिज ऑफ़ ओब्स्तेत -रिशियंस एंड गाईने -कोलोजिस्ट्स के साइंस दानों ने पता लगाया है ,२४ सप्ताह के बाद ही गर्भ के अन्दरदिमागी नर्व कनेक्शंस का विकास संपन्न हो पाता है ,इससे पहले दर्द का एहसास समय -पूर्व जन्मे शिशुओं 'प्रिमीज़ 'को तो हो सकता है ,गर्भस्थ को नहीं .इसकी वजह एम्नियोटिक सेक के अन्दर का रासायनिक परिवेश बनता है जो शिशु को गहन निंद्रा से पैदा अचेतन -अवस्था (एक प्रकार की बेहोशी ,सिडेशन)में बनाए रहता है .इसीलियें माँ के स्वास्थ्य और जीवन के लिए कई मर्तबा २४ सप्ताह के बाद भी गर्भपात ज़रूरी हो जाता है ।
ऐसे में गर्भस्थ 'ह्यूमैन फीटस' को एनस्थेतिक इंजेक्ट करने की परम्परा रही है .वर्तमान रिसर्च उसे गैर ज़रूरी सिद्ध करती है .दर्द का एहसास उस प्रकृति प्रदत्त माँ के गर्भ में शिशु को कैसे हो सकता है ।?
सन्दर्भ -सामिग्री ;-'ह्यूमैन फीटस फील्स नो पैन बिफोर २४ वीक्स 'नर्व कनेक्शंस इन ब्रेननाट फोर्म्द सफिशियेंतली तू अलाव सेंसेसंस ,सेज यु के गोमेंट -फंडिड स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २६ ,२०१० )

कब करता है 'ह्यूमेन -फीटस 'दर्दे -एहसास ?

'ह्यूमेन फीटस फील्स नो पैन बिफोर २४ वीक्स 'नर्व कनेक्सन इन ब्रेन नाट फोर्म्द सफिशियेंतली तू अलाव सेंसेसन ,सेज यु के गमेंट -फंडिड स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २६ ,२०१० ,पृष्ठ २१ )
ब्रितानी माहिरों ने पता लगाया है 'ह्यूमेन -फीटस '(गर्भस्थ शिशु को )जब तक वह २४ सप्ताह का नहीं हो जाता किसी भी प्रकार की पीड़ा का एहसास ही नहीं होता .(गर्भावस्था की सामान्य अवधि होती है ४० सप्ताह )।
एहम सवाल है गर्भावस्था के कौन से चरण में (कौन सी तिमाही में )दिमागी नर्व कनेक्सन पूरी तरह संपन्न हो जातें हैं ।
ब्रितानी गर्भ -पात सम्बन्धी नियमों से गहरे जुड़ा है सवाल जिनके तहत २४ सप्ताह तक गर्भ -पात करवाया जा सकता है ।
प्रो -लाइफर्स (गर्भ -पात विरोधी )इस सीमा को नीचे की और खिसकवाना चाहते रहें हैं ।
संदर्भित गमेंट कमीशंड स्टडी के नतीजे उनमे निराशा पैदा कर सकतें हैं .यूं ये लोग इन नतीजों को ही चुनौती दे सकतें हैं ।
रोयल कोलिज ऑफ़ ओबस्तेट -रिशियंस एंड गाइ -नेकोलोजिस्ट्स द्वारा इस अध्धय्यन के नतीजे प्रकाशित किये गएँ हैं .कानून निर्माताओं ने इनकी सिफारिश की है .गर्भ -पात की सीमाको २४ सप्ताह से और पहले खिसका कर ले आने पर यही लोग विचार कर रहें हैं ।
माहिरों के अनुसार २४ सप्ताह के बाद भी फीटस गर्भाशय के माहौल में सुख की नींद सोता है .माँ के गर्भ का कोजी और सर्व -प्रकार सुरक्षित माहौल,रासायनिक बिछौना -ओढना ,एम्नियोटिक -सेक ,गर्भ -जल से भरी थैली उसे बेहोशी ,गहन निन्द्रा से पैदा अचेतन -अवस्था में बनाए रहता है .

मापा गया वन क्विन्तिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड .....

हमारे माप जोख कर सकने की अपनी सीमा है .जिससे कम या ज्यादा का माप हम नहीं ले सकें हैं .डेनिश (डेनमार्क )और नोर्वे में एक शब्द चलन में है "एटीटीई एन जिसका अर्थ है 'एतटींन '१८ .टेन तू दी पावरमाइनस एततीन को कहा जाता है "अत्ता "यानी 'एटीटीए 'यानी वन बिलियंथ ऑफ़ ए बिलियंथ ऑफ़ एनी थिंग .दूसरे शब्दों में वन क्विन्त्तिलियंथ ऑफ़ समथिंग ।
अभी तक नापा गया यह सबसे छोटा समय का टुकड़ा (काल खंड ,समय अंतराल )बतला रहें हैं ,अब जर्मनी के साइंसदान ।
कुछ प्रकाश संवेदी (फोटो -सेंसिटिव -पदार्थ )हैं .यदि इन पर कुछ ख़ास किस्म काप्रकाश ,पदार्थ की प्रकृति के हिसाब से ख़ास ऊर्जा वाला ,सुनिश्चित फ्रिक्वेंसीज़ का प्रकाश डाला जाए तब इनकी सतह के इलेक्त्रोंन धातु (पदार्थ धातु के रूप में ही यहाँ लिया जाता है ) से बाहर आ जातें हैं .इसे प्रकाश विद्युत् प्रभाव कहा जाता है .इसी प्रभाव की खोज के लिए आइन्स्टाइन महोदय को नोबेल प्राइज़ से नवाज़ा गया था ।
अब तक यही समझा जाता था :धातु के प्रकाश से आलोकित होने और इलेक्त्रोंन के धातु की सतह से बाहर आने में एक तात्कालिकता है ,तुरंत -प्रभाव के ,बिना समय अंतराल ,टाइम डिले के ऐसा होता है .लेकिन ऐसा है नहीं ।
इलेक्त्रोंन बाहरी, भीतरी कक्षा के,अलग अलग लेकिन एक ख़ास ऊर्जा से परमाणु से बंधे रहतें हैं .आवश्यक ऊर्जा मिलने पर यह उत्तेजित अवस्था में आ जातें हैं .अलग अलग ओर्बिताल्स के इलेक्त्रोंन हालाकि उत्तेजित एक साथ होतें हैं ,लेकिन इनके परमाणु से बाहर आने ,धातु की सतह से उड़ान भरने में २० अत्ता सेकिंड्स का टाइम -डिले है .समय -अंतराल है .यही सूक्ष्म समय -काल खंड जर्मनी के साइंसदानों ने मापा है .यही अब तक मापा जा सका 'शोर्तेस्त -टाइम -गैप 'बतलाया गया है ।
वन अत्ता सेकिंड इज वन बिलियंथ ऑफ़ ए बिलियंथ ऑफ़ ए सेकिंड .इस राशि को बीस से जरब (गुना )कर दीजिये इतना ही समय लगता है इलेक्त्रों को धातु की सतह से उड़ने में .

सेक्स द्युरेसन :मिथ, यथार्थ और फेंतेसीज़ ....

किसी नाम चीन कवि-लेखक की यह पंक्ति गौरतलब है :"क्या तुम चाहती हो ,मैं ,पड़ा रहूँ ,तमाम रात ,तुम्हारी जांघ की दराज़ में ".समझा जा सकता है ज़नाब का मंतव्य ।?
'टेन मिनिट्स ऑफ़ सेक्स इज आई -डियल'(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २६ ,२०१० केपिटल एडिसन ,पृष्ठ २६ ).की यह खबर खासा ध्यान खींचती है .आप भी बांचिये ज़नाबे -आला ।
सोसायटी फॉर सेक्स थिरेपी एंड रिसर्च ने अपने ५० सदस्यों पर संपन्न एक अध्धय्यन -सर्वे में बतलाया है 'मैथुन -रत 'रहने का आदर्श समय(काल खंड यानी द्युरेसन ।).दस मिनिट है यह अवधि .
यह परामर्श दाता संस्था इलाज़ भी मुहैया करवाती है 'यौन समस्याओं 'का ।
सर्वे के मुताबिक़ 'एक से दो मिनिट टिके रहना ,बहुत कम ,३-७ मिनिट की अवधि मान्य(स्वीकार्य ) तथा १३ मिनिट से ऊपर कुछ भी बहुत ज्यादा है ।
७-१३ मिनिट की अवधि वांछित है ।
फंतासी है तमाम रात किसी की जांघकी दराज़ में तमाम रात पड़े रहना ,सोचना .दिल के बहलाने को ग़ालिब ख़याल अच्छा है ।
बकौल सेक्स थिरेपिस्ट १० मिनिट मैथुन -रत बने रहना काफी है ,संतोषप्रद है ।
उक्त नतीजे 'जर्नल ऑफ़ सेक्स्युअल मेडिसन 'में प्रकाशित हुए हैं .

बीनाई (विज़न )को कमज़ोर होने से बचा सकती है 'रेड -वाइन '.

'मोड्रेसन इज दा की 'यह बात रेड -वाइन के लिए भी कही जा सक्ती है ,जिसे बारहा दिल की दोस्त बतलाया गया है ।
अंगूर और कुछेक और फलों (फ्रूट्स )में एक ख़ास पदार्थ '- 'आरईएसवीईआरए टी आर ओ एल '(रेस्वेरात्रोल ) की मौजूदगी आँखों कि 'ब्लड वेसिल्स ',महीनरक्त नालियों के लिए मुफीद पायी गया है .बुढापे के साथ यह ब्लड -वेसिल्स नष्ट होने लगतीं हैं ,क्षति ग्रस्त होने लगतीं हैं .फलस्वरूप नजर (बीनाई )कमज़ोर हो जाती है .इसलिए बुढापे में खासकर थोड़ी सी रेड वाइन ले लेने में कोई हर्ज़ नहीं हैं .(बा -शर्ते कोई और मेडिकल कंडीसन ना हो )।
यह रिसर्च एक भारतीय मूल के साइंसदान के नेत्रित्व में माहिरों की एक अंतर -राष्ट्रीय टीम ने संपन्न की है ।
आप हैं डॉ राजेन्द्र आप्टे .आप वाशिंगटन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसन में शोधरत हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'ड्रिंकिंग रेड वाइन गुड फॉर आई -साईट '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २६ ,२०१० ).

हार्ड पर बैठने का मतलब अच्छा मोल -भाव करता ...

साइंसदानों ने पता लगाया है जो लोग बैठने के लिए आराम कुर्सीकीजगह (सोफ्ट सीट )का स्तेमाल करतें हैं वह चीज़ों की खरीद -फरोख्त करते वक्त अच्छे मोल -चोल करके वाजिब दामों पर सौदा पटाने वाले सिद्ध होतें हैं ।
साइंसदानों ने एक प्रयोग में इसकी आज़माइश की है .इसके तहत ८६ स्वयंसेवियों को प्रयोगशाला (आज़माइश -खाना ,लैब ) में बुलाकर या तो हार्ड या फिर सोफ्ट सीट पर बैठाया गया ।
उन्हें कहा गया वह कल्पना करें वह एक अच्छी कार की खरीद फरोख्त के लियें किसी डीलर की दूकान पर बैठें हैं .अब उन्हें कार की स्टीकर -प्राईस दिखला कर इसकी फस्ट और सेकिंड प्राईस लिखने के लिए कहा गया ।
पता चला हार्ड सीट पर बैठने वाले फस्ट प्राईस पर ही दृढ रहे ,टस से मस नहीं हुए .जबकि सोफ्ट सीट ग्रुप लचीला साबित हुआ .पहला ग्रुप हार्ड और सफल बार -गेनर ,एक चतुर मोल -भाव करके सौदा पटाने वाला सिद्ध हुआ ।
हारवर्ड और येल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने इस स्टडी को संपन्न कर बतलाया है कुर्सी की सीट की हार्ड -नेस (सख्ती ,कठोरता )आप दूसरे व्यक्ति के बारे में क्या सोचतें हैं इसको असर ग्रस्त करती है ।
वस्तु और चीज़ों के प्रति लोगों के प्रति हमारे रूख का निर्धारण करती है .हम अपने फैसले पर कितना कायम रहतें हैं ,यह भी ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-'सिट ओंन ए हार्ड चेयर तू ड्राईव ए हार्ड -बार-गैन(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २६ ,२०१० ,केपिटल एडिसन ,पृष्ठ ,२१ .)

शुक्रवार, 25 जून 2010

झुर्री के संग मुस्कान भी ले जायेगी 'बोटोक्स की सुइयां '.

मोतरमाएंचेहरे की झुर्री हठवानेकी खातिर 'बोटोक्स 'की सुइयां लगवातींहैं .चेहरे की शिकन ज़रूर जाती है ,साथ में मुस्कान भी चलीजाती है .कैसा होगा वह एहसास जब ख़ुशी के पलछिनों में आदमी मुस्का भी ना सके .भाव जगत रीत जाए ।
क्यों होता होगा ऐसा ?
वास्तव में बोटोक्स में एक विषाक्त (टोक्सिक )प्रोटीन 'बोतुलिनम-प्रोटीन 'का डेरा है .क्रीज़िज़ (जी हाँ मुस्कान भी तो एक पेशीय अभि-व्यक्ति है )को ले उडती है यह ज़हरीली प्रोटीन .ज़ाहिरहै यह नतीज़ा है पेशियों के फालिज ग्रस्त हो जाने का .अस्थाई तौर पर पेरेलाइज़ हो जाने का .इस प्रोटीन के असर से ।
कहतें हैं चेहरा बोलता है ,भाव -व्यंजना ,अभिव्यक्ति बन .इन्हीं पोज़िटिव क्रीज़िज़ के मार्फ़त .इनके नाकारा हो जाने पर दिमाग को एक सोफ्ट -वेयर जाने लगता है 'हंसना ,विहंस्ना मना है' .भाव का आवेग ऐसे में अभिव्यक्ति के लिए छटपटाता है .सब कुछ दिमाग से ही तो निर्देशित है 'मोटर-एक्शन 'से लेकर सुख दुःख के आवेगों ,संवेगों की अभिव्यक्ति भी ।
किसी शायर का यह कहा भी गलत हो जाता है 'हूज़ुमे गम मेरी फितरत बदल नहीं सकते ,मैं क्या करू मुझे आदत है ,मुस्कुराने की '।
यहाँ तो ज़नाब दिल की बात चेहरे तक आ ही नहीं पाती ।
बेशक गम -जदा मूवी देखते समय आप अन्दर से दुखी होंगे लेकिन चेहरे की पेशियाँ निष्क्रिय बनी रहेंगी .इन्हीं पेशियों में तो इंजेक्सन लगा है ।
कोई हमें बतलाये ,हम बतलाएं क्या ?अपना गम कैसे बखान करें ,भाव -शून्य चेहरे से ?
अपने अध्धय्यन में साइंसदानों ने सब्जेक्ट्स को या तो बोटोक्स की सुइयां लगाईं या फिर रेस्त्य्लाने (रेस्तिलेंन कुछ कंट्रोल्स ग्रुप के होठों में इंजेक्ट किया ).संवेदना और भाव जगत को झक -झोडने वाले चित्र दिखलाने से पहले भी और बाद में भी .रेस्तिलेंन 'ढीली झूलती त्वचा 'को चुस्त बना देती है ,फिलर का काम करती है 'सेगिंग स्किन 'के लिए ।
रेस्तिलेंन वाज़ यूस्ड एज ए सब्सटेंस इन्जेक्तिद इनटू लिप्स आर फेशियल रिन्किल्स देत फिल्स आउट सेगिंग .स्किन ।
रेस्तिलेंन का स्तेमाल एक कंट्रोल के बतौर ही किया गया यह सिर्फ फिलर्स में वृद्धि करता है ,पेशीय गति का सीमांकन नहीं .पेशियाँ शिकन बना सकतीं हैं ,भावा -भिव्यक्ति के लियें ।
कंट्रोल ग्रुप के बरक्स 'बोटोक्स -ग्रुप 'के तमाम लोगों में भाव -अभिव्यक्ति की कमी दर्ज़ की गई ।
एक मुस्कान आदमी को ख़ुशी से भर देती है .और नाक -भौं चढ़ाना सारा मूड ले उड़ता है .कैसा रह जाता होगा ऐसे में आपका आसपास ?
सन्दर्भ -सामिग्री :-नोट जस्ट रिन्किल्स ,बोटोक्स जेब केंन किल इमोशंस तू(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २५ ,२०१० ).

बस एक घंटा रोज़ बुद्धू -बक्से के सामने बैठने से ......

'अंन आवर ऑफ़ टीवी अप्सहार्ट दिज़िज़िज़ रिस्क बाई ७ %' (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २५ ,२०१० )।
सिर्फ एक घंटा टीवी पर वर्ल्ड कप देखने -सुनने से हर घंटा आपके लिए दिल की बीमारियों के खतरे का वजन ७%बढ़ जाता है .यह खुलासा उस अध्धययन से हुआ है जिसमे ब्रितानी रिसर्चरों ने पता लगाया ,यदि औसतन चार घंटा टीवी के सामने बैठे रहने वाले लोग इसे घटाकर एक घंटा रोज़ पर ले आयें तब ८ फीसद लोगों को दिल की बीमारियों के कारण मरने से बचाया जा सकता है .इस खतरे के वजन में बैठे ठाले वक्त गुज़ारने ,कसरत ना करने ,मोटापे ,गलत खुराख ,धूम्र -पान आदि से पैदा खतरे के वजन को शामिल नहीं किया गया है ।
टीवी और दिल की बीमारियों का अपना निजीं रिश्ता है ।
मतलब यह है ,केवल टीवी देखना भी खतरे की घंटी के प्रति बराबर आगाह कारता है .वजह यह नहीं ,आप बैठे बैठे टीवी देखतें रहतें हैं ,वजह टीवी देखना अपने आपमें कम नहीं है ।
नोरफोल्कमें प्रौढावस्था में पहुंचे,स्वस्थ ,सेहत मंद तकरीबन १३,००० औरत मर्दोंपर यह रिसर्च मेडिकल रिसर्च कोंसिल ने संपन्न की है ।
इस दस साला अध्धययन के वक्फे में १३१९७ लोगों में से ३७३ लोग मर गए .दूसरे शब्दों में हर पैन्तीस्वां व्यक्ति इस दौरान काल कवलित हो गया ।
इनमे सेकेवल ३० लोगों को बचाया जा सकता था यदि औसतन सभी प्रतिभागी ४ की जगह सिर्फ १ घंटा टीवी देखते .यानी ३४३ फिर भी मारे जाते ।
वास्तव में हमारा शरीर देर तक बैठेरहने के हिसाब से परमात्मा ने बनाया ही नहीं हैं ,इसीलियें तो दो पैर भी दियें हैं ,हम चलें फिरें.ऐसे में देर तक बैठे बैठे वर्ल्ड कप का पूरा पूरा हिसाब टीवी के आगे रखना हमारे लिए दिल के खतरे के वजन को लगातार बढाता रहता है ।
हमारी जीवन शैली ही हमारे स्वास्थ्य की कुंजी है ,जो सिर्फ हमारे पास है किसी और के नहीं .हो सकता है ,कंप्यूटर के आगे ,कार की स्टीयरिंग पर देर तक बैठे रहने के भी ऐसे ही नतीजे निकलें .अध्धय्यन अभी इस दिशा में होने बाकी हैं ।
फिलवक्त तो मनोरंजन का सहज सुलभ सबसे अधिक देखे जाने
वाला साधन टीवी ही बन रहा है . हम चाहें तो अपना व्यवहार अपने प्रति बदल भी सकतें हैं . अपना 'बैठे ठाले 'रूटीन बदलकर ।
दस से बढ़कर १३ फीसद हो जाएगा चार घंटा रोज़ टीवी देखने से दिल के लिए ख़तरा .दस फीसद यदि पहले से रहा अया है तो .बस आधा घंटा तेज़ कदमी कीजिये रोजाना ,टीवी देखने के समय में कटौती कीजिये ,हो सके तो दूर रहिये दिल के लिए पैदा हो रहा ख़तरा कम होता चला जाएगा ।
इंटर नेशनल जर्नल ऑफ़ 'एपी -देमियो -लोजी 'में इस अध्धय्यन के नतीजे छपें हैं .

क्या दिमाग के किसी कौने में छिपी है बुद्धिमानी ?

'ब्रेन स्केन्स प्रिडिक्ट यूओर एक्संस बेटर देंन यु केन'(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २५ ,२०१० )।
क्या दिमाग के किसी कौने में छिपी रहती है ,बुद्धिमानी ?कई मर्तबा हम कोई अच्छा फैसला कर तो लेतें हैं ,लेकिन उसको अमली जामा नहीं पहना पातें हैं .भूल जातें हैं ।
व्यक्ति से कहीं ज्यादा उसकी क्षमताओं की खबर देता रखता है उसका 'दिमागी स्केन 'दिमागी बिजली का आरेख ,कच्चा चिठ्ठा .
विज्ञापन दाताओं के लिए ,स्वास्थ्य अधिकारियों के लिए बड़े काम की चीज़ साबित हो सकतें हैं दिमागी स्केन्स .पता लगाया जा सकता है 'विज्ञापन देखने के बाद 'उपभोक्ता सामिग्री के स्तेमाल के बारे में क्या सोच रहा है -उपभोक्ता .उपभोक्ताओं को अपना उत्पाद खरीदने के लिए राज़ी करने में स्केन भविष्य वाणी का काम कर सकतें हैं ,पता लगा सकतें हैं ,खबर दे सकतें हैं उपभोक्ता के इरादों की ।
उत्पाद के बाज़ार में छा जाने या पिट जाने की अग्रिम खबर बड़े काम की चीज़ साबित हो सकती है .साइंसदानों ने'
' रीयल टाइम 'स्केन्स को बूझने समझने की तरकीब ढूंढ निकाली है .ऐसा लगता है आदमी से ज्यादा स्मार्ट उसका दिमाग होता है उसी के किसी कौने में बुद्धिमानी पूर्ण फैसले लिए जातें हैं .आदमी उन पर अमल करे ना करे यह और बात है ।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया ,लासेंजिलीज़ कैम्पस के साइंसदान एमिली फलक और साथी अपनी यह रिसर्च 'जर्नल ऑफ़ न्यूरो -साइंस 'में प्रकाशित कर चुकें हैं .मनो -विज्ञान विभाग के प्रोफ़ेसर मैथ्यू लिएबेर्मन इस रिसर्च के अगुवा रहें हैं ।
फंक्शनल मेग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग टेक्नीक के ज़रिये आदमी की अच्छी मनसा से कहीं आगे निकल कर ये तमाम रिसर्चर उसके वास्तविक व्यवहार की प्रागुक्ति (पूर्व सूचना ) दे सकने की बात कह समझ रहें हैं .आखिर दिमाग का एक हिस्सा दूसरे से बेहतर समझ रखता होगा .कौन सा ,यही तो राज़ खुल सकता है इस रिसर्च से .

जबकि यों रोग का ख़तरा ज्यादा रहता है ...

वैश्याओं की तुलना में उन लोगों के लिए यौन रोगों के खतरे का वजन कहीं ज्यादा रहता है जो अपने साथियों की परस्पर अदला बदली करते रहतें हैं ।
ए पर्सन हूँ हेज़ सेक्स विद मैनीपार्टनर्स इज काल्ड 'स्विन्गार्स .ऐसे ही स्विन्गार्स पर संपन्न एक अध्धय्यन में रिसर्चरों ने पता लगाया है ,जो लोग खासकर ऐसी जीवन शैली अपनाए हुएँ हैं जहां अपने पार्टनर्स (जीवन साथी )की परस्पर अदला बदली करना आम बात है खासकर ४५ साल से ऊपर की उम्र केऐसे ही लोग ,उनमे यौन संचारी रोगों (सेक्स्युअली त्रास्मितिद दिसीज़िज़ ),यौन संपर्कों से पैदा रोगों का ख़तरा जिस्म फरोशी करने वालों से कहीं ज्यादा बढ़ जाता है .फिर भी यह सामाजिक तबका स्वास्थ्य सेवाओं की नजर से बाहर बना हुआ है .किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है इनकी ओर ।
दुनिया भर में ऐसे लोगों की संख्यादसियों लाखों में होगी जो 'यौन संचारी रोगों 'के लिए एक ब्रिज (एक त्रान्स्मिसन ब्रिज )एक पुल का काम कर रहें हैं ,चुपके चुपके .शेष आबादी इनसे कबतक बचेगी ,बची रहेगी ,इसका कोई निश्चय नहीं ।
नीदर -लैंड के साइंस -दानों ने अपने अध्धययन के नतीजे 'ब्रिटिश मेडिकल जर्नल 'में प्रकाशित कियें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्विन्गार्स फेस ए हां -यर रिस्क ऑफ़ सेक्स दिसीज़िज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २५ ,२०१० ).

जल्दी रजो -निवृत्त होने का मतलब .....

एक अध्धययन से पता चला है जो महिलायें ४६ साला होने से पहले ही रजो -निवृत्त (मिनोपोज़ल वोमेन हो जातीं हैं ,जिनका मासिक चक्र संपन्न हो जाता है )उनके लिए आगे जाकर दिल के दौरे और स्ट्रोक के खतरे का वजन दोगुना बढ़ जाता है ।
इस स्थिति के बाद हारमोन रिप्लेसमेंट थिरेपी का भी कोई लाभ नहीं मिल पाता है खतरे का वजन बढा हुआ ही रहता है .इंडो - -क्रया-इन सोसायटी,सन डिएगो के समक्ष साइंसदानों ने अध्धययन के नतीजे रखें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-अर्ली मिनोपोज़ आपस हार्ट डिसीज़ रिस्क (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २४ ,लेट सिटी एडिसन ,पृष्ठ १६ ).

चस्का आई -पोड का कान के लिए भारी पड़ सकता है ....

अपने आई पोड पर रोजाना सिर्फ एक घंटा अपना पसंदीदा लाउड म्युज़िक सुनने के खामियाजे आपके कान को भुगतने पड़ सकतें हैं .श्रवण शक्ति को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है ,यही सन्देश है एक नवीनतर अध्धय्यन का जो यूरोपीय साइंस -दानों ने संपन्न किया है ।
दरअसल हेड फोन्स पर तेज़ संगीत बाहरी कान की कोशाओं (सेल्स ,कोशिकाओं )को नष्ट कर सकता है ,असर ग्रस्त करता है .आउटर ईयर सेल्स को ।
अध्धय्यन में भागीदार सभी सब्ज्जेक्ट्स का पहले ऑडियो -टेस्ट किया गया .श्रवण शक्ति का जायजा लिया गया .अब सभी भागीदारों को ६ सत्रों में एक घंटा तक दो अलग अलग हेड फोन्स पर पहले से सेट किये गए वोल्युम्स पर पोप या फिर रोक संगीत सुनवाया गया ।
प्रत्येक सत्र (सेसन )के बाद सभी प्रतिभागी औरत और मर्दों का शोर्ट साउंड और उसके बाद अलग अलग फ्रीक्युवेंसीज़ की साउंड्स के प्रति रेस्पोंस दर्ज़ किया गया .१९ -२८ साला कुल २१ प्रतिभागी थे .पता लगाया गया इन टोंस को कितनी साफ़ सफाई के साथ सुन पाए .कंट्रोल ग्रुप के १४ सब्जेक्ट्स को तुलना के लिए अध्धय्यन में शामिल किया गया ।
पता चला कान के लिए भारी पड़ता है आई -पोड या फिर एम् पी थ्री प्लेयर्स पर सुना गया तेज़ संगीत।
तो ज़नाब स्वस्थ चित्त के साथ प्रकृति से जुड़िये सुबह की सैर के लिए .आई -पोड ठीक नहीं है आपकी सेहत के लिए श्रवण शक्ति के लिए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-even एन आवर ऑफ़ लिसनिंग तू आई -पोड केंन डेमेज हीयरिंग (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २४ ,२०१० ,लेट सिटी एडिसन ,पृष्ठ १६ ).

गुरुवार, 24 जून 2010

आधुनिकतम ब्रितानी अस्पताल का काम देखेंगें यंत्र -मानव .

ब्रिटेन के अन्दर इनदिनों अस्पताल में काम करने के लिए रोबोट्स का एक पूरा दल तैयार किया जा रहा है .कह सकतें हैं ,प्रशिक्षण ले रहा है ।
इस नवीनतम अस्पताल का नाम होगा 'न्यू -फोर्थ वेळी रोयल हॉस्पिटल 'जो आगामी अगस्त माह से लार्बेर्ट में काम करने लगेगा ।
अस्पताली कचरा ,क्लिनिकल वेस्ट ,डर्टी लाइनेन (गंदे कपड़ों की सफाई ),खाना परोसने ,मरीजों को दवाई देने के लिए अलग अलग यंत्र मानव होंगें .जिन वरांडों (बरामदों )से यह गुजरेंगें वह भी जुदा होंगें ताकि किसी प्रकार के भी संक्रमण को मुल्तवी रखा जा सके ।
एक हेंड हेल्द डिजिटल असिस्टेंट प्रणाली की मदद से इन्हें बुलाया जा सकेगा .यह खुद भी एक लेज़र बीम प्रणाली से लैस होंगें .यही प्रणाली इन्हें अपनी खुद की खबर देगी बतलाएगी ,वह कहाँ हैं .इनसे काम लेने वाले कर्मचारी भी इनकी अवस्थिति का बोध कर सकेंगें ।
एक बार फिर से बत - लादे ,क्लीन और डर्टी तास्क्स के लिए अलग अलग रोबोट्स होंगें ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-रोबोट वर्कर्स टेक ओवर यूं के हॉस्पिटल (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २२ ,२०१० .पृष्ठ ११ ,लेट सिटी एडिसन .).

धौले बालों को काला बनाने के लिए जादुई लोसन ....

मेजिक लोसन तू टर्न ग्रे हेयर्स ब्लेक (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून २२ ,२०१० )./लेट सिटी एडिसन ,पृष्ठ ११ ।
खबर है एक फ्रांसीसी साइंसदान एक ऐसा जादुई लोसन तैयार कर रहा है जो धौले बालों को घना काला बना सकता है .कैर्न्स ,में हाल ही में बुलाई गई एक अंतर -राष्ट्रीय बैठक में ब्रुनो बर्नार्ड नामी इस साइंसदान ने लोगों को रसायनों से लदी- फदी डाईज (रंजकों से ),तिन्ट्सऔर खतरनाक रासायनिक उपचार से छुटकारा दिलाने का भरोसा जताया है .एक जादुई लोसन पर इनका काम ज़ारी है .

कहाँ से आ रहा है युरेनियम दक्षिणी मालवा(पंजाब का एक इलाका ) के हवा पानी में

हाल ही में कुछ अंग्रेजी अखबारों ने पंजाब के दक्षिणी मालवा क्षेत्र में हवा और पानी (भूमि गत -जल )में पैठे युरेनियम के बारे में सरकारों को चेताया था ।
बिला शक इस क्या पंजाब के किसी भी इलाके में युरेनियम की खदानें नहीं हैं , लेकिन हो सकता है युरेनियम कोटा परमाणु बिजली संयंत्र से या फिर पाकिस्तान के खुसाब भारी पानी संयंत्र से हवा पे सवार हो यहाँ तक पहुँच रहा हो आशंका यह भी व्यक्त की गई ,अफगानिस्तान और ईराक में अमरीकी सेना द्वारा स्तेमाल टेंक तोड़क असलाह तथा गोली -बारूद से रिसकर यह यहाँ तक पहुंचा हो .।
जो हो पंजाब का भू -जल विषाक्त अंशों की मार झेल रहा है .आइन्दा आने वाली सन्ततियां भी इसका खामियाजा भुगतेंगी ।
बेशक दक्षिण -पश्चिम पंजाब के क्षेत्र में कहीं भी ऐसी चट्टानी परतें नहीं हैं जो उघडी नंगी हों लेकिन अरावली दिल्ली रिज़ तथा मालानी ग्रेनाइट्स के बारे में ठीक यही बात नहीं कही जा सकती .अलावा इसके 'भिवानी जिले के तोशाम क्षेत्र की चट्टाने 'र्ह्योलितेस (रियो -लाइट्स /रायो -लाइट्स ) 'उघाड़ी पड़ीं हैं .इनका चट्टानी अंश हवा के संग छीजता उड़ता है ।
दक्षिणी मालवा क्षेत्र से इनका रूख उत्तर पश्चिम की ओर तोशाम से हो जाता है .यही से ये पंजाब के मैदानोंमें सब -मर्ज़ हो जातीं हैं.खो जातीं हैं भू -समाधि ले लेतीं हैं ।
पाकिस्तान की किराना (किरण ) पहाड़ियों पर एक बार फिर से यह प्रकट हो जातीं हैं .ग्रेविटी डाटा इसकी पुष्टि करता है ।
मलना ग्रेनाइट्स और तोशाम इलाके में उघडे हुए चट्टानी भाग 'युरेनियम 'और थोरियम का ज़माव है ,उच्च सांद्रता है इन दोनों रेडिओ -एक्टिव एलिमेंट्स की .यहाँ युरेनियम कन्सेंत्रेसन प्रति दस लाख भागों के पीछे ८ -११.५ भाग पाया गया है जबकि इसकी नोर्मल वेल्यु ४.५ पी पी एम् होती है ,ग्रेनाईट चट्टानों में ।
बेहिसाब खनन हो रहा है इनका 'खनक 'क्षेत्र में .यह इलाका तोशाम के निकट की पहाड़ियों से मिला हुआ है ।
उत्खनन इसकी बड़ी वजह बना हुआ है .क्रशार्स से हवा में पहुँच रही है 'फाइन दस्त 'जो इन दोनों रेडियो तत्वों का मिश्र है ।
(देखें :-युरेनियम इन वाटर इज ए मैटर ऑफ़ कंसर्न /लेटर तू दी एडिटर ,दी ट्रिब्यून ,चंडीगढ़ ,जून २४ ,२०१० ,/प्रोफ़ेसर नरेश कोच्चर ,भू -गर्भ विभाग ,पंजाब विश्व -विद्यालय ,चंडीगढ़ .).

साइबर शब्दावली की बस एक झलक ....

आधुनिक युग को यदि 'साइबर एज' कहा जाए तो गलत नहीं होगा .हर क्षेत्र में कंप्यूटर स्थान बनाता हुआ दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है .कम्प्यूटर्स और इलेक्त्रोनिकी संचार से जुडी है साइबर -युग की नवज ।
'साइबर 'शब्द का एक अर्थ कंप्यूटर सिस्टम्स और सूचना तंत्र भी है ,साइबर एक कम्बाइनिंग फॉर्म भी है ,जोड़ने वाली एक कड़ी है इलेक्त्रोनी संचार तंत्र खासकर इंटरनेट से .यह एक साथ संज्ञा भी है विशेषण भी है ।
इंटरनेट के प्रयोक्ता को 'साइबर -नोट 'कहा जाता है ।
वर्च्युअल रिएलिटी की अनुभूति के लिए जो लोग ख़ास दिवाइसिज़युक्तियाँ ,उपकरण ,मशीनें धारण किये रहतें हैं उन्हें भी 'साइबर -नोट 'कहा जाता है ।
साइबर स्पेस क्या है ?
कोई भी सूचना अनंत रफ़्तार से नहीं भेजी जा सकती .प्रकाश के वेग का अतिक्रमण कोई भी सूचना या सिग्नल नहीं कर सकता ,जिसे एक से दूसरे कंप्यूटर को भेजा जाता है ।
वह काल्पनिक स्थान (अ -भौतिक क्षेत्र )जहां एक से दूसरे कंप्यूटर तक पहुँचने के बीच सूचना होती है उसे ही 'साइबर -स्पेस 'कहा जाता है ।
साइबर -पंक क्या है ?
एक काल्पनिक भविष्य में लिखी कही गई कथा जिसका रचना कार नियंता और नियामक ,नियंत्रक कंप्यूटर है 'साइबर पंक 'है ।
'साईबोर्ग '-आधा मानव आधा मशीन होता है .यूं आज हर आदमी किसी ना किसी अर्थ में साईबोर्ग ही है ,नकली अंग लगाए घूम रहा है .पेस मेकर से लेकर घुटनों तक ।
'साइबर स्क्वातिंग '-यह एक अवैधानिक गति -विधि है जिसके के तहत खरीद फरोख्त होती है ,रिकोर्ड किया जाता है किसी वर्तमान नाम- चीन कम्पनी का नाम पता ,जिसे मालिक को ही बेचकर उसका आर्थिक शोसन किया जा सकता है .इनमे मशहूर हस्तियाँ के नाम पते भी हो सकतें हैं .ऐसे साइबर उस्ताद को 'साइबर स्क्वातर -कहा जाता है ।
एक ऐसा कैफे जहां लोग कंप्यूटर पर काम कर सकतें हैं ,चेटिंग कर सकतें हैं ,ई -मेल भेज सकतें हैं ,पैसा चुकाकर ,''साइबर कैफे 'कहलाता है ।
'साइबर -क्राइम्स 'का दायरा विस्तार लिए हुए है ,व्यापक है .यहाँ लोग इंटर नेट का गलत -उपयोग कर किसी का बेंक अकाउंट किसी की व्यक्ति गत धरोहर (सूचनाएं )चुरा लेतें हैं .किसी भी कंप्यूटर को वायरस से संक्रमित कर बेकार कर देतें हैं .(वायरस एक अ-वांछित प्रोग्रेम है ,सोफ्ट वे -यर है ,जो ज़ब्री किसी के कंप्यूटर में दाल दिया जाता है ।
कोम्प्लेक्स इलेक्ट्रोनिकसिस्टम्स के तमाम डाटा (सूचना रीढ़ )को नष्ट कर डालना ,खासकर राज -नीतिक मकसद से इंटरनेट का इस एवज स्तेमाल करना ,पावर स्टेशंस से लेकर एयर ट्रेफिक कंट्रोल सब कुछ को बेकार कर देना ,नाकारा बना देना ठाप्प कर देना 'साइबर -टेरेरिज्म 'के तहत आयेगा ।
साइबर -विडो :-शादी शुदा औरत जो वर्तमान में किसी की बीवी भी हो जो इंटर नेट पर ज्यादा से ज्यादा समय बिताती हो ,गेम्स में अन्य कामों के लिए इंटर नेट पर ही आश्रित रहती हो ,व्यंग्य विनोद में ही सही 'साइबर -विडो 'कहलाती है ।
साइबर- स्ताल्किंग :इंटरनेट पर ई -मेल से किसी का पीछा करना उसे डराना धमकाते रहना 'साइबर -स्ताल्किंग 'कहलाता है .ऐसा व्यक्ति 'साइबर स्तालकर 'कहलाता है .
(ज़ारी ...)

बुधवार, 23 जून 2010

आदम जात ही नेस्तनाबूद हो जायेगी आइन्दा सौ सालों में ..

दुनिया भर से चेचक का सफाया करने वाले ऑस्ट्रेलियाई साइंसदान फ्रेंक फेनर ने अब पृथ्वी नामक गृह से जहां इत्तेफाक से जीवन है ,होमियो -सेपियंस के आगामी सौ सालों में सफाए की प्रागुक्ति (भविष्य कथन )कर दी है ।
जनसंख्या विस्फोट (बढती आबादी अंत बर्बादी )और अतिशय उपभोग (चार्वाक वादी दर्शन )इसकी वजह बनेंगे .साथ में अन्य जीव भी मारे जायेंगे .(रेड डाटा बुक में पहले ही कितने प्राणी आ चुके हैं ,आदमी की हवस जो करादे सो कम .).जैव वैविध्य का सफाया देख रहें हैं हम लोग ,साक्षी भाव से ।
इस स्थिति से कोई पार नहीं पा सकता .आदमी कहता कुछ है करता कुछ है .विनाश के बीज बोये जा चुकें हैं .काल का रथ पीछे की ओर लौटे तो कैसे ?आदमी को भरम है ,वह समय की सवारी कर रहा है(कबीर ने यूं ही नहीं कहा था 'माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंदे मोय ,एक दिन ऐसा आयेगा मैं रोदुन्गी तोय / 'कबीरा तेरी झोंपड़ी गल कटी -यनके पास ,करेंगे सो भरेंगें ,तू क्यों भयाउदास ।)।
उत्तर उद्योगिक युग के बाद से आदमी ज़ब्रिया तौर पर ,गैर आधिकारिक वैज्ञानिक युग (सारि, पीरियड में )अवैधानिक तौर पर ,अन -ओफिशयली,दाखिल हो चुका है ।
अन्थ्रो -पोसीन युग है यह .जिसमे आदमी ,सिर्फ खुद को आदमी, सृष्टि के केंद्र में रखकर सबसे असरदार मान समझ रहा है .जीवन ओर जगत का नियंता मान बैठा है .यही सारे फसाद की जड़ है ।
इस नादानी का असर आसमानी आपदाओं से बाज़ी मार रहा है .हिम युग तथा ,उल्का पात (कोमेत्री इम्पेक्ट ,किसी धूम केतु के पृथ्वी से आ टकराने से जब तब पैदा हो चुकी तबाही )को बौना सिद्ध कर रहा है ।
हो सकता है 'जल वायु -परिवर्तन इस विनाश की कथा लिखे .फिर कोई मनु कहे -'हिम गिरी के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शिला की शीतल छाँव ,एक पुरुष भीगे नयनों से ,देख रहा था ,प्रलय प्रवाह '
हम भूल गए 'ईस्टर आइस -लैंड -वासियों का हश्र ?
बिना कार्बन डा- य -ओक्स्साइड के इन मूल -निवासियों ने ४०,००० -५०,००० साल निकाल दिए .बिना ग्लोबल वार्मिंग के ज़िंदा रहे बिना साइंस ओर टेक्नोलोजी के .,बने रहे .लेकिन दुनिया अपनी ढाल चलती है ।
इसीलियें डा -य -ना -सोर्स वाला हश्र हो सकता है होमियो -सेपियंस का ।
बेहद निराश हैं इस परिद्रशय से दुनिया भर के पारिस्थितिकी - विद ,केवल कुछ ही इस गहन नैराश्य की गिरिफ्त से बाहर हैं .भगवान् करे फ्रेंक फेनर गलत साबित हों .

व्हेल्स मानवीय गुणों से भर -पूर ........

सामुद्रिक जैव -विदों के अनुसार दोल्फिंस मानवीय गुणों से कहीं ज्यादा संसिक्त हैं ,उससे कहीं ज्यादा जितना की अब तक सोचा समझा गया था ।
जागरूकता ,सुख दुःख की अनुभूति के अलावा इनका एक सामाजिक जीवन भी है .सामाजिक संस्कृति है इनकी अपनी .मानसिक क्षमता भी कहीं ज्यादा है ।
सी टी ए सी ई ए एन एस (सितासेयन)वर्ग का यह प्राणी सिर्फ एक बड़े आकार का स्तनपाई प्राणी ही नहीं ,सिर्फ एक स्ट्रीम ला -इंद बॉडी विद फॉर -लिम्ब्स मोडिफाइड एज फ्लिपर्स के अलावा भी बहुत कुछ है .इस वर्ग में ८० से ज्यादा व्हेल्स ,दोल्फिंस ,पोर -पोइसिज़ शामिल हैं .मानवीय गुण ,सोचने का माद्दा सिर्फ होमियो -सेपियंस की बपौती नहीं है .

इलेक्ट्रोनिक चश्मे सभी दूरियों को ....

एक अमरीकी कम्पनी 'पिक्सेल ओप्तिक्स ने ऐसे चश्मे बना लेने का दावा किया है जो तमाम दूरियों की चीज़ें दृश्य पटल पर ले आयेंगें .अभी तलक दूर और पास की चीज़ों को देखने के लिए 'यूं बाई -फोकल्स' से काम चल जाता था लेकिन इनके बीच की दूरियां भी तो हैं ,विविध दूरियों की चीज़ें अब साफ़ साफ़ एक ही चश्मे से देखी जा सकेंगी ।
और चस्मा भी ज़रा हठके होगा .इसमें इलेक्ट्रोनिक ग्लासिज़ (लेंसिज़ )का स्तेमाल किया जाएगा .बाई -फोकल्स चलन से बाहर गुज़रे ज़माने की चीज़ हो जायेंगे .बस फ्रेम की बगल से एक बटन को दबाने की देर होगी चस्मा खुद बा -खुद अलग दूरियों की चीज़ों को अडजस्ट करके दृश्य पटल पर देखी गई वस्तुका साफ़ सुथरा प्रति -बिम्ब प्रस्तुत कर देगा ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्पेक्स देत ऑटो -मेतिकली अडजस्ट व्यूइंग डिस्टेंस (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,लेट सिटी एडिसन ,नै -दिल्ली ).पृष्ठ ११ .

जब मामला बच्चे की बीनाई (विज़न )से जुड़ा हो ...

जब मामला बच्चे के विजन से जुडा हो किसी भी वजह से नौनिहाल का विज़न प्रभावित हो रहा हो ,माँ बाप को बिना देरी किसी माहिर (ओप्ठेल्मोलोजिस्त ,नेत्र विशेषग्य )के पास पहुंचना चाहिए ,नीम हकीमी आँखों के मामले में खतरनाक सिद्ध हो सकती है ।
"किड्स लूजिंग विजन इन बेंगलोर तालुक ,४०० हंड्रेड चिल्ड्रन ब्लाइन्दिद,फ्लोराइड इन वाटर ,कोन्सन्गुइनेऔस मरीज़ ब्लेम्द "-दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,न्यू -डेल्ही ,जून २२ ,२०१० ,पृष्ठ ४ ,लेट सिटी एडिसन ,पढ़ना बांचना कई चीज़ें चुपके से समझा जाता है ।
(१)एक वंश क्रम में ,पारिवारिक संबंधों में नजदीकी लोगों का परस्पर वैवाहिक संबंधों में बांध जाना .(२)इलाकाई पानी में फ्लोराइड का आधिक्य .(३)बच्चे के शरीर में विटामिन -ए की कमीबेशी ,बीनाई के लिए भारी सिद्ध होती है ,ऐसे में हाथ पर हाथ धरे इंतज़ार करते रहने से कुछ बड़ा अनर्थ हो जाएगा ,डेमेज ज्यादा हो जाने पर फिर आँखों की रोशनी लौटाई नहीं जा सकती ।बड़ी नाज़ुक चीज़ है बचपन ,आँख है तो ज़हान है ,आँख गई तो जग अंधियारा .पांच साल से पहले ही इलाज़ कराना ज़रूरी है .
अब तक के एक अति व्यापक अध्धय्यन में बेंगलुरु तालुक "पवागादा "के २९ ,८०० बच्चों पर ज़ारी अध्धय्यन में नारायण नेत्रालय ,नारायण हृदयालय ,शारदा देवी आई हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर ने मिलकर अब तक तकरीबन ४००० नौनिहालों में गंभीर किस्म के नेत्र विकारों का पता लगाया है ।
प्रमुख हैं -लामेल्लर कांजीनितल केतेरेक्त (इस नेत्र विकार में आँख का लेंस ही क्षति ग्रस्त हो जाता है ),रेटिना दिजेंरेसन (इस विकार से ग्रस्त बच्चे दिन छिपते ही ,संध्या के उतरते ही कुछ नहीं देख पाते ),बितोत स्पोट्स ,रेड आईज ,स्त्रबिस्मस (स्क़ुइन्त आई ),आदि .रेटिना ब्लास्तोमा की चपेट में तो पूरे के पूरे परिवार आ रहें हैं ।
तीनों संस्थाओं ने नेत्र चिकित्सालय आपके घर द्वारे के तहत 'मोबाइल टेस्टिंग यूनिट्स 'चलाई हैं ।
जागरूकता ज़रूरी है .

मंगलवार, 22 जून 2010

५ फ्लेट बैली मिल्स ....

स्वास्थ्य सचेत युवतियों के लिए एक अच्छी खबर है .उदरीय चर्बी (बैली फेट )छांटने के लिए "प्रिवेंसन "(हेल्थ्मेग्जीन ,जून अंक ,देखें पृष्ठ १२७ ).पत्रिका ने एक ख़ास डाईट प्रस्तुत की है .यह उस लेन्डमार्क स्टडी पर आधारित है जो जुलाई २००७ में 'डायबिटीज़ केयर' में प्रकाशित की गई थी ।
रीना सोफिया यूनिवर्सिटी अस्पताल स्पेन में साइंसदानों ने पता लगाया है ,बिना अतिरिक्त व्यायाम किये 'मोनो -अन -सेच्युरेतिद एसिड्स 'से तैयार खुराखी टाइम टेबिल बैली फेट को परे रखने में कारगर सिद्ध हो सकती है ।
जिन लोगों के उदर में ज्यादा चर्बी ज़मा हो जाती है उनके लिए खासतौर पर म्युफा (एकल असंत्रिप्त वसीय अम्ल युक्त चिकनाई )एक बेहतरीन नुस्खा है जो पांच घंटों तक भोजन के बाद केलोरीज़ खर्च करने की दर मेटाबोलिक रेट्स बढाए रह सकती है ।
थ्री ईजी स्टेप्स :
(१)प्रत्येक मील में म्युफा (एकल असंत्राप्त वसीय अम्ल युक्त चिकनाई )का स्तेमाल कीजिये .नट्स और सीड्स इसके अच्छे स्रोत हैं .वानस्पतिक तेलों में ओलिव आइल ,कैनोला के अलावा सबसे अच्छा है सफ्फ्लोवर ,एवोकाडो (दी देंसर हस वेरायटी इज दी बेस्ट पिक ),नट्स में मकादामिया नट्स का ज़वाब नहीं .ओलिवस में ग्रीन्स बेहतर हैं ब्लेक्स से .चोकलेट्स में डार्क और सेमी -स्वीट्स बेहतर हैं ।
(२)४००-४०० केलोरीज़ के चार मिल्स दिन भर में लीजिये .यानी कुल १६०० केलोरीज़ .एक तरफ वेट लोस को बनाए रखने दूसरी तरफ ऊर्जा वांन (एनर्जी लेविल को बरकरार रखने में कारगर है यह टाइम टेबिल चार बार बराबर खाने का .केलोरी बर्निंग मसल्स को बनाए रखने सुरक्षित रखने में मददगार है यह डाईट प्लान ।
(३)४-५ घंटे के अंतराल पर खाइए .इससे आपका ब्लड
सुगर भी काबू में रहेगा ,मेटा -बोलिज्म भी हाई गीयर में बनी रहेगी ।
म्युफा यानी मोनो -अन सेच्युरेतिद फेटि एसिड्स यानी अ -संतृप्त वसीय अम्ल युक्त चिकनाई .

जब भ्रम हो प्रेगनेंसी का और .....

कई युवतियों को डिफिकल्ट पीरियड्स होतें हैं ,माहवारी (मासिक धर्म अथवा मेन्स्त्रुअल साइकिल )का वक्फा इनके लिए कष्ट -कारी होता है .यहाँ तक तो ठीक कई मर्तबा 'प्रेगनेंसी 'और प्री -मेन्स्त्रुअल सिंड्रोम 'के लक्षण यकसां ,कन्फ्युसिंग होतें हैं ।
'ब्रेस्ट टेंडर -नेस (सेंसिटिव टू टच ),नाजिया ,मतली होने की अनुभूति ,उनींदा -पन प्रिमेन्स्त्रुअल सिंड्रोम के आम लक्षण हैं ,अलावा इसके अब्दोमिनल क्रेम्प्स (पेट की ऐंठन के साथ दर्द भी कई युवतियों को झेलना पड़ता है ।).
डिप्रेसन (अवसाद ,खिन्नता ,उदासी ,अन्य -मनास्कता ,अनमनापन ),चिद -चिडा -हट,इर्रितेबिलिती ,ओवर -सेंसिटिविटी ,मूड स्विंग्स ,अफारा ,डकार आना ,गैस के कारण पेट फूलना ,एकने ( कीलमुहांसे),कुछ ख़ास चीज़ें खाने की ललक (क्रेविंग्स ),खासे संभ्रम पैदा करने वाले लक्षण सिद्ध होतें हैं ।
समाधान है सबसे बढ़िया ,एक मेन्स्त्रुअल डायरी रखना ,हिसाब किताब रखना ,आगे पीछे के पीरियड्स का .इससे आप को पीरियड्स का टाइम -पीरियड्स पता रहेगा .पुनरावृत्ति का बोध रहेगा ।
यदि ऐसा ओव्युलेसन के आस पास होता है (साइकिल के बीच में ,मिड साइकिल में )या फिर ड्यू डेट से ७ -१० दिन पहले होता है ,संभावना यही ज्यादा रहती है यह प्री -मेन्स्त्रुअल सिंड्रोम ही है ।
मेन्स्त्रुअल ब्लीडिंग के शुरू होतें ही भ्रम के बादल उड़ जायेंगें ,लेकिन यदि ऐसा नहीं भी होता है ,५ दिन ऊपर हो जातें हैं ,तब आपके और इंतज़ार का कोई मतलब नहीं है ,"गो फॉर यूरिन फॉर पेर्गनेंसी टेस्ट "(यह टेस्ट घर में भी हो सकता है ,क्लिनिक में भी .).अलबत्ता होना चाहिए ताकि स्थिति साफ़ हो ।सुबह उठने के बाद पहले यूरिन का साम्पिल मिड स्ट्रीम से लेना चाहिए ,जांच के लिए .
सन्दर्भ -सामिग्री :-यु आस्क /अवर एक्सपर्ट्स आंसर्स /डॉ कामिनी राव ,इन्फर्तिलिती एक्सपर्ट एंड प्रेसिडेंट ,इंडियन सोसायटी फॉर असिस्तिद ऋ -प्रोडक्सन /प्रिवेंसन ,हेल्थ मैगजीन ,जून अंक ,पृष्ठ ११

एंजियो -प्लास्टी में स्टंट्स का स्तेमाल ..(ज़ारी ...)

इक्कीसवीं शती में स्वास्थ्य सेवायें ...(ज़ारी ..,गत पोस्ट्स देखें )।
एंजियो -प्लास्टी के दरमियान आम तौर पर स्टंट्स लगा दिए जातें हैं ताकि जहां तक हो आइन्दा धमनियों की दीवार खुदरी ,सिमटी (नेरो ) ना हो ।
दो तरह के स्टंट्स प्रचलन में हैं ।
(१)बेयर मेटल (२)दवा सने यानी ड्रग ईल्युतिंग स्टंट्स ।
दूसरी तरह के स्टंट्स ,स्टंट्स के अन्दर हो जाने वाली स्कारिंग को कम रखतें हैं .ज़ाहिर है धमनी के दोबारा अवरुद्ध होने के मौके कम हो जातें हैं ।
कुछ अस्पतालों में "एन एग्रेसिव पोस्ट दाय्लेसन ऑफ़ दी स्टंट इज डन यूजिंग अनादर बेलून तू हेल्प दी स्टंट एक्स्पंद .

प्रई -मेरी एंजियो -प्लास्टी ...(ज़ारी ...)

प्रा-इमेरी एंजियो -प्लास्टी हालाकि क्लोट बस्टिंग मेडिकेसंस की बनिस्पत महंगी है (१००,००० -२००,००० लाख रुपैया ,स्टंट की गुणवत्ता और किस्म के हिसाब से )लेकिन इसे ही बेहतर उपाय के रूप में माना समझा गया है .अलबत्ता यह माहिरों का काम है जिहें काम की पूरी समझ और तजुर्बा हो ,तसल्ली बख्श ।
प्रा -इमेरी एंजियो -प्लास्टी की कामयाबी का पैमाना क्या है ?
दी क्वालिटी ऑफ़ पर -फ्यूज़न टू हार्ट मसल्स इज दी प्रा -इमेरी दितर्मिनेंत ऑफ़ दी सक्सेस ऑफ़ ए प्रा -एमेरी-एंजियो -प्लास्टी .जितना बेहतर तरीके से रक्त प्रवाह होगा उतना ही कम चांस रह जाएगा हृद पेशी के कमज़ोर हो जाने का ।
क्या है पर्फ्युज़ं ?
किसी ऊतक या ओर्गेंन में ,हृद पेशी आदि किसी भी अंग में रक्त प्रवाह के ज़रिये दवा पहुंचाना,इस एवज शरीर के अन्दर किसी भी चेनल का स्तेमाल किया जा सकता है ।
हाई -प्रेसर स्टंट इम्प्लान्तेसन टेक्नीक्स :-
बारहा धमनी बंद होने खून की नालियों के रुक जाने की शिकायत कम रह जाती है ,हाई -प्रेसर -इम्प्लान्तेसन तकनीकों से ।
मेतिक्युलास ग्रोइन पंक्चर टेक्नीक्स ,खून को पतला रखने वाली दवाओं का विवेक पूर्ण स्तेमाल ,तथा 'प्रोपर ट्यूब रिमोवल टेक्नीक्स ,अतरिक्त खून बह जाने से होने वाले पेचीला पन से अपेक्षाकृत बचाए रहती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-कूलाम्बिया एसिया /२१ सेन -च्युरी हेल्थ केयर /एडवर्टोरियल /प्रिवेंसन ,हेल्थ मैगजीन ,जून अंक ,पृष्ठ ९ -१० ).

इक्कीसवीं शती की स्वास्थ्य सेवायें :प्राई-मेरी एंजियो -प्लास्टी

इक्कीसवीं शती की स्वास्थ्य सेवायें :पहली किस्त ।
प्राई -मेरी एंजियो -प्लास्टी वह सर्जिकल प्रोसीजर है (इन्वेज़िव सर्जरी है )जिसके तहत ह्रदय को रक्त ले जाने वालीकिसी अवरुद्ध धमनी को एक बेलून की सहायता से खोला जाता है .(यह वैसे ही है जैसे घर की किसी बंद नाली को खोलना .).अलबत्ता इस एवज एक मिटेलिकअति महीन ट्यूब ग्रोइन या फिर आर्म से प्रभावित धमनी तक पहुंचाई जाती है ।
इस प्रोसीजर को प्राई -मेरी एंजियो -प्लास्टी तभी कहा जाता है जब इसे फस्ट लाइन ऑफ़ ट्रीटमेंट के रूप में अपनाया जाए ,क्लोट -बस्टिंग मेडिकेसंस का सहारा ना लिया जाए .(खून का थक्का घुलाने हठाने वाली दवाओं का सहारा ना लिया जाए ।).
बेशक क्लोट बस्टिंग मेडिकेसंस अपेक्षाकृत सस्तें हैं ,कम खर्चीले हैं (५००० -५०,००० हज़ार रुपैया खर्च आता है ),लेकिन ये दवाएं हार्ट एतेक के २-३ घंटे के भीतर भीतर मिल जानी चाहियें .इनमे थोड़ा सा ब्लीडिंग कोम्प्लिकेसंस का भी पेंच है ,ब्रेन -हेम्रिज़ का ख़तरा भी थोड़ा सा ज्यादा बना रहता है ।
अलावा इसके ८० फीसद मामलों में अव्र्रुद्ध धमनी में ब्लोकेद के स्थान पर 'रेज़िद्युअल नेरोइंग '(धमनी पूरी तरह खुल नहीं पाती )।,
रह जाती है .
अस्पताल में तीन चार दिन रुकना भी पड़ता है .ऐसे में कम खर्ची वाला फोर्मुला लागू नहीं होता .पहले एंजियो -ग्रेफ़ी और फिर एंजियो -प्लास्टी की भी आइन्दा ज़रुरत पद सकती है ।

सोमवार, 21 जून 2010

जब बच्चे का हाथ गुदा पर जाता है ......

अक्सर बच्चे पिन वोर्म्स (कीट ग्रस्तता )की गिरफ्त में आ जातें हैं .गुदा के गिर्द जलन और खुजली से हैरान परेशान बच्चा बैचैन रहने लगता है ।
पिन -वोर्म :-यह धागे के आकार का एक नीमाटोड़ है .वोर्म है .जो रीढ़ धारी प्राणियों की अंतड़ियों (इन्तेस्ताइन )में परजीवी के रूप में रहता है .यह ओक्स्युरिदाए परिवार का सदस्य है ।
बच्चों को यह कीट -ग्रस्तता बारहा अपने इन्फेस्तिद साथियों से ही लगती है .इसलिए ज़रूरी हो जाता है उन्हें भी डी -वोर्म किया जाए ताकि क्रोस इन्फेक्सन का दुश्चक्र टूटे .दवा दिलवाई जाए डॉक्टरी परामर्श से .ज़रूरी टेस्ट्स (स्टूल आदि )करवाए जाएँ डॉक्टरी निर्देशों के अनुरूप ।
ज़रूरी है बच्चों के नाख़ून बढ़ने ना दिए जाएँ .नियमित काटें जाएँ क्योंकि इन्हीं नाखूनों (फिंगर नेल्स )के बीच छिपे रहतें हैं" एग्स ऑफ़ दी वोर्म्स ".इन्हीं से वह इची बम्स को बारहा खुजलाता है .,आजिज़ आकर .ज़ाहिर है बच्चे की यह आदत जो ओब्सेसन की हद तक जा सकती है .छुडवाई जाए ।
सलाद में खाई जाने वाली कच्ची तरकारियों को पोटेशियम पर -मेग्नेट सोल्यूसन में कुछ देर डूबा कर रखा जाए स्तेमाल से पूर्व .अनंतर साफ़ जल से निथारा जाए .यह भी पिन वोर्म्स की वजह बन सकतीं हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-यूं आस्क /अवर एक्सपर्ट्स आंसर्स /डॉ अरविन्द तनेजा ,डायरेक्टर एंड चीफ ,पीडियाट्रिक सर्विसिज़ ,मेक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल ,दिल्ली ./प्रिवेंसन ,हेल्थ मैगजीन ,जून अंक ,पृष्ठ ११ .

सृष्टि में व्यापक स्तर पर अन्धकार का डेरा क्यों हैं ?

जिसे हम प्रकाश (दृश्य प्रकाश )कहतें हैं वह इलेक्त्रोमेग्नेतिक एनर्जी का एक बहुत छोटा सा हिस्सा है ,जिसके दोनों और अदृश्य प्रकाश है .गामा रेज़ ,एक्स -रेज़ ,अल्ट्रा वायलेट लाईट ,विजिबिल लाईट ,इन्फ्रा रेड रेज़ ,माइक्रो -वेव्ज़,रेडियो वेव्ज़ इसी ऊर्जा का विस्तार है .ऊर्जा का विभाजन लघुतर तरंग गामा रेज़ से लेकर दीर्घतम रेडिओ वेव्स तक है ।
इसलिए प्रकाश शब्द का चलन विस्तारित इलेक्त्रोमेग्नेतिक स्पेक्तर्म के छोटे से अंश तक सीमित है ।
अब से कोई १३.६ अरब वर्ष पहले एक महा -विस्फोट से सृष्टि का जनम हुआ .तब से यह सृष्टि लगातार फ़ैल रही है .सभी सितारे ,तारा मंडल ,नीहारिकाएं (गेलेक्सीज़ ),सुपर गेलेक्सीज़ गरज यह गोचर और ज्ञात सृष्टि के सभी अंश परस्पर छिटक रहें हैं .जो पिंड जितना अधिक दूर है किसी प्रेक्षक के सापेक्ष वह उतनी ही तेज़ी से पलायन कर रहा है .दी फारदार ए गेलेक्सी दी फास्टर ईट इज रिसीडिंग .इसे ही हबिल्स ला (हबील का नियम) कहा जाता है ।
सितारों के स्पेक्ट्रम उतारने पर पता चलता है अधिकाँश सितारों के स्पेक्ट्रम की रेखाएं लाल रंग की और खिसकी हुईं हैं .इसे ही "रेड शिफ्ट "कहा जाता है ।
यदि स्पेक्ट्रम की रेखाएं नीले रंग की और खिसकाव दर्शाती हैं तब इसे ब्लू शिफ्ट कहतें हैं ।
रेड -शिफ्ट का मतलब सितारों का पलायन है दूर जाना है एक प्रेक्षक से और ब्लू-शिफ्ट का पास आना है ।
अब चूंकि सृष्टि के फेलाव विस्तार की वजह से परस्पर सभी पिंड एक दूसरे से दूर छिटक रहें हैं इसीलिए प्रकाश धीरे धीरे दृश्य से अदृशय अंश की और लघुतर दृश्य तरंग वाय्लित से इंडिगो की तरफ ,इंडिगो से ब्लू ,ब्लू से ग्रीन ,ग्रीन से ओरेंज ,तथा ओरेंज से रेड की तरफ खिसकता अदृशय अंश इन्फ्रा रेड ,फार इन्फ्रा रेड ,माइक्रो वेव्स ,रेडिओ वेव्स के अदृशय पट्टी की तरफ जा रहा है .यानी हमारी दृश्य पट्टी से बाहर हो रहा है .यदि सृष्टि का विस्तार ज़ारी रहा तो एक दिन सृष्टि अन्धकार की चादर में विलीन हो जायेगी .

लघु ग्रह की धूल समेटे लौटा जापानी अन्वेषी यान ....

जेपनीज़ स्पेस प्रोब फाइंड्स यूनीक एस्टेरोइड डस्ट(दी ट्रिब्यून ,जून १८ ,२०१० )।
हाया -बूसानाम का एक जापानी अन्वेषी यान अन्तरिक्ष की एक लम्बी यात्रा के बाद ऑस्ट्रेलियाई आउट- बेक(निर्जन क्षेत्र )में सकुशल लौट आया है .साथ में लाया है एक यूनीक केप्स्युल जिसमे एक लघु -ग्रह (एस्टेरोइड ) की धूल के नमूने हैं ।
इस नीयर अर्थ एस्टेरोइड का नाम है "आइटो -कावा ".यह यात्रा सन २००३ से ज़ारी थी .इन नमूनों का अध्धय्यन विश्लेसन सृष्टि के बारे में हमारी जानकारी में थोड़ा और इजाफा करेगा .

जंगलों के सफाए से जुडी है मलेरिया की नस (नर्व ).

क्लीयार्ड फोरेस्ट्स लीद टू राइज़ इन मलेरिया इन ब्राजील (दी ट्रिब्यून ,जून १८ ,२०१० )।
जंगलोंके सफाए से जुडी है मलेरिया की नव्ज़.अमरीकी रिसर्चरों ने पता लगाया है ,ब्रजील की एक काउंटी में ४.२ फीसद क्षेत्र में पेड़ों की कटाई के बाद वहां मलेरिया के मामलों में ४८ फीसद की वृद्धि दर्ज़ की गई है .अमेजन क्षेत्र के इतने छोटे अंश के सफाए से ही मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों की तादाद एक दम से बढ़ गई .फल स्वरूप मलेरिया का प्रकोप भी बढा ।
'इमर्जिंग इन्फेक्सश दीज़िज़ीज़'जर्नल में यह खोजपरक रिपोर्ट तफसील से (विस्तार से )छपी है .पता चला पेड़ों की कटाई ,मच्छरों की तादाद में बेशुमार वृद्धि तथा मलेरिया संक्रमण का परस्पर रिश्ता है ।
मलेरिया फैलाव ,मलेरिया के एपिदेमिक बनने में पारिस्थिति तंत्र के एक घटक 'वनों के कटान 'का बड़ा हाथ है .

आसमान से टपकती आफतें .(ज़ारी ...)

क्या कहतें हैं खगोल विज्ञानी :-
हमारा सूर्य जो पृथ्वी पर तमाम जीवन का स्रोत रहा है अब तक अपना आधा ईंधन हाई -द्रोजन के रूप में जला हीलियम में तब्दील कर चुका है .पांच अरब वर्षों में यह ज्योति बुझ जायेगी .यही इसकी जीवन अवधि है .तब तक यह अपना सारा ईंधन जला चुका होगा .इसके बाद यह लगातार फैलता फूलता पृथ्वी और अपने तमाम ग्रहों ,बेटे पोतों को लील जाएगा .लाल दानाव के रूप में इस की जीवन लीला समाप्त हो जायेगी ।
लेकिन हमारा जैव मंडल तो इससे बहुत पहले ही निष्प्राण हो सकता है .५० करोड़ सालों में ही इसके ईंधन उड़ाने की रफ़्तार एक दम से बढ़ जायेगी तब प्रस्तुत होगा विश्व -व्यापी तापन "ग्लोबल वार्मिंग '"का "टर्बो -चार्ज्ड "संस्करण ।
आप जानतें हैं ,एक टर्बो -चार्ज्ड इंजिन एक टर्बाइन की मदद से वायु और पेट्रोल को अति उच्च दाब पर ले आता है .इस प्रकार के इंजिन से लैस वाहान अति शक्ति -शाली होता है ।
लेकिन कुछ विज्ञानी 'टाईटन "को इससे पहले ही अपना उपनिवेश बना पृथ्वी से कूच कर जाना चाहतें हैं .नाइट्रोजन से भरपूर है इसका परिमंडल ,बस इसके केम्पस में ओक्सिजन पहुंचाने की देर है और बस एक और रैन -बसेरा ,एक आवास तैयार ।
अलावा इसके कुछ रोकिट विज्ञानी एक लघु -गृह (एस्टेरोइड )को ही घसीट कर धीरे धीरे पृथ्वी के नज़दीक ले आना चाहतें हैं .पृथ्वी की और आते यह किश्तों में खासी ऊर्जा पृथ्वी को देता रहेगा जो धीरे धीरे हमारी पृथ्वी को सूरज से एक सुरक्षित दूरी पर लेजा कक्षा में छोड़ देगा ।
सन्दर्भ सामिग्री :-एंड ऑफ़ वर्ल्ड एज वी नो ईट (साइंस एंड टेक्नोलोजी ,दी त्र्रिब्युन ,जून १८ ,२०१० )

रविवार, 20 जून 2010

आसमान से टपकती आफतें (ज़ारी ....)

आसमानी आफतें भी बनी हैं पृथ्वी से जीवन के सफाए की वजहें .ज्योतिर -विज्ञानियों की राय में ऐसा आइन्दा भी हो सकता है .आइये एक आसमानी घटना पर गौर करें :-
कुछ भारी सितारे अपने जीवन की अंतिम अवस्था में अपना सारा ईंधन भुगताने के बाद एक भारी विस्फोट के साथ फट जातें हैं .इन्हें 'सुपर -नोवा 'कहा जाता है .(साइंस दानों के मुताबिक़ औसतन ४०० साल के बाद कोई एक सूरज से कमसे कम दस गुना भारी तारा सुपर -नोवा विस्फोट में फट सकता है ।).
इस दरमियाँ एक भरी पूरी गेलेक्सी (निहारिका ,दूध गंगा )से ज्यादा हो जाती है इसकी चमक .इसी के साथ उच्च ऊर्जा कणों की बौछार (ऐसा विस्फोट पृथ्वी से ३० करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हो जाने पर )से हमारा ओजोन कवच (ओजोन मंडल ,हिफाज़ती बिछोना )नष्ट हो सकता है ।
एक अनुमान के अनुसार अब से तकरीबन ४१,००० साल पहले उत्तरी अमरीकी स्तनपाइयों (नोर्थ अमरीकन मेमल्स )के सफाए की वजह ऐसा ही एक सुपर - नोवा विस्फोट बना था .छोटे पैमाने पर ऐसे विध्वंश की पुनरावृत्ति अनेक बार हो चुकी है ।
विज्ञानियों के अनुसार 'सुपर -नोवा 'विस्फोट तो एक छोटी सी आसमानी आग है ,हाई -पर -नोवा का सोचियेगा ?
पृथ्वी से १,००० प्रकाश वर्ष दूर ऐसा विस्फोट होने पर एक आलमी आग (ग्लोबल कन्फ्लेग्रेसन )की चपेट में tamaam कायनात (पृथ्वी जैव मंडल के साथ )आ जायेगी .

आसमान से टपकती आफतें ...(ज़ारी ...).

दस करोड़ साल की मौहलत एक सुरक्षित बचावी सीमा लग सकती है लेकिन आइन्दा ऐसा कभी भी हो सकता है (साढे छकरोड़ साल पहलेएक धूम -केतु की पृथ्वी से टक्कर डाय -नासौर्स के विनाश का कारण बन चुकी है .).लेकिन साइंसदानों ने इससे बचाव के उपाय तलाश लियें हैं .निगाह रखी जा रही है पृथ्वी की ओर आते कुछ सौ मीटर आकार के अन्तरिक्षीय पिंडों पर .खतरे के समय इन पर एटमी हथियार का ज़खीरा दागा जा सकता है ,लेकिन इसमें भी एक दुविधा यह है तमाम टुकड़े पृथ्वी की ही ओर आते रहेंगें .,नुकीले ओर पैनेशार्प्नेल्स .जैसे आसमानी आफत पहले से ही आ रही थी ।
एक ओर उपाय तलाशा जा चुका है ,भनक पड़ते ही एक स्पेस -क्राफ्ट आसमानी पिंड की ओर रवाना किया जाएगा जो अपने गुरुत्वीय टाहोके(धक्के ,पुश ) से धीरे धीरे इसका मार्ग बदल देगा ,भौमेतर पिंडों की ओर ,पृथ्वी से परे की कक्षा की जानिब .

आसमान से टपकती आफतें -खगोल विज्ञानियों की निगाह में ..

सृष्टि के विनस्टहोने की बारहा भविष्य -वाणी की गई है -आइये देखतें हैं तारा विज्ञानी क्या कहतें हैं इस बारे में (ज़ारी ...गत पोस्ट से आगे ॥)।
दस करोड़ सालों में एक मर्तबा कोई लघुग्रह के आकार की एक चट्टान पृथ्वी से आ टकरा दुनिया भर में भू -कंप (ज़लज़ला ),तकरीबन एक किलोमीटर ऊंची टा -इडल वेव्ज़पैदा करके तमाम पशुओं का पृथ्वी की सतह से सफाया कर सकती है (लार्ज एनिमल्स तमाम मारे जायेंगें इस विनाश लीला के हाथों .).जैसे जैसे चट्टाने खरबों टन वाष्प में तब्दील होंगी ,बेशुमार ठंडक पैदा होगी ,तमाम सामुन्द्रिक जीव जंतु मारे जायेंगें,प्रकाश संश्लेसन की क्रिया के सूरज की रौशनी के अभाव में ठप्प हो जाने से सारीखाद्य श्रृंखला नष्ट हो जायेगी ।
तकरीबन ६.५ करोड़ साल पहले ऐसा ही कुछ हुआ था 'तब धूम केतु डाय्नासौर्स(भीमकाय छिप -किलियों के विनाश का कारण बने थे .ऐसा समझा कहा जाता है .

क्या सृष्टि के विनाश की वजहें आसमानी होंगी ?

आइये देखें क्या प्रागुक्ति है खगोल विज्ञानियों की सृष्टि के विनाश की बाबत ?
एक तरफ लघु गृह (एस्तेरोइद्स ,ए एस टी ई आर ओ आई डी )लघु गृह पट्टी से गुरुत्व की डोर . से खींचे चले आ सकतें हैं ,दूसरी तरफ कोमेत्री क्लाउड्स (धूम -केतुओं के बादल से धूम केतु ).गनीमत यही है ,अन्तरिक्ष से यह विनाश कारी मलबा कभी कभार ही विशाल आकार लिए होता है ,छोटी डेब्रीज़ की भरमार रहती है .इसीलियें विनाश को पंख नहीं लग पाते ।
लेदेकर सौ साल में एक दफा कोई उल्का (मीटियो -राईट )औसतन १० मीट्रि, पृथ्वी से आ टकराती है .आखिरी बार ऐसा १९०८ में हुआ था .तुंगुस्का निर्जन प्रांत में हुआ था यह उल्का पात जहां एक बड़ा क्रेटर बन गया था .इस विस्फोट से एक स्माल न्यूक्लियर डिवाइस (एटमी बम के बराबर ऊर्जा ही निसृत हुई थी .जान माल की कोई हानि नहीं )।
KUCHH हज़ार साल बस में एक बार पृथ्वी धूमकेतुओं के घने बादलों के बीच से होकर गुजरती है .यह अन्तरिक्ष में एक डेडली आग के अंधड़ सा नज़ारा होता है जिसे कुछ लोग लाईट शो भी कह देतें हैं ।
तकरीबन एक लाख बरसों में सिर्फ एक बार सैंकड़ों मीटर आकार का कोई आसमानी प्रक्षेपात (प्रोजेक्टाइल )पृथ्वी पर आ टकरा एक बड़े भू -भाग (इंग्लैंड सरीखे )को विनष्ट कर सकता है .सौर विकिरण को रोक कर पृथ्वी को अँधेरी चादर के हवाले कर सकता है ,हरियाली के ओढने का सत्यानाश कर सकता है .(ज़ारी ..)

क्या कभी भी पृथ्वी की "इनर कोर "का नर्तन थम सकता है ?

हम जानतें हैं पृथ्वी के चुम्ब -कत्व की वजह वह संवहनी धाराएं हैं 'कन्वेक्सन करेंट्स हैं ,जो पृथ्वी की 'इनर कोर 'में प्रवाहित होती रहतीं हैं .अलावा इसके पृथ्वी एक लट्टू की तरह अपने अक्ष पर नर्तन भी करती रहती है .पृथ्वी की पपड़ी (कठोर परत ,क्रस्ट )और इसकी इनर कोर के अलगाव की कल्पना तो की जा सकती है .,लेकिन केवल इन अर्थों में ,कभी इनका को -रोटेसन थम भी सकता है .इस विक्षोभ के असर से संवहनी धाराएं प्रभावित हो जायेंगी ,पृथ्वी का चुम्ब -कीयक्षेत्र नष्ट हो सकता है .इसके बाद अपनी दिशा भी बदल सकता है .कन्वेक्सन करेंट्स का विक्षोभ समाप्त हो एक बार फिर आडर कायम हो सकता है .आखिर भू -गर्भीय कालिक पैमाने पर ऐसा अतीत में अनेक बार हो चुका है .हो सकता है ,नर्तन भी कभी थमा हो .?सवाल मौजू हो सकता है .यहाँ पर यह सवाल 'को -रोटेसन 'में होने वाले विक्षोभ के सन्दर्भ में ही चर्चित है ,अन्य -था नहीं. नर्तन थमने की भौतिक अर्थों में कोई संभावना नहीं है ।
अलबत्ता पृथ्वी की जोर दार टक्कर ,भीम काय कोमेट्स (धूम केतुओं ),लघु ग्रहों ,से होने की संभावना बारहा व्यक्त की गई है .चर्चा 'न्यूक्लीयर विंटर' की भी कम नहीं हुई है ,इन सब के असर से सागरों में होने वाली उथल पुथल से विशाल जल -राशि के अक्षांशों के पार जाने से पृथ्वीकी क्रस्ट का 'मोमेंट ऑफ़ इनर -शिया 'तब्दील हो सकता है ,जो को -रोटेसन में ब्रेक लगा सकता है .,(को -रोटेसन ऑफ़ दी कोर एंड क्रस्ट ).सुदूर भू -गर्भिक काल में ऐसा हो भी सकता ही ।
सन्दर्भ -सामिग्री -केंन दी अर्थस कोर एवर स्टॉप रोटेटिंग ?(प्रोफ़ेसर यश पाल ,दिस यूनिवर्स ,साइंस एंड टेक्नोलोजी ,दी त्रिबुन ,न्यू डेल्ही ,जून १८ ,२०१० )पृष्ठ १४ .

किसी भी तत्व का सबसे छोटा वह कण क्या है जो किसी रासायनिक क्रिया में स्वतंत्रता पूर्वक भाग ले सकता है .?

किसी भी तत्व का वह सबसे छोटा कण क्या है जो किसी रासायनिक क्रिया में स्वतंत्रता पूर्वक भाग ले सकता है ।?
बचपन में इस सवाल का ज़वाब कुछ यूं पढ़ा था :यदि आप चीनी का एक कण लें ओर इसके और छोटे,छोटे से भी छोटे टुकड़े करते चलें तब विभाजन की एक ऐसी सीमा आ जायेगी जब चीनी अपने गुणों को खो देगी .विभाजन की वह अंतिम अवस्था जब तक चीनी अपने गुणों को बनाए हुए है ,"अनु "कहलाती है .इसके आगे अनु टूट जातें हैं परमाणुओं में .तत्व का सबसे छोटा भाग अनु है ।
लेकिन आज यह व्याख्या समीचीन नहीं है ।
आज इसकी व्याख्या यूं होगी :
यूं तो एटम और मोलिक्युल्स के बीच भी केमिस्ट्री है आकर्षण है , लेकिन कुछ बाहरी कक्षाओं में परिभ्रमण करते इलेक्त्रोंन या तो परस्पर अदला बदली करतें हैं ,एक्सचेंज होतें हैं या फिर आपस में साझा करतें हैं ,शेयरिंग करतें हैं .इसलिए वह सबसे छोटा कण पर्मानुविक आकार का साइज़ )का होगा जो रासायनिक क्रिया में स्वतंत्रता पूर्वक हिस्सेदारी करेगा .,करता है .इसका आकार एक मीटर के दस लाखवें के भी सौंवें भाग के बराबर (हंड्रेड मिलियंथ ऑफ़ ए मीटर )होगा .यूं दो प्रोटानों के बीच भी केमिस्ट्री है परस्पर इन्ते -रिक्सन है लेकिन वह रासायनिक क्रिया से जुदा है .

रेलवे ट्रेक से फासले पर खड़े होतें हैं आप .क्यों ?

जब सामने से दनदनाती तेज़ रफ़्तार रेलगाड़ी प्लेट -फाम पर आती है ,आप एहतियातन थोड़ा ट्रेक से हठके ही खड़े होतें हैं .यदि आप ऐसा नहीं करेंगें तो अपने को खतरे में डाल सकतें हैं .क्यों ?गाडी अपने रास्ते की हवा को धक्का देती दूर धकेलती चलती है .इसके कारण एक आंशिक निर्वात (पार्शियल वेक्यूम) बन जाता है ,जिसे भरने के लिए पार्श्व से हवा दौड़ती है .यही वायु राशि आपको ट्रेक की और धकेल सकती है ।
वैसे भी जहां वेग ज्यादा होता है वहां वायु दाब घट जाता है .(व्हेयर वेलोसिटी इज मोर प्रेशर इज लेस एंड वासे वर्सा-बर्नौली का प्रमेय ,बर्नोलीज़ थ्युओरम ).इसीलिए तेज़ अंधड़ छप्पड़ ,टीन आदि की छतों को उड़ा ले जाता है .कारण ?छप्पड़ के अन्दर वायु दाब सामान्य रहता है ,छत पर अंधड़ के वेग से घट जाता है .वायु दाब को बराबर करने के लिए वायु राशि अन्दर से बाहर (ऊपर की ओर )दौड़ती है और छप्पड़ उड़ जाता है .

नींद पूरी ना ले पाने के खामियाजे ...(ज़ारी )

नींद पूरी ना ले पाने का सबसे बड़ा खामियाजा मोटर स्किल्स को चुकाना पड़ता है .स्लो और लेस प्री -साईस मोटर स्किल्स का मतलब हर काम बे- ढंग,फूहड़ -पने के संग कीजिएगा आप .किसी भी स्तिम्युलास के प्रति हमारे नर्वस सिस्टम की प्रति -क्रिया रिफ्लेक्स कहलाती है रिफ्लेक्स एक्शन के तहत आती है .यही रिफ्लेक्स्सिज़ निष्प्रभावी ,निस्तेज हो जाते हैं भरपूर नींद के अभाव में .इस बात की पुष्टि की है स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ह्यूमेन स्लीप रिसर्च के निदेशक चलते कुशिदा ,एम् डी ,पी एच डी .ने .डेप्थ परसेप्शन उनींदे बने व्यक्ति का बुरी तरह गड़बड़ा जाता है ,हाथ से चीज़ें छूटने लगतीं हैं .माइक्रो -स्लीप के झोंकें इसकी वजह बनतें हैं ।
अलावा इसके नींद का अभाव याददाश्त पर भी भारी पड़ता है ,ऐसे में याददाश्त क्षय (मेमोरी लोस )भी हो सकता है .हम दिन भर में जो कुछ करते सीखतें हैं ,गहन निन्द्रा में उसका संशाधन याददाश्त बन जाता है .नींद का अभाव इस प्रक्रिया को बाधित करता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-५ सरप्रा -इजिंग सा -इन्स यु आर स्लीप डिप -रा -इव्द (प्रिवेंशन ,हेल्थ मैगजीन ,जून अंक ,पृष्ठ ३० -३४ ).

शनिवार, 19 जून 2010

क्या हम भारतीय ठीक से सो पा रहें हैं ?

भारतीयों से ताल्लुक रखने वाले एक अध्धय्यन के अनुसार ,९३ फीसद भारतीय ८ घंटे से कम सो पा रहें हैं .७३फीसद की आँख रात में १-३ दफा खुल जाती है ।
५८ फीसद मानतें हैं ,अधूरी नींद का उनके काम पर असर पड़ता है .१५ %वेक अप ओवर स्ट्रेस अत वर्क .उन्हें काम से बेहद थक जाने का एहसास होता है ।

11 फीसद सिर्फ नींद पूरी करने के लिए भी अवकाश (छुट्टी )लेतें हैं काम से ।
११ फीसद काम के दौरान गहरी नींद सो जातें हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-फिलिप्स स्लीप सर्वे ,२००९

नींद पर्याप्त ना ले पाने के लक्षण ..(ज़ारी )

एक अध्धय्यन में उन लोगों की ब्रेन इमेजिंग की गई जो पिछली रात बिलकुल नहीं सो पाए थे .डिस्टर्बिंग इमेज़िज़ ,देने वाली ख़बरें )देखने पर इनके दिमाग के एक हिस्से 'अम्य्ग्दाला 'में ६० फीसद ज्यादा एक्टिविटी (क्रिया शीलता )देखने को मिली .'एम्य्ग -डाला 'भय और बैचैनी (चिंता ,औत्स्सुक्य ,एन्ग्जायती )का संशाधन करता है .ठीक से गत रात सोने वालों के बरक्स इन एक दम से उनींदे अलसाए लोगों का दिमाग का यह हिस्सा दिमाग के उस हिस्से से कम सम्प्रेषण कर पाया जो उचित भावात्मक संवेगों ,एप्रो -प्रियेत इमोशनल रेस्पोंसिस के लिए उत्तर दाई रहता है ,निर्धारण करता है संवेगों का दृश्य के अनुरूप ।
पम्पेर्स नाप्पिएस स्लीप रिपोर्ट के अनुसार ७० फीसद माताओं ने यह खुलकर तस्दीक किया है माना है ,ठीक से ना सो पाना उन्हें चिड-चिडा बनाए रहता है ,दिनचर्या के साथ ताल मेल बिठाने में दिक्कत आती है .नौनिहालों को भी पूरी तवज्जो कहाँ दे पातीं हैं हम लोग ।
आपके मूड का सीधा सम्बन्ध दिमागी जैव -रसायनों (कुछ न्यूरो -ट्रेन्स -मीटर्स )से रहता है .नींद पूरी ना ले पाने से इनके बीच संतुलन टूट जाता है .मूड खराब हो जाता है .यही कहना मानना है ,इन्डियन स्लीप असोशिएसन ,न्यू दिल्ली के संस्थापक अध्यक्ष डॉ .जी सी सूरी का .ग्लूमी बने रहतें हैं हम ,नकारात्मक बातें थका मांदा दिमाग संजोता रहता है ,सकारात्मक की और उतनी तवज्जो नहीं दे सकता .

नींद पूरी ना ले पाने का मतलब .....

क्या आप थके मांदे रहतें हैं एहम और आम चीज़ों के अंतर को ठीक से नहीं समझ पाते ?नींद पूरी ना पाने के लक्षणों में दिग्भ्रमित बने रहना आम है .क्योंकि आप की निर्णय लेने की क्षमता असर ग्रस्त हो जाती है ,दिमाग के हायर कोर्टेक्स का रेस्पोंस छीजने लगता है .अवमंदित हो जाता है ।
'इफ यु आर स्लीप डिप -रा -इव्द ,दी रेस्पोंस फ्रॉम दी हा -यर कोर्टेक्स (दी एरिया रेस्पोंसिबिल फॉर यूओर दिसिज़ंन मेकिंग केपेसितीज़ )स्लोज़ डाउन .-डॉ सुरेश रामासुब्बन ,कंसल्टेंट ,रिस -पाय -रेत्री एंड स्लीप मेडिसन ,अपोलो ग्लेअनाग्लेस हॉस्पिटल कोल्कता ।'
क्रोनिक स्लीप लोस :दीर्घ कालिक पुराना अनिद्रा रोग ,पूरी नींद ना ले पाने की बीमारीब्लड सुगर लेविल्स को दिस्राप्त कर देती है .नतीज़न शरीर लेप्टिन कमतर (एक ऐसा हारमोन जो भूख को अपिताईट को कम कर देता है )तथा एक और हारमोन 'घ्रेलिन 'ज़रुरत सेज्यादा बनाने लगता है .यह लेप्टिन का भूख बढाने वाला काउंटर पार्ट है .विलोम है .प्रति -रूप है ।
इन शरीर क्रिया वैज्ञानिक बदलावों की वजहों से उनींदे लोग ज़रुरत से ज्यादा खाने लगतें हैं .खासकर सिम्पिल सुगर्स की ललक पैदा हो जाती है .कार्ब्स भक्षण इसी के साथ शुरू हो जाता है .ताकि शरीर को जल्दी ऊर्जा प्राप्त हो ।
साईटो -का -इन्स :नींद अच्छी नींद ,भरी -पूरी नींद (६-८ घंटा रोजाना )के दरमियान हमारा रोग प्रति -रोधी तंत्र (इम्यून सिस्टम )सा -इतो -का -इन्स नाम की कुछ ख़ास प्रोतिनें तैयार करता है .यह तरह तरह के रोगों ,संक्रमणों से झूझने का माद्दा देतें हैं .नींद ,पर्याप्त नींद का अभाव कोल्ड एवं फ्ल्यू वेक्सीनों के असर को भी तकरीबन नाकारा कर देता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-५ सर्प्रैज़िंग साइंस यु आर स्लीप डिप -रा -इव्द (प्रिवेंशन ,हेल्थ मैगजीन ,जून अंक ,पृष्ठ ,३० -३४ ).

वे -इंग - स्केल कहाँ रखियेगा ज़नाब ?

निश्चय ही बाथरूम एक अच्छी जगह हो सकती है बा -शर्ते टाइल्स के बने फ्लोर में ग्राउट ना हो .वे -इंग स्केल वाली जगह के नीचे कारपेट ना हो .बाथ रूम की और घर की अर्थिंग दोषपूर्ण ना हो .दोषपूर्ण अर्थिंग गलत रीडिंग्स की वजह बनेगी .एक ज्ञात मानक वजन को तौल कर देख लीजिये ताकि मशीन की प्रामाणिकता सु -निश्चित हो जाए .यूं आजकल 'कारपेट फीट वाली हा -यर एंड स्केल्स भी बाज़ार में हैं .मशीन के नीचे कारपेट होने से आम डिजिटल मशीन आपका वजन ९ किलोग्रेम तक कम बतलाएगी .कारपेट ज़ज्ब कर्लेतें हैं आपके वजन का एक हिस्सा .स्केल सेन्सर्स ऐसे में असर ग्रस्त हो जातें हैं कम पाठ दिख्लातें हैं .डिजिटल स्केल्स इलेक्त्रोमेग्नेतिक रेज़ की बौछार करतें हैं शरीर पर.. दोषपूर्ण अर्थिंग इस विद्युत् -चुम्बकीय विकिरण और क्षेत्र को असरग्रस्त बना देतीं है .नतीज़न असली पाठ स्केल्स नहीं दर्शा पाते .

वेस्ट लाइन कम हो सकती है ,ज़रूरी नहीं है वजन भी हो .क्यों ?

यु केन लूज़ इन्चिज़ विदाउट वेएंग लेस ।
केलिफोर्निया विश्विविद्यालय (बर्कली केम्पस )में ५० -५५ साला महिलाओं को एक वजन को मैन्तेंद रखने वाली खुराख के साथ साथ १२ सप्ताह तक एक ही साइकिलिंग रूटीन दिया गया .एक ५६ साला महिला की वेस्ट लाइन दो इंच तथा चर्बी सात फीसद कम हो गई लेकिन वजन जस का तस रहा .वास्तव में उसकी १.८ किलोग्रेम चर्बी पेशियों(मसल मॉस )में तब्दील हो गई .किलोग्रेम तू किलोग्रेम दोनों का अनुपात यकसां रहा ।
आप जानतें हैं "मसल इज फरम्र एंड देंसर ,एंड ईट टेक्स अबाउट वन थर्ड दी स्पेस ऑफ़ ऑफ़ फेट "यानी पेशिया बलिष्ट और पुख्ता होतीं हैं ,सघन होतीं हैं ,ज्यादा घनत्व लिए रहतीं हैं ,एक तिहाई कम जगह घेरतीं हैं चर्बी की तुलना में .दो महीना की वर्क ट्रेनिंग चाहिए (स्ट्रेंग्थ ट्रेनिंग )एक किलोग्रेम मसल मॉस बनाने बढाने के लिए ,इतनी ही चर्बी को पेशियों में ढालने के लिए .

कब लीजियेगा अपना वजन ?

रोजाना एक ही वक्त एक ही स्थान पर लीजिये अपना वजन .आदर्श समय है सुबह शौच आदि (बाथऔर वाश के बाद )खाली पेट ताकि चाय -पानी से असरग्रस्त ना होने पाए आपका वजन (वेइंग स्केल ).नंगे बदन रहें वजन करते वक्त ,कोई गहना ,किसी किस्म की मेटल चैन ,घडी आदि का स्तेमाल वेइंग स्केल को गुमराह कर सकता है .आम डिजिटल स्केल में भी विद्युत् -चुम्बकीय विकिरण आप के शरीर पर गिरता है ,धातु इसमें विक्षोभ (गडबडी पैदा )कर सकता है ।
यह भी देखें स्केल की बेत्रीज़ ठीक ठाक हैं ,वीक तो नहीं हैं वरना रीडिंग गलत दर्शायेगा .रोज़ मर्रा का पाठ जुदा हो सकता है लेकिन महीना दर महीना पाठ कमतर होना चाहिए .यदि ऐसा नहीं है ,अपना खुराखी ढर्रा बदलिए यदि लक्ष्य वजन कम करना रहा है तो .

दिनभर में ऊपर नीचे कामज्यादा होता रहता है आपका वजन .क्यों ?

एक दिन में २.२ किलोग्रेम की घटबढ़ हो सकती है आपके वजन में .असली रोल इसके निर्धारण(घटबढ़ ) में पानी का है .मसलन एक लीटर सोडा में जितनी केलोरीज़ हैं यदि आप उन्हें खर्च नहीं करते तब आपका वजन मात्र ४५ग्रेम बढना चाहिए लेकिन स्केल पर खड़े होने पर नज़ारा कुछ और होता है .वजन बढ़ जाता है तकरीबन एक किलोग्रेम .अब आप एक बार बाथ रूम जाइयेगा ,युरिनेट कीजिएगा और अंतर आयेगा ४५० से ६८० ग्रेम का .एक किलोग्रेम पानी सिर्फ दिन भर सांस लेने और पसीने की मार्फ़त उड़ जाता है .दिन भर में आप कितना सोडियम साल्ट (नमक )लेतें हैं अलग अलग खाद्यों से ,कम लेतें हैं या ज्यादा ,पानी कितना पीते हैं यानी आपके हईद्रेसन का लेविल क्या है यह तमाम बातें ,आपका मेन्स्त्रुअल साइकिल ,माहवारी, महीना मासिक धर्म मेन्स्त्र्युअल् ब्लीडिंग पूरे महीने वजन को कम ज्यादा रख सकती है ..

वजन की बाबत असली बात महीना भर का औसत वजन है .बहर -सूरत हर बार के खाने में सिर्फ १०० केलोरीज़ ज्यादा होने का मतलब साल भर में १३ किलोग्रेम वजन बढा लेना सिद्ध होता है बेशक एक दिन के खाने या स्प्लार्ज़ का कोई ख़ास मतलब ना सही ।

सन्दर्भ -सामिग्री :-मेक फ्रेंड्स विद यूओर स्केल (प्रिवेंशन ,हेल्थ मैगजीन ,जून अंक ,पृष्ठ ६६ -७० )

आम साधारण सी वजन तौलने वाली मशीन ही भरोसेमंद और अच्छी ....

आजकल हाई-टेक वेइंगमशीनें (डिजिटल स्केल्स )चलन में हैं लेकिन भरोसे की चीज़ है वहीपुरानी स्प्रिंग वाली वजन तौलने की मशीन .बेशक हाई -टेक मशीन आपका बॉडी फेट भी बतलाती है जो उतना शुद्ध कभी नहीं होता है क्योंकि उसके निर्धारण में एक नहीं अनेक फेक्टर्स काम करते हैं .मसलन आप दिन भर में कितना पानी पीतें हैं आदि ।

कद काठी के अनुरूप कथित आदर्श भार का आधुनिक सन्दर्भ में उतना महत्व नहीं रह गया .बॉडी फेट पर्सेंतेज़ ,लीनमसल मॉस ज्यादा बहरोसे मंद सूचना देतें हैं आपकी सेहत की .बॉडी मॉस इंडेक्स (किलोग्रेम में आपका वजन कितना है .इस नंबर को आपकी मीटर में अभिव्यक्त हाईट के स्क्वायर (वर्ग )से भाग देने पर प्राप्त अंक आपका बॉडी मॉस इंडेक्स है .)का भी अब विशेष भरोसा नहीं किया जाता .वेस्ट हिप रेशियो आदि पर भी गौर करना होता है ।

डिजिटल हाईटेक वेइंग स्केल्स हमारे शरीर पर विद्युतचुम्बकीय विकिरण (इलेक्ट्रो -मेगेंतिक वैव्ज़ )की बौछार करके बॉडी कम्पोजीशन का विश्लेसन करतें हैं ,जायजा लेतें हैं .यदि आपने मेटल चैन आदि कोई पहनी हुई है तो मशीन गलत पाठ बतलायेगी .इसलिए सिर्फ और सिर्फ वजन बतलाने वाली बेसिक डिजिटल वेइंग मशीन ही खरीदिये ,सस्ती और भरोसेमंद .

यारी दोस्ती रखिये 'वेइंग स्केल 'से मगर ....

बाथरूम जगह है वेइंग मशीन रखने की .वेइंग स्केल को बाथ रूम में ऐसी जगह रखिये समतल ज़मीन पर जहां कारपेट ना हो सख्त ज़मीन हो वरना वजन गलत बतलाएगी ।
दर्ज़नो अध्ध्य्यनों का जिनमे तकरीबन १६,००० दाईतार्सशरीक रहें हैं रिव्यू करने के बाद पता चला है जो लोग सप्ताह में कमसे कम एक बार अपना वजन लेतें हैं उनका वजन १३ किलोग्रेम तक कम हो जाता है ।
नेशनल वेट कंटोल रजिस्ट्री के ७५ फीसद सदस्यों ने यह कामयाबी हासिल की है .एक और अध्धय्यन के अनुसार जो लोग अपने वजन का जायजा रोजाना ले रहे थे उन्होंने ऐसा सप्ताह में एक बार करने वालों के बरक्स अपना वजन दो गुना कम करने में कामयाबी हासिल की .इसके भी बरक्स जो दाईतार्स वेइंग स्केल से छिटक रहे थे परहेज़ रख रहे थे उनका वजन इस दरमियान १.८ किलोग्रेम बढ़ गया .बेशक आपका वजन रोज़ बदलता है कभी कम कभी ज्यादा बतलायेगा स्केल लेकिन असली बात है औसत ,यानी सप्ताह के अंत में आपका वजन कितना है आपका मन भी अच्छाका रहेगाका वजन पर निगाह रखिये ।

शुक्रवार, 18 जून 2010

लोंगर लास्टिंग "मोर्निंग आफ्टर पिल "

यु एस हेल्थ रेग्युलेटरी स्टाफ के अनुसार एक फ्रांसीसी दवा निर्माता ने एक ऐसी लोंगर लास्टिंग मोर्निंग आफ्टर पिल तैयार करलेने का दावा किया है जिसे असुरक्षित (बिना गर्भ निरोधी उपाय बनाए भोगे यौन सम्बन्ध )के पांच दिन बाद भी ओरली लिया जा सकता है और जिसके कोई अप्रत्याशित अवांछित प्रभाव (साइड इफेक्ट )भी नहीं है ।
अकेली एक गोली असरकारी बतलाई गई है जिसका नाम है "एल्ला "और जिसके साल्ट का नाम है "उलिप्रिस्तल ".यह अंडाशय (ओवरी )से ह्यूमेन एग (ओवम के रिलीज़ होने ,डिम्ब क्षय )को ही मुल्तवी रखेगी .ऐसे में गर्भाधान होगा भी कैसे .अलवा इसके दवा का गर्भाशय (यूट्रस की लाइनिंग यानी अस्तर )पर पड़ने वाला असर भी उतना ही एहम है ।
ड्रग शेड्यूल के बाबत होने वाली बैठक में तमाम माहिर जो अमरीकी दवा और खाद्य संस्था "ऍफ़ डी ए "के पेनल पर हैं ,इस पर हर सिरे से विमर्श के बाद ही इसके स्तेमाल को मंज़ूरी देंगें .ऍफ़ डी ए की स्वीकृति के बाद ही दवा अमरीकी बाज़ारों में उपलब्ध हो सकेगी अन्यथा नहीं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-न्यू मोर्निंग आफ्टर पिल वर्क्स ईविं आफ्टर ५ डेज़ (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १७ ,२०१० )

कुछ- सिगरेट खोर (स्मोकर्स )लंग कैंसर से बचे रहतें हैं .क्यों ?

कुछ स्मोकर्सके खून में विटामिन बी -६ और कुछ ज़रूरी ख़ास प्रोटीनो का अपेक्षाकृत बढा हुआ स्तर इन्हें लंग कैंसर के खतरे से बचाए रहता है ।
इंटर -नॅशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ओंन कैंसर के तत्वावधान में माहिरों ने हालाकि इसका काज़ल लिंक नहीं बतलाया है लेकिन यह एक इशारा ज़रूर है .विटामिन बी -६ काखून में कमतर स्तर तथा एक अमीनो -अम्ल "मेथिओनिने "जो गोश्त और मच्छी और कुछ मेवों (नट्स ) में बहुलता में मौजूद है की कमी बेशी शेष में लंग कैंसर की वजह बन जाती है .कुछ वेजितेबिल्स और केला जैसे फलों में भी मेथिओनिने पाया जाता है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-वित् बी ६ मे बी वाई सम स्मोकर्स एस्केप कैंसर .(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १७,२०१० )

विश्व -व्यापी तापन के खिलाफ मुहीम में आदमी के साथ 'स्पर्म व्हेल '

आदमी की भूमंडलीय तापन के खिलाफ मुहीम में दोस्त बन आ खड़ी हुई है 'स्पर्म व्हेल 'विज्ञानियों के अनुसार दक्षिणी सागर में इनकी मौजूदगी वायुमंडल से उतनी ही ग्रीन हाउस गैस कार्बन -डाय
-ओक्स्साइड ज़ज्ब कर लेती है जितना साल भर में ४०,००० कारें उत्सर्जन करतीं हैं ।
ब्रिटिश जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ़ दी रोयल सोसायटी बी में प्रकाशित एक विज्ञान पत्र (रिसर्च पेपर)छपा है जिसके अनुसार दक्षिण सागर में मौजूद तकरीबन १२,००० स्पर्म व्हेल साल भर में ५०,०००तन आयरन बिष्टा (फिश द्रोपिंग )के रूप में सागर में छोड़ देतीं हैं .यह फाइटो-प्लांक -टन के लिए बेहतरीन खाद्य साबित होता है .इस सामुद्रिक वनस्पति का सैलाब समुन्दर के गिर्द पनपता है और वायुमंडल से बेशुमार कार्बन -डाय -ओक्स्साइड चूस लेता है .ऑस्ट्रेलियाई विज्ञानियों ने लगाया है यह अनुमान ।
'फीकल -फरती -लाइ -जेशन 'के चलते व्हेल्स हर साल जीव -अवशेषी ईंधनों काबिना जला भाग , कार्बन -डाय -ओक्स्साइड वायुमंडल से निकाल बाहर करने में एहम भूमिका निभा रहीं हैं ।
आदिनांक यही समझा जाता था ,यह लार्ज -मेरीन एनीमल (स्पर्म व्हेल )हमारी तरह वायुमंडल में कार्बन -डाय -ओक्स्साइड छोड़ता है .लेकिन यह तस्वीर का बस एक पहलु था पूरी तस्वीर नहीं जो अब सामने आई है .जितना ग्रीन हाउस गैस यह सांस के ज़रिये छोडती हैं उससे दोगुना समुन्दर से निकाल बाहर करने में विधाई भूमिका निभातीं हैं ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-स्पर्म व्हेल पूप हेल्प्स करब वार्मिंग इफेक्ट्स :स्टडी (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १७ ,२०१० )

गुरुवार, 17 जून 2010

आईने झूंठ बोलतें हैं ?

ज़रूरी नहीं है आइना आपको आपके सही आकार कदकाठी में दिखलाए .लेकिन इसमें कसूर आईने का नहीं है .वास्तव में हमारा दिमाग ही आईने में हमारी असली से हठकर तस्वीर ,कदकाठी प्रस्तुत करता है .जो असली से दो तिहाई चोडी और एक तिहाई छोटी (शोर्टर ,गिठ्ठी ) होती है ।
यूनिवर्सिटी कोलिज लन्दन के रिसर्चरों ने 'हाल ऑफ़ मिरर्स 'अन्वेषण के तहत लोगों के हाथों पर प्रयोग किये .स्वयंसेवियों को अपना हाथ एक बोर्ड के नीचे रखने को कहा गया .इसके बाद उनसे पोरों न्क्ल्स (पोरों )और ऊंगलियों के सिरों का जायजा लेने के लिए कहा गया ।
उनके अनुमान के अनुसार उनका हाथ असलियत से दो तिहाई ज्यादा चोदा सिद्ध हुआ .जबकि एक तिहाई छोटा (शोर्टर )रह गया न्युरोलोजिस्तों (स्नायुविक विज्ञानियों )के अनुसार पेंच दिमाग के अन्दर ही है .उस प्रक्रिया में छिपा है जिसके तहत दिमाग चमड़ी के अलग अलग क्षेत्रों से सूचना ग्रहण करता है ।
गडबडी इसी सूचना के संसाधन में है .हमें अपनी काया उसके हिस्सों का ठीक ठीक अंदाजा ही नहीं है .मुगालता ही रहता है इस बारे में .तभी तो हाथ की चौड़ाई वास्तविकता से ज्यादा और ऊंगलियों की कम आंकी गई ।
रिसर्च का मकसद यह जान लेना रहा ,दिमाग को कैसे पता चलता है शरीर का कौन सा अंग कहाँ है .,वह भी तब जबकि आँखें भी बंद रहतीं हैं .स्पेस में तब भी आप उनकी स्थिति जान लेतें हैं .यही दिमागी क्षमता 'पोजीशन सेन्स 'कही जाती है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-दू आई लुक फेट हनी ?नोह ,इट्स जस्ट ए दिस्तोर्तिद इमेज (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १६ ,२०१० ).

बुधवार, 16 जून 2010

टिप्लार्स के लिए राहत ..

'जस्ट मेजिक' नाम दिया गया है उस 'ड्रिंक ''को जो पीकर टल्ली हो जाने वालों को ना सिर्फ राहत देती है ,नेक्स्ट मोर्निंग के हेंग ओवर से भी निजात दिलवाने का आश्वासन देती है ।
कैसे काम करती है यह 'मेजिक ड्रिंक '?

'स्पार्कलिंग केंड ड्रिंक 'ओउतोक्स 'फ्रांस में लौंच की गई है जो एल्कोहल के अणुओं को तोड़ कर शरीर से निकाल बाहर करने का दावा करती है .इसीलियें इसे क्रान्ति -कारी मेजिक ड्रिंक कहा जा रहा है ।
दूसरी और इस दावे को संदेह की नजर से देखने वाले साइंस दान ठोक-बजाके कह रहें हैं ,जिस दिन कोई ऐसी चीज़ बना लेगा वह 'नोबेल प्राइज़ का हकदार हो जाएगा .

जादुई ब्लड क्लोटिंग दवा 'टी एक्स ए '.

दुनिया भर में दस लाख से भी ज्यादा लोग हर साल सड़क दुर्घटना में घायल हो अधिक खून बह जाने तथा १६ लाख लोग हिंसा का शिकार हो मर जातें हैं .इनमे से एक लाख लोगों को यदि समय पर एक जादुई ब्लड क्लोटिंग दवा मिल जाए ,बचाया जा सकता है ।
लन्दन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रोपिकल मेडिसन के डॉक्टरों ने एक खून का थक्का तुरत फुरत बना खून रोकने में कारगर दवा टी एक्स ए (त्रनेक्सामिक )एक ऑफ़ पेटेंट ट्रीटमेंट के बतौर ४० देशों के २७४ अस्पतालों में बुरी तरह घायल हुए लोगों परआजमाया है ।
तमाम सब्जेक्ट्स को (ट्रायल में भाग लेने वाले लोगों को )या तो इस दवा की एक ग्रेम मात्रा सुईं द्वारा दी गई जिसके बाद इतनी ही दवा ड्रिप के ज़रिये दी गई या फिर दवा की जगह छद्म दवा (प्लासिबो )दी गई .टी एक्स ए ने मौत के खतरे को १० फीसद कम कर दिया बरक्स प्लासिबो के .अतिरिक्त खून बहने से होने वाली मृत्यु को इस दवा ने १५ फीसद कम किया ।
६ लाख लोग दुनिया भर में बहुत खून बहने से मर जातें हैं ।
टी एक्स ए वर्क्स बाई रिद्युसिंग दी ब्रेक -डाउन ऑफ़ क्लाट्स .इसके एक ग्रेम की कीमत है मात्र ४.५ डॉलर ।
यदि यह दवा घायलों को तुरता नसीब हो जाए तो अकेले भारत में ही हर साल १३,००० तथा १२,००० लोगों को चीन में बचाया जा सकता है ।
भारत में सडक दुर्घटनाये दिनानुदिन बढ़ रहीं हैं .दवा के पार्श्व प्रभावों में हार्ट अतेक्स ,स्ट्रोक्स ,लंग क्लोट्स आदि नहीं मिले हैं .ना ही इनका जोखिम बढ़ते देखा गया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-ईजी तू यूज़ ड्रग देत क्लोट्स ब्लड केंन सेव १ लेक ए ईयर (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १६ ,२०१० )

ब्राउन -वर्सस -वाईट राईस दाया -बितीज़ लिंक ....

वाईट -राईस रेज़िज़ रिस्क ऑफ़ दायाबितीज़ ,ब्राउन ए बेतर ओपसन ,इज रिच इन विटामिन्स एंड मिनरल्स ,सेज रीसर्च (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १६ ,२०१० )।
रिसर्चरों ने पता लगाया है जहां ब्राउन राईस मधु -मेह(दाया -बितीज़ )के खतरे को कम करता है ,पोलिश किया ,चोकर (भूसी या शल्क )हठा मिल से परिष्कृत किया हुआ कथित पुष्टिकर वाईट राईस इसके खतरे के वजन को बढाता है ।
हारवर्ड स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ द्वारा संपन्न इस अध्धय्यन के अनुसार सप्ताह में ५ या ज्यादा बार ली गई सफ़ेद चावल की खुराख जहां सेकेंडरी दायाबितीज़ के जोखिम को बढा सकती है ,वहीँ हफ्ते में २ या ज्यादा बार 'ब्राउन -राईस 'का सेवन इस खतरे को खासा कम करदेता है ।
रिसर्चरों के मुताबिक़ वाईट राईस की जगह खुराख में मोटे अनाजों और ब्राउन राईस को शामिल कर इस खतरे को आलमी स्तर पर कम किया जा सकता है .एशियाइयों ,खासकर हम भारतीयों के लिए इस सिफारिश का बड़ामहत्व है जहां उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक सभी प्रान्तों में चावल खुराख में जगह बनाए हुए है ।
दरअसल ब्राउन राईस गुणों की खान है जिसमे भरपूर खाद्य रेशें हैं ,खनिज और विटामिन हैं ,फाई -तो केमिकल्स हैं .लो -ग्लैसेमिक इंडेक्स है .इसे खाने के बाद खून में शक्कर धीरे धीरे और देर से पहुँचती है ,उतनी नहीं बढती है मिलिंग और पोलिशिंग ब्राउन राईस इन तमाम गुणकारी प्रभावों को समाप्त कर देती है ।
खाद्य रेशा तकरीबन उड़ जाता है .यही वह जादुई अंश है जो खून में शक्कर के सैलाब को ताले रहता है ,खून में घुली चर्बी भीकम करता है ।
दायाबितीज़ और ब्राउन तथा वाईट राईस लिंक की पड़ताल के लिए संभावित जोखिम औरलाभ की पैमाइश के लिए १५७,४६३ औरतों और ३९,७६५ मर्दों के राईस कन्ज़म्प्सन की जांच की गई .इन्होनें 'ब्रिघम एंड वोमेन्स हॉस्पिटल बेस्ड नर्सिज़ हेल्थ स्टडी १ और २ में हिस्सा लिया .हेल्थ प्रोफेसनल फोलो अप स्टडी में भी भाग लिया हर चार साल के बाद इनके हेल्थ स्टेटस ,जीवन शैली ,नशा पत्ता ,खुराख की पड़ताल की जाती रही ।
२२ और २० साला नेशनल हेल्थ सर्वे -१ और २ में ५५०० तथा २३५९ सेकेंडरी दाया -बितीज़ के मामले दर्ज़ हुए .दूसरे
रिस्क फेक्टर्स का भी ख़याल रखा गया .जो नतीजों को असर ग्रस्त बना सकते थे .कुसूरवार वाईट राईस का अधिकाधिक सेवन ही सिद्ध हुआ .

डार्क मैटर और एनर्जी के अस्तित्व पर शंका ....

ब्रितानी भौतिकी -विदों ने डार्क मैटर तथा डार्क एनर्जी के अस्तित्व पर शंका जतलाई है ।
समझा जाता है यह गोचर सृष्टि ,प्रेक्षनीय -सृष्टि कुल चार फीसद गोचर पदार्थ से बनी है .शेष अगम -अगोचर बना रहा है .यही डार्क मैटर ,डार्क एनर्जी है ,जो अपने होने का एहसास अपने प्रबल गुरुत्व से करवाती है .अन -ओब्ज़र्वेबिल यूनिवर्स यही है .डार्क मैटर और डार्क एनर्जी की हिस्सेदारी ९६ फीसद है .रहस्य -पूर्ण बना रहा है सृष्टि का यह अंश यानी बहुलांश .स्टेंडर्ड-मोडिल की यही अवधारणा चली आई है ।
दुरहम यूनिवर्सिटी के साइंस -दानों ने इसी -मानक निदर्श (स्टेंडर्ड मोडिल )के आकलन में भारी त्रुटी होने की बात अपने हालिया अध्धय्यन में प्रकट की है .इसका मतलब यह हुआ 'डार्क -साइड 'ऑफ़ कोस्मोज़ डोंट एग्जिस्ट ।
जो कुछ पहचाने जाने के योग्य है उसी से यह कायनात बनी है .समस्त तारा मंडल ,ग्रह,उपग्रह ,लघु -ग्रह ,अंतर -तारकीय धूळ और गैस ।
अब यदि डार्क मैटर के अस्तित्व को ,डार्क एनर्जी के होने को नकार दिया जाए तब यह भी माना समझा जाएगा ,सृष्टि का विस्तार ज़रूर हो रहा है लेकिन उतना तेज़ नहीं जितना समझा ,बूझा गया है ।
सन्दर्भ -सामिग्री ;-'डार्क मैटर एंड एनर्जी मे नॉट एग्जिस्ट '(दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,जून १६ ,२०१० )पृष्ठ १९ ,केपिटल एडिसन .

(पूर्व -पोस्ट से आगे ....)

शोर्ट स्लीपर्स उम्र दराज़ लोगों के लिए 'स्ट्रोक 'और साइलेंट -स्ट्रोक का जोखिम भी बढ़ जाता है .नींद से जुडी है हमारी सेहत की .इसीलिएस्वस्थ और सुखी जीवन निरोगी काया के लिए ,लम्बी उम्र के लिए कमसे कम आठ घंटा की ज़रूरत है ।
वारविक एंड फेदरिको सेकिंड यूनिवर्सिटी मेडिकल स्कूल,इटली , में संपन्न एक हालिया स्टडी के अनुसार जो लोग रात भर में दिनानुदिन ६ घंटा से भी कम सो पातें हैं उनके असामायिक मृत्यु की संभावना १२ फीसद बढ़ जाती है उन लोगों की तुलना में जो ६-८ घंटा रोजाना सो लेतें हैं ।
हफ़्तों लगतें हैं नींद के मारे (थके मांदे दिलो -दिमाग और काया को दुरुस्त करने ,रेस्तोर करने में .)को रेस्तोर करने में .शरीर को निचोड़ के रख देता है नींद पूरी ना ले पाना .

थके -मांदे उन्नींदे रहतें हैं लेकिन खबर नहीं रहती ...

नींद ना ले पाने से हम थके -मांदे रहे आतें हैं ,लेकिन हमें खबर नहीं रहती .आखिर क्यों ऐसा होता है .बेशक हमारी बॉडी हमें आगाह करती है ,बतलाती है 'उनींदे हैं हम ,सिग्नल देती है लेकिन हम नजर अंदाज़ कर देतें हैं .'और बस कम नींद ले पाना हमारी आदत बन जाती है .साफ़ नुक्सानात है इसके .मधुमेह ,हृद रोगों के खतरे का वजन बढ़ता रहता है लगातार ,दिन रात .
एक अध्धय्यन क मुताबिक़ जो लोग बा -मुश्किल दिन भर में ५-६ घंटा या और भी कम सो पातें हैं ,शोर्ट स्लीपर्स हैं ,उनके लिए जीवन शैली रोग ( सेकेंडरी दाया -बितीज़ )का ख़तरा २८ फीसदज्यादा हो जाता है ।
जिची मेडिकल यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसन ,तोचिगी ,जापान क रिसर्चरों क मुताबिक़ ऐसे में उम्र -दराज़ हाई -पर -टेंसिव लोगों में 'स्ट्रोक 'और 'साइलेंट स्ट्रोक 'का जोखिम bad

क्या सही खुराख से अल्सर्स और ट्यूमर्स का इलाज़ संभव है ?

अल्सर हो या फिर ट्यूमर्स शरीर पर ओवर -लोड (शरीर से ज़्यादा काम लेने )का नतीज़ा है .आराम ना कर पाना ,ठीक से पूरा ना सो पाना (६-८ घंटा की अच्छी नींद ना ले पाना ),दवाब से लबालब जीवन शैली ,रिलेक्स्सेसन का अभाव देर से पचने वाले अस्वास्थाय्कर भोजन का सेवन इस ओवर -लोड की वजह बनतें हैं ।
कटाबोलीक (काताबोलिक)और अनाबोलिक दो तरह के काम अंजाम देती है हमारी काया ।
केताबोलिक फंक्संस आर कटा -बोलीक नेचर ऑफ़ दी बॉडी :चलना फिरना (मूवमेंट यानी गति ),सोचना (थोट),पाचन की क्रिया शरीर तंत्र के कटा -बोलीक काम हैं .तथा टूट -फूट की मुरम्मत (ऋ-पेयर ),बढवार(ग्रोथ )तथा एलिमिनेसन (यानी अवांछित विषाक्त पदार्थों की निकासी )अनाबोलिक फंक्संस हैं .पहला काम शरीर को एक्टिव बनाए रखता है ,एक्टिवेट करता है .दूसरा मेंटेनेंस का जिम्मा संभाले है ।
दोनों में एक संतुलन (होमेओस्तासिस )ज़रूरी है .चोबिसों घंटा काम काम काम इस संतुलन के टूटने की वजह बन सकता है .ऐसा नहीं है ,हमारा शरीर हमें आगाह नहीं करता ,बाकायदा सिग्नल्स देता है .हम अक्सर इनकी अनदेखी कर देतें हैं ।
अल्सर्स हैं क्या ?
शरीर में दीर्घावधि में जमा विषाक्त (अवांछित पदार्थ ,तोक्सींस )पदार्थ ,कोशाओं के टूटते रहने का नतीज़ा होता है घाव यानी अल्सर ।
ट्यूमर्स नष्ट हो चूकी कोशाओं का जमा होना है ताकि इनकी निकासी और ऋ -साइकिलिंग हो सके .दोनों ही कोशाओं के ज़रुरत से ज्यादा अप -विकास (डी -जेनरेसन )का ,ज़रूरी मुरम्मत ना हो पाने यानी कोशाओं की टूट फूट की भरपाई के लिए ऋ -जेनरेसन (पुनर -उत्पादन ना हो पाने )के अभाव का परिणाम हैं ।
खान -पान की सही आदतें ,सही स्वास्थ्य -वर्धक खुराख की शिनाख्त और चयन इन्हें मुल्तवी रखने में मददगार साबित हुआ है ।
कौन से खाद्य हैं ज़रूरी :(१ )ऊर्जा -प्रदाता ,एन -आरजाई -जर्ज़ (२)क्लीन -जर्ज़ (खाद्य रेशे -बहुल ,सोफ्ट कार्ब्स )तथा (३)बॉडी -बिल -दर्ज
गूदे दार सुपाच्य मीठे -ताज़े -मौसमी फल ऊर्जा देतें हैं ,एन -आर -जाई -जर्ज़ हैं .थोड़े से खट्टे -रसीले (साइट्रिक ,जलीय अंश से भरपूर )फल और तरकारियाँ बेहतरीन क्लीन -जर्ज़ हैं .नट्स और स्प्राउट्स (मेवे काष्ठ छिलके वाले ,अखरोट ,बादाम ,अंकुरित अनाज आदि बॉडी -बिल -दर्ज़ हैं .शरीर को पुष्ट रखतें हैं स्वास्थ्य -वर्धक खाद्य ।
ऐसा भोजन जो एक तो देर से पचे ऊपर से विषाक्त -पदार्थ छोड़ जाए अल -सर और ट्यूमर्स के खतरे के वजन को बढाता है ,दिन दूना ,रात चौ -गुना ।
मांस (गोस्त ),सिम्पिल सुगर ,परिष्कृत और संसाधित चीज़ें (डिब्बा बंद खाद्य )इसी वर्ग में आयेंगी ।
आइसो -टोपिक स्टडीज़ से सिद्ध हुआ है ,कोशाओं का मिजाज़ निरंतर बदल रहा है .ह्यूमेन सेल्स लगातार बदलतीं हैं ।
खान -पान इसमें सहायक की भूमिका में रहता है ।
'एज वी चेंज दी फूड्स वी पुट इनटू अवर बॉडी ,दी बॉडी गेट्स दीएनर्जी (फ्रॉम दी एन -एर -जाई -जर्ज़ ) तू क्लीन दी एक्युमालेतिद तोक्सिन (फ्रॉम क्लीन -जर्ज़ ),एंड ऋ-पेयर सेल्स देत हेव बीन देमेज्द (फ्रॉम बॉडी बिल -दर्ज़ ).दस वी केंन हेव ए ब्रांड न्यू हेल्दी बॉडी बा -ई ईटिंग दी राईट फूड्स ।
सन्दर्भ -सामिग्री :-केंन ट्यूमर्स एंड अल -सर बी क्युओर्द विद दी राईट फ़ूड (प्रिवेंसन ,जून अंक पृष्ठ ४६ -४७ )