मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

जीवन को चकमा देकर जान बचाने की कोशिश (ज़ारी ..)

बायलोजिकल स्लीप विज्ञान कथाओं के दायरे से बहार निकल कर जीवन की सेवा को आतुर है .करोड़ों सालों से जीवाणु और पादप -बीजाणु ,प्लांट सीड्स ,स्पोर्स शीत निद्रा में हैं ,फिर आदमी क्यों नहीं रह सकता ?आखिर हार्ट लंग मशीन यही काम कर रही है ,गंभीर चिकित्सा मामलों में ऐसा शरीर को पूर्ण -विराम देने के लिए किया ही जाता है .ताकि वाइटल स्टेबिल रहें शरीर इस दरमियान धीरे धीरे खुद को कालांतर में संभाल लेता है .यही मर्म है ,सस्पेंदिद एनीमेशन ,प्रेरित -शीत निद्रा का भी (इन्द्युस्द -हाइबर नेशन का )।
यूं हाइड्रोजन सल्फाइड गैस मानवीय और पशु कोशिकाओं में कुदरती तौर पर भी अल्पांश में पैदा होकर मेटाबोलिक एक्टिविटी (चयअपचयन प्रक्रिया ,रेट ऑफ़ बर्निंग केलोरीज़ )तथा कोर टेम्प्रेचर को बनाए रखने में एक असरकारी भूमिका निभाती है .लेकिन इसका आधिक्य ओक्सिजन के चय अपचयन को निलंबित करदेता है .रोग की अंतिम अवस्था (टर्मिनल स्टेज ऑफ़ इलनेस )में पहुँच चुके मरीजों की मेटाबोलिक दर को इसकी मदद से कम करके मौत से थोड़ा वक्त उधार लिया जा सकता है .दिल के दौरे के मामले में यह टिश्यु डेमेज को कमतर रखने में सहायक हो सकती है ,चिकित्सा मिलने तक ,यहाँ वक्त ही जीवन दाता बनजाता है .मरीज़ को फ़ौरन चिकित्सा मिलनी चाहिए ,लेकिन मिल कहाँ पाती है .आखिर हृद पेशी का एक हिस्सा मर ही जाता है .ऐसे ही मामलों में "सस्पेंदिद एनीमेशन "करामाती सिद्ध हो सकता है .हाइड्रोजन सल्फाइड मेटाबोलिज्म के लिए एक डिमर -स्विच की तरह काम कर सकती है ।
रथ के ही शब्दों में "हमने इसे एक माँ -उस पर आजमाया है .वी दीद ईट विद ए माउस ,दिस वाज़ कोस्मिक "वी फा -उन्द ए वे तू दू दिस विद ए मेमल .आल यु हेड तू दू वाज़ पुट ईट इन रूम टेम्प्रेचर एंड ईट वाज़ नो वर्स फॉर दी वीय य्र्स .

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