इको -ब्लिंग का मतलब किसी पुरानी -धुरानी ऊर्जा खाऊ इमारत को "इको -फ्रेंडली "बनाना है उसमे तबदीली करके .नै फिटिंग्स करके .यह और बात है यह कई मर्तबा बहुत खर्चीला साबित होता है .रेट्रो फिटिंग एक खर्चीली टेक्नीक है .यूँ एक इमारत क्या एक पूरे-महानगर "न्युयोर्क "को रेट्रो फिटिंग्स के ज़रिये "ग्रीन एपिल "बनाने की दिशा में कदम उठाया जा चुका है ।
फिलवक्त न्युयोर्क को "रेड एपिल :का दर्ज़ा मिला हुआ है ,गंधाते पर्यावरण और ऊर्जा खपत की वजह से ।
इको ब्लिंग पर लौटतें हैं .किसी बिल्डिंग को ग्रीन बनाने के लिए रेट्रो फिटिंग के ज़रिये (पुरानी फिटिंग्स के स्थान पर )सोलर पेनल्स फिट किये जातें हैं .हीट-लोस को कम करने के लिए बिल्डिंग को इन्स्युलेट किया जाता है .कोशिश रहती है इसे "जीरो कार्बन एमिशन "के स्तर पर लाया जाए .लेकिन अक्सर यह बहुत ज्यादा महंगा सौदा सिद्ध होता है .रेट्रो फिटिंग्स अक्सर कामयाब भी नहीं होती क्योंकि बिल्डिंग बहुत पुराना डिजाइन लिए होती है .मूल तय पुरानी इमारतें इको फ्रेंडली नहीं होतीं हैं .असरकारी ग्रीन एलिमेंट्स का स्तेमाल प्लानिंग स्टेज पर ही अपेक्षित होता है ।
"इन एन इको -ब्लिंग सीनारियो ,ग्रीन एफर्ट्स कोस्ट मोर टू इंस्टाल देंन दी एनर्जी एंड मनी दे आर मेंट टू सेव "
इसलिए साहिब यह सौदा महंगा ही रहता है .
रविवार, 21 फ़रवरी 2010
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