सिंगापुर में तकरीबन ६०,००० लोगों पर संपन्न एक अध्धय्यन से पता चला है ,जो लोग नियमित शक्कर युक्त सोडा का सेवन करतें हैं ,उनके लिए पेंक्रियाज़ -कैंसर का ख़तरा बढ़ जाता है ,जबकि ज्यूस (ताज़ा फलों का )लेने वालों के लिए यह ख़तरा उतना नहीं आंका गया है .इसका कारण पेप्सी और कोक लंच पैकेज में शामिल रखने वालों के ओवर -आल खान -पान में छिपा है .खराब होतीं हैं इन लोगों की और भी आदतें ।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिनेसोटा के मार्क परेरा इस अध्धय्यन के मुखिया रहें हैं .पूअर हेल्थ हेबिट्स पेंक्रियेतिक -कैंसर के खतरे को और भी बढा देती हैं ,जो अपने आपमें एक विरल लेकिन खतरनाक किस्म है कैंसर की ।
सोफ्ट ड्रिंक्स दरसल शक्कर से लदी रहतीं हैं ,सुगर की लोडिंग होती है इनमे जिसके सेवन से खून में इंसुलिन का स्तर बढ़ जाता है .पेंक्रियेतिक कैंसर सेल ग्रोथ का कारण यही बनता है ।
अमरत्व प्राप्त कर लेती है कैंसर कोशिका ,मरना भूल जाती है ,अनियंत्रित कोशिका विभाजन ही ट्यूमर की वजह बन जाता है ।
अग्नाशय (पेंक्रियाज़ ग्रंथि )ही इंसुलिन तैयार करती है ,जो शक्कर को जलाकर ऊर्जा में बदलने का काम अंजाम देती है .लेकिन इंसुलिन का अतिरिक्त स्तर मेटाबोलिज्म (चया-अपचयन )को असर ग्रस्त बना देता है .ऑटो इम्यून डिजीज है मधुमेह ।
विकराल रूप है ,पेंक्रियेतिक कैंसर .विज्ञान पत्रिका "कैंसर एपी -देमियालोजी बायो -मार्कर्स एंड प्रिवेंशन "के ताज़ा अंक में इस १४ साला अध्धय्यन के नतीजे प्रकाशित हुए हैं जिसमे कुल मिलाकर ६०,५२४ लोगों को शामिल किया गया था और जिसे सिंगापुर चाइनीज़ हेल्थ स्टडी कहा गया है .इसमें औरत -मर्द दोनों शामिल रहें हैं ।
इस दरमियान १४० स्वयं सेवियों (सब्जेक्ट्स )को पेंक्रियेतिक -कैंसर हो गया .जो प्रति सप्ताह दो या और भी ज्यादा सोफ्ट -ड्रिंक्स लेते थे उनमे पेंक्रियेतिक कैंसर का ख़तरा ८७ फीसद ज्यादा देखा गया .यह तमाम लोग पेंक्रियेतिक कैंसर से ग्रस्त पाए गए ।
शोपिंग और ईटिंग इन दिनों अमीर देशों में शबाब पर है ,सिंगापुर पश्चिमी देशीं की तरह संपन्न देश है ।
बेशक और विस्तृत अध्धयन की दरकार है ,लेकिन यह तो पुष्ट है ,शक्कर (सफ़ेद चीनी )भोजन के स्वास्थ्य -मान ,पोषक तत्वों को कम करदेती है .भारतीय खुराख में तो अनाजों में शक्कर वैसे ही मौजूद है .अलग से खाने से पहले सोच समझ लेने में क्या हर्ज़ है ?हो सकता है अध्धय्यन के नतीजे एक एक केज्युअल -लिंक (आकस्मिक -अनुसंबंध )ही हो ?फिर भी ,बचाव में ही बचाव है .
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