जिन लोगों को लक्षित करके शराब -रोधी विज्ञापन तैयार किये जातें हैं ,उनमे एल्कोहल एब्यूज घटने के स्थान पर और ज्यादा हो जाता है .यानी मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों ज्यों दवा की वाली उक्ति चरितार्थ होने लगती है यही लब्बोलुआब है एक अभिनव अध्धय्यन का ।यानी एल्कोहल एब्यूज से पार पाना आसान नहीं है .
अपने तरह के इस अलग अध्धय्यन में रिसर्चरों ने पता लगाया है ,एक जन्म जात तालमेल बिठाने की प्रवृत्ति के तहत जो लोग इन विज्ञापनों को देखतें पढतें हैं वह अपने गले यह बात उतरने ही नहीं देते ,शराब उनका भी कुछ बिगाड़ सकती है .उनका यही विशवास जोर मारता है मेरा कुछ नहीं होगा जो भी नुकसान होगा किसी और को होगा .इंडियाना यूनिवर्सिटी कल्ले स्कूल ऑफ़ बिजनेस द्वारा संपन्न इस अध्धय्यन के नतीजे "मार्केटिंग रिसर्च "जर्नल मेंशीघ्र प्रकाशित होंगे ।
अध्धय्यन के को -ऑथर दुहाचेक के अनुसार एक डिफेन्स मिकेनिज्म के तहत पियक्कड़ एक ऐसा माइंड सेट तैयार कर लेतें हैं जो नुक्सानात को कम करके आंकने लगता है .यानी विज्ञापन में बतलाये गए नुक्सानात को कमतर करके देखने समझने लागतें हैं .एच आई वी एड्स के बारे में भी तो लोगों का यही रवैया रहता है "मेरा कुछ नहीं हो सकता "
सन्दर्भ सामिग्री :एंटी -बूज अद्वेर्ट्स (एद्वर्ताइज़्मेन्त्स )में रेज़ एल्कोहल यूज़ (टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,फरवरी २६ ,२०१० ).
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010
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