आदी-मानव ही नहीं आधुनिक इंसान भी अतार्किक श्रृष्टि के विनष्ट होने के भय के नीचे जीता रहा है .कुछ धार्मिक -प्रतिष्ठान भी इस भीती को हवा देते रहें हैं .विज्यान कथाओं पर आधारित फिक्शन फिल्मों ने भी इस इसे तरजीह दी है ।
कोस्मो फोबिया अन्य किसी भी भीती की तरह एक अतार्किक भय है ,सृष्टि के विनाश के सन्निकट होने का .एक जन विस्वास इसे खाद पानी मुहैया करवाता रहा है ।
"२०१२ "फिल्म इसी की नवीन कड़ी रही है .लगातार एक भय अप्रत्यासित बाढ़ ,भूकंप और विश्व -मारी (पेंदेमिक )समझी गई कुछ आई गई बीमारियों का ,कभी स्वेन फ्लू बनकर तो कभी बर्ड फ्लू ,मेडकाओ दीसीज़ बन मानव को घेरे रहा है .अक्सर ढोल की पोल ही सिद्ध हुआ है यह अतार्किक भय ।
कहा गया माया केलेंडर २१ दिसंबर २०१२ को समाप्त हो रहा है और इसी के साथ सृष्टि का अंत भी गूंथा हुआ है ।
जलप्लावन के किस्से साहित्य (कामायनी )से लेकर अनेक धर्म ग्रथों (बाइबिल आदि )में जगह बनाए रहें हैं ।
पूर्व में ईयर टू-थाउजेंड को लेकर भी कम अफरा -तफरी नहीं मची थी .होना हवाना तो क्या था .काल का पहिया अपनी लय-ताल से बहता है ,आगे और आगे की और .सभ्यता को घसीट कर तरह तरह की भीतियों से घेर लेने की कोशिशें ज़ारी हैं ,कोशिशें ,भविष्य कथन जिनका कोई सिर पैर कभी नहीं रहा है ।
जहां तक सृष्टि के बन्ने बिगड़ने का सवाल है यह सब एक कोस्मिक स्केल पर ही होता है .सृष्टि का बन ना बिगड़ना नियम है ,अपवाद नहीं .एक आवधिक घटना है .जो आया है वह जाएगा ,चाँद सितारे दूध गंगाएं ,निहारिकायें ,क्वासर्स ,पल्सार्स ,ब्लेक होल्स सभी अंत में उस अना -दीअनु में विलीन हो जाने है जिससे यह कोसमोस (यूनिवर्स )बना है .ज्यों की त्यों धर दीन्हीं चदरिया ...
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
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