नेशनल साइंस डे पर विशेष :इस बरस राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का प्रतिपाद्य रहा है :
आनुवंशिक तौर पास संशोधित फसलें और खाद्य सुरक्षा .
खाद्य सुरक्षा और जीनीय हेराफेरी से तैयार फसलें :
चंद हफ्ता पहले वार्षिक ऑक्सफोर्ड फारमिंग कांफ्रेंस के समक्ष बोलते हुए अपने वक्तव्य में पर्यावरण विद्रोही Mark Lynas ने विज्ञानों की राष्ट्रीय अकादमी के परिपत्रों में प्रकाशित शोध के हवाले से बतलाया -आइन्दा बढती हुई आबादी का पेट भरने के लिए आज के बरक्स दोगुने खाद्यान्नों की ज़रुरत पड़ेगी .आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की नस्ल ही इस मांग को पूरा कर सकती है . लक्षित वर्ष २ ० ५ ० का पेट भरने के लिए हमें आनुवंशिक तौर पर सुधरी हुई फसलें चाहिए जिनसे कम खाद पानी ,कम खरपतवार नाशी के इस्तेमाल से ही प्रति एकड़ ज्यादा फसल (फसली उत्पाद )मिल सकती है .
चलिए खंगाल लेते हैं दोनों तर्कों को उपलब्ध तथ्यों के आईने में :
विश्व की आबादी आज सात अरब है जो २ ० ५ ० के बरस तक बढ़के ९ अरब हो जायेगी .संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार २ ० १ २ में दुनिया भर में ८ ७ करोड़ से भी ज्यादा लोग बे -साख्ता अल्पपोषित थे ,२ ५ करोड़ भारतीय भूख से बे हाल थे .इन आंकड़ों से यह भ्रम पैदा होता है दुनिया में सचमुच खादायान्नों का तोड़ा है ".जीएम क्रोप्स " के समर्थन में हवा बनाने के लिए हर मंच, हर आलमी बैठक में ये ही आंकड़े उछाल दिए जाते हैं .
हकीकत यह है: न आलमी स्तर पर और न भारत में ही खादायान्नों की कमी है .चलिए वर्ष २ ० १ २ के (आलमी स्तर पर) कृषि उत्पाद पर नजर डालतें हैं . बावजूद इसके ,इस बरस अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ज़बरजस्त सूखे की लपेट में आये दुनिया में तब भी २ २ ३ ९ .४ मिलियन मीट्रिक टन अनाज पैदा हुआ .इससे १ ३ अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है .हरेक के हिस्से में तब भी तकरीबन एक पोंड अनाज आयेगा .दूसरे शब्दों में आज जितना अन्न भूमंडलीय स्तर पर पैदा होता है उतने से आज भी १ ४ अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है .
प्रत्येक आदमी को आज भी ४ ६ ० ० केलोरीज़ वाला भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है जबकि सिफारिश २,४ ० ० केलोरीज़ प्रतिदिन की जाती है .(स्रोत : International Assessment of Agriculture knowledge ,Science and Tecnology for Development (IAASTD).
कहाँ है अन्न संकट ?
संकट अन्न के (कु )प्रबंध से जुड़ा है हर कोई आँख मूंदे है इस ओर से .
अन्न की बर्बादी :
अमरीका ,कनाडा और योरोप में ४० % खाद्यान इस्तेमाल न होने के कारण फैंक दिया जाता है बर्बाद हो जाता है .
हर बरस अमरीकी १ ६ ५ अरब डॉलर का खाद्यान बेकार कर देते हैं .इतने से पूरे उपसहारवी अफ्रीका का भरणपोषण हो सकता है .
इटली में जितना खाद्यान्न बेकार कर दिया जाता है उतने से हंगरी और इथियोपिया दोनों का पेट भर सकता है .आलमी स्तर पर पैदा किया गया ५ ० % खाद्यान्न बेकार चला जाता है .(स्रोत :UK Institution of Mechanical Engineers ).
अमरीका के सुपर बाज़ारों में भंडारित कुल फल और तरकारियों का ५ ० % व्यर्थ हो जाता है .सड़ने की वजह से इसे फैंक दिया जाता है .इस बर्बादी को हटाने का मतलब दुनिया से भूख और कुपोषण का नामोनिशाँ मिटा देना है .
चलिए बात भारत की करते हैं :
१ जनवरी २ ० १ २ ,छ :करोड़ साठ लाख टन (६ ६ मिलियन टन )खाद्यान्न था इस वक्त यहाँ पर .इस अनाज को बोरियों में भरके यदि बोरियाँ एक के ऊपर एक रख दी जाएँ तो यह चन्द्रमा को छूके पृथ्वी को दोबारा छू लेंगी .२ ० ० १ के बाद से हर साल यहाँ इतना ही अन्न पैदा होता रहा है .
फ़ालतू अनाज का निर्यात कर देती है हमारी "नरेगा" वाली आम आदमी की सरकार .इस आर्थिक बरस (२ ० १ १ - १ २ )में भी जहां ९. ५ मिलियन गेंहूँ निर्यात होगा वहीँ चावल के लिए यह आंकड़ा ९ मिलियन टन के पार जा चुका है .
सरकार खादायान्नों की सरकारी खरीद बंद करने का मन बनाए हुए है .आम आदमी को बाज़ार के हवाले कर दिया जाएगा .
(ज़ारी )
विशेष :दूसरी क़िस्त में पढ़िए आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की हकीकत ,कितना खतरनाक है यह खेल जो खेला जा रहा है .
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संकट अन्न के (कु )प्रबंध से जुड़ा है हर कोई आँख मूंदे है इस और से .
आनुवंशिक तौर पास संशोधित फसलें और खाद्य सुरक्षा .
खाद्य सुरक्षा और जीनीय हेराफेरी से तैयार फसलें :
चंद हफ्ता पहले वार्षिक ऑक्सफोर्ड फारमिंग कांफ्रेंस के समक्ष बोलते हुए अपने वक्तव्य में पर्यावरण विद्रोही Mark Lynas ने विज्ञानों की राष्ट्रीय अकादमी के परिपत्रों में प्रकाशित शोध के हवाले से बतलाया -आइन्दा बढती हुई आबादी का पेट भरने के लिए आज के बरक्स दोगुने खाद्यान्नों की ज़रुरत पड़ेगी .आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की नस्ल ही इस मांग को पूरा कर सकती है . लक्षित वर्ष २ ० ५ ० का पेट भरने के लिए हमें आनुवंशिक तौर पर सुधरी हुई फसलें चाहिए जिनसे कम खाद पानी ,कम खरपतवार नाशी के इस्तेमाल से ही प्रति एकड़ ज्यादा फसल (फसली उत्पाद )मिल सकती है .
चलिए खंगाल लेते हैं दोनों तर्कों को उपलब्ध तथ्यों के आईने में :
विश्व की आबादी आज सात अरब है जो २ ० ५ ० के बरस तक बढ़के ९ अरब हो जायेगी .संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार २ ० १ २ में दुनिया भर में ८ ७ करोड़ से भी ज्यादा लोग बे -साख्ता अल्पपोषित थे ,२ ५ करोड़ भारतीय भूख से बे हाल थे .इन आंकड़ों से यह भ्रम पैदा होता है दुनिया में सचमुच खादायान्नों का तोड़ा है ".जीएम क्रोप्स " के समर्थन में हवा बनाने के लिए हर मंच, हर आलमी बैठक में ये ही आंकड़े उछाल दिए जाते हैं .
हकीकत यह है: न आलमी स्तर पर और न भारत में ही खादायान्नों की कमी है .चलिए वर्ष २ ० १ २ के (आलमी स्तर पर) कृषि उत्पाद पर नजर डालतें हैं . बावजूद इसके ,इस बरस अमरीका और ऑस्ट्रेलिया ज़बरजस्त सूखे की लपेट में आये दुनिया में तब भी २ २ ३ ९ .४ मिलियन मीट्रिक टन अनाज पैदा हुआ .इससे १ ३ अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है .हरेक के हिस्से में तब भी तकरीबन एक पोंड अनाज आयेगा .दूसरे शब्दों में आज जितना अन्न भूमंडलीय स्तर पर पैदा होता है उतने से आज भी १ ४ अरब लोगों का पेट भरा जा सकता है .
प्रत्येक आदमी को आज भी ४ ६ ० ० केलोरीज़ वाला भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है जबकि सिफारिश २,४ ० ० केलोरीज़ प्रतिदिन की जाती है .(स्रोत : International Assessment of Agriculture knowledge ,Science and Tecnology for Development (IAASTD).
कहाँ है अन्न संकट ?
संकट अन्न के (कु )प्रबंध से जुड़ा है हर कोई आँख मूंदे है इस ओर से .
अन्न की बर्बादी :
अमरीका ,कनाडा और योरोप में ४० % खाद्यान इस्तेमाल न होने के कारण फैंक दिया जाता है बर्बाद हो जाता है .
हर बरस अमरीकी १ ६ ५ अरब डॉलर का खाद्यान बेकार कर देते हैं .इतने से पूरे उपसहारवी अफ्रीका का भरणपोषण हो सकता है .
इटली में जितना खाद्यान्न बेकार कर दिया जाता है उतने से हंगरी और इथियोपिया दोनों का पेट भर सकता है .आलमी स्तर पर पैदा किया गया ५ ० % खाद्यान्न बेकार चला जाता है .(स्रोत :UK Institution of Mechanical Engineers ).
अमरीका के सुपर बाज़ारों में भंडारित कुल फल और तरकारियों का ५ ० % व्यर्थ हो जाता है .सड़ने की वजह से इसे फैंक दिया जाता है .इस बर्बादी को हटाने का मतलब दुनिया से भूख और कुपोषण का नामोनिशाँ मिटा देना है .
चलिए बात भारत की करते हैं :
१ जनवरी २ ० १ २ ,छ :करोड़ साठ लाख टन (६ ६ मिलियन टन )खाद्यान्न था इस वक्त यहाँ पर .इस अनाज को बोरियों में भरके यदि बोरियाँ एक के ऊपर एक रख दी जाएँ तो यह चन्द्रमा को छूके पृथ्वी को दोबारा छू लेंगी .२ ० ० १ के बाद से हर साल यहाँ इतना ही अन्न पैदा होता रहा है .
फ़ालतू अनाज का निर्यात कर देती है हमारी "नरेगा" वाली आम आदमी की सरकार .इस आर्थिक बरस (२ ० १ १ - १ २ )में भी जहां ९. ५ मिलियन गेंहूँ निर्यात होगा वहीँ चावल के लिए यह आंकड़ा ९ मिलियन टन के पार जा चुका है .
सरकार खादायान्नों की सरकारी खरीद बंद करने का मन बनाए हुए है .आम आदमी को बाज़ार के हवाले कर दिया जाएगा .
(ज़ारी )
विशेष :दूसरी क़िस्त में पढ़िए आनुवंशिक तौर पर सुधरी फसलों की हकीकत ,कितना खतरनाक है यह खेल जो खेला जा रहा है .
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संकट अन्न के (कु )प्रबंध से जुड़ा है हर कोई आँख मूंदे है इस और से .
5 टिप्पणियां:
Nice post.....
Mere blog pr aapka swagat hai
सब बाज़ारवाद की राजनीति के हथकंडे हैं....
अच्छी जानकारी -इसमें भी राजनीति है
latest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ
समस्या दरअसल खराब प्रबंध का ही है -बहुत महत्वपूर्ण लेख -अब आगे?
धरा वर्तमान जनसंख्या से ६ गुना अधिक को पालने में सक्षम है, पर जब पुत्र ही नकारा हों तो दोष किस पर मढ़ा जाये?
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