सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

ये जीवित पुतले नुमा आदमी कौन है ?प्रधानमंत्री है?


रविकर ने कहा…
पुतले बावन कार्ड के, इक जोकर पा जाय ।


सत्ता-तिर्यल पायके, ठगे कार्य-विधि-न्याय ।

ठगे कार्य-विधि-न्याय, किंग बेगम के गुल्लू ।

दिग्गी छक्के फोर, बनाते घूमे उल्लू ।

काला सा ला देख, करा ले शो तो पगले ।
जीतें इक्के तीन, हार जाएँ सब पुतले ।।


सत्ता मद यह हेकड़ी, पैदा कर हालात ।

संवैधानिक पोस्ट को, दिखा रहे औकात ।
दिखा रहे औकात, लगाते मुख पर ताला ।
खुद करते बकवाद, और पाते पद आला ।
मौसेरे यह चोर, बताते सबको धत्ता ।
लुटते रोज करोड़, मौज में छक्का सत्ता ।।


 smt. Ajit Gupta 
कुछ लोग सत्ता के दलाल होते हैं, जैसे पहले राजाओं के जमाने में चारण भाट होते थे। अब ये भी ऐसे ही हैं। जबकि लेखक हमेशा सत्ता के स्‍थान पर जनता के साथ खड़ा हुआ रहता है। लेकिन आज का पत्रकार भी सत्ता के साथ ही खड़ा है। इसलिए ही जनता की आवाज सुनने वाला और उसके लिए बोलने वाला कोई नहीं है। राजनेता और उनके पद क्‍या हैं? थोड़ा आगे-पीछे घूमों और राष्‍ट्रपति तक बन जाओ। लेकिन विनोद राय ऐसे नहीं बना जाता। उसके लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। विनोद राय जैसे ही कुछ लोग और निकल आएं तो देश का भला हो। जैसे शेषन ने चुनाव आयोग का सुधार किया था।





आप शालिनी जी कांग्रेस के उन संविधानिक पदों पर आसीन लोगों की भाषा बोल रहीं हैं जिनमें से एक मंत्री जब

क़ानून मंत्री थे तो कह रहे थे मेरे इलाके में आके बोलो ये भाषा तब आपको देखूंगा

.दूसरे कहते थे देश की सर्वोच्च सत्ता एवं शौर्य के प्रतीक सेना प्रमुख को -उनकी औकात ही क्या है वह एक 

सरकारी कर्म चारी हैं .इनकी इसी बद्ज़ुबानी से खुश होकर इनमें से एक को क़ानून से 

विदेश दूसरे  को प्रवक्ता पद से सूचना प्रसारण मंत्री का पद  दे दिया गया .आज आप भी यही कह रहीं हैं विनोद 

राय एक सरकारी सेवक हैं . 




कोंग्रेस और उसके समर्थक यह कौन सी परम्परा  का सूत्रपात कर रहें हैं .कल दिग्विजय सिंह जी कह रहे थे विनोद राय एकाउंटेंट हैं 

एकाउंटेंट ही रहें प्रधान मंत्री बनने  की कोशिश न करें .


माननीय शालिनी जी विनोद राय जिस पद पर हैं उसमें अभी आंच और गरिमा बकाया है .इस देश का आम आदमी अब सिर्फ 

न्यायपालिका और ,प्रतिरक्षा सेवाओं के लोगों को ,चंद संविधानिक पदों 

पर तैनात विनोद राय जैसे लोगों को ही सम्मान की  नजर से देखता  है शेष तो कोयले से भी काले सिद्ध हुए हैं जनता की निगाह में .वह 

प्रधान मंत्री बनके अपना अवमूल्यन क्यों करवाएंगे .प्रधान मंत्री 

पद की गरिमा को कोंग्रेस के हाईकमान 

प्रबंध ने जिस प्रकार गरिमा हीन किया है अगर उन्हें 

उनकी 

ही भाषा में ज़वाब दे के ये पूछा जाए ये जो जीवित पुतले नुमा आदमी दिखता है यह कौन है ?ये जो टेढ़े मुंह वाला (वक्र मुखी )मंत्री है 

यह है कौन .स्वामी राम देव जी के लिए यह कहना कौन राम देव 

क्या  कोंग्रेसियों को ही शोभा देता है? तब कोंग्रेस को और उसके कथित बुद्धि वर्ग को कैसा लगेगा जब चीज़ें लौट के उसी की भाषा में 

उसके पास आयेंगी .

भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक के अभी इतने बुरे दिन नहीं आयें हैं कि दिग्विजय सिंह जी और आप उन्हें संविधानिक मर्यादा 

सिखलाएँ .वह बेहतर जानते हैं तभी वहां हैं .सरकार को जो भी 

आईना दिखाता है सरकार उसी से वैर भाव पाल लेती है .आदरनीय टी एन शेषन भी सरकार की  आँख की किरकिरी बन गए थे .फूटी

आँख  नहीं 

सुहाते थे किसी को .अब विनोद राय जी को क्रमिक तौर पे 

निशाने पे लिया जा रहा है .कौन सी परम्परा का निर्माण कर रही है कोंग्रेस ?

कौन से विभीषण की बात कर रहीं हैं आप वह जो पूर्व छात्र के रूप में माई -बाप अंग्रेजों के कसीदे काढ के आया था इंग्लैण्ड जाके

."आपके हम रिनी हैं 

.आप हमारे यहाँ निर्माण कर गए बहुत कुछ .हमारी आज़ादी ज्ञान और वैभव सब आपका दिया हुआ है .हम आपके शुक्रगुजार हैं ."

शालिनीजी संविधान की तकनीकी धाराएं समझने समझाने से कोई प्रज्ञा वान  नहीं हो जाता है .राष्ट्र हित प्रज्ञा और ज्ञान व्यक्ति के

अर्जित गुण हैं .प्रधान मंत्री या कोई और भी मंत्री बन जाना और बात है .ईश्वर किसी ने देखा नहीं है लेकिन वह है ज़रूर इसे कोई

नकार नहीं सकता .भक्ति और राष्ट्र भक्ति से व्यक्ति उसके थोड़ा नज़दीक ज़रूर पहुँच जाता है .

अंग्रेजों के ज़माने में लेफ्टिए उनकी मुखबिरी करते थे .सोशल मीडिया में कोंग्रेस की आज क्या छवि है कमसे कम इतनी इत्त्ल्ला तो

चापलूसों को हाई कमान तक पहुंचानी चाहिए .और ये तमाम वक्र मुखी भले मेडिकल सर्टिफिकेट लेके ये साबित कर दें तकनीकी तौर

पर कि वह वक्र मुखी नहीं हैं लेकिन एक बार आईना ज़रूर देख लें .सच पता चल जाएगा .

विनोद राय जी ने तो सिर्फ विमर्श के लिए एक विषय ही रखा था .

क्षेपक :


ये जीवित पुतले नुमा आदमी कौन है ?प्रधानमंत्री है?इसकी आज कितनी इज्ज़त है इस बात का सबूत यह है अफज़ल गूर (गूर कहतें हैं कश्मीरी भाषा में ग्वाले को ,अंग्रेजी अखबारों ने इसे बिगाड़ के गुरु कर दिया )को फांसी दे दी गई कोई पत्रकार इस चुप्पे मुंह की प्रतिक्रिया तक लेने नहीं पहुंचा .

और अफज़ल गूर ,गुरु होगा दिग्विजय सिंह जी का जो ऐसे लोगों के लिए "जी "और "साहब "संबोधनकर्ता  के रूप में जाने जातें हैं 

एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :


http://shalinikaushik2.blogspot.in/2013/02/blog-post_9.html#comment-form

संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग

 संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग     
Congress attacks CAG for criticising Govt in US Flag Foundation Of India
आज उथल-पुथल का दौर है ,जो जहाँ है वह वहीँ से इस कार्य में संलग्न है सरकार ने 

महंगाई से ,भ्रष्टाचार से देश व् देशवासियों के जीवन में उथल-पुथल मचा दी है ,तो 

विपक्ष ने कभी कटाक्षों के तीर चलाकर ,कभी राहों में कांटे बिछाकर सरकार की नींद 

हराम कर दी है कभी जनता लोकपाल मुद्दे पर तो कभी दामिनी मुद्दे पर हमारे 

लोकतंत्र को आईना दिखा रही है तो कभी मीडिया बाल की खाल निकालकर तो कभी 

गड़े मुर्दे उखाड़कर हमारे नेताओं की असलियत सामने ला रही है.इसी क्रम में अब 

आगे आये हैं कैग ''अर्थात नियंत्रक -महालेखा -परीक्षक श्री विनोद राय ,इनके कार्य 

पर कुछ भी कहने से पहले जानते हैं संविधान में कैग की स्थिति .
    कैग अर्थात नियंत्रक-महालेखा-परीक्षक की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद १४८ के 

अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है .अनुच्छेद 149 में नियंत्रक-महालेखा-

परीक्षक के कर्तव्य व् शक्तियां बताएं गए हैं

-अनुच्छेद १४९-नियंत्रक महालेखा परीक्षक उन कर्तव्यों का पालन और ऐसी शक्तियों 

का प्रयोग करेगा जो संसद निर्मित विधि के द्वारा या उसके अधीन विहित किये जाएँ 

.जब तक संसद ऐसी कोई विधि पारित नहीं कर देती है तब तक वह ऐसे कर्तव्यों का 

पालन और ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो संविधान लागू होने के पूर्व भारत के 

महालेखा परीक्षक को प्राप्त थे .
    इस प्रकार उसके दो प्रमुख कर्तव्य हैं -प्रथम ,एकाउंटेंट के रूप में वह भारत की 

संचित निधि में से निकली जाने वाली सभी रकमों पर नियंत्रण रखता है ;और 

दूसरे,ऑडिटर के रूप में वह संघ और राज्यों के सभी खर्चों की लेख परीक्षा करता है 

.वह संघ और राज्य के लेखों को ऐसे प्रारूप में रखेगा जो राष्ट्रपति भारत के नियंत्रक-

महालेखा-परीक्षक की राय के पश्चात् विहित करे .


     इस प्रकार संविधान के अनुच्छेद १४९ के अनुसार कैग का कार्य एक तरह से 

भारत की संचित निधि के नियंत्रण व् सरकार के एकाउंटेंट का ही है ,ऐसे पद पर रहते 

हुए श्री विनोद राय कहते हैं -कि कैग महज लेखाकार के रूप में संसद में रिपोर्ट पेश 

करने तक अपनी भूमिका सीमित नहीं रख सकता ,उसने इस भरोसे से अपने लिए 

एक नया रास्ता अख्तियार किया हैकि अंततः वह जनता के प्रति जवाबदेह है .उसे 

जनता को जागरूक करने व् खासकर प्राथमिक शिक्षा ,पेयजल ,ग्रामीण स्वास्थ्य 

,प्रदूषण ,पर्यावरण जैसे सामाजिक मुद्दों पर उसकी प्रतिक्रिया जानने का हक़ है . 


   जनता के प्रति कैग विनोद राय जी की ये संवेदनशीलता सराहनीय व् आश्चर्यजनक 

है क्योंकि आमतौर पर ऐसे पदों पर बैठे अधिकारीगण जनता के साथ जिस तरह का 

व्यवहार करते हैं उसका वर्णन शब्दों में तो हो नहीं सकता .किन्तु यहाँ श्री विनोद राय 

जी से ये अपेक्षा नहीं की जाती कि वे जनता के प्रति इस तरह से अपनी जवाबदेही 



बनायें .यहाँ वे सरकारी सेवक है और अपने कर्तव्य के प्रति ईमानदारी ही उनकी 

कर्तव्यनिष्ठा को जाहिर करती है और करेगी भी .संवैधानिक पदों पर आसीन 

विभूतियों की कुछ मर्यादाएं होती है और इस पर कार्य कर रहे अधिकारी को हमारे 

संविधान ने वे अधिकार और कर्तव्य नहीं दिए जिनका प्रयोग व् पालन वे कर रहे हैं 

.वे सरकार के द्वारा किये जाने वाले खर्चे जो भारत की संचित निधि पर भारित हैं 

,पर नियंत्रण रख सकते हैं और इस तरह जनता के पैसे का सदुपयोग कर सकते हैं 

इसके साथ ही वे उन खर्चों से सम्बंधित रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत कर सरकार की 

मनमानी पर रोक लगा सकते हैं क्योंकि वहां जनता के लिए उपयोगी व् अनुपयोगी 

व्यय पर बहस के लिए सम्पूर्ण विपक्ष मौजूद है .वहां सरकार की जवाबदेही हमारे 

संविधान ने ही निश्चित की है और विपक्ष के कार्य को कैग द्वारा अपने हाथ में लेना 

विपक्ष के कार्य में अनाधिकार हस्तक्षेप ही कहा जायेगा .


    साथ ही ,इस सम्बन्ध में उनका ये कदम इसलिए भी अधिक निंदनीय हो गया है 

क्योंकि उन्होंने इस अभिव्यक्ति के लिए विदेशी भूमि अमेरिका और विदेशी मंच 

हार्वर्ड कैनेडी स्कूल को चुना.इस कारण वे ''घर के भेदी''की भूमिका में आ जाते हैं 

जिन्होंने किया तो सब कुछ अपने देश व् देशवासियों के हित के लिए था किन्तु 

जिनके कारण उनके देश व् देशवासियों को हार का मुहं देखना पड़ा .हमारे अंदरूनी 

हालातों का विदेश में जाकर एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का ये कदम मर्यादा 

का उल्लंघन है और उनकी संविधान के प्रति निष्ठा  की जो शपथ उन्होंने नियुक्ति के 

समय ली उसके प्रति संदेह की स्थिति उत्पन्न करता है .यदि उन्हें वास्तव में जनता 

के प्रति जवाबदेह होना है तो अरविन्द केजरीवाल की तरह अपने को ऐसी मर्यादाओं 

की रस्सी से [उनके इस कदम के कारण ये उनका इन मर्यादाओं के प्रति यही भाव 

प्रतीत होता है ]जिनमे उनकी आत्मा बंधा हुआ महसूस करती  है उससे उन्हें खुद को 

मुक्त कर लेना चाहिए और अरविन्द केजरीवाल के पद चिन्हों पर चलते हुए सरकार 

के उद्योगपतियों से ही नहीं ,माफियाओं से ,विपक्षी नेताओं से जिन जिन का भी 

खुलासा कर सकें ,दिलखोल कर करना चाहिए.


                शालिनी कौशिक
                      [कौशल ]

5 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सर जी ,बड़ा दुःख होता है ,माननीय
प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह जी
की स्तिथिति देख कर,एक महान विद्वान
की यह गति राजनीती ने कर दिया है ,
उन्हें भी विद्वता की रक्षा के लिए कदापि
समौझ्तावादी नहीं होना चाहिए

दिगम्बर नासवा ने कहा…

विनोद राय जी ने जो कहा ठीक कहा है ... प्रोफेशन ओर देश दोनों की परिस्थिति के चलते कहा है ...

G.N.SHAW ने कहा…

भाई साहब सही आंकलन है |

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

कह तो सहिये रहे हैं भाई जी! हाँ नहीं तो!

रविकर ने कहा…

आभार भाई जी ।।