गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

जब किसी को कोई बात ,विषय स्पष्ट न हो


जब किसी को   कोई  बात ,विषय स्पष्ट न हो

 तब वह सारी संभावनाओं को कहकर अपनी अल्पज्ञता को छिपाता  है .यह हो सकता  है ,यह सच हो. दूसरा विकल्प यह है यह सच न 

हो .विवेक न होनें पर एक प्रकार का पागलपन उत्पन्न होता है ,मरा  जीव चिड़िया भी हो सकती है बिल्ली भी .यह षड्यंत्र भाज[पा का 

भी हो सकता है कांग्रेस का भी . आप  क़ानून व्यवस्था में जो शिथिलता आई है उसको कारण नहीं मानती .इतने पागल  पन  तक जाना 

ऐसे व्यक्ति का तो मनो रुग्णालय  में इलाज़ होना चाहिए .क्या है इस तरह से इसे वेब साईट पे डालना सामान्य बात है ?,आदमी तो 

अपने रोग को छिपाता है .इस तरह का तर्क प्रलाप कहलाता है .कुछ कहें तो निश्चित तो  हो -ये क्या बात हुई -हो सकता है चोरी चोर ने 

की हो। हो सकता है न भी की हो ."अथवा "  और "या " कहने वाले अ- निश्चय में ही जीते हैं .निर्भया बलात्कार काण्ड एक सामजिक

पतन है , राष्ट्रीय त्रासदी है .एक राष्ट्र की संवेदनाओं से जुड़ गया था यह मुद्दा .एक 

दुर्घटना हुई है जिसने सबको हिला दिया है .क़ानून को लागू करने वाले सांसत  में पड़े हें हैं .कितु इस दुर्घटना को भाजपा या कांग्रेस से

  

जोड़ना विवेकहीनता का परिचायक है . यह वैसे ही है जैसे कोई कहे -.हो सकता है रूस की घटना में आकाश का षड्यंत्र हो .कोई इसे

आकाश 

की राजनीति बतलाये - 

बाढ़ आने को .बादलों की राजनीति बतलाये ,तो क्या कहिएगा ?

यदि किसी को ये भी नहीं पता क्या कहना है क्या न कहना है तो बेहतर है चुप रहे .ऐसे तमाम लोगों के नाम ये शैर -

कुछ लोग इस तरह जिंदगानी के सफर में है ,

दिन रात चल रहें हैं मगर घर के घर में हैं .

                  (२ )

इरादे बांधता हूँ ,सोचता हूँ ,छोड़ देता हूँ ,

कहीं ऐसा न हो जाए ,कहीं वैसा न हो जाए .

अनिश्चय में जीने वालों के लक्षणों की बयानी है इस शैर  में .

आप अपना मन बनाओ .कुछ कहो तो प्रामाणिकता के साथ कहो .वरना चुप रहो मनमोहन सिंह जी की तरह तो बेहतर है .

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

मंगलवार, 19 फरवरी 2013


दामिनी गैंगरेप कांड :एक राजनीतिक साजिश ?

दामिनी गैंगरेप कांड :एक राजनीतिक साजिश ?
   

भारतीय राजनीति साजिशें रचती रही है और साजिशों का शिकार होती रही है किन्तु एक और तथ्य इसके साथ उल्लेखनीय है कि यहाँ जो दिग्गज बैठे हैं उन्हें साजिशें रचने में रुचि है उन्हें खोलने में नहीं .इन साजिशों का कुप्रभाव उनके विरोधी दिग्गज पर पड़ता है किन्तु बर्बाद हमेशा जनता होती है .सत्ता के लिए रची जाने वाले ये साजिशें जनता के लिए बर्बादी ही लाती हैं इन राजनीतिज्ञों के लिए नहीं क्योंकि ये तो जोड़ तोड़ जानते हैं और अपने को सभी तरह की परिस्थितियों में ढाल लेते हैं .
     यूँ तो सत्ता का तख्ता पलटने को साजिशें निरंतर चलती रहती हैं किन्तु ये साजिशें तब और अधिक बढ़ जाती हैं जब किसी भी जगह चुनाव की घडी निकट आ जाती है .पहले हमारे नेतागण अपने कार्यों द्वारा जनसेवा कर जनता का समर्थन हासिल करते थे पर अब स्थिति पलट चुकी है और जनता के दिमाग को प्रभावित करने के लिए सेवा दबंगई में परिवर्तित हो चुकी है .गुनाहों की दलदल में गहराई तक धंस चुकी हमारी राजनीति की इस सच्चाई को हम सभी जानते हैं किन्तु हमें इस बारे में एक बार फिर सोचने को विवश किया है सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और वर्तमान में भारतीय प्रैस परिषद् के अध्यक्ष ''माननीय मार्कंडेय  काटजू जी ''के इस बयान ने ''कि मैं यह मानने को तैयार नहीं कि वर्ष २००२ के गुजरात दंगों में मोदी का हाथ नहीं था .''कानूनी प्रक्रिया को भली प्रकार जानने वाले ,उसका सम्मान करने वाले और देश की वर्तमान परिस्थितियों से जागरूकता के साथ जुड़े रहने वाले माननीय काटजू जी का ये बयान इसलिए महत्वपूर्ण है कि ये कथन एक ऐसे नेता की ओर इंगित है जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एस.आई.टी.द्वारा तीन बार इस मामले में क्लीन चिट दी गयी है और जिसके बारे में ये तथ्य भी आज सबके सामने है  कि वे गुजरात में विकास के अग्रदूत हैं .
    ये बयान और किसी तरफ हमारा ध्यान आकर्षित करे या न करे किन्तु हमें सत्ता लोलुप नेताओं की साजिशों की गहराई में जाने को अवश्य विवश करता है और ध्यान  दिलाता है अभी हाल  में ही देश क्या सम्पूर्ण विश्व को हिला देने वाले ''दामिनी गैंगरेप कांड ''की जिसके बारे में बहुत से तथ्य ऐसे हैं जो संदेह के घेरे में इस कांड को ले आते हैं।यूँ तो देखने में यह कांड ६ दरिदों के द्वारा अपनी हवस को बुझाने के लिए किया गया एक सामान्य गैंगरेप कांड ही दिखाई देता है इस कांड की निम्न बातें जो कि संदेह के घेरे में हैं वे निम्न लिखित हैं -
-सबसे पहले तो पुलिस द्वारा व्यापारी की बात पर ध्यान न दिया जाना और बस को दिल्ली जैसी जगह जहाँ आतंकवादियों की गहमागहमी के कारण पुलिस सतर्कता कुछ ज्यादा ही रखी जाती है ,बस को आराम से २ घंटे तक घूमने देना .
 -दूसरे बस का घुमते रहना तो पुलिस की नज़र में न आना किन्तु घटना की सूचना पर उसका ४ मिनट में वहां पहुँच जाना .
-तीसरे बड़े से बड़े अपराधी जिनके बारे में कोई खास खोजबीन आवश्यक नहीं होती वे तो पुलिस की गिरफ्त में आने में सालों लग जाते हैं और ये अपराधी जिनके बारे में जानकारी जुटाना ही पहले मुश्किल था उन्हें मात्र ७२ घंटे में गिरफ्तार कर लेना .
 -दामिनी व् उसके दोस्त को अपराधियों द्वारा जिन्दा सड़क पर फैंक देना आमतौर पर ऐसे मामलों में अपराधी न पीड़ित को जिंदा छोड़ते हैं न चश्मदीद को .
-और पुलिस द्वारा लगातार मुख्यमंत्री के आदेशों की अवहेलना .
       ऊपर ऊपर से साधारण  गैगरेप कांड लगने वाले इस कांड के ये तथ्य ही इस कांड को रहस्य के घेरे में ले आते हैं कि आखिर उन दरिंदों ने यहाँ इतनी सहृदयता क्यों दिखाई कि दामिनी व् उसके दोस्त को जिंदा छोड़ दिया क्योंकि यदि वे उन्हें जिन्दा न छोड़ते तो एक लड़के व् एक लड़की का साथ इस तरह से मिलने में पूरा शक लड़के पर ही जाता और दामिनी भी उसी सामान्य मानसिकता से भुला दी जाती जो एक लड़के व् लड़की के साथ को शक की नज़र से ही देखते हैं .फिर अपराधियों को इतनी शीघ्रता से जेल के सींखचों के पीछे लिया जाना ये संदेह उत्पन्न  करता है कि कहीं न कहीं ये अपराधी पुलिस की पकड़ में ही थे .जनता के क्रोध से उन्हें बचाने  और मामला कहीं जनता के दबाव में वे अपराधी खोल ही न दें इसलिए उन्हें इतनी शीघ्रता से गिरफ्तार करना दिखाया गया और दामिनी व् उसके दोस्त को यूँ ही जिंदा छोड़ा गया ताकि जनता में उन्हें लेकर सहानुभूति बढे और साजिश रचने वाले को वह मनचाहा परिणाम मिल जाये जिसके लिए एक उभरती प्रतिभा मासूम ऐसी वहशियाना हरकत की भेंट चढ़ा दी गयी .१६ दिसंबर के बाद से भी ऐसी घटनाएँ बंद थोड़े ही हुई हैं बल्कि जितनी बाढ़ अब आई हुई है इतनी शायद पहले कभी नहीं देखी होगी .खुद दिल्ली में ही एक लड़की से घर में घुसकर रेप में नाकाम रहने पर उसके मुहं में पाइप डाल दिया गया जिसके बाद से वह लड़की जीवन मृत्यु के बीच  झूल रही है और न कहीं वह राजनेता हैं जो दामिनी के मामले में फाँसी की मांग कर रहे थे और न कहीं वह जनता है जो पुलिसिया कार्यवाही से भी नहीं डर रही थी . जिंदगी फिर उसी तरह से चल पड़ी है जैसे दामिनी कांड से पहले चल रही थी .ऐसे अपराध पहले भी हुए हैं और आगे भी होंगे किन्तु इनके पीछे के हाथ कभी न दिखाई देंगे .संभव है कि गोधरा कांड की तरह इसमें भी अपराधी सजा पायें और संभव है कि वे जेल में ही निबटा दिए जाएँ क्योंकि जिस राजनीतिक साजिश का वे हिस्सा बने हैं उसने उनके भाग्य में कारावास या मृत्यु ही लिखी है कानून द्वारा या अपने हाथों द्वारा .ये भी संभव है कि ये कांड विरोधी पक्ष द्वारा सत्ता का तख्ता पलटने को ही कराया गया हो और ये भी संभव है कि सत्ता पक्ष द्वारा अपनी दबंगई दिखने को इसे अंजाम दिया गया हो फ़िलहाल ये सभी जानते हैं कि ये कभी नहीं खुलेगा .दोनों तरफ से कोरी बयानबाजी और आपसी लेनदेन ही चलता रहेगा और जनता की आँखों पर पहले के अनेकों घटनाक्रमों की तरह इस बार भी रहस्य का पर्दा पड़ा रहेगा क्योंकि ऐसी घटनाओं के सूत्रधार इस बार भी गोधरा की तरह रहस्य के घेरे में रहने वाले हैं .इससे अधिक क्या कहूं -
      ''चाँद में आग हो तो गगन क्या करे ,
       फूल ही उग्र हो तो चमन क्या करे ,
       रोकर ये कहता है मेरा तिरंगा 

      कुर्सियां ही भ्रष्ट हों तो वतन क्या करे .''
 

   शालिनी कौशिक
  [कौशल ]

2 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सोचना पड़ेगा ... क्या सच में आकाशीय षड्यंत्र तो नहीं ... हो सकता है देखना पड़ेगा .... कांग्रेस का हाथ या भाजपा की निक्कर तो नहीं ...

shalini rastogi ने कहा…

इरादे बांधता हूँ ,सोचता हूँ ,छोड़ देता हूँ ,

कहीं ऐसा न हो जाए ,कहीं वैसा न हो जाए .

vastav men ..is sher ke bahane bahut gahri baat samjhai hai aapne ... uttam prastuti