अतिथि कविता :सेकुलर है हिंसक मकरी -डॉ वागीश
(ये भावरचना उस समय प्रसूत हुई जब माननीय वागीश मेहता जी
'कोलोनोस्कोपी 'के बाद गहन चिकित्सा निगरानी में ले जाए गए थे
.राष्ट्र की संतप्तकारी स्थिति उनके कायिक कष्ट पर भारी पड़ी ,उसी
मनोरचना में रची गई यह कविता )
वोट बड़ा या देश ज़रूरी ,
बहस हो चाहे बुरी भली .
(1)
मलकवा कौन ,पुडलवा कौन ,
चली है चर्चा गली गली .
(2)
वोट , छिंछोडें ,कुत्ते हड्डी ,
आपस में झगड़ा -झगड़ी .
(3)
राजनीति -धंधेबाजों ने ,
फाड़ी लोकलाज -चुनरी .
(4)
लूमड़ लक्कड़बग्घों ने मिल ,
रौंदी है सारी नगरी .
(5)
किसकी बारी कब आ जाए ,
मची हुई अफरा तफरी .
(6)
थुक्कड़ ताकें आसमान पर ,
अपने मुंह पर आन पड़ी .
(7)
कमुनल कौन ,कौन है सेकुलर ,
व्यर्थ विवादों ,में नगरी .
(8)
भारत -भाव का सागर कमुनल ,
सेकुलर है हिंसक मकरी .
(मलकवा -मालिक का अपभ्रंश रूप ,पुडलवा -पूडल से बोले तो घुंघराले
बालों वाला छोटा पिल्ला जिसे गोद में उठा लिया जाता है ,मकरी -
मगरमच्छ की मादा )
प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
veerubhai1947.blogspot.com
0961 902 2914
(ये भावरचना उस समय प्रसूत हुई जब माननीय वागीश मेहता जी
'कोलोनोस्कोपी 'के बाद गहन चिकित्सा निगरानी में ले जाए गए थे
.राष्ट्र की संतप्तकारी स्थिति उनके कायिक कष्ट पर भारी पड़ी ,उसी
मनोरचना में रची गई यह कविता )
वोट बड़ा या देश ज़रूरी ,
बहस हो चाहे बुरी भली .
(1)
मलकवा कौन ,पुडलवा कौन ,
चली है चर्चा गली गली .
(2)
वोट , छिंछोडें ,कुत्ते हड्डी ,
आपस में झगड़ा -झगड़ी .
(3)
राजनीति -धंधेबाजों ने ,
फाड़ी लोकलाज -चुनरी .
(4)
लूमड़ लक्कड़बग्घों ने मिल ,
रौंदी है सारी नगरी .
(5)
किसकी बारी कब आ जाए ,
मची हुई अफरा तफरी .
(6)
थुक्कड़ ताकें आसमान पर ,
अपने मुंह पर आन पड़ी .
(7)
कमुनल कौन ,कौन है सेकुलर ,
व्यर्थ विवादों ,में नगरी .
(8)
भारत -भाव का सागर कमुनल ,
सेकुलर है हिंसक मकरी .
(मलकवा -मालिक का अपभ्रंश रूप ,पुडलवा -पूडल से बोले तो घुंघराले
बालों वाला छोटा पिल्ला जिसे गोद में उठा लिया जाता है ,मकरी -
मगरमच्छ की मादा )
प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )
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0961 902 2914
6 टिप्पणियां:
सराहनीय अभिव्यक्ति अफज़ल गुरु आतंकवादी था कश्मीरी या कोई और नहीं ..... आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
सच में, दर्द भरा है शब्दों में।
बहुत ही सराहनीय दर्द भरी प्रस्तुति.
सराहनीय अभिव्यक्ति...
मकरी अकड़ी माँगती, बन्दर का दिल मीठ |
घात कर रहा दोस्त से, मगरमच्छ वह ढीठ |
मगरमच्छ वह ढीठ, पीठ पर है बैठाता |
कपि खतरा पहचान, उसे फिर से बहकाता |
किन्तु विदेशी नस्ल, अक्ल मकरी बंटवाये |
मगर मिनिस्टर नित्य, कलेजा लेकर आये ||
बहुत प्रभावशाली ... देश के लिए तडपता है दिल वागीश जी का ...
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