सुभग विश्वास की अमराइयों की छाँव तले ,
प्रीत की पगडंडियों के नाम अर्पित ज़िन्दगी .-डॉ वागीश मेहता
वेलेंटाइन डे जिसकी साल भर इंतज़ार होती है क्या कोई ज़िन्दगी में ऐसा प्रेम भी होता है जिसे 364 दिन की
इंतज़ार करनी पड़े .खैर यह पश्चिम का अपना फलसफा है ,जहां निजी अनुभूतियों को भी बाज़ार के हवाले कर
दिया जाता है .हमारी निगाह में तो सच्चा और शुद्ध प्रेम हर क्षण बना रहता है .जहां ज़रा भी जुदाई किसी
अलगाव को सहन नहीं करती .प्रेम दिवस पर प्रस्तुत है यह गीत :डॉ .वागीश मेहता .
प्रिय तुम्हारे दीर्घ मौन को, क्या समझूं ,
हाँ समझूं या न समझूं .
(1)
अति मुखर की सीमा भी है मौन ,
यही क्या भाव तुम्हारा ,
तड़प लहर की कब बुझती ,
पा शांत किनारा ,
इन शांत तटों में ,
मर्यादा या उद्वेलन है ,क्या समझूं
हां समझूं या न समझूं ?
(2)
विस्फोटों के विकट ज्वाल में ,
मौन छिपा है ,
संघर्षों की बलिवेदी पर ,
मौन सजा है ,
मौन कौन सा तुमने धारा ,
क्या समझूं ,हां समझूं या न समझूं .
(3)
रजनी के हाथों में अपनी ,
नींद धरोहर रख कर ,
घर से निकल पड़ी है श्यामा ,
मौन इशारा पाकर ,
सुखद मिलन की इन घड़ियों को ,
क्या प्रियतम की जय समझूं ,
हाँ समझूं या न समझूं .
(4)
स्पर्श विकल या रक्षा के हित ,
तरु शिखरों से आलिंगित ,
लतिका के इस मिलन -दृश्य को ,
शरणागत या प्रेम पगी है ,
क्या समझूं ,हाँ समझूं या न समझूं .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरूभाई )
अतिथि कविता :डॉ वागीश मेहता
प्रीत की पगडंडियों के नाम अर्पित ज़िन्दगी .-डॉ वागीश मेहता
वेलेंटाइन डे जिसकी साल भर इंतज़ार होती है क्या कोई ज़िन्दगी में ऐसा प्रेम भी होता है जिसे 364 दिन की
इंतज़ार करनी पड़े .खैर यह पश्चिम का अपना फलसफा है ,जहां निजी अनुभूतियों को भी बाज़ार के हवाले कर
दिया जाता है .हमारी निगाह में तो सच्चा और शुद्ध प्रेम हर क्षण बना रहता है .जहां ज़रा भी जुदाई किसी
अलगाव को सहन नहीं करती .प्रेम दिवस पर प्रस्तुत है यह गीत :डॉ .वागीश मेहता .
प्रिय तुम्हारे दीर्घ मौन को, क्या समझूं ,
हाँ समझूं या न समझूं .
(1)
अति मुखर की सीमा भी है मौन ,
यही क्या भाव तुम्हारा ,
तड़प लहर की कब बुझती ,
पा शांत किनारा ,
इन शांत तटों में ,
मर्यादा या उद्वेलन है ,क्या समझूं
हां समझूं या न समझूं ?
(2)
विस्फोटों के विकट ज्वाल में ,
मौन छिपा है ,
संघर्षों की बलिवेदी पर ,
मौन सजा है ,
मौन कौन सा तुमने धारा ,
क्या समझूं ,हां समझूं या न समझूं .
(3)
रजनी के हाथों में अपनी ,
नींद धरोहर रख कर ,
घर से निकल पड़ी है श्यामा ,
मौन इशारा पाकर ,
सुखद मिलन की इन घड़ियों को ,
क्या प्रियतम की जय समझूं ,
हाँ समझूं या न समझूं .
(4)
स्पर्श विकल या रक्षा के हित ,
तरु शिखरों से आलिंगित ,
लतिका के इस मिलन -दृश्य को ,
शरणागत या प्रेम पगी है ,
क्या समझूं ,हाँ समझूं या न समझूं .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरूभाई )
अतिथि कविता :डॉ वागीश मेहता
14 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर रचना | आभार |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति
बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति मीडियाई वेलेंटाइन तेजाबी गुलाब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .शुभकामनायें.
प्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है
सुकोमल भावनाओ को शब्द देती और ह्रदय के तारों को छेड़ती सुंदर रचना से परिचय करने के लिए साधुवाद ,शुभकामनाये
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
मौन इशारा पाकर ,
सुखद मिलन की इन घड़ियों को ,
क्या प्रियतम की जय समझूं ,
हाँ समझूं या न समझूं .waah gazab ki panktiyaan....
यदि मौन इतना स्पष्ट बोल देता तो शब्दों की आवस्यकता कम हो जाती।
बहुत सुंदर गहन भावों में पगी सुंदर रचना साझा करने हेतु हार्दिक आभार
मौन कौन सा तुमने धारा ,
क्या समझूं ,हां समझूं या न समझूं .
गहरी बात ... जाने तेरा मौन शक्ति है या युक्ति.....
डॉ वागीश मेहता ji ko sunder kavita ke liye badhai
ham sabhi se shajha karne ke liye aapka aabhar
मौन के अर्थ समझना सहज नहीं ... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत ही प्यारी रचना .............
डॉ. वागीश जी की इतनी खूबसूरत एवं विशिष्ट रचना को सभी पाठकों तक पहुँचाने के लिए आपका आभार वीरेन्द्र जी ! रचना का हर एक शब्द मन पर स्थायी प्रभाव छोड़ता है ! इतनी सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आपका पुन: धन्यवाद !
एक टिप्पणी भेजें