शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

शीलवान पुरुष उनकी जाति नहीं पूछा करता था

नारियां हमारे समाज में महत्वपूर्ण पारिवारिक इकाई रहीं हैं .चाहे वह किसी वंश या कुल की हों .उनकी मर्यादा रक्षा की सामान्य  धारणा हर पुरुष के मन में होती थी .उसकी रक्षा करते समय कोई 

शीलवान पुरुष उनकी जाति  नहीं पूछा करता था .भारतीय मन की इस मर्यादा को अगर किसी ने खंडित किया है तो उन राजनीतिक व्यक्तियों ने चाहे वह पुरुष हों या नारी ,जो अपनी सुरक्षा के लिए 

पचासों अंग रक्षक साथ लेकर चलतें हैं .उन्हें ऐसे नैतिक मुद्दों पर घड़ियाली  आंसू बहाने और आश्वासन देने का कोई हक़ हासिल नहीं है .चाहे फिर वह शीला दीक्षित हों या फिर सोनिया गांधी .उन बबुओं 

के बारे में क्या कहा जाए जो भारत भर के युवाओं से मिलते घूम रहें हैं .क्या सिर्फ वोट के लिए युवाओं के बीच में घूमना बस यही उद्देश्य है ?उस कथित युवा सम्राट की अब तक तो कोई टिपण्णी भी नहीं 

आई .

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :41. बलात्कार की स्त्रीवादी परिभाषा


डॉ.जेन्नी शबनम
अजीब होती है हमारी ज़िंदगी । शांत सुकून देने वाला दिन बीत रहा होता है कि अचानक ऐसा हादसा हो जाता की हम सभी स्तब्ध हो जाते हैं । हर कोई किसी न किसी दुर्घटना के पूर्वानुमान से सदैव आशंकित और आतंकित रहता है । कब कौन-सा वक़्त देखने को मिले कोई नहीं जानता न भविष्यवाणी कर सकता है । कई बार यूँ लगता है जैसे हम सभी किसी भयानक दुर्घटना के इंतज़ार में रहते हैं, और जब तक ऐसा कुछ हो न जाए तब तक उस पर विमर्श और बचाव के उपाय भी नहीं करते हैं …

3 टिप्‍पणियां:

shikha varshney ने कहा…

मानव स्वभाव है. जब तक खुद पर बीत न जाए लगता है हमारे साथ ऐसा नहीं हो सकता.पर हादसा तो हादसा है कभी भी आहट करके नही आता.

shalini rastogi ने कहा…

हादसों की यही खूबी होती है...सबको लगता है कि वे दूसरों के साथ होते हैं.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सहसा सब बदल जाता है..मार्मिक घटना..