अतिथि कविता :हम जीते वो हारें हैं -डॉ .वागीश मेहता
हम जीते वह हारे हैं
...................................
दिशा न बदली दशा न बदली ,
हारे छल बल सारे हैं ,
वोटर ने मारे फिर जूते ,
कैसे अजब नज़ारे हैं .
(1)
पिछली बार पचास पड़े थे ,
अबकी बार पड़े उनचास ,
जूते वाले हाथ थके हैं ,
हाईकमान को है विश्वास ,
बंदनवार सजाये हमने ,
हम जीते वह हारे हैं ,
कैसे अजब नज़ारे हैं .
(2) .
ऊपर का सन्देश यही है ,
कहना तो सौ टेक सही है ,
दो और दो होते हैं पांच ,
गणना में कोई कमी नहीं है ,
चारों खाने चित्त पड़े हैं ,
हरगिज़ हम न हारे हैं ,
कैसे अजब नज़ारे हैं .
(3)
जब से मंदबुद्धि के पाले ,
घर के रहे न घाट हवाले ,
दूर से दूध -धुले से लगते ,
कालिख पोते चैनल वाले ,
झूठ और सच से क्या लेना ,
गिरवीं मस्तिष्क हमारे है ,
कैसे अजब नज़ारे हैं .
(4)
सेकुलर का मतलब है संसद ,
और सीट के मायने मसनद ,
एक बार गर हाथ लगे तो ,
फिर क्या औरत ,इज्ज़त अस्मत ,
पांच साल में क्या क्या करना ,
सीखे करतब सारे हैं ,
कैसे अजब नज़ारे हैं .
प्रस्तुति :वीरूभाई (वीरेंद्र शर्मा )
लेवल :गुजरात चुनाव , चिदंबरम ,कांग्रेस की हार ,मान मत मान
1 टिप्पणी:
दिशा न बदली दशा न बदली ,
हारे छल बल सारे हैं ,
वोटर ने मारे फिर जूते ,
कैसे अजब नज़ारे हैं .
एक टिप्पणी भेजें