अब जबकि दिल्ली रेप के बाद लोगों की भावनाओं का ज्वार और गुस्सा उफान पर है यह
चिंगारी बुझने न पाए ,उबाल ठंडा होने पर चिंगारी हमेशा की तरह बुझ न जाए इसलिए ज़रूरी है इस जन
नाराजी और गुस्से
के उबाल को एक दिशा दी जाए .संयमित किया जाए इसे लेकिन प्रशासन और पुलिस पे दवाब बनाए रखा जा
सके ताकि बल्लीमारान की गलियाँ दिल्ली के लिए सुरक्षित और महफूज़ रह सकें .
ज़ाहिर है तोड़ फोड़ न की जाए क्योंकि लोगों की जो भीड़ घरों से बाहर स्वत :निकलके आई है वह बलवाई नहीं है
न ही पैसे दे के बुलवाई गई है .
दिल्ली महानगरी के साथ जो कल पुलिस का रेप हुआ है उसकी आड़ में कुछ शरारती तत्व इस जन विद्रोह ,जन
आक्रोश से जुड़ के आन्दोलन की दिशा बदल सकते हैं .संचित जन ऊर्जा को बिखेर सकते हैं .जबकि परिंदे अब
भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घौले हुए हैं ,दिल्ली मुंबई और अन्य नगरों में दिल्ली रेप के बाद बलात्कार
का
सिलसिला ज़ारी है .
गत शुक्रवार को ही एक नेपाली युवती के साथ बारहा मुंबई में बलात्कार हुआ है जबकि युवती अपने पति की
तलाश में यहाँ आई थी जो यहाँ एक पर्स बनाने वाली फेक्टरी में काम करता था .अन्य नगरों में भी यह नित्य
का शातिर शगल थमा नहीं है .भले आज पूरा भारत सड़कों पर है .
अकेले दिल्ली में बलात्कार के 1000 मामले निलंबित पड़े हैं .हमारा मानना है इन मामलों को भी द्रुत न्यायालय
द्वारा तुरत निपटाया जाए .सभी को एक मानक अंशांकित सजा दी जाए .ताकि शातिरों के कान हो जाएँ जिन्हें
आज कुछ सुनाई नहीं देता है .अन्य नगरों में भी तमाम निलंबित मामलों को एक साथ निपटाए जाए ताकि
एक साफ़ संकेत जाए .
आज दीर्घावधि काम करने वाले ऐसे कदम उठाये जाने की फौरी ज़रुरत है जिनपे आइन्दा भी कायम रहा जा
सके .यह भावना में बहे जाने का समय नहीं है .यह सुनिश्चित किए जाने का वक्त है क्या प्रशासन अपने वायदे
पे अमल करने को तैयारी कर रहा है या नहीं ?
देखिये चेक करिए क्या वाकई पुलिस पेट्रोल बढ़ा है थानों में महिला पुलिस बल बढ़ें हैं या नहीं .बसों में सादा वर्दी
में पुलिस कर्मी बढाए जा रहे हैं या नहीं .बसों पर तैनात मुलाज़िमों की शिनाख्त सुनिश्चित कीजिए .गहरे रंग के
अ -पारदर्शी शीशे जहां भी दिखलाई दें उनका नोटिस लीजिए
कामोत्तेजक चित्त के खिलाफ पुलिस को संवेदी बनाया जाए .
दिल्ली उच्च न्यायालय की सिफारिश के अनुरूप फौरी तौर पर पांच द्रुत अदालतें खड़ी की जाएँ .मिसाल कायम
की जाये तुरता न्याय देके .ताकि इन द्रुत न्यायालय के द्रुत फैसले एक नज़ीर बन सकें .
देखा जाए आइन्दा बलात्कार के मामले लटके न रहें सालों साल जो फैसलों को नाकारा बना देते हैं .खुद न्याय
का
मखौल बन जातें हैं .
गत एक सप्ताह में घटित हुए बलात्कार के मामलों को भी अति संगीन समझा जाए ,जो जन आक्रोश के
चलते हुए हैं ,बे -खौफ उन्न्हीं शातिरों द्वारा बलात्कार जिनका शगल है अपराध नहीं . और तुरता निपटान हो
इन द्रुत अदालतों में तभी समझा जाएगा कुछ हो रहा है दिल्ली की गलियों में जहां अब महिला सुरक्षित घूम
सकती है .
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लेवल :दिल्ली रेप ,फास्ट ट्रेक कोर्ट ,बे -खौफ बलात्कारी परिंदे
7 टिप्पणियां:
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति नारी महज एक शरीर नहीं
आपकी बात से मैं पूर्णतया सहमत हूँ..हमें इस ज्वाला को बुझने नहीं देना है ..लेकिन प्रज्वलन की प्रक्रिया में आगजनी का अह्शाश नहीं होना चाहिए..आपके कमेंट मेरे मेल पर आये हैं..आपका प्रोत्साहन मुझे उर्जा प्रदान करता है ..सादर प्रणाम के साथ
ज्वाला जलती रहेगी बशर्ते सरकार चाहे ...
वो तो दबाने में लग गयी है अभी से ...
बिलकुल सही कहा आपने यह ज्वाला
बुझनी नहीं चाहिए जब तक सरकार सशक्त
कानून न बनाये.
नई पोस्ट ;सास भी कभी बहू थी
इन्हें सही स्थान दिखाना होगा।
बहुत ही विचारोत्तेजक इन्हे अब सूली पर चढ़ा
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