फैसला निर्भया की मौत से पहले और बाद का
निर्भय को सिंगापुर ले जाने का फैसला सरकार का था चिकित्सा माहिरों का नहीं .सरकार की अपनी
खुफिया एजेंसी है जिसने साफ़ बतलाया था दिल्ली को आग लग जायेगी निर्भया की इस तरह होने वाली
मौत से .
माहिरों के अनुसार निर्भया को ऐसी दिमागी नुकसानी उठानी पड़ी थी जिसकी भरपाई हो नहीं सकती थी .
मंगल वार की रात गए बुद्धवार की सुबह उसे यह अ -पूर्ण -नीय नुकसानी उठानी पड़ी थी .
इस नुकसानी की वजह बना था -Thromboembolic attack .
खून का थक्का आ फंसा था उसकी रक्त वाहिनी में .इसी का नतीजा थे एक के बाद एक दो हार्ट अटेक .
पहला दिल का दौरा दुरुस्त कर लिया गया बिजली का झटका देकर लेकिन इसी दुरुस्ती के दौरान दिमाग
को ऐसी नुकसानी उठानी पड़ गई जो अन्ततया मौत का सबब बनी .
हवाई सफर में दिल की लुब डूब को तबदील करके बलिकृत करके चलाये रखने के लिए निर्भया को
Inotropic drugs दवाएं
दी गईं .
Inotropic drugs a change the strengths of heart beats and are used to
manage various heart
conditions.
फ़ौरन बाद आँख की पुतलियों पर टोर्च की तेज़ रोशनियाँ डाली गई .ना -मालूम सी प्रतिक्रिया हुई .स्नायुतंत्र
के रोगों के माहिर (न्यूरोलोजिस्ट )की राय में इस स्थिति में किसी भी विध किसी भी प्रकार का अंग
प्रत्यारोपण संभव ही न था .
कुछ माहिरों के अनुसार निर्भया की दूसरे दिल के दौरे के बाद ही दिमागी मृत्यु हो चुकी थी ,उस दरमियान
जब तीन चार मिनिट तक उसकी नव्ज़ की हरारत गायब हो गई थी .रक्त चाप गायब था .
फिर भी उसे ले जाया गया सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल जिसे अंग प्रत्यारोप में महारत हासिल है .
उसे इस हालत में ले जाना चाहिए था या नहीं यह सवाल अन -उत्तरित रहेगा आने वाली संततियों के लिए
.सम्बद्ध माहिर इस दरमियान हमारे बीच मौजूद न रहेंगे अपना पक्ष रखने के लिए .वस्तु स्तिथि का
खुलासा करने के लिए .ये विचार व्यक्त किये थे साहित्यकार एवं चिन्तक डॉ .वागीश मेहता जी ने .
तब क्या उसे ब्रेन डेथ हो जाने के बाद ले जाया गया ताकि भारत में होने वाली अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से
बचा जा सके ?
हमने जब यह सवाल मशहूर मनोविज्ञानी (पूर्व में नेशनल प्रोफ़ेसर आफ साइकोलोजी ) डॉ .इन्द्रजीत सिंह
मुहार से किया वह बोले :
इतना साख वाला अस्पताल भारत सरकार के साथ मिलकर इतनी बड़ी नौटंकी नहीं कर सकता .उनके इस
ड्रामे में शरीक हो जाए .अलबत्ता सरकार का यह कदम देर से उठाया गया कदम था लाज बचाए रखने के
लिए .
सरकार तो निकम्मी है ही यह पुलिस आम आदमी के किसी काम की नहीं है .
अलबत्ता यह आंच जलती रहनी चाहिए .स्थितियां हाथ से न निकलने देने चाहिए .असल सवाल इस
आन्दोलन को बनाए रखने ,मुद्दे उठाए रखने का है जो एक विधायी भूमिका निभा सकता है आइन्दा के लिए
.अब सवाल निर्भया की मौत के बाद की अटकल का है .कहाँ किया गया निर्भया का अंतिम संस्कार ?दिल्ली
या बल्लिया ?
सरकार का निवेदन उसका आदेश ही होता है .उसके माँ बाप के लिए सरकार का निवेदन उसका आदेश ही
था .कोई सनद कोई चित्र नहीं है उसके अंतिम संस्कार का .यह कैसी मृत सरकार है जो उसकी मौत से भी
डरी हुई है .जन्तर मंतर पर बैठे जिंदा प्रदर्शन कारियों से भी .खुद अपनी उलटी गिनती गिन रही है सरकार .
एक बात बिलकुल साफ़ है सरकार का मुंह बेशक लटका हुआ है लेकिन इसकी वजह निर्भया की मौत नहीं
है . सरकार अपनी आसन्न मृत्यु देख रही है अपना अवसान देख रही है उसे लग रहा है उसने अपना ही
अंतिम संस्कार किया है निर्भया के गम में दुखी नहीं है सरकार .
सरकार अपने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान की सलाह को धता बताकर खुद ही जब त्रेहन के मेदान्ता में गई
उनकी सलाह को तरजीह दी तब उसने खुद ही अपने गाल पे कसके तमाचा नहीं मारा क्या ?यह उसका
अपना निजाम था .
निर्भय को सिंगापुर ले जाने का फैसला सरकार का था चिकित्सा माहिरों का नहीं .सरकार की अपनी
खुफिया एजेंसी है जिसने साफ़ बतलाया था दिल्ली को आग लग जायेगी निर्भया की इस तरह होने वाली
मौत से .
माहिरों के अनुसार निर्भया को ऐसी दिमागी नुकसानी उठानी पड़ी थी जिसकी भरपाई हो नहीं सकती थी .
मंगल वार की रात गए बुद्धवार की सुबह उसे यह अ -पूर्ण -नीय नुकसानी उठानी पड़ी थी .
इस नुकसानी की वजह बना था -Thromboembolic attack .
खून का थक्का आ फंसा था उसकी रक्त वाहिनी में .इसी का नतीजा थे एक के बाद एक दो हार्ट अटेक .
पहला दिल का दौरा दुरुस्त कर लिया गया बिजली का झटका देकर लेकिन इसी दुरुस्ती के दौरान दिमाग
को ऐसी नुकसानी उठानी पड़ गई जो अन्ततया मौत का सबब बनी .
हवाई सफर में दिल की लुब डूब को तबदील करके बलिकृत करके चलाये रखने के लिए निर्भया को
Inotropic drugs दवाएं
दी गईं .
Inotropic drugs a change the strengths of heart beats and are used to
manage various heart
conditions.
फ़ौरन बाद आँख की पुतलियों पर टोर्च की तेज़ रोशनियाँ डाली गई .ना -मालूम सी प्रतिक्रिया हुई .स्नायुतंत्र
के रोगों के माहिर (न्यूरोलोजिस्ट )की राय में इस स्थिति में किसी भी विध किसी भी प्रकार का अंग
प्रत्यारोपण संभव ही न था .
कुछ माहिरों के अनुसार निर्भया की दूसरे दिल के दौरे के बाद ही दिमागी मृत्यु हो चुकी थी ,उस दरमियान
जब तीन चार मिनिट तक उसकी नव्ज़ की हरारत गायब हो गई थी .रक्त चाप गायब था .
फिर भी उसे ले जाया गया सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल जिसे अंग प्रत्यारोप में महारत हासिल है .
उसे इस हालत में ले जाना चाहिए था या नहीं यह सवाल अन -उत्तरित रहेगा आने वाली संततियों के लिए
.सम्बद्ध माहिर इस दरमियान हमारे बीच मौजूद न रहेंगे अपना पक्ष रखने के लिए .वस्तु स्तिथि का
खुलासा करने के लिए .ये विचार व्यक्त किये थे साहित्यकार एवं चिन्तक डॉ .वागीश मेहता जी ने .
तब क्या उसे ब्रेन डेथ हो जाने के बाद ले जाया गया ताकि भारत में होने वाली अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से
बचा जा सके ?
हमने जब यह सवाल मशहूर मनोविज्ञानी (पूर्व में नेशनल प्रोफ़ेसर आफ साइकोलोजी ) डॉ .इन्द्रजीत सिंह
मुहार से किया वह बोले :
इतना साख वाला अस्पताल भारत सरकार के साथ मिलकर इतनी बड़ी नौटंकी नहीं कर सकता .उनके इस
ड्रामे में शरीक हो जाए .अलबत्ता सरकार का यह कदम देर से उठाया गया कदम था लाज बचाए रखने के
लिए .
सरकार तो निकम्मी है ही यह पुलिस आम आदमी के किसी काम की नहीं है .
अलबत्ता यह आंच जलती रहनी चाहिए .स्थितियां हाथ से न निकलने देने चाहिए .असल सवाल इस
आन्दोलन को बनाए रखने ,मुद्दे उठाए रखने का है जो एक विधायी भूमिका निभा सकता है आइन्दा के लिए
.अब सवाल निर्भया की मौत के बाद की अटकल का है .कहाँ किया गया निर्भया का अंतिम संस्कार ?दिल्ली
या बल्लिया ?
सरकार का निवेदन उसका आदेश ही होता है .उसके माँ बाप के लिए सरकार का निवेदन उसका आदेश ही
था .कोई सनद कोई चित्र नहीं है उसके अंतिम संस्कार का .यह कैसी मृत सरकार है जो उसकी मौत से भी
डरी हुई है .जन्तर मंतर पर बैठे जिंदा प्रदर्शन कारियों से भी .खुद अपनी उलटी गिनती गिन रही है सरकार .
एक बात बिलकुल साफ़ है सरकार का मुंह बेशक लटका हुआ है लेकिन इसकी वजह निर्भया की मौत नहीं
है . सरकार अपनी आसन्न मृत्यु देख रही है अपना अवसान देख रही है उसे लग रहा है उसने अपना ही
अंतिम संस्कार किया है निर्भया के गम में दुखी नहीं है सरकार .
सरकार अपने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान की सलाह को धता बताकर खुद ही जब त्रेहन के मेदान्ता में गई
उनकी सलाह को तरजीह दी तब उसने खुद ही अपने गाल पे कसके तमाचा नहीं मारा क्या ?यह उसका
अपना निजाम था .
4 टिप्पणियां:
सरकार की अंतहीन संवेदनहीनता पता नहीं कब तक और चलेगी और कब उसके नाटक देखने के लिये हम मजबूर होते रहेंगे.
--क्या निर्भय को सिंगापुर ले जाने का फैसला इसलिए था ताकि भारत में होने वाली अप्रत्याशित प्रतिक्रिया से बचा जा सके ?--यह प्रश्न बहुतों के मन में उठ रहा है .
यह समय आत्ममंथन और समाधान की तलाश का है ताकि भविष्य का भारत खून के आंसू न रोये.
विचारणीय बिंदु!
बहुत ही गहन छ्न्बीं के बाद आपने यह पोस्ट लिखिहाई डॉ. साहब.... आपके विचारों से सहमत हूँ..हमारी सरकार को कोई रास्ता नहीं मिला तो हमेशा की तरह पलायन का रास्ता अपना लिया.
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