सोमवार, 3 दिसंबर 2012

व्यंग्य :सरकार और आम आदमी


कुछ  दिन पहले टाइम्स आफ इंडिया में सम्पादकीय छपा था :सरकार और 

आम आदमी .देश की बात छोड़िये  वोट के हिसाब से सरकार 

और आम आदमी का असली राजनीतिक रिश्ता क्या है और 

सरकार की असली नीयत क्या है इस पर पढ़िए एक व्यंग्य विडंबन 




:सरकार और आम आदमी 

व्यंग्यकार डॉ .वागीश मेहता .


  सरकार को आम आदमी का सहारा है और आम आदमी को सरकार का .एक दूसरे के बिना दोनों बे -सहारा हैं .दोनों मुसीबत जदा हैं 

.सरकार अपनी चिंता में और आम आदमी देश की चिंता में

दुबला गए हैं .सरकार तो देश से बड़ी है न, सरकार तो सरकार है न, हुक्म सरकार का .सरकार की सलाह में भी तो हुक्म ही छिपा होता है 

.एक बार सरकार  की सलाह थी -गरीबी हटाओ .आम 

आदमी और खासकर गरीब लोग सकते में थे कैसे हटायें .गरीबी कोई रेत बजरी की तरह तो है नहीं जिसे तसले में भर कर दूर हटा दें .सभी 

पशोपेश में थे .गरीब को अक्सर लगता है की वह कम 

अक्ल है और सरकार समझदार है .अगर सरकार ने कहा है की गरीबी हटाओ तो कोई दूर की बात ज़रूर होगी .इसलिए बिना सोचे समझे 

गरीब लोगों ने   खर्चे कम करके भी कस्सी और तसले 

खरीद लिए .उन्हें इससे मानसिक तसल्ली हुई की केवल वे ही गरीब नहीं हैं ,ऊंचे और अमीर घरों में भी गरीबी किसी न किसी कोने में 

छिपी होगी .चलो कुछ तो काम मिलेगा .उन दिनों "मनरेगा " 

तो था 

नहीं इसलिए कस्सी तसला लिए गरीब आदमी गली गली घूमते हुए आवाज़ लगाते -गरीबी हटवा लो .. S ... गरीबी .....

यह सच है की कभी कभी तमाशा भी चल निकलता है .जो चल निकले वही  असल हो जाता है और बाकी सब कुछ नकली .


दरअसल फसल बोने वालों से ज्यादा समझदार वे  होतें हैं जो फसल काट लेते हैं .राजनीति में यह दूर की बात है .अब फिर फसल काटी जा 

रही है .काटने वाले वही  लोग हैं जो पहले थे .बस थोड़ा सा 

भेष बदला हुआ है .सभी संयुक्त आवरण में हैं फांकें अलग अलग हैं पर खोल एक है .भानुमती का कुनबा तो प्रगतिशील भी नहीं था यहाँ 

तो सभी प्रगतिशील हैं .सभी मीर हैं .सरकार इस निष्कर्ष पर 

पहुंची है कि लीपापोती से बड़ा समन्वय वाद नहीं। सब पर चादर डालो .नंगई कोई अच्छी बात है .चादर के नीचे  तो सब ठीक ठाक है 

.सर्वेभवन्तु सुखिन:

सेकुलर मथानी से राजनीति का समुन्द्र मंथन ज़ारी है .जनता के हिस्से में हलाहल और सरकार के हिस्से में अमृतपान का वोट तंत्रीय 

विधान है .लोक तंत्र को बचाना है तो आम आदमी को विष पीना 

ही होगा .इसलिए सरकार कह रही है की आतंकवाद के विरुद्ध लोग एक जुट हों यानी जहां आतंकवादी वारदात हो वहीँ सभी लोग इकठ्ठे हो जाएँ .सामूहिक शहादत से देश का सर ऊंचा होता है .इससे 

आतंकवादियों का मनोबल टूटता है .आतंकवादी भी सोचने को मजबूर होतें हैं की "इंडिया डेट इज भारत "में कैसी अद्भुत एकता है .जो लोग 

इकठ्ठे जी नहीं सकते वे इकठ्ठे मर रहें हैं .सरकार उलझन में 

है पर नीयत साफ़ है .सरकार अपना काम करेगी .लोग अपना काम करें .आतंक  के शिकार लोगों को सरकार मुआवजा देगी .फ़ोकट में 

मर जाते तो मुआवजा भी न मिलता .सरकार इन्क्वारी भी 

बैठाएगी  .परिणाम का कोपी राईट सरकार का होगा .वोट हित में होगा तो सरकार रिपोर्ट के अंश ज़ारी करेगी .सारी रिपोर्ट ज़ारी हो ऐसा तो 

संविधान में कहीं नहीं लिखा .जन हित में कुछ चीज़ें देश 

से भी बड़ी होती हैं .इन बड़ी चीज़ों में वोट अव्वल नम्बर पर है .

सरकार ने हिदायत ज़ारी की है की आतंकवाद के विरुद्ध लोग अपनी आँखें और कान खोल कर रखें .सरकार की बात और है .वह आँख और 

कान बंद करके सो सकती है .आम आदमी को फर्ज़ 

निभाना है .मेरी राय है यदि लोगों की आँखें खराब हैं तो डॉक्टर को दिखाएँ ,कान बहरें हैं तो उसका इलाज़ करवाएं .सारा खर्चा सरकार 

उठायेगी बस आप तो आँख और कान खुले रखें .इसमें आम 

आदमी का क्या क्या जाता है .खुली आँखों से तो चोर भी डरता है फिर आतंकवादी की तो औकात ही क्या है .

प्रस्तुति :वीरू भाई (वीरेंद्र शर्मा )

डी  -4 ,नोफ्रा (नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेसिडेंशियल एरिया ),कोलाबा ,मुंबई 

400 -005



6 टिप्‍पणियां:

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

वागीश मेहता जी अपनी चुटीली व्यंग लेखनी के लिए जाने जाते हैं. सम सामयिक विषय पर उनकी इस खूबसूरत रचना को शर्मा जी ने ब्लॉग पर दे कर कृतार्थ किया है.

अशोक सलूजा ने कहा…

.सरकार अपनी चिंता में और आम आदमी देश की चिंता में......सटीक व्यंग !
वाह!
जय हो डॉ .वागीश मेहता जी की |

राम-राम वीरू भाई जी !

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति वीरुभई ||
गजब पकड़ शब्दों पर-
अर्थ भी नायाब ||
आदरणीय वागीश जी को शत शत नमन ||

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वागीश मेहता जी का जबरजस्त चुटीला व्यंग,,,

बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,

recent post: बात न करो,

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अब चाहें जिसपर खर्च करें, चाहें जैसे खर्च करें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत बढ़िया व्यंग्य .... गरीबी हटवा लो .... यह बढ़िया रहा :)