शाम के वक्त ६ बजे के आस पास दिल्ली की सड़कें बदहवास हो जाती हैं .स्कूटर वालों को शिफ्ट बदलने की उतावली होती है ,किराए का तिपहिया मालिक को लौटाना होता है .लालच यह भी होता है ,एक आदि सवारी उधर की ही मिल जाए जिधर उसे जाना है ।
सवारी की अपनी पीड़ा होती है ,उसके गंतव्य के लिए चलने के लिए स्कूटर (तिपहिया )तैयार हो जाए तो उसकी लाटरी खुल जाती है ,उस पर भी मीटर अपने आप से डाउन करदे तो सवारी उपकार से झुक जाती है .कमसे कम उसके साथ तो अब इस उम्र में ऐसा ही होता लगता है ।
स्कूटर वाला उसके गंतव्य के लिए चलने के लिए तैयार ज़रूर हुआ ,लेकिन उसके चारा डालने के बाद "दस रूपये फ़ालतू दूंगा "(जो यह मांगेगा उससे ).यह क्या इसने तो मीटर भी डाउन कर दिया .अब तो वह करूणा से भर गया ,तब और भी ज्या दा जब उसने बतलाया -बाबूजी मुझे टट्टी जाना था .उसने कहा ,मेरे घर चले जाओ ,मैं अकेला हूँ ,चाबी मेरे पास है ."मैं तो इसी लिए रेलवे स्टेशन जा रहा था "-ज़वाब मिला .लेकिन वह स्कूटर चलाता रहा .संकोच वश रुका नहीं .मैंने कहा ठीक है भाई मैं ओर्थो- नोवा अस्पताल जा रहा हूँ .वहां तुम्हे तोइलित तक मैं ले जाउंगा ,वेस्त्रँ टट्टी है ,लौट कर आना तुम्हारा काम ,अन्दर से बंद कर लेना ।
दिल्ली की सड़कें अपनी ही तरह आवारा थीं .कौन कहाँ चल रहा है ,लें न वें न क्या होती है .यह मेट्रो के निर्माणाधीन होने से सब गुड गोबर हो रहा है .वैसे भी यहाँ लोग फुट पाथपर भी चढ़ कर अपना वाहन आगे निकाल लेने की तक में रहतें हैं .आई आई टी मोड़ से राईट को मुड़ना था .सड़कें खचाखच भरीं थी .ट्रेफिक रेंग रहा था .काफी देर के बाद सड़क ने रफ़्तार पकड़ी .साला यु -टार्न भी खासा लंबा हो चुका था .नए बने फ्लाई ओवर के नीचे से जाने लगा है .मुड़ने के बाद भी ५ -७ मिनिट और लग गए .बाएं हाथ को पार्क देख कर जहां अन्धेरा था स्कूटर वाले में जान आई ,मेरी तरफ देखते हुए प्रार्थना में बोला ,साहिब यहाँ टट्टी चला जाउंगा आप यहीं उतर जाओ .मैं तैयार था .बस सौ मीटर ही तो और आगे था ओर्थो -नोवा अस्पताल ।
जितने खुले पैसे मेरे पास थे व्ही लेकर चला गया .मुझे तो दस रूपये फ़ालतू देने थे .उसके पास छुट्टा नहीं था ।
सोचता है वह जन -सुविधाएं कहाँ हैं .पंडारा रोड पर वह भी तो पूरे दो साल रहा है .एक ही सड़क पर जन सुविधाएं हैं ज़रूर लेकिन बिल बोर्ड्स से कवर्ड हैं .पता ही कहाँ चलता है .यहाँ जन सुविधाएं भी हैं .बेहद खूबसूरत अंदाज़ में कहीं जीरो -साइज़ हीरोइने हैं कहीं बिग -बी .सब विज्यापन की माया है .टट्टियों का भी व्यवसाई -करण .यहाँ आदमी का बस चले ,दो पोस्टर अपने बाप के मुह पर भी चिपका दे सोचता हुआ वह आगे बढ़ गया .
मंगलवार, 19 जनवरी 2010
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