बात हमारे सेवा निवृत्त होने से ताल्लुक रखती है .सेवा निवृत्त होने से ठीक हफ्ता पहले हमारी प्राचार्य के पद पर हरियाणा शिक्षा सेवा से पदोन्नति का आदेश आ गया .ता उम्र व्याख्याता के बतौर हम भुगता चुके थे ,हमारी शिनाख्त भी एक टीचर के बतौर ही थी .हरयाना के अनेक महा विद्यालयों में इन चालीस -बयालीस बरसों में पढ़ाने की कवायद खूब चली .बतौर प्रति -नियुक्ति पर हम उन दिनों यूनिवर्सिटी कालिज रोहतक में कार्य रत थे .यूँ उम्र का एक लंबा हिस्सा लौट फिर कर इसी महा विद्यालय में बीता था .इस दरमियान यह राजकीय महा -विद्यालय से यूनिवर्सिटी कालिज में तब्दील हो चुका था .महारिशी दया नन्द विश्विद्यालय को यू जी सी से मान्नयता दिलवाने के लिए ऐसा किया गया था .इसलिए जब हम सेवा निवृत्त हुए ,यहाँ दो किस्म का स्टाफ था -यूनिवर्सिटी अपोइंतिद तथा सरकारी .हम सरकारी थे ।
हमारे फेयरवल की (विदाई पार्टी )की खूब चर्चा चली .गरमा गर्म बहस ने जोर पकड़ा .विश्विद्यालय द्वारा नियुक्त स्टाफ ने कहा -हम क्यों पार्टी दें ?जहां पदोन्नति पर जा रहें हैं ,वहां के लोग पार्टी दें .हमें ३१ मई २००५ में सेवा निवृत्त होना था .प्रोमोशन आर्डर २४ मई २००५ को आया ।
स्टाफ पार्टी तो क्या हमें विभागीय पार्टी भी नहीं दी गई .वहां भी तो दो तरह का स्टाफ था .मामला २०० रुपया प्रति -हेड ,प्रति व्याख्याता के योगदान का था ।
हम तो किसी से क्या शिकवा शिकायत करते ,कुछ लोगों ने बतलाया (हमारे विभाग के ही थे ये लोग ),अरे साहिब हमने तो फेयरवल अद्द्रेस भी लिख लिया था .बस पार्टी ही तो नहीं दी गई ।
प्रबुद्ध समाज में ज्यादा ज़हीन लोग होतें हैं ,एका हो तो कैसे ?क्या फर्क पड़ता है ,मामला परम्परा से चस्पां था .परम्परा होती ही टूटने के लिए है .वह नियम ही क्या जिसका अपवाद ना हो ?
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा ,व्याख्याता ,भौतिकी ,यूनिवर्सिटी कालिज रोहतक -१२४ -००१
(एच इ एस -१,सेवा निवृत्त )
०९३५०९८६६८५
गुरुवार, 7 जनवरी 2010
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