परम्परा बीटिंग रीट्रीट की अति प्राचीन है ,तब जब सूर्य के छिप जाने पर युद्ध बंदी की घोषणा बिगुल बजाकर की जाती थी .महा भारत में भी ऐसा प्रसंग आता है ।
इधर गणतंत्र दिवस समारोह की विदाई (समापन )तीन दिवसीय परेड के बाद विजय चौक ,नै दिल्ली में संपन्न होती है .,हर बरस २९ जनवरी को ,जिसमे प्रतिरक्षा सेवाओं के चुनिन्दा बेंड परम्परा गत धुनें बजा कर वातायन को गुंजा देते हैं .इस का आनंद परमानंद की स्तिथि में पहुँच जाता है ,जब एक स्वर हो सभी बेंड एक ही धुन निकाल्तें हैं ।
जैसे ही बेंड खामोश हो जातें हैं ,एकल तुरही वादक उनका स्थान ले लेता है ."सिकी ए मोल" रिवार्बरेट करने लगता है दिशान्तरों में ।
इसके बाद समवेत स्वर गूंजता है "एबाइड विथ मी "कहतें हैं यह बंदिश गांधीजी को बहुत प्रिय थी तभी से इसे बजान एकी परम्परा चली आई है ।
संध्या ठीक ६ बजे बीटिंग रीट्रीट की इत्तला बिगुल देता है ,और इसी के साथ राष्ट्रगान का स्वर गूंजता है ,तिरंगा झुका दिया जाता है और इसी केसाथ एक औपचारिक विदाई गणतंत्र समारोह की संपन्न हो जाती है ।
अचानक मूर्ती बने हुए ऊँट सवार क्षितीज से बाहर आ पृष्ठ भूमि को अलविदा कहने लगतें हैं .सजे धजे ऊंटों का काफिला एक बरस के लिए लौट जाता है ।
और इसी के साथ राष्ट्रपति भवन अपनी बगलिया इमारतों के संग रोशनियों में डूब जाता है ,रोशनियाँ जो इसी पल का इंतज़ार कर रहीं होतीं हैं .
रविवार, 24 जनवरी 2010
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1 टिप्पणी:
आप तो धुँआधार जानकारियाँ दे रहे हैं. बढ़िया. एक आग्रह है - लंबे पैराग्राफ को कृपया तोड़ कर छोटे छोटे पैराग्राफ में कर दें तो पढ़ने में आसानी रहेगी.
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