बुधवार, 30 जनवरी 2013

क्या पारखी दृष्टि पाई है आँखों में इंच टेप लिए फिरते हैं आप या सी टी स्केन ?


डर लगता सौन्दर्य से, वाह वाह रे मर्द |


हुआ नपुंसक आदमी, गर्मी में भी सर्द |

गर्मी में भी सर्द , दर्द करती है देंही |

करे बयानी फर्द, बना फिर रहा सनेही |

रविकर यह सौन्दर्य, बनाता दुनिया सुन्दर |

पूजो तुम पूर्वज, बनो लेकिन मत बन्दर ||



एक सहज परिवर्तन है सलमान या कोई भी और खान सिक्स पेक एब्स 

दिखाए या शर्ट उतारे यह उसका निजी मामला है .शरीर सौश्ठव के 

अपने प्रतिमान है .औरत का भी यही निजी 


मामला है वह कितनी स्किन खुली या बंद रखे .

क्या महिलायों को पुरुष के सामने चारे की भाँति परोसा जा रहा है( या वे स्वयं, स्वयं को परोसना चाहती 

हैं ) और पुरुष को महिलाओं की नज़रों 

से छिपाकर रखना इसका उद्देश्य है.....ताकि महिलायें बिगड़ें नहीं |"-डॉ श्याम गुप्ता 

आखिर मर्द इवोल्व क्यों नहीं कर रहा है ?सबका अपना आत्म विश्वास  और खुद पे भरोसा अलग अलग है 

.कौन सी सदी की बात कर रहें हैं आप ?

अपना नजरिया दुरुस्त क्यों नहीं करते ऐसे मर्द जिन्हें यथा -स्थिति से प्यार है ?

गनीमत है आपने लिबास को बलात्कार से नहीं जोड़ा .खूब सूरत बदन से आप इतना आतंकित क्यों  रहते 

हैं ?खूब सूरती समाज के लिए ही है 

.ईश्वर की इनायत है .वह तो सारे  माहौल को सुन्दर बना रही है सिर्फ अपने होने से ,जिसे आप रूप गर्विता समझ रहे  हैं .

सजना धजना भी .पुरुष भी सज धज करता है महिला भी .यह होता आया है सौन्दर्य की कोई शाश्वत 

परिभाषा नहीं है न शरीर सौष्ठव के 

निर्धारित प्रतिमान हैं .बदलते रहें हैं बदलेंगे .

अब एक ख़ास BMI से कम बॉडी मॉस इंडेक्स वाली युवतियां सौन्दर्य प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकती .

क्या स्वयम्वर में पुरुषं की नुमाइश होती थी जो पूरी सज धज के साथ उतरते  थे अखाड़े में ?

गले के नीचे नहीं उतरती आपकी प्रस्तावना .

चटकारे लेके ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर ......नख शिख वर्रण करने मेंआप "बिहारी "बन गए हैं .क्या 

पारखी दृष्टि पाई है आँखों में इंच टेप 

लिए फिरते हैं आप  या सी टी स्केन ?

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

मंगलवार, 29 जनवरी 2013


किस्सा ड्रेस-कोड का . ..तब और अब ......



                                      ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...


                        यूं तो बहुत पहले से ही आधुनिका नारियां, नारी –स्वतन्त्रता का अर्थ -- मनमानी ड्रेस पहनना व अपनी इच्छानुसार  कहीं भी ,कभी भी घूमने फिरने की स्वतंत्र जीवन-चर्या को कहती रही हैं  | परन्तु अभी हाल में ही ‘निर्भया’ बलात्कार काण्ड के पश्चात जहाँ देखें,जिसे देखें.. अपनी-अपनी कहता\कहती –चिल्लाता/चिल्लाती  घूम रहा है, पुरुषों पर कठोर बंधन, आचरण, पुरुषवादी सोच, घिनौने विचार, समाज की रूढ़ियाँ –संस्कृति  आदि को गरियाना...पुराण-पंथी बताना जोर-शोर से चल रहा है | यद्यपि कहीं कहीं , किसी-किसी कोने से कुछ विपरीत विचार भी आजाते हैं परन्तु वे ‘नक्कारखाने में तूती की आवाज़’ की भांति रह जाते हैं|  तमाम विचार, टीवी शो, वार्ताएं, ब्लाग्स, आलेख ,महिला-कार्यकर्ताओं, महिला संगठनों , युवा संगठनों,  महिलाओं के लिए महिलाओं-पुरुषों द्वारा गठित एनजीओ  आदि के विचार ,देखने पढ़ने सुनने  के पश्चात मेरे मन में भी कुछ विचार उठे ,( हो सकता है किसी आलेख आदि पढ़कर आये हों ) -----

1-पहले... गाँव के स्कूल में लड़कियां साड़ी-कमीज़  व लडके पायजामा-कमीज़  या नेकर-कमीज़  पहन कर जाया करते थे ....शहरों के स्कूलों –कालेजों में  लड़के पेंट और कमीज पहनते थे और लडकिया सलवार- कमीज और दुपट्टा पहनती थीं....
---------- लड़के तो अभी भी पेंट और कमीज पहनते हैं पर लडकियाँ ...स्कर्ट-टॉप  पहन कर स्कूल जाती हैं...जो कि समय के साथ-साथ हर ओर से छोटी होती जा रही है...

2.पहले... विविध पार्टियों अदि में  ..पुरुष ...पेंट, कमीज और कोट पहन कर जाते थे और महिलायें साड़ी के साथ पूरी बांह का ब्लाउज और ऊपर से कार्डिगन-शाल आदि या शलवार-सूट-दुपट्टा  पहन कर जाती थीं.....
--------पुरुष  की ड्रेस तो आज भी वही है....पर महिलाओं  की ड्रेस में साडी और ब्लाउज के बीच दिन प्रतिदिन दूरी बढ़ती जा रही है....साडी ऊपर से  नीचे जा रही है और ब्लाउज नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे आ रहा है, पीठ पर से कपड़ा बचाया जा रहा है और नयी अधुनिकाएं तो जींस-नाभि दर्शना टॉप या छोटी होती हुई स्कर्ट-टॉप में  जैसे-- कि औरतें तन ढकने के लिए नहीं बल्कि तन-बदन  दिखाने के लिए कपडे पहनती हों .....??

३-.पहले ...दफ्तर में  पुरुष कर्मचारी  की ड्रेस पेंट कमीज और कोट होती थी और महिला-कर्मचारियों  की साडी- ब्लाउज या फिर सलवार-कमीज कार्डिगन के साथ होती थी....
---------पुरुषों की तो ड्रेस अब भी  वही है पर महिलाओं की ड्रेस में एक पीस के कपडे आ गए हैं जो कि वक्षस्थल से लेकर कमर तक  नितम्बों से कुछ नीचे तक ही पहने  जाते हैं....या फिर स्कर्ट और टॉप जो कि क्रमश  छोटे होते जा रहे हैं....

परंपरागत साड़ियाँ











 


                   पुरुष  की शर्ट की कालर आज भी ऊपर से ही शुरू होती है...और बाहें....वहीँ  तक हैं ( कुछ अमरीकी-परस्त  युवा व प्रौढ़ भी बरमूडा-कीमती बनियान  पहन कर भी घूमने लगे हैं ताकि कहीं वे कम कपडे पहनने की आधुनिकता में लड़कियों से पीछे न  रह जायं )....जबकि स्त्रियों  की ड्रेस  ऊपर से नीचे आती जा रही है...और नीचे से ऊपर जाती जा रही है.....और ब्लाउज स्लीव लेस से गुजर कर और भी ज्यादा डीप कट, लो-कट,  ब्रेस्ट-दर्शना, ब्रा-दर्शना ,  बेकलेस ..  बनने लगे हैं...ताकि आगे –पीछे नंगा बदन -नंगी पीठ अधिकाधिक दिखाए दे  पहले महिला  की ब्रा दिखाई देना एक बहुत बड़ी  व अशोभनीय बात मानी जाती थी और अब एक फेशन  बनगयी है |




--------यक्ष-प्रश्न यह है कि  युगों-सदियों से जिस भारत जैसे देश में शर्म औरत का गहना कहा जाता था...महिलायों –लड़कियों का शरीर दिखाना उचित नहीं माना जाता था, असभ्यता, अशालीनता, अशोभनीय  माना जाता था ... उस देश में ऐसा क्या हुआ कि औरत फैशन के नाम पर दिन पर दिन नंगी होती जा रही है,  और पुरुष के विभिन्न फैशन के कपडे भी पूरे शरीर को ढंकने वाले होते हैं|..क्यों.... क्या इसके कुछ लाभ भी हैं जो मैं नहीं समझ पा रहा हूँ .........??
                       क्या महिलायों को पुरुष के सामने चारे की भाँति परोसा जा रहा है( या वे स्वयं, स्वयं को परोसना चाहती हैं ) और पुरुष को महिलाओं की नज़रों से छिपाकर रखना इसका उद्देश्य है.....ताकि महिलायें बिगड़ें नहीं |

                                     ---- सभी चित्र गूगल साभार ....
कृपया यहाँ भी पधारें :

आभार .

बुधवार, 30 जनवरी 2013


ये आलम है दु-भाँत का


http://veerubhai1947.blogspot.in/

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अच्छा तर्क और विश्लेषण

रविकर ने कहा…

डर लगता सौन्दर्य से, वाह वाह रे मर्द |
हुआ नपुंसक आदमी, गर्मी में भी सर्द |
गर्मी में भी सर्द , दर्द करती है देंही |
करे बयानी फर्द, बना फिर रहा सनेही |
रविकर यह सौन्दर्य, बनाता दुनिया सुन्दर |
पूजो तुम पूर्वज, बनो लेकिन मत बन्दर ||

Unknown ने कहा…

तर्क के मज़बूत हथौड़े से किया गया
ज़ोरदार प्रहार ,बात परोसने की नहीं है,
बात मर्यादा से जुडी है ,महिला कोइ
बस्तु नहीं है जिसको परोसने की बात
की जाय.सबका अपना आत्म विश्वास और खुद पे भरोसा अलग अलग है
यथास्थिति परकबाद एक घातक
हथियार है ,

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

बहुत सही वाह!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

मानव शरीर की रचना पशुओं से इतर है। वे चार पैर पर चलते हैं और मनुष्‍य दो पैर पर। इसलिए ही मनुष्‍य को वस्‍त्र की आवश्‍यकता हुई। मनुष्‍यों और पशुओं में एक और अन्‍तर है वह है समाज का। हम समाज से प्रतिबंधित हैं। हम किसी के साथ भी शारीरिक रिश्‍ता नहीं बना सकते, इसे गैर कानूनी कहा जाता है। यदि आप किसी महिला के वस्‍त्र देखकर उसके प्रति उन्‍मादी हो रहे हैं तब भी आप कानून से बंधे हैं। यदि आपने कानून तोड़ा तो आप अपराधी हैं। सभ्‍य समाज में उन्‍मादी व्‍यक्तियों को बांधकर रखा जाता है, खुला नहीं छोड़ा जाता है। महिलाओं के वस्‍त्रों की टीका-टिप्‍पणी का अधिकार तभी मिलेगा जब आप पुरुषों के चरित्र पर भी अंगुली उठाएंगे। एक प्रश्‍न पूछना चाहती हूँ कि आज पुरुष स्‍त्रैण क्‍यों दिखना चाह रहा है? सलमान से लेकर अधिकांश एक्‍टर अपने सीने के बाल क्‍यों वेक्‍सीन कराते हैं? इस घृणित कर्म पर क्‍या कभी किसी ने चर्चा की है?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

आकर्षण सब में हैं और सब आकर्षित भी होते हैं, पर कब वह वीभत्स होने लगता है, पता ही नहीं चलता है।