गुरुवार, 3 जनवरी 2013

नेता ,अभिनेता ,राजनीतिक सभी की जुबां पे एक लव्ज़ है केमिकल कास्टरेशन .


 वन्ध्याकरण नहीं है केमिकल कास्ट्रएशन 


 पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक कहावत है :पादनी बोले  तो बोले इनटोरा भी बोले ,

मतलब यह कि बात किसी विशेषज्ञ के मुंह से निकले तो अच्छी लगती है उसका वजन भी होता है .लेकिन 

जब कोई भी ऐरा गैरा नथ्थू खैरा भी बोले बिना उसका मतलब समझे तो वह नादानी ही नहीं करता हास्य 

और उपहास का पात्र भी बनता है .

हवा में वक्त बे -वक्त कुछ शब्द लटके रहतें हैं .हम लोग उन्हें लपक के पकड़ लेते हैं .इन दिनों ऐसा ही एक 

बज वर्ड है :केमिकल कास्ट्रएशन बोले तो रासायनिक बधियाकरण .जिसे देखो इसी की बात कर रहा है बिना 

इसका मतलब जाने .नेता ,अभिनेता ,राजनीतिक सभी  की जुबां पे एक लव्ज़ है केमिकल कास्टरेशन .

क्या यह वाकई कारगर उपाय है ?प्रभावी है या निष्प्रभावी ही सिद्ध नहीं होगा  इस पर अम्ल करवाना 

करवाते 

रहना भी मुश्किल ही होगा  ?

इस प्रोसीज़र (प्राविधि )के तहत चंद हारमोनों को बलात्कारी ,बालयौन प्रेमी ,सीरियल सेक्स  अपराधी को 

हर माह सुइयों के ज़रिये दिया जाता है .

स्त्री हारमोन  की सुइयां लगाईं जातीं हैं अपराधी को गर्भ निरोधी टिकिया जैसे असर वाली .एंटीएंड्रोजन 

ड्रग्स कहते हैं इन्हें .यह पुरुष हारमोन टेस्टइस्टेरान के बनने को मुल्तवी करवा देतीं हैं .

अमूमन प्रोस्टेट कैंसर के मरीजों को दी जाती हैं यह दवाएं एक ख़ास अवधि के बाद बार बार .इसी पुरुष 

हारमोन की अतिरिक्त वृद्धि पौरुष ग्रंथि कैंसर समूह रोग (प्रोस्टेटिक कैंसर )की वजह बनती है . 

लेकिन इसकी सुइयां हर माह लगवानी पड़ती हैं .तीन माह में अपना असर बिलकुल खो देतीं हैं .

ऐसे ही यौन अपराधी की  यौन इच्छा तभी तक मरी रहेगी जब तक इस सुइ का असर रहेगा .असर खत्म 

होने पर हर माह सुइयां न लगने पर यौन इच्छा फिर लौट आयेगी .

अमरीका ,इंग्लेंड ,इस्रायल .पोलेंड समेत अनेक विकसित देशों में इसे दुर्धर्ष यौन अपराधियों के खिलाफ 

आजमाया गया है .लेकिन वांछित सफलता हाथ नहीं आई है .

अपराधी का मन और प्रभुत्व औरत जात पर वही  बना रहता है .

असल बात है उसका चित्त .वह नहीं बदलता है और भी विकृत हो जाता है .व्यवहार गत  विचित्रताएं भी घर 

बना सकतीं हैं .अस्थि क्षय ,अस्थि घनत्व ह्रास ,पेशीय द्रव्यमान (मसल मॉस )का छीजना ,दिल की 

बीमारियों के खतरे का वजन बढ़ना ,व्यवहार गत बदलाव इसके अन्य पार्श्व प्रभाव हैं .उपाय यह न सिर्फ 

मंहगा है इस पर अमल करा पाना भी आसान नहीं है .

हमारा मानना है यह राष्ट्र की घनीभूत हो  चुकी समेकित केंद्रीकृत चेतना को बिखेरने की साजिश है .मुद्दे से 

ध्यान हटाना है संगठित हो चुकी युवा शक्ति का .

कोई कुछ बोल रहा है कोई कुछ .इकोनोमी क्लास में हवाई सफर करने वालों को कैटिल क्लास कहने वाले 

थरूर साहब ने फिर मुंह खोला है .बकौल उनके 'निर्भय' का नाम राष्ट्र के सामने लाया जाए .प्रस्तावित नए  

क़ानून का नाम निर्भय के नाम पर रखा जाए .कल को कोई संविधानिक संस्था इसमें भी पेंच निकाल देगी 

.क़ानून का नाम व्यक्ति के नाम पे नहीं हो सकता कहेगी .

केंद्र सरकार ने राज्यों को पत्र लिखा है जस्टिस वर्मा को इस बाबत ,बलात्कार सम्बन्धी सजा के बारे में 

अपने सुझाव भेजें .

इसमें से भी यह वोट जुगाडू सरकार कोई रास्ता वोट पक्का करने का निकाल लेगी .

क़ानून कम नहीं है .असल बात यह है वह लागू ही नहीं होते .उनमें सेंध लगाके लोग विकलांगों की बैसाखी

तक खा जाते हैं .

तुरत फुरत उनका निपटारा ही नहीं होता .ऍफ़ आई आर तक तो लिखी नहीं जाती .बातें बड़ी बड़ी करते हैं

.नाम बड़े और दर्शन थोड़े .

सर्जिकल कास्टरेशन कर नहीं सकते ,अपराधी के एंड कोष निकाल नहीं सकते ,रासायनिक तौर पर उसे

बधिया बनायेंगे ?

बलात्कारी ज़ारी हैं .द्रुत न्यायालय बनाये जायेंगे .ये होगा वह होगा तब तक रोज़ पहली खबर अखबार के

माथे पे चढ़के बलात्कार ही होगी .

कैसा कानून है यह ?कैसे इसे लागू करने वाले हैं ?कानून निर्माता ही एक साथ कितनी जुबां में बोल रहें हैं

सज़ा -ए -मौत से रासायनिक बधियाकरण तक  सुझाव बिन मांगे चले आ रहें हैं .प्रायोजित तो नहीं यह सब

नौटंकी ?यह

टालू रवैया तो नहीं है कहीं ?

इन दिनों बज वर्ड है :रासायनिक बधियाकरण

वन्ध्याकरण नहीं है केमिकल कास्ट्रएशन



What is chemical castration? Will it STOP rape?


The Congress plan to include chemical castration as a punishment for rapists and sexual offenders has found support with legal experts and the police who feel that this form of punishment would remind the accused person of his crime all through his life.

Unlike common belief, chemical castration is not a surgical procedure in which the testicles are removed. It is basically a procedure in which an anti-androgen or a birth control drug is administered to a person. 

The drugs most commonly used across the world are cyproterone acetate or depo provera. 

Dr Sudheer Kulkarni from Bengaluru told rediff.com that this treatment does not castrate a person, but the administration of these drugs reduces the libido and also the sexual urge of the person. 

However, it must also be noted that the administration of these drugs is not a one-time solution and case studies have shown that the effect wears out in three months and hence needs to be re-administered time to time. 


In the case of a rape convict, it becomes the responsibility of the State to ensure that the drug is administered every three months once the effect wears out.
The side effects of the drugs are not life-threatening in nature. In some cases, it has shown that chemical castration increases the body fat and mammary glands. Men may also experience gynecomastia, which is a feminising effect.

Legal experts say that the idea of chemical castration is to ensure that the convict lives the rest of his life with the thought of what he has done.

Medical science has shown that a person administered with this drug can grow very frustrated and in some cases it has proven to be more fatal than a life or death sentence.

It has been used in cases across the world where there has been a threat of a re-offence. Those who have undergone chemical castration have never shown any signs of committing the offence once again.

While it was first used as a punishment in California in the year 1996 for child molestation cases, it was quickly followed up by other American states like Florida, Georgia, Iowa, Louisiana, Montana, Oregon, Texas and Wisconsin.

However, in all these places it has been mandatory to chemically castrate a person in case of a second offence. First-time offenders are given a chance for rehabilitation.
In the United Kingdom, the last case of chemical castration was reported in 2010. It was administered on a 60-year-old man who was accused of raping his grand daughters. In this case, however, he voluntarily chose to undergo the treatment.
In Poland, a legislation to make chemical castration mandatory was passed in 2009 for persons found to be guilty of committing a sexual offence on a girl below the age of 15.
Other countries that have legalised chemical castration on sexual offenders are Isreael, Argentina, South Korea and Russia.

In India, there has been an outcry to impose a death penalty for those committing rape. Lawmakers would find it impossible to amend Section 376, which gives a provision to sentence a person to life imprisonment and also include a death penalty clause.

There are numerous judgments which indicate that death penalty is not a commodity available in the market and there has to be caution while imposing such a sentence.

C V Nagesh, senior advocate, says that this issue needs to be debated and if at all chemical castration is introduced as a punishment under Section 376, then it ought to be added to the existing punishment.
To hand over life sentence under rape the circumstance and the gravity of the offence would be taken into consideration.

In some cases there are sentences of five to seven years, which are handed over while in brutal cases the sentence is for life. The law makers have to add chemical castration to the existing punishments available under Section 376.

However, the issue needs a thorough debate and like the rest of the countries should be mandatory only to offenders who show no signs of reform, Nagesh adds.


6 टिप्‍पणियां:

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सरकार के सभी एक्शन टालु टाइप लगता है.. जो भी कानुन बनाते हैं उसमे कुछ खामियां जरुर रखते हैं .क्यों यह सब जानते हैं.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

क़ानून में खामियां नहीं होंगी तो अपनों का बचाव कैसे होगा ...

shalini rastogi ने कहा…

वीरेंद्र जी , आपने एक ऐसी जानकारी उपलब्ध करवाई है जिसके विषय में हम अनजान थे ... वास्तव में रासायनिक बधियाकर्ण की बात करने वाले इसके साइड इफेक्ट्स के वारे में सोच ही नहीं रहे हैं ..

रविकर ने कहा…

केमिकल बधियाकरण की, चल निकली जब बात |
ऐरा-गैरा लपकता, नत्थू खैरा जात |
नत्थू खैरा जात, लपक नेता अभिनेता |
मतलब समझे बिना, व्यू अपना है देता |
सुइयां दे हर माह, बनाना पड़े नपुंसक |
पेचीदगियां अपार, बात मत कर रे अहमक ||

डॉ टी एस दराल ने कहा…

आज ही इसी विषय पर लिखने का मन था। यह अंग्रेजों की चोचलेबाजी है। पता नहीं मानव अधिकारों वाले कैसे चुप हैं। इन अपराधियों को जब तक फांसी नहीं होगी , तब तक लोगों का दुस्साहस कम नहीं होगा।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पता नहीं क्या सोचा है कर्णधारों ने?