बुधवार, 9 जनवरी 2013

आधा सच है दोनों ओर .

आधा सच है दोनों ओर 

  शालिनी जी कौशिक ,आशा राम बापू जी हों  ,या मोहन भागवत जी ,इसी विचार धारा के अन्य लोग हों  जो कुछ भी  ये सब  लोग कह 

रहें हैं 

उसके 

निहितार्थ को समझना होगा :

भारत की त्रासदी है यह ,या परम्परा फैसला आप खुद करें, हम निर्णायक की भूमिका में नहीं आ सकते ,औरत को सम्बन्ध  के  सीखचों में 

आबद्ध करके ही देखा जाता है .उसे आदर देने के योग्य इसी 

सम्बन्ध नेट वर्क में देखा जाता है .इससे इतर जब उसकी शख्शियत की बात आती है ,हम बगलें झाँकने लगते हैं या फिर पश्चिम की ओर 

निहारते हैं .जहां औरत के अलंघ्य अधिकार भी हैं 

शख्शियत 

भी है ,सम्बन्ध सापेक्ष .भारत की त्रासदी यह है भारत ने जो कुछ पश्चिम की इस निरपेक्ष शख्शियत के नाम पर विकृत चैनल शैली

 में 

,इंटरनेट पे परोसे  जाते देखा   है उसे ही सच मान लिया है औरत के चुनिन्दा अंगों को ही हमने औरत मान समझ लिया है ,जब कि  

वह 

विकृति है व्यक्ति विशेष की .पश्चिम की अधिकार प्राप्त शख्शियत नहीं है वह .जैसा चैनलों और फिल्मों, नेट की कई वेब साइटों पर 

दिखाया जा रहा है .विज्ञापन के रुपहले संसार में दिखाया जा रहा है .(हाँ  विज्ञापन और मोडलिंग उसका पेशा भी है ).हम औरत के अंगों 

को ही क्यों देखते हैं ?वह तो उसके अंग है वह औरत नहीं है .

उसकी भी एक शख्शियत है  एनाटमी से परे .है देहयष्टि और सम्बन्ध से परे .यही है औरत .



औरत मन बहलाव का ज़रिया नहीं है .वह सम्बन्ध से निरपेक्ष एक शख्शियत के रूप में भी है और बाकायदा है .मोहन भागवत जी हों या 

आशाराम बापू वह इस फर्क को समझ नहीं पा रहें हैं .परम्परा 

के 

चश्मे से आधुनिक औरत को  देख रहें हैं .यह एक अ -यौनिक चश्मा है ,अ -सेक्स्युअल आदर भाव है औरत के प्रति ,दूसरे  छोर पर 

पश्चिम 

की आड़ में विकृत चीज़ें परोसी जा रहीं है वह दूसरा छोर है 

जहां औरत को एक अम्यूजमेंट पार्क समझा जाता है .खिलवाड़ की भोग की वस्तु  समझा जाता है .जबकि सुनीता विलियम्स भी वही  है 

,कैट वाल्क भी वही  करती है .मोहिनी भी 

वही  है आइटम सोंग करने वाली भी वही  है .हवाई जहाज भी वही  उड़ाती  है कई मर्तबा पूरा क्रू  किसी किसी फ्लाईट का सिर्फ महिलाओं

का 

ही होता है . 

एक आयामीय नहीं है नारी 

विविध 

रूपा, विविध आयामीय है .

शालिनी जी आधा सच है दोनों ओर ..भारत सम्बन्ध निरपेक्ष आधुनिक महिला को बहन बेटी माँ के दायरे से बाहर देख समझ नहीं पा रहा

है .उसके लिए या तो वह सम्बन्ध आबद्ध है या फिर शुद्ध देह ,एक जिन्स .त्रासदी गहरी है .

एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :

बुधवार, 9 जनवरी 2013


मोहन -मो/संस्कार -सौदा /.क्या एक कहे जा सकते हैं भागवत जी?


    Marriage is a social contract : mohan bhagwat
इंदौर [जागरण न्यूज नेटवर्क]। हाल ही में दुष्कर्म की घटनाओं पर विवादास्पद बयान देकर आलोचना का शिकार हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने एक और विवादित बयान दिया है। इस बार उन्होंने कहा कि शादी एक कान्ट्रैक्ट यानी सौदा है और इस सौदे के तहत एक महिला पति की देखभाल के लिए बंधी है। उनके इस बयान पर भी लोगों की तीखी प्रक्रिया सामने आई है।
भागवत ने इंदौर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रैली के दौरान कहा, 'वैवाहिक संस्कार के तहत महिला और पुरुष एक सौदे से बंधे हैं, जिसके तहत पुरुष कहता है कि तुम्हें मेरे घर की देखभाल करनी चाहिए और तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखूंगा। इसलिए जब तक महिला इस कान्ट्रैक्ट को निभाती है, पुरुष को भी निभाना चाहिए। जब वह इसका उल्लंघन करे तो पुरुष उसे बेदखल कर सकता है। यदि पुरुष इस सौदे का उल्लंघन करता है तो महिला को भी इसे तोड़ देना चाहिए। सब कुछ कान्ट्रैक्ट पर आधारित है।'
भागवत के मुताबिक, सफल वैवाहिक जीवन के लिए महिला का पत्नी बनकर घर पर रहना और पुरुष का उपार्जन के लिए बाहर निकलने के नियम का पालन किया जाना चाहिए। महिला और पुरुष में एक दूसरे का ख्याल रखने का कांट्रैक्ट होता है। अगर महिला इसका उल्लंघन करती है तो उसे बाहर का रास्ता दिखाया जाना चाहिए।''

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@मोहन भागवत जी-अब और बंटवारा नहीं .

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Hindu_wedding : Happy indian adult people couple
ये है भारतीय विवाह का सुखद स्वरुप 

                     शालिनी कौशिक 
                        ^ कौशल *
                      

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