यह तुम्हारी मानसिकता का , घटित परिणाम ,
बटा जो देश भारत ,तो बना पाकिस्तान ,
उसी के वास्ते ,शहतीर घर का हो गिराते ,तुम ,
अब भी बाकी है कसर, हो तुम गजब ,मक्कार ,
धन्य थे !पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार
मित्रवर वागीश मेहता की ये पंक्तियाँ श्रीमान दिग्विजय सिंह पर पूरी तरह घटित हो रहीं हैं .ज़नाब
दिग्विजय सिंह को ऐसा पड़ोसी चाहिए जो छल बल से कोहरे का फायदा उठाके बिना बताए हमला करे और
आपका सिर काटके ले जाए .जबकि युद्ध के नियम होते हैं .और यदि आप पाकिस्तान को अब भी अपना
मित्र मानते हैं तो क्यों तैनात कर रखी है सीमा पर सेना .हटा लो सेना हो जाने दो एक बार फिर दिल्ली पे
कब्जा .
कांग्रेस के बारे में एक चुटकुला प्रचलित है इसका सदस्य बनने से पहले दिमाग गिरवीं रखना पड़ता है
.कांग्रेस में आज ऐसे ही लोगों का डेरा है जो इस कथन की सत्यता को प्रमाणित करते हैं .
एक दिग्विजय ढूंढोगे सौ मिलेंगे .
फिर भी इनके नेता दिग्विजय ही रहेंगे .क्यों नहीं वह अपना नाम बदलके जयचंद रख लेते ?उन्हें पड़ोस में
दुश्मन नहीं पाकिस्तान जैसा दोस्त चाहिए .वह खुलकर पूछते हैं :आपको पड़ोस में दोस्त चाहिए या दुश्मन .
सुषमा स्वराज के वक्तव्य पर उन्हें एतराज है .वह यह नहीं समझ पा रहें हैं छल बल से एक फौजी का सिर
ही नहीं तराशा गया है भारत के स्वाभिमान को चुनौती दी है ,औकात बताई है भारत की हम तुम्हें कुछ नहीं
समझते .
इजरायल का एक आदमी मरता है वह आगे बढ़के दुश्मन के चार मारता है .अमरीका तो दुश्मन को उसके
घर में उसकी सुरक्षित खोह में जाके मारता है हम दिग्विजय जैसों से वक्तव्य ज़ारी करवाते हैं .हमें वक्तव्य
नहीं चार सिर चाहिए .
बटा जो देश भारत ,तो बना पाकिस्तान ,
उसी के वास्ते ,शहतीर घर का हो गिराते ,तुम ,
अब भी बाकी है कसर, हो तुम गजब ,मक्कार ,
धन्य थे !पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार
मित्रवर वागीश मेहता की ये पंक्तियाँ श्रीमान दिग्विजय सिंह पर पूरी तरह घटित हो रहीं हैं .ज़नाब
दिग्विजय सिंह को ऐसा पड़ोसी चाहिए जो छल बल से कोहरे का फायदा उठाके बिना बताए हमला करे और
आपका सिर काटके ले जाए .जबकि युद्ध के नियम होते हैं .और यदि आप पाकिस्तान को अब भी अपना
मित्र मानते हैं तो क्यों तैनात कर रखी है सीमा पर सेना .हटा लो सेना हो जाने दो एक बार फिर दिल्ली पे
कब्जा .
कांग्रेस के बारे में एक चुटकुला प्रचलित है इसका सदस्य बनने से पहले दिमाग गिरवीं रखना पड़ता है
.कांग्रेस में आज ऐसे ही लोगों का डेरा है जो इस कथन की सत्यता को प्रमाणित करते हैं .
एक दिग्विजय ढूंढोगे सौ मिलेंगे .
फिर भी इनके नेता दिग्विजय ही रहेंगे .क्यों नहीं वह अपना नाम बदलके जयचंद रख लेते ?उन्हें पड़ोस में
दुश्मन नहीं पाकिस्तान जैसा दोस्त चाहिए .वह खुलकर पूछते हैं :आपको पड़ोस में दोस्त चाहिए या दुश्मन .
सुषमा स्वराज के वक्तव्य पर उन्हें एतराज है .वह यह नहीं समझ पा रहें हैं छल बल से एक फौजी का सिर
ही नहीं तराशा गया है भारत के स्वाभिमान को चुनौती दी है ,औकात बताई है भारत की हम तुम्हें कुछ नहीं
समझते .
इजरायल का एक आदमी मरता है वह आगे बढ़के दुश्मन के चार मारता है .अमरीका तो दुश्मन को उसके
घर में उसकी सुरक्षित खोह में जाके मारता है हम दिग्विजय जैसों से वक्तव्य ज़ारी करवाते हैं .हमें वक्तव्य
नहीं चार सिर चाहिए .
6 टिप्पणियां:
जयचंद तो शुरू से रहे हैं देश में ...
अमर सिंह राठौर का, मिले शर्तिया शीश |
सुनो भतीजे रामसिंह, चाची को है रीस |
चाची को है रीस, बिना सिर की यह काया |
जाने पापी कौन, आज हमको बहकाया |
जो भी जिम्मेदार, काट उसका सिर लाओ |
नहीं मिले *मकु ठौर, नहीं राठौर कहाओ ||
*कदाचित
आपकी बात से पूरे तरह सहमत वीरेन्द्र जी, मगर अफ़सोस की इस देश पर 60 सालों तक राज करने वाले नेहरू खानदान ने शुरू से ही इस मुद्दे पर गलत रुख अख्तियार किये रखा सिर्फ और सिर्फ अपने फायदे के लिए!
सूख जाएंगे परिजनों के अश्क
शहादत पे नमन करते - करते
कोई तो इसका मोल जानो,
कोई तो ऐसी पहल करो जिससे
न शहादत भी ये शर्मिन्दा हो !!!
सारे हल इन दिनों
तिलमिलाहट की भाषा में बात करते हैं !!
जयचंदों की कमी नहीं है देश में !
देश में गद्दारों की कमी नही है,पाकिस्तान को शह देने वाले हमारे ही बीच में है।
एक टिप्पणी भेजें