चिंतन शिविर का ढोंग (पहली क़िस्त )
इस देश को आज़ादी दिलाने का दावा जो कांग्रेस करती आई है वह अंशतया
सही है ,सम्पूर्ण सच नहीं है .सम्पूर्ण सच तो यह है कि दूसरे विश्वयुद्ध के
बाद इंग्लैण्ड की स्थिति इतनी ज़र्ज़र हो गई थी कि वह भारत जैसे विशाल
देश को अपने पंजे में दबाए रखने की शक्ति खो चुका था .रही सही कसर
1946 के नौसैनिक विद्रोह ने पूरी कर दी थी .
देश के असंख्य क्रांतिकारियों के बलिदानों और महात्मा गांधी की अहिंसक
क्रान्ति ने मिलकर अंग्रेजी शासकों की नींद हराम कर दी थी .वीरसावरकर
,सुभाषचन्द्र बोष जैसे क्रांतिकारी कर्मशीलों और संगठित सैनिक शक्ति के
रूप में उभरी आज़ाद हिन्द फौज की दृढ़ता ने विदेशी शासकों की जड़ों में
मठ्ठा डाल दिया था .गांधीजी तो कांग्रेस के चवन्निया सदस्य भी नहीं थे
इसलिए उनकी नैतिक शक्ति को अपनी कायर नीतियों से जोड़ना कांग्रेस
की बे -शर्मी है .गांधी जी के आगमन से पहले तक यानी 1920 के आसपास
तक कांग्रेसी नेताओं ने अंग्रेजी सरकार की चापलूसी के वक्तव्य देने और
कहीं कहीं समझौते की मुद्रा अपनाने के सिवाय कुछ उल्लेखनीय नहीं
किया था .इसलिए इतिहास का वास्तविक सच तो यही है कि भारत की
आज़ादी की
लड़ाई में कांग्रेस की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है .1920 से सन 1947
तक कांग्रेस की एक मात्र उपलब्धि यही है कि धर्म के आधार इस देश को
बंटवाने का निंदनीय और अधूरा कार्य कांग्रेस के नेताओं ने किया .अगर
इस पर भी कांग्रेस गर्वित होती है तो शर्मशार कब होगी ,जब एक
पाकिस्तान और बनवा देगी? जयपुर चिंतन शिविर में इन्हीं दो मुद्दों पर
चिंतन होना चाहिए था .पर चापलूस तालियों के बीच राहुल गांधी की पीठ
पर उपाध्यक्ष की मोहर लगा देने से क्या मिल गया ?सच्चे कांग्रेसियों को
इस पर अपने शुद्ध अंत :करण से विचार करना चाहिए .
(ज़ारी )
इस देश को आज़ादी दिलाने का दावा जो कांग्रेस करती आई है वह अंशतया
सही है ,सम्पूर्ण सच नहीं है .सम्पूर्ण सच तो यह है कि दूसरे विश्वयुद्ध के
बाद इंग्लैण्ड की स्थिति इतनी ज़र्ज़र हो गई थी कि वह भारत जैसे विशाल
देश को अपने पंजे में दबाए रखने की शक्ति खो चुका था .रही सही कसर
1946 के नौसैनिक विद्रोह ने पूरी कर दी थी .
देश के असंख्य क्रांतिकारियों के बलिदानों और महात्मा गांधी की अहिंसक
क्रान्ति ने मिलकर अंग्रेजी शासकों की नींद हराम कर दी थी .वीरसावरकर
,सुभाषचन्द्र बोष जैसे क्रांतिकारी कर्मशीलों और संगठित सैनिक शक्ति के
रूप में उभरी आज़ाद हिन्द फौज की दृढ़ता ने विदेशी शासकों की जड़ों में
मठ्ठा डाल दिया था .गांधीजी तो कांग्रेस के चवन्निया सदस्य भी नहीं थे
इसलिए उनकी नैतिक शक्ति को अपनी कायर नीतियों से जोड़ना कांग्रेस
की बे -शर्मी है .गांधी जी के आगमन से पहले तक यानी 1920 के आसपास
तक कांग्रेसी नेताओं ने अंग्रेजी सरकार की चापलूसी के वक्तव्य देने और
कहीं कहीं समझौते की मुद्रा अपनाने के सिवाय कुछ उल्लेखनीय नहीं
किया था .इसलिए इतिहास का वास्तविक सच तो यही है कि भारत की
आज़ादी की
लड़ाई में कांग्रेस की कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं है .1920 से सन 1947
तक कांग्रेस की एक मात्र उपलब्धि यही है कि धर्म के आधार इस देश को
बंटवाने का निंदनीय और अधूरा कार्य कांग्रेस के नेताओं ने किया .अगर
इस पर भी कांग्रेस गर्वित होती है तो शर्मशार कब होगी ,जब एक
पाकिस्तान और बनवा देगी? जयपुर चिंतन शिविर में इन्हीं दो मुद्दों पर
चिंतन होना चाहिए था .पर चापलूस तालियों के बीच राहुल गांधी की पीठ
पर उपाध्यक्ष की मोहर लगा देने से क्या मिल गया ?सच्चे कांग्रेसियों को
इस पर अपने शुद्ध अंत :करण से विचार करना चाहिए .
(ज़ारी )
6 टिप्पणियां:
वाकई सच्ची बात कही है !!
bilkul sahi kaha aapne ...agree with you.
सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो . आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
सटीक ....
सटीक
सच कहा है ... एक एक शब्द सच ... इतिहास सच कह रहा है पर अगर कोई पढ़े तो ...
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