हाँ देह आगे होती है सम्बन्ध भावना पीछे
हाँ देह आगे होती है सम्बन्ध भावना पीछे
एक वक्त था औरत की देह समाज के बीच में होती थी उससे अलग नहीं .उसपे नजर ज़रूर पड़ती थी,
अगले ही पल एक इल्म होता था यह मेरी माँ है ,चाची है ,भाभी है , बहन है या फिर बेटी . इस सम्बन्ध
भावना के ऊपर एक विवेक होता था सामाजिक समबुद्धि रहती थी ,विवेक होता था संयम होता था .
नारी देह अब डाईनिंग टेबिल पर सजी सलाद की प्लेट हो गई है .विज्ञापन से लेकर कैट वाल्क तक प्रदर्शन
की चीज़ हो गई है .दिखाऊ और उठाऊ सबसे बड़ा संकट इस सोच का है .
इसका सबूत है यह सोच और गीत संगीत -'तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त '
आज समाज के पास राष्ट्र के पास कोई आचार संहिता नहीं है सरकार के पास कोई कार्यक्रम नहीं है अच्छा
नागरिक बनाने वाला .
कोई दृष्टि नहीं है विवेक नहीं है .कैसे महिला को आधी आबादी को सुरक्षा प्रदान की जाए .उसकी मर्यादा का
कोई हनन न करने पाए .ऐसा कोई कार्यक्रम या सोच नहीं है सरकार के पास .मंद मति राजनीतिक आधी
आबादी को ही
मर्यादा का पाठ पढ़ा रहें हैं .
सीता तो वेशधारी बहरूपिए भिखारी भेष भरके आये रावण को भिक्षा देते वक्त अपना धर्म ही निभा रही थी .
उसने कोई अपराध नहीं किया था .लक्ष्मण रेखा का सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन रावण ने किया था
.आज भी कर रहा है ,कोई सीता या निर्भया नहीं .
अधिकारी ,अनाधिकारी, पात्र ,अपात्र सब अपनी राय दे रहें हैं .चैनल वाले इधर उधर से दो चार शब्द सुने
सुनाये पकड लेतें हैं इन्हीं पर परिचार्चा आयोजित करा देते हैं .भले इनकी आवाज़ बहुत दूर तक जाती है
लेकिन कोई दूरदृष्टि भी हो समझ हो इनके
पास इसका
कोई सबूत नहीं मिलता .
परिचर्चाओं में माहिर भी ऐसे ही होते हैं .एक माहिर कह रहे थे जुडो काराटे सिखाओ लड़कियों को तीन
साल
की उम्र से ही .
कोई सामाजिक कार्यक्रम नहीं है इनके पास .फ्रायड साहब और उनके अनुयाई फरमाते हैं शिशु में भी काम
वासना होती है स्तन पान करते वक्त .उनके बहुत सारे चेले मनोविज्ञान के चंद पाठ पढ़ आयें हैं ,लेकिन
मानव मन की असंख्य परतों
,उनसे चालित भावों संवेगों ,अनुभावों का पूरा ब्योरा और खाका किसी के पास नहीं है .
हर कोई लक्षणों का इलाज़ करना चाहता है सामाजिक बीमार सोच का नहीं .कैसे चलेगा बिना सोच के
नैतिक पाठ के समाज .
एक अल्प वयस्क बर्बर वहशियाना अपराध करता है क़ानून कहता है वह अभी 18 साल का नहीं है .दो दिन
बाद होगा
अठारह साल का .जैसे दो दिन बाद वह राष्ट्र को चार चाँद लगा देगा .कैसा क़ानून है यह ?
भाई साहब वोट के अठारह साल और अपराध के अठारह साल बराबर नहीं होते .अठारह साल में आठ दिन
कम रह जाने से अपराध की गंभीरता कम नहीं हो जाती है .
सजा के बारे में भी तरह तरह के सुझाव आ रहे हैं .सरकार यही चाहती थी ऐसा ही हो जैसा फ़िज़ूल
का बहस मुबाहिसा हो रहा है .लोग असल मुद्दों से भटक जाएं .
एक साहब कह रहे थे लड़की के पीछे आने वालों के लिए उसे तंग करने वालों स्टालकअर्स के लिए सजा
उतनी नहीं होनी चाहिए .जैसे पीछे पीछे आना आतंकित करना पीछे से कपडे फाड़ना संविधान स्वीकृत है .
यह संकट नैतिक है और हमला औरत की अस्मिता पर है यदि इसे हलके में लिया गया तो इसकी अंतिम
परिणति
बलात्कार में ही होगी .अस्मिता पे हमला हमला है फिकरे बाज़ी भी पीछे आके डराना डराते रहना लगातार
तो बहुत गंभीर बात है .एक नैतिक क़ानून ,सामाजिक मान्यता का अपमान है यह फिकरे बाज़ी ये
लम्पटप व्यवहार .
.उसके लिए एक मानक सज़ा सबके लिए होना ज़रूरी है तुरता सजा .
हाँ देह आगे होती है सम्बन्ध भावना पीछे
एक वक्त था औरत की देह समाज के बीच में होती थी उससे अलग नहीं .उसपे नजर ज़रूर पड़ती थी,
अगले ही पल एक इल्म होता था यह मेरी माँ है ,चाची है ,भाभी है , बहन है या फिर बेटी . इस सम्बन्ध
भावना के ऊपर एक विवेक होता था सामाजिक समबुद्धि रहती थी ,विवेक होता था संयम होता था .
नारी देह अब डाईनिंग टेबिल पर सजी सलाद की प्लेट हो गई है .विज्ञापन से लेकर कैट वाल्क तक प्रदर्शन
की चीज़ हो गई है .दिखाऊ और उठाऊ सबसे बड़ा संकट इस सोच का है .
इसका सबूत है यह सोच और गीत संगीत -'तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त '
आज समाज के पास राष्ट्र के पास कोई आचार संहिता नहीं है सरकार के पास कोई कार्यक्रम नहीं है अच्छा
नागरिक बनाने वाला .
कोई दृष्टि नहीं है विवेक नहीं है .कैसे महिला को आधी आबादी को सुरक्षा प्रदान की जाए .उसकी मर्यादा का
कोई हनन न करने पाए .ऐसा कोई कार्यक्रम या सोच नहीं है सरकार के पास .मंद मति राजनीतिक आधी
आबादी को ही
मर्यादा का पाठ पढ़ा रहें हैं .
सीता तो वेशधारी बहरूपिए भिखारी भेष भरके आये रावण को भिक्षा देते वक्त अपना धर्म ही निभा रही थी .
उसने कोई अपराध नहीं किया था .लक्ष्मण रेखा का सामाजिक मर्यादा का उल्लंघन रावण ने किया था
.आज भी कर रहा है ,कोई सीता या निर्भया नहीं .
अधिकारी ,अनाधिकारी, पात्र ,अपात्र सब अपनी राय दे रहें हैं .चैनल वाले इधर उधर से दो चार शब्द सुने
सुनाये पकड लेतें हैं इन्हीं पर परिचार्चा आयोजित करा देते हैं .भले इनकी आवाज़ बहुत दूर तक जाती है
लेकिन कोई दूरदृष्टि भी हो समझ हो इनके
पास इसका
कोई सबूत नहीं मिलता .
परिचर्चाओं में माहिर भी ऐसे ही होते हैं .एक माहिर कह रहे थे जुडो काराटे सिखाओ लड़कियों को तीन
साल
की उम्र से ही .
कोई सामाजिक कार्यक्रम नहीं है इनके पास .फ्रायड साहब और उनके अनुयाई फरमाते हैं शिशु में भी काम
वासना होती है स्तन पान करते वक्त .उनके बहुत सारे चेले मनोविज्ञान के चंद पाठ पढ़ आयें हैं ,लेकिन
मानव मन की असंख्य परतों
,उनसे चालित भावों संवेगों ,अनुभावों का पूरा ब्योरा और खाका किसी के पास नहीं है .
हर कोई लक्षणों का इलाज़ करना चाहता है सामाजिक बीमार सोच का नहीं .कैसे चलेगा बिना सोच के
नैतिक पाठ के समाज .
एक अल्प वयस्क बर्बर वहशियाना अपराध करता है क़ानून कहता है वह अभी 18 साल का नहीं है .दो दिन
बाद होगा
अठारह साल का .जैसे दो दिन बाद वह राष्ट्र को चार चाँद लगा देगा .कैसा क़ानून है यह ?
भाई साहब वोट के अठारह साल और अपराध के अठारह साल बराबर नहीं होते .अठारह साल में आठ दिन
कम रह जाने से अपराध की गंभीरता कम नहीं हो जाती है .
सजा के बारे में भी तरह तरह के सुझाव आ रहे हैं .सरकार यही चाहती थी ऐसा ही हो जैसा फ़िज़ूल
का बहस मुबाहिसा हो रहा है .लोग असल मुद्दों से भटक जाएं .
एक साहब कह रहे थे लड़की के पीछे आने वालों के लिए उसे तंग करने वालों स्टालकअर्स के लिए सजा
उतनी नहीं होनी चाहिए .जैसे पीछे पीछे आना आतंकित करना पीछे से कपडे फाड़ना संविधान स्वीकृत है .
यह संकट नैतिक है और हमला औरत की अस्मिता पर है यदि इसे हलके में लिया गया तो इसकी अंतिम
परिणति
बलात्कार में ही होगी .अस्मिता पे हमला हमला है फिकरे बाज़ी भी पीछे आके डराना डराते रहना लगातार
तो बहुत गंभीर बात है .एक नैतिक क़ानून ,सामाजिक मान्यता का अपमान है यह फिकरे बाज़ी ये
लम्पटप व्यवहार .
.उसके लिए एक मानक सज़ा सबके लिए होना ज़रूरी है तुरता सजा .
9 टिप्पणियां:
लक्ष्मण रेखा का पालन भी ज़रूरी है। यह सभी पर लागु होती है।
आज प्रदर्शन की चीज़ बनने में नारी का भी उतना ही हाथ है जितना पुरुष का।
नेट पर जो देखने को मिलता है, उससे यह बात अच्छी तरह साबित होती है।
हर कोई लक्षणों का इलाज़ करना चाहता है सामाजिक बीमार सोच का नहीं
सही बात!!
सटीक विश्लेषण ।
आभार -
आक्रोश लिए आज की पोस्ट ... ओर सही है ये आक्रोश ... आज कुछ नए ठेकेदार आ गए हैं समाज में ओर उसे अपने अनुसार दिशा देने में लगे हैं .. मर्जी से संस्कृति तोड़ लेते हैं ...ओर कुछ लोग संस्कृति की बात करने वालों को तोड़ देने की बात करते हैं ...
बदलते समय की कीमत है, समाज भुगत रहा है
आपका विश्लेषण सटीक है.एक बात कहना चाहूँगा कि सिनेमा एवं टी.वी ,चैनल नारी को जिस रूप में प्रस्तुत कर रहे है , उस से सब लक्ष्मण रेखाएं मिट गई है. जरुरत इस बात कि है कि समाज के हर क्षेत्र में सामाजिक मापदंड स्तापित करे, तब लक्ष्मण रेखा की बात करें. खुला बाजार में पैसे के लिए हर रेखा मिट रही है. नारी पुरुष दोनों को मिल कर फिरसे नई रेखा खीचनी पड़ेगी.
नई पोस्ट :" अहंकार " http://kpk-vichar.blogspot.in
बहुत कुछ सोचने पर विवश करती पोस्ट!
बहुत सही लिखा है आपने |
आशा
भाई साहब राम राम ,
युग परिवर्तन हमें नकारात्मक व विध्वंसात्मक परिवेश में ले जा रहा है ....आज टी वी में विराट कोहली जैसे खिलाडी लड़की पटाने के टिप्स समझाते हैं दबंग में एक गाने में लौडिया को मिस काल से पटाने की टिप्स दी जा रही है ये सारी चीजें हमारे घरों में सुबह से शाम तक परोसी जा रही हैं जिसे जिसे हमारे बच्चों के बल मस्तिष्क पूरी तरह से स्वीकार कर रहे फिर हम अच्छे संस्कार की उम्मीद कहाँ से करें हाँ एक अंजुम जी का शेर याद आ गया -
चिलमन के आस पास तमासा कुछ और है ।
लेकिन मेरी निगाह ने देखा कुछ और है ।।
अंजुम कभी कभार इधर भी निगाह क्र ।
वह वक्त और था ये जमाना कुछ और है ।।
आपकी भावपूर्ण और विचारणीय पोस्ट के लिए कोटि कोटि आभार ।
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