अतिथि कविता : गिर गया गर हाथ से पुर्जा -डॉ .वागीश मेहता
यूं तो वागीश जी ने यह कविता स्वतन्त्र सन्दर्भों में लिखी है ,पर आज के हालात में ,अगर रौल विन्ची
जी को अपना चेहरा नजर आता है तो उन्हें इस आईने को ज़रूर देखना और पढ़ना चाहिए
(1)
गिर गया अगर हाथ से पुर्जा ,
तेरी तक़रीर का क्या होगा ,
इस देश की संवरे न संवरे,
तेरी तकदीर का क्या होगा ?
(2)
आस्तीन चढ़ा भर लेने से ,
कोई देश नहीं चला करता ,
कुछ सांप पले आस्तीनों में ,
फिर हाथ लकीर का क्या होगा ?
(3)
बिन अनुभव की आंच तपे ,
सिर पर गर ताश सज़ा तो क्या ,
जब वाहवाही भट -भाट करें ,
फिर किसी की सूझ सलाह ही क्या ?
(4)
गर भारत को ही नहीं जाना ,
फिर इतिहास पढ़ा तो क्या ,
इस वज्र सरीखी दिल्ली ,
तेरी तदबीर का क्या होगा ?
(तदबीर :कौशल ,उपाय )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )
यूं तो वागीश जी ने यह कविता स्वतन्त्र सन्दर्भों में लिखी है ,पर आज के हालात में ,अगर रौल विन्ची
जी को अपना चेहरा नजर आता है तो उन्हें इस आईने को ज़रूर देखना और पढ़ना चाहिए
(1)
गिर गया अगर हाथ से पुर्जा ,
तेरी तक़रीर का क्या होगा ,
इस देश की संवरे न संवरे,
तेरी तकदीर का क्या होगा ?
(2)
आस्तीन चढ़ा भर लेने से ,
कोई देश नहीं चला करता ,
कुछ सांप पले आस्तीनों में ,
फिर हाथ लकीर का क्या होगा ?
(3)
बिन अनुभव की आंच तपे ,
सिर पर गर ताश सज़ा तो क्या ,
जब वाहवाही भट -भाट करें ,
फिर किसी की सूझ सलाह ही क्या ?
(4)
गर भारत को ही नहीं जाना ,
फिर इतिहास पढ़ा तो क्या ,
इस वज्र सरीखी दिल्ली ,
तेरी तदबीर का क्या होगा ?
(तदबीर :कौशल ,उपाय )
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )
2 टिप्पणियां:
सुन्दर.सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .
आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......
बहुत सुन्दर ...
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