बुधवार, 23 जनवरी 2013

अतिथि कविता :डॉ .वागीश मेहता , "तुम्हें धिक्कार है "


अतिथि कविता :डॉ .वागीश मेहता 


                         तुम्हें धिक्कार है 

यूं तो वागीश जी ने यह कविता स्वतन्त्र सन्दर्भों में लिखी है ,पर आज के हालात में ,अगर दिग्विजय सिंह 

जी को अपना चेहरा नजर आता है तो उन्हें इस आईने को ज़रूर देखना और पढ़ना चाहिए 


वतन और कौम पर भारी ,महाकलंक ,

निरंतर झूठ बोले जा रहे ,निष्कंप ,

सुर्खी बने अखबार में ,चर्चा तो हो ,

गज़ब  कैसा है तुम्हारा ये नया किरदार ,

धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .

                    (2)

देखे हैं इस देश ने ,कई विषम गद्दार ,

जेलों में हैं बंद कई ,कुछ अभी फरार ,

इतिहास में भी दर्ज़ है ,कुछ नाम और भी ,

पर तुम्हारे सामने ,बौने सभी लाचार ,

धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें  धिक्कार .

                    (3)

यह तुम्हारी मानसिकता का घटित परिणाम , 

बटा जो देश भारत ,तो बना पाकिस्तान ,

उसी के वास्ते शहतीर घर का हो गिराते तुम  ,

अब भी बाकी क्या कसर ,तुम हो विकट मक्कार ,

धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .


                  (4)

चंद वोटों पर निगाहें ,कुछ तो बुरा नहीं ,

फिर भी तलुवे चाटना ,ज़िल्लत से कम नहीं ,

पर आदतन तुम देश को ,बदनाम करते हो ,

तुम्हारे विष वमन पर हो रही ये कौम शर्मशार ,

धन्य थे पुरखे तुम्हारे ,पर तुम्हें धिक्कार .

प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )



3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

सर जी ,बेहद आक्रामक प्रस्तुति,.... पर
तुम्हे धिक्कार है,चरों खंड... तुम बिकट मक्कार
बहुत खूब "तुम्हारे विष बमन..

अरुन अनन्त ने कहा…

आक्रोश भरी सुन्दर रचना हार्दिक बधाई

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर ...सार्थक ...