दुग्धाहार , ,गाय ,गंगा और मातृभूमि
एक नै शोध से पता चला है जिन देशों में प्रतिव्यक्ति सालाना दुग्ध और
दुग्ध उत्पादों का सेवन सर्वाधिक है वहीँ दिमागी उत्कृष्ट निपुणता और
नोबेल पुरूस्कार भी लोगों को ज्यादा से ज्यादा मिले हैं .
पूर्व में ऐसा ही सम्बन्ध चोकलेट को लेकर न्यू इंग्लैण्ड जर्नल आफ
मेडिसन में प्रकाशित हो चुका है .चोकलेट में मौजूद फ़्लेवोनोइड तत्व को
दिमागी कौशल वर्धक बतलाया गया था .
अब चोकलेट बनाने में भी दूध का कमोबेश इस्तेमाल होता ही है इस नै
शोष के प्रणेताओं ने अपने आप से पूछा -कहीं दुग्ध और दुग्ध उत्पादन की
प्रति व्यक्ति खात का सम्बन्ध तो कुशाग्र बुद्धि से नहीं जुड़ा है .इसी की
पुष्टि करता है प्रस्तुत अध्ययन .
इस अध्ययन के तहत रिसर्चरों ने 22 मुल्कों से खाद्य एवं कृषि संगठन की
मार्फ़त इन मुल्कों में प्रति व्यक्ति सालाना दुग्ध और इसके उत्पादों की
खपत सम्बन्धी 2007 के तमाम आंकड़े जुटाए .साथ ही चोकलेट सिद्धांत
के प्रतिपादकों से भी आंकड़े प्राप्त किये .
एक अंतरसम्बन्ध का खुलासा हुआ .पता चला स्वीडन के नागरिक
सालाना
प्रति व्यक्ति के हिसाब से 34 0 लीटर दूध का सेवन कर लेते हैं .यहाँ नोबेल
पुरूस्कार प्राप्त व्यक्तियों का प्रति एक करोड़ आबादी के पीछे प्रतिशत
सर्वाधिक 33/10 मिलियन पाया गया है .
दुसरे नम्बर पर रहा है स्विटज़रलैंड जहां प्रति एक करोड़ आबादी के पीछे
इस सम्मान से नवाजे जा चुके 32 व्यक्ति हैं .जबकि यहाँ प्रतिव्यक्ति दूध
की खपत 300 लीटर रही है .
इन 22 मुल्कों में नोबेल पुरूस्कार से सम्मानित व्यक्तियों की संख्या चीन
में सबसे कम रही है .यहाँ प्रति व्यक्ति दूध की सालाना खपत भी मात्र 25
लिटर ही रही है .
350 लिटर से भी ज्यादा प्रति व्यक्ति दूध सेवन का कोई अतिरिक्त प्रभाव
सामने नहीं आया है .फिनलैंड इसकी मिसाल है जहां दूध की प्रति व्यक्ति
खपत इन 22 मुल्कों में सर्वाधिक पाई गई . यानी 350 लिटर ऊपरी सीमा
पाई गई है जिसके पार कुशाग्रता में अतिरिक्त बढ़ोतरी नहीं देखी गई है .
इस अध्ययन के जैविक समर्थन में एक वैज्ञानिक तर्क यह भी जाता है
,दूध विटामिन डी से भरपूर रहता है .और मेधा बुद्धि को बढ़ाने में इसका
बड़ा हाथ हो सकता है .
सोने पे सुहागा होगा चोकलेट और दूध का मिश्र हॉट चोकलेट ली जाए
जिससे मिलने वाला लाभ दोनों के अलग अलग सेवन से प्राप्त कुल लाभ
से भी ज्यादा होगा .
विशेष कथन :योरोप के इन मुल्कों की दूध को लेकर मंशा क्या रही है
हमें
नहीं मालूम .कितना प्रेरित है प्रायोजित है यह शोध यह भी नहीं मालूम
अलबत्ता वहां गाय का इस्तेमाल एक मिल्क प्लांट के रूप में
करते हुए उसका अधिकाधिक दोहन शोषण किया जाता है .
भारत अकेला ऐसा मुल्क रहा है जहां गाय ,गंगा और देश को मातृभूमि
कहा गया है .हमारी ऋषि परम्परा में जीवों और जल स्रोतों का पूज्य
स्थान रहा है .लेकिन हम अपने सनातन मूल्यों को भी बचाके नहीं रख
सकें हैं .गंगा को हमने उस हद तक गंधा दिया है जहां उसके पानी के
सेवन से चर्म रोग से लेकर कुछ ख़ास इलाकों में कैंसर रोग समहू के रोग भी
होने की पुष्टि हुई है .
हम गौ मांस के सबसे बड़े एशियाई निर्यातक देश हैं .और देश उसकी
हालत तो मूर्खता में शीर्ष पर रहे आये हमारे रहनुमाओं ने आज क्या बना
दी है यह दुनिया जान गई है .यहाँ सरस्वती वन्दना या गंगा को मैया कहने
से सेकुलर वोट खतरे में पड़ जाता है .शताब्दी एक्सप्रेस में आप राम धुन
नहीं बजा सकते .कुछ सनातन मूल्य धर्म से सर्वथा विच्छिन्न ही सेकुलर
मूल्य होते थे .
वोट लूटने वाले निर्लज्जों ने तो दूध और दही को भी लज्जित करवा दिया .
दूध दही के खाने को लेकर लोगों में एक मज़ाक चल पड़ा -
दूध दही का खाना ,जेलों के तीर्थ तिहाड़ जेल में जाना ,अमर रहे हरियाणा .
7 टिप्पणियां:
काफी रोचक जानकारियां है .दूध दही तो सर्वोतम आहार.
New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
New post: कुछ पता नहीं !!!
राम-राम भाई! मैंने एक शोध पत्र में पढ़ा था कि जिन देशों में गोघृत का सेवन अधिक किया जाता है वहाँ हृदय रोग सबसे कम होते हैं जबकि जिन देशों में गोमांस का सेवन अधिक किया जाता है वहाँ हृदय रोग सर्वाधिक होने की प्रायिकता होती है। शताब्दी एक्सप्रेस में रामधुन पर प्रतिबन्ध, हैदराबाद के मन्दिरों में घण्टा बजाने पर प्रतिबन्ध, भाग्यलक्ष्मी मन्दिर में दीपावली के दिन प्रकाश करने पर प्रतिबन्ध और 15 मिनट में 100 करोड़ हिन्दुओं को काट डालने का वक्तव्य देने वाले का विरोध करने वाले साधु की ग़िरफ़्तारी ...ये धर्मनिरपेक्षता के उत्कृष्ट उदाहरण हैं ....वीरू भाई! देश प्रगति पर है, अभी पूरी तरह धर्मनिरपेक्षता नहीं है, जिस दिन भारत से हिन्दुओं का नाम-ओ-निशान मिट जायेगा उस दिन इण्डिया पूर्ण धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हो जायेगा।
दूध से जुड़े रोचक तथ्य दिए हैं आपने ... कभी अपने देश में भी दूध की नदियाँ बहती थीं ... अब क्या बहता है किसी से छुपा नहीं है ... नेतिक पतन की पराकाष्ठा है अपना समाज ...
जिस देश के लोग अपनी परंपरा और संस्कृति का अनादर करते है दूसरों का अन्धानुकरण करते है उसका क्या हश्र होता है किसी से छुपा नहीं है ,इतिहास गवाह जड़ कटने के बाद वृक्ष मृत हो जाता है वही होना बाकी रहा गया है, इस हालत के लिए कौन जिम्मेदार है किसी से छुपा नहीं है हम अपनी जड़ क्यों काट रहे है ? इसका खामियाजा हमें ही भुगतना पड़ेगा
दूध से जुडी रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारी का शुक्रिया
राम-राम !
मेरे पास आओ.गज़ल सुनवाता हूँ ....
बहुत सुन्दर जानकारी...
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