मंगलवार, 1 जनवरी 2013

बलात्कार के बाद की ज़लालत

बलात्कार के बाद की ज़लालत 

न्युयोर्क  स्थित मानव अधिकार समूह  'ह्यूमेन राइट्स वाच '(मानवअधिकार प्रहरी ),  ने भारत में प्रचलित

'बलात्कार   जांच

के एक गैर -वैज्ञानिक तरीके 'टू फिंगर टेस्ट 'की कटु आलोचना की  है खासी मज़म्मत की है .

यह बे -हूदा जांच  औरत की प्रतिष्ठा को कम करती है उसकी अस्मिता की अवमानना है .जिसके तहत

योनी में  दो ऊंगली घुमाकर कथित माहिर यह पता लगाता है योनी की लेकसिटी (शिथिलता )कितनी है

.योनी का पर्दा /महीन झिल्ली हालिया यौन हमले में टूटी है या बरसों पहले ,और यह भी कहीं महिला पहले

से ही तो यौन सक्रीय नहीं रही आई है .और अब तोहमत लगा रही है मन मर्जी के सौदे पे .

इतना ही नहीं बहुत ही गलीज़ टिपण्णी भी लम्पटिया ,कामुक चरित्र के लोग पीड़िता  के खिलाफ करने से

नहीं चूकते .

बानगी देखिये कुछ  की  भुक्त भोगियों के मार्फ़त प्रकाश में आईं  हैं :

चालू  है ,इसका तो धंधा ही यही है .लूज़ स्कर्टइड है ये .

उल्लेखित संस्था ने इस जांच के नतीजों को निहायत बे -वकूफाना ,बरगलाने वाला बतलाया है .योनी की

झिल्ली के फटने की वैसे भी अनेक वजहें हो सकतीं हैं .हाड़ तोड़ मशक्कत ,उछल कूद ,बेहद का वजन

उठाना एकाधिक  वजहें हो सकती हैं इसके फटने की .

महिला  खिलाड़ी हाड़  तोड़ प्रशिक्षण सत्रों में अपनी माहवारी बंद कर लेती हैं .हो जाती है निलंबित यह

मासिक क्रिया .

सत्र समाप्त होने पर थोड़े ही दिनों में वह फिर चालू हो जाती है तब क्या इसका मतलब यह लगाया जाए

महिला रजस्वला हो गई है ,मिनोपोज़ल है ?गर्भवती है ?

ये ब्लडी फिंगर टेस्ट भी इतनी ही बे -हूदा बात है .

बे -शक कुछ मामलों में अल्ट्रा साउंड (एब्डोमिनल ,लोवर एब्डोमिनल अल्ट्रा साउंड )के साथ साथ मैन्युअल

(हस्त चालित जांच )एग्जामिनेशन को भी महत्व दिया जाता है .मसलन रेक्टम एग्जामिनेशन करते हैं

मलद्वार में  ऊंगली डालकर प्रोस्टेट एनलार्ज्मेंट की पुष्टि के लिए लेकिन वहां भी और यहाँ भी अन्य जांचें

भी हैं .

इस संस्था की दक्षिण एशियाई निदेशक मीनाक्षी गांगुली कहती हैं ज़रुरत है ऐसी जांच की जगह भारत में

पुलिस के ,चिकित्सकों के ,अपराध विज्ञान के माहिरों के अभियोजन पक्ष के वकीलों के पीड़िता  के प्रति

गरिमा पूर्ण व्यवहार की .


आखिर  बलात्कार के बाद की यह ज़लालत पीड़िता और क्यों उठाए ?जबकि वर्ष मार्च ,2011 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने  इस जांच को

वैकल्पिक बना दिया गया है इसकी अनिवार्यता समाप्त कर दी गई लेकिन सम्बद्ध पक्षों को इसका इल्म ही

नहीं है .इस जांच के लिए पीड़िता की सहमती लिया जाना अब लाजिमी कर दिया गया है .वह इनकार भी

कर सकती है उसकी मर्ज़ी के बिना यह कथित डाक्टरी जांच नहीं हो सकती .

पुलिस जिसे सबूत जुटाने होते हैं इस  संशोधन से बा -खबर नहीं है .



कृपया इस पोस्ट से पहले की पोस्ट इसी बाबत अंग्रेजी में ज्यादा विस्तार 

से पढ़ें :

मंगलवार, 1 जनवरी 2013


2 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

इस मामले में अतिरिक्त संवेदनशील होने की ज़रुरत है।
चिकित्सीय औपचारिकताओं पर भी पुनर्विचार होना चाहिए।

मनोज कुमार ने कहा…

नूतन वर्षाभिनन्दन!