गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

State VS people


 State VS people

Battle of India Gate raises questions 

यह थेन मन चौक की घटना नहीं है जहां  युवा  विरोधियों पर टेंक चढ़ा दिए गये  थे न यह मिश्र के कैरों के तहरीर स्क्वायर का दमन चक्र 

है जहां प्रजातांत्रिक विरोध को बर्बरता पूर्वक ख़ट  खट  करते 

बूटों 

ने 

रौंद डाला था .यह किस्सा है भारत के प्रतीक इंडिया गेट का जहां शान्ति पूर्वक दिल्ली रेप की जां बाज़ युवती निर्भय को बर्बरता पूर्वक 

अपराध तत्वों द्वारा रौंदे जाने के बाद लगातार विरोध प्रदर्शन हो 

रहे थे .     

गणतंत्र दिवस के प्रतीक खम्बों  को(जो आगामी गणतंत्र दिवस के लिए खड़े किए गएँ हैं ) उखाड़ कर युवा भीड़ ने जला डाला था शायद 

कहना चाह रहे थे यह कैसा गणतंत्र है जिस में  गण नदारद है 

जहां उसकी सुनने वाला कोई नहीं है .

यह किस्सा दान्तेवाला का नहीं है न ही प्रदर्शन कारी नक्सलिया थे .

यह संघर्ष था स्टेट बनाम आम जन का .मद (उन्मादी /वहशी )प्रदर्शन था,स्टेट का .उसकी रखैल पुलिस का .

जैसा भारत के प्रजातंत्र में हमेशा से होता आया है सारा दोष हाशिये पर जीवन बसर कर रहे ऐसे अपराध तत्वों पे दाल दिया गया जिन्हें 

1984 के दंगों में उकसाया भड़काया गया था .

जबकि ये किशोरवृन्द  की स्वत :स्फूर्त भीड़ थी जो स्वत: घरों से निकलके आई थी कोहरे और ठंड में .

यहाँ तो प्रजातंत्र ही कुहांसे में रहा आया है .

कुटिलता पूर्वक तमाम शांति पूर्वक प्रदर्शन करते महिलाओं और किशोर वृन्द को कलंकित कर दिया गया उन्हें लूम्पेन एलिमेंट्स कहके .

हो सकता है दो चार हों भी अपराध प्रकृति के लोग जो युवा भीड़ में घुस आये हों .उनकी आड़ में सबको निशाने पे लेके रोंदा गया .

कैमरों तथा ओ बी वेन तक को निशाना बनाया गया .

तस्वीरें झूठ नहीं बोलतीं जो तमाम हिंदी अंग्रेजी के रिसालों में जुल्म की कथा कह रहीं हैं :

ज़ुल्म  की मुझपे इंतिहा करदे ,

मुझसा बे ज़ुबां फिर कोई मिले ,न मिले .

बात साफ़ है जब आम जन अपनी सामूहिक सत्ता का प्रदर्शन करता है जो लोकतंत्र ने उसमें समाहित की है तब उसे लूम्पेन (अपराधी 

प्रवृत्ति का निम्स्तरीय जीवन यापन करने में संतुष्ट रहने वाला 

)घोषत कर दिया जाता है .

वोट के मौसम में यही अपराध तत्व देव तुल्य हो जाता है .उसके घर दुआरे ये वोट खोर टुकड़ खोर हाथ जोड़े आते हैं .

और यह प्रदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर हो रहा है इन दिनों दिल्ली की चौहद्दी तक सीमित नहीं है इसकी आंच उत्तर पूर्व के इम्फाल तक पहुंची 

है .यहाँ एक टी वी पत्रकार पुलिस की गोली से मारा गया है .

यह प्रदर्शन उस आधी आबादी की सुरक्षा के लिए हो रहें हैं जिसका कुल कसूर गलत जेंडर में पैदा होना है ,औरत होना है .

यह कैसा राज्य है जो प्रतिनिधिक होने का दावा करता है -भारतीय प्रजातांत्रिक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य .जहां राज्य  सत्ता जनसत्ता को सरे आम रौंदती है .

यह वही इंडिया है जिसे विश्व की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी होने पे नाज़ है जो भारत को सरे आम कुचल रहा है रोंद  रहा है उसकी आत्मा को .

कितना प्रजातांत्रिक है ये मेरा इंडिया ?

हाँ यहाँ नियमित चुनाव होतें हैं सरकार बदल होती है आनुपातिक तौर पर अपराध तत्व भी चुनके आ जाते हैं .जिनके अपने अपने भुजबली 

होतें हैं .वोट छापने  वाले लूटने वाले जबरिया वोट गिरवाने 

वाले होते हैं शराब और पैसा बाँटने वाले होतें हैं कथित लूम्पेन तत्वों को .जो इनके पालतू होते हैं .

यहाँ तो चित्र व्यंग्यकार भी गिरफ्तार हो जाता है फेसबुक पे टिपण्णी करने वाली मासूम लडकियां भी .आये दिन की बात हो गई है अब यहाँ .

क़ानून क्या है इस मुल्क में ?

उसपर अम्ल कैसे होता है ?

इंडियागेट शैली में ?

क्या क़ानून पे क़ानून के अनुसार कानूनी तौर पे अम्ल होता है या ऊपर के आदेश होते हैं .

क्या क़ानून और उस की हिफाज़त करने वाले नेताओं के लौंडे लौंडियों की ,स्टेट की हिहाज़त के लिए ही हैं बस .किसी के तीन हैं किसी के 

दस किसी के 11-12 .गिना रहें हैं सब अपने अपने .प्रोटेस्ट 

में कोई 

नहीं आया है इनमे से .ये वी आई पी हैं .पुलिस का असल काम इन्हीं की हिफाज़त करना  है .

यहाँ मुद्दा सिर्फ दिल्ली रेप नहीं है प्रजातंत्र के साथ ही यहाँ तो बलात्कार हो रहा है .

3 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये आक्रोश जायज है ...
बस अब उठने का समय है ...

Madan Mohan Saxena ने कहा…

वाह .

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लोकतन्त्र के मूल प्रश्न उभरकर सामने आ रहे हैं।