जिस वीरांगना ने कुँवारी कन्या ने जिसे हम नव रात्र पर पूजते हैं एक सोये हुए राष्ट्र की चेतना को जगा दिया है उसे राष्ट्रीय सम्मान के
साथ हम विदा करें .कुछ शर्मिन्दगी कम होगी .अराजक होने
में
गर्व महसूस करने का मतलब थोड़ा समझ में आयेगा .
एक वक्त था जब कोई बुरा नहीं दिखना चाहता था ,अकेले में भी धत कर्म करने से पहले दाएं बाएँ देखता था ,अब तिहाड़ से निकलते वक्त
विजयी मुद्रा में होता है जैसे कह रहा हो मेरा कोई क्या
विजयी मुद्रा में होता है जैसे कह रहा हो मेरा कोई क्या
बिगाड़
सकता है .
आज वक्त है प्रायश्चित करने का .
एक भावपूर्ण श्रृद्धांजलि :
आज की कविता :दूर कहीं एक शख्शियत का कत्ल हुआ है -कमांडर निशांत शर्मा
(1)
सुबह शाम वो ,अब गजलें ,कहता ही नहीं
सुर संगीत, नसों में अब, बहता ही नहीं ,
सन्नाटों के ,कौतूहल में ये ,गूँज रहा है ,
दूर कहीं ,इक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .
(2)
ओस की बूँदें ,फूलों से अब ,हवा हुईं ,
जीने की आग ,वो सीने में सब धुआं हुईं ,
यूं मर मर कर ,ज़िंदा रहना वो ,भूल रहा है ,
दूर कहीं ,इक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .
(3)
नींद की काली ,कोयल ने ,गाया ही नहीं ,
बरसों से खुली ,चौखट पे वो ,आया भी नहीं ,
खुद के तले ,अपना वो साया ,ढूंढ रहा है ,
दूर कहीं ,इक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .
(4)
मंदिर की पावन घंटी और ,मस्जिद की बुलंद अजानों से ,
दिल रूठ रहा है ,
सरहद पर बिछती लाशों में ,मृग तृष्णा ही जीवन है ,
ये भ्रम टूट रहा है ,
आँगन के सूखे ठूंठ पे उल्लू ,बोल रहा है ,
दूर कहीं एक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .
(5)
बंद मुठ्ठी से ,हर पल जैसे ,बे -वजह रेत फिसलती है ,
बस वैसे ही ,भीतर भीतर ,कुछ डूब रहा है ,
सांझ के ढलते सूरज ने ,इस सुबह की उगती लाली को ,
हौले से कहा है ,दूर कहीं इक शख्शियत का कत्ल हुआ है .
(6)
सदियों से घटा घनेरी है ,और उमस हवा में तेरी है ,
न बरसा है ,न बरसेगा ,सब सूख रहा है ,
बादल में छिपी ,कुछ बूंदों का दम ,टूट रहा है ,
दूर कहीं इक शख्शियत का कत्ल हुआ है .
(7)
बचपन के खेल खिलौने हैं ,यौवन के ढेर फ़साने हैं ,
बूढी माँ की झुर्रियों में ,और गठरी में ,कैद ज़माने हैं ,
सदियों से रचा बसा ,इक पल में ,छूट रहा है ,
इस पल सब है ,मानों सब पल में ,छूट रहा है ,
दूर कहीं इक शख्शियत का कत्ल हुआ है .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )
अतिथि -कविता :दूर कहीं ,इक शख्शियत का कत्ल हुआ है
11 टिप्पणियां:
दिल के भतार लगी आग जो अब ज्वाला बन कर सब कुछ स्वाहा करने पर आमादा है को बखूबी प्रस्तुतत करती सुन्दर अभिव्यक्ति ,___ new post खंज़र, कैसे मनाये नव vrsh .
दिल दहलाने वाले ज़ज्बात प्रस्तुत किये हैं।
मत कहो जिंदगी के दंगल में
दामिनी की हार हुई।
आज इंसानों के जंगल में
इंसानियत की हार हुई।
मुझे तो यह क़त्ल कही बेहद ही पास हुआ लगता है वीरू भाई !
दिल में रह रह कर उठती आँधियों को
कमांडर निशांत शर्मा ने बड़ी खूबसूरती से
शब्दों में कैद कर लिया , मर्म स्पर्श करती अभिव्यक्ति
मेरी पोस्ट ; "नया वर्ष मुबारक हो सबको "
कलम के सिपाही अपनी तरफ से प्रयास कर रहे हैं ... अगर कोई एक कोना भी इंसान का हिल जाए तो सफल है रचना ...
बहुत धधकते हुए जज़्बात ...
:(
बहुत सही भावनात्मक अभिव्यक्ति भारत सरकार को देश व्यवस्थित करना होगा .
कमांडर निशांत शर्मा जी बहुत-बहुत मुबारक कबूलें इस बेहतरीन शब्दों से भरी रचना के लिए ....
जो आपके भावुक दिल के अहसास उजागर कर रही है
आने वाला नव-वर्ष आप सब के लिए बहुत शुभ हो
वीरू भाई राम-राम ..जी !
दिल के भीतर... बस दुख ही दुख है..., पाँवों के तले जैसे... तपती हुई रेत है... :((
~सादर!!!
भावनात्मक अभिव्यक्ति,,,,,
चिरनिद्रा में सोकर,सबको जगागई दामिनी,,,
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recent post : नववर्ष की बधाई
हमारे समाज का दोग़लापन कैसे दूर हो ?
दामिनी पर ज़ुल्म करने वालों के खि़लाफ़ देश और दिल्ली के लोग एकजुट हो गए जबकि सन 1984 के दंगों में ज़िंदा जला दिए गए सिखों के लिए यही लोग कभी एकजुट न हुए। इसी तरह दूसरी और भी बहुत सी घटनाएं हैं। यह इस समाज का दोग़लापन है। इसी वजह से इसका अब तक भला नहीं हो पाया। दूसरों से सुधार और कार्यवाही की अपेक्षा करने वाला समाज अपने आप को ख़ुद कितना और कैसे सुधारता है, असल चुनौती यह है।
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