सन्देश परक लघु कथा है .ऐसी कथा आप बा -कायदा लिख सकतें हैं बस थोड़ी सी शैली बदल दें .मसलन -वह पेड़ रास्ते को छाया देता था पक्षियों को आश्रय .घनी थी उसकी शाखाएं ,कोटर .कोटर में थे
पक्षी .लटके थे पेड़ से और कई घोंसले भी थे ........एक दिन गुजरी बारात उस बस्ती से .गए रात थे बाराती पूरी मस्ती में ....यहीं छोड़ी गई बे -तहाशा आतिशबाजी झूमते हुए शराब की मस्ती में
....बस
इसी शैली में कहानी कथा लघु आगे जाए जिसमें घटना होती है विवरण नहीं .,सन्देश होता है जैसा इस लघु कथा में है .
दिवाली की रात यह बदसुलूकी पूरे जीव जगत के साथ सलीके से होती है .गली के कुत्ते अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं .मैं यहाँ मुंबई के कोलाबा के एक ऐसे इलाके में रहता हूँ जहां पेड़ों का घना झुरमुट है
यह पश्चिमी नेवल कमान का मुख्यालय है नोफ्रा (NOFRA बोले तो नेवल ऑफिसर्स फेमिली रेज़ि-डेंसी -यल एरिया ).यहाँ कौवों का हर शाख पे डेरा है .दिवाली के दो रोज़ पहले से ही रात को
पटाखों का शोर रहने लगा .दिवाली की रात देर आधी रात तक और बाद इसके भी कई रोज़ तक ऐसा होता रहा .
बेचारे कौवे सुबह का कलरव कई दिन भूले रहे उस रात उनमें आपस में बातचीत नहीं हुई .एक गफलत पसरी रही पेड़ों पर .
पक्षियों की अपचयन दर (Metabolic rates ) बहुत ज्यादा होती है पर्यावरण की नव्ज़ की हरारत और सेहत ये सबसे पहले भांपते हैं .पर्यावरण के गंधाने की पहली आहट के साथ ही यह बस्ती से
उड़ जातें हैं -चल उड़ जा रे पंछी के अब ये देश हुआ बेगाना ,तूने तिनका तिनका करके नगरी एक बसाई थी ........खत्म हुए दिन उस डाली के जिसपे तेरा बसेरा था ........तेरी किस्मत में लिख्खा था
जीते जी मर जाना ....
एक टिपण्णी ब्लॉग पोस्ट :
5 टिप्पणियां:
har din ek nye gulab ki khooshboo bs yun hi jidki ke jshn ko manae ka khoobshoorat mahaul pesh kate rahne ki hardik abhilasa ko jiwant karte rahiye sir ji
बहुत रोचक रचना..
अच्छे हैँ बहुत अच्छा हैँ ...
राम राम भाई ।
बहुत सारगर्भित और समयानुकूल संदेश देता
लेखन!
रोचक रचना..
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