शनिवार, 29 दिसंबर 2012

अतिथि -कविता :दूर कहीं ,इक शख्शियत का कत्ल हुआ है

जिस वीरांगना ने कुँवारी कन्या ने जिसे हम नव रात्र पर पूजते हैं एक सोये हुए  राष्ट्र की चेतना को जगा दिया है उसे राष्ट्रीय  सम्मान के साथ हम विदा करें .कुछ शर्मिन्दगी कम होगी .अराजक होने 

में 

गर्व महसूस करने का मतलब थोड़ा समझ में आयेगा .

एक वक्त था जब कोई बुरा नहीं दिखना चाहता था ,अकेले में भी धत कर्म करने से पहले दाएं बाएँ देखता था ,अब तिहाड़ से निकलते वक्त विजयी मुद्रा में होता है जैसे कह रहा हो मेरा कोई क्या 

बिगाड़ 

सकता है .


आज वक्त है प्रायश्चित करने का .

एक भावपूर्ण श्रृद्धांजलि :


आज की कविता :दूर कहीं एक शख्शियत का कत्ल हुआ है -कमांडर निशांत शर्मा 
                     
                     (1)

सुबह शाम वो ,अब गजलें ,कहता ही नहीं 


सुर संगीत, नसों में अब, बहता ही  नहीं ,

सन्नाटों के ,कौतूहल में ये ,गूँज रहा है ,

दूर कहीं ,इक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .


                   (2)

ओस की बूँदें ,फूलों से अब ,हवा हुईं ,

जीने की आग ,वो सीने में सब धुआं हुईं ,

यूं मर मर कर ,ज़िंदा रहना वो ,भूल रहा है ,

दूर कहीं ,इक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .

                (3)
नींद की काली ,कोयल ने ,गाया ही नहीं ,

बरसों से खुली ,चौखट पे वो ,आया भी नहीं ,

खुद के तले ,अपना वो साया ,ढूंढ  रहा है ,

दूर कहीं ,इक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .


              (4)
मंदिर की पावन घंटी और ,मस्जिद की बुलंद अजानों से ,

दिल रूठ रहा है ,

सरहद पर बिछती लाशों में ,मृग तृष्णा ही जीवन है ,

ये भ्रम टूट रहा है ,

आँगन के सूखे ठूंठ पे उल्लू ,बोल रहा है ,

दूर कहीं एक शख्शियत का ,कत्ल हुआ है .


                  (5)

बंद मुठ्ठी से ,हर पल जैसे ,बे -वजह रेत फिसलती है ,

बस वैसे ही ,भीतर भीतर ,कुछ डूब रहा है ,


सांझ के ढलते सूरज ने ,इस सुबह की उगती लाली को ,

हौले से कहा है ,दूर कहीं इक शख्शियत का कत्ल हुआ है .


                     (6)

सदियों से घटा घनेरी है ,और उमस हवा में तेरी है ,


न बरसा है ,न बरसेगा ,सब सूख रहा है ,

बादल में छिपी ,कुछ बूंदों का दम ,टूट रहा है ,

दूर कहीं इक शख्शियत का कत्ल हुआ है .

               (7)

बचपन के खेल खिलौने हैं ,यौवन के ढेर फ़साने हैं ,

बूढी माँ की झुर्रियों में ,और गठरी में ,कैद ज़माने हैं ,

सदियों से  रचा बसा ,इक पल में ,छूट रहा है ,

इस पल सब है ,मानों सब पल में ,छूट रहा है ,

दूर कहीं इक शख्शियत का कत्ल हुआ है .

प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरू भाई )

अतिथि -कविता :दूर कहीं ,इक शख्शियत का कत्ल हुआ है 

2 टिप्‍पणियां:

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

वाह, बहुत मार्मिक ढंग से दिल का दर्द बयान किया है.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

कमांडर निशांत शर्मा की भावपूर्ण अभिव्यक्ति।