आज से हम अपने इस ब्लॉग को इलेकट्रोनिक समाचार पत्र का रूप दे रहें हैं .आपकी विचार प्रेरित टिप्पणियों
एवं राष्ट्र हित की रचनाओं का स्वागत है .अगर राष्ट्र बचेगा तो हम बचेंगे .वर्तमान की वोट परस्त राजनीति का का
प्रतिकार करती ये कविता प्रस्तुत है। अतिथि कवि हैं -डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश .
वोट बुझक्कड़ दिल्ली में
सत्ता जीती संसद हारी ,हारा जनमत सारा है ,
चार उचक्के दगाबाज़ दो ,मिलकर खेल बिगाड़ा है .
(1)
सात समन्दर पार कम्पनी ,ईस्ट इंडिया आई थी ,
व्योपारी के वेष में सुविधा ,बीज फूट के लाई थी .
विषकूटित वो बीज बो दिए ,राजे रजवाड़ों के मन में ,
संशय ग्रस्त हुए आपस में ,शंकित थे सब अंतरमन में ,
पासे फेंके फांस सरीखे ,छल बल और मक्कारी से ,
बन बैठे शासक पंसारी ,ऐसा पैर पसारा है ,
चार उचक्के दगा बाज़ दो ,मिलकर खेल बिगाड़ा है .
(2)
ठीक उसी का एक नमूना ,फिर से आया दिल्ली में ,
गांधारी शकुनी सहमत हैं ,फ़ितने पिठ्ठू दिल्ली में ,
लूमड़ राजनीति के ललवे ,मायावी हैं दिल्ली में ,
चौदह पीछे चार हैं आगे ,वोट बुझक्कर दिल्ली में ,
भारत तो अब द्वारपार है ,इंडिया बैठा दिल्ली में ,
भकुवों ने है बाज़ी जीती ,और मीर को मारा है ,
चार उचक्के दगा बाज़ दो मिलकर खेल बिगाड़ा है .
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
2 टिप्पणियां:
डॉ नन्द लाल जी की पंक्तियाँ तंज़ भी है और सच्ची भी हैं ...बेहद उम्दा प्रस्तुती
वीरू भाई जी आपका ब्लॉग के प्रति विचार बेहद लाजवाब है.
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है..
देश के गद्दार हर युग में रहते हैं। अच्छी कविता।
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