शनिवार, 17 अगस्त 2013

“मीठे बच्चे – संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहना है, किसी बात का फिक्र नहीं करना है”


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Posted: 16 Aug 2013 08:41 PM PDT
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    Hindi Murli
    मुरली सार:- “मीठे बच्चे – संगमयुग ब्राह्मणों के लिए कल्याणकारी है इसलिए सदा फखुर में रहना है, किसी बात का फिक्र नहीं करना है”
    प्रश्न:- जिनकी अवस्था अच्छी है, उनकी निशानियां क्या होंगी?
    उत्तर:- उन्हें किसी भी बात में रोना नहीं आयेगा। मुरझायेंगे नहीं, गम वा अफसोस नहीं होगा। हर सीन साक्षी होकर देखेंगे। कभी क्यों, क्या के प्रश्न नहीं करेंगे। किसी के नाम रूप को याद नहीं करेंगे, एक बाबा की याद में हार्षितमुख रहेंगे।
    गीत:- माता ओ माता ….
    धारणा के लिए मुख्य सार:-
    1) अपनी दैवी एक्टिविटी बनानी है। कभी भी लड़ना, झगड़ना नहीं है, कडुवा नहीं बोलना है, लोभ लालच नहीं रखना है। कोई को दु:ख नहीं देना है। सबको सुख का रास्ता बताना है।
    2) कोई भी विघ्न में संशय नहीं उठाना है, ड्रामा की निश्चित भावी समझ फखुर में रहना है, फिक्र नहीं करना है।
    वरदान:- अलौकिक जीवन की स्मृति द्वारा वृत्ति, स्मृति और दृष्टि का परिवर्तन करने वाले मरजीवा भव
    ब्राह्मण जीवन को अलौकिक जीवन कहते हैं, अलौकिक का अर्थ है इस लोक जैसे नहीं। दृष्टि, स्मृति और वृत्ति सबमें परिवर्तन हो। सदा आत्मा भाई-भाई की वृत्ति वा भाई-बहिन की वृत्ति रहे। हम सब आपस में एक परिवार के हैं – यह वृत्ति रहे और दृष्टि से भी आत्मा को देखो, शरीर को नहीं – तब कहेंगे मरजीवा। ऐसी श्रेष्ठ जीवन मिल गई तो पुरानी जीवन याद आ नहीं सकती।
    स्लोगन:- सदा शुद्ध फीलिंग में रहो तो अशुद्ध फीलिंग का फ्लू पास भी नहीं आ सकता।
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    English Murli
    (These elevated versions were spoken by BapDada on 24th June 1965 evening
    when Mateshwari left her body. Please read this murli with that awareness)
    Essence: Sweet children, the confluence age is beneficial for Brahmins. Therefore, always have spiritual intoxication. Don’t worry about anything.
    Question: What are the signs of those whose stage is good?
    Answer: They never cry about anything. They never wilt. They never feel sorrow or regret. They watch every scene as detached observers. They never ask “Why?” or “What?” They never remember the name or form of anyone. They remain cheerful in remembrance of one Baba.
    Song: Mother, o Mother, you are the bestower of fortune for the world!
    Essence for dharna:
    1. Make your activities divine. Never fight or quarrel. Don’t use bitter words. Don’t have any temptation or greed. Don’t cause anyone sorrow. Show everyone the path to happiness.
    2. Don’t have doubts when obstacles come. Understand the guaranteed destiny of the drama and maintain your spiritual intoxication. Don’t worry about anything.
    Blessing: May you die alive and transform your attitude, awareness and vision with the awareness of your alokik life.
    Brahmin life is said to be an alokik life. Alokik means not like that of this world. There should be transformation of vision, awareness and attitude. Souls should constantly have the attitude of brotherhood or brother and sister. Have the attitude that all of us belong to one family. With your vision, look at the soul and not at the body and you would then be said to have died alive. Now that you have received such an elevated life, you cannot remember your old life.
    Slogan: When you constantly maintain pure feelings, the flu of impure feelings will not be able to come even close to you.

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    "भ्रमरगीत से "-सूरदास 


    निर्गुण कौन देस को वासी ,

    मधुकर !हंसि समुझाय ,सौहं दै ,

    बूझत सांच न हाँसी। 

    को है जनक ,जननि को कहियत ,

    कौन नारि ,को दासी। 

    कैसो बरन भेस है कैसो ,

    केहि रस में अभिलासी। 

    पावेगो पुनि कियो आपुनो ,

    जो रे !कहेगो ,गांसी। 

    सुनत मौन भये ,रह्यो ठग्यो सो ,

    सूर सबै मति नासी। 

    व्याख्या :निर्गुण ब्रह्म की उपासना का सन्देश लेकर जब परमयोगी उद्धव 

    कृष्ण के  सखा गोपियों के पास पहुंचे तो गोपियों ने कुछ यूं उनका मज़ाक 

    उड़ाया। गोपियाँ जानती थीं उद्धव ज्ञानी हैं ज्ञान से तो इन्हें हराया नहीं जा 

    सकता था उपालंभ किया जा सकता था इनके साथ। तानाकशी की जा 

    सकती थी परिहास उड़ाया जा सकता था उद्धव का। गोपियाँ कृष्ण के प्रेम 

    में इतना डूब चुकीं थीं कृष्ण के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकती थीं। 

    इसलिए वह उद्धव जी से पूछती हैं :

    यह तो बताओ तुम्हारा निर्गुनिया ब्रह्म कौन से देश  का रहने वाला है। 

    क्या उसकी वेश भूषा रंग रूप है। नैन नक्श हैं ?वह सांवरा है या गोरा है ?

     निर्गुण निराकार का उद्धव क्या वेश रंग रूप बताएं हतप्रभ रह गए।उन्होंने 

    कभी सोचा भी न था गोपियाँ ऐसे सरल सहज सवाल पूछेंगी।  

    गोपियाँ कहती गईं बताओ तो सही हम उनसे भी प्रेम कर लेंगे। 

    गोपियाँ  पूछती ही गईं -जगह जगह अन्यत्र भी गोपियों ने उद्धव के साथ 

    मज़ाक किया है। कृष्ण  भी काले ,उद्धव स्वयं काले ,अकरूर  काला क्या 

    मथुरा कालों की नगरी है ?मधुकर  भँवरे को कहते हैं जो काला होता है। 

    गोपियाँ एक तरह से उद्धव के रंग रूप का भी मज़ाक उड़ा रहीं हैं। 

    हँसते हुए गोपियाँ कहतीं हैं तुम भी भँवरे की तरह काले हो ,प्रेमपूर्वक हमें 

    समझाओ हम सच कह रहीं हैं ,तुम्हें कसम खिला रहीं हैं ,तुमसे मज़ाक 

    नहीं कर रहीं हैं ये बताओ तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म का देश कौन सा है। अच्छा 

    ये तो तुम्हें पता होगा उसके बाप का नाम क्या है। उसका पिता कौन हैं ?

    शादी शुदा तो वह होगा ?हमसे प्रेम किया फिर प्रेम में हमें धोखा दिया। 

    विवाह तो उसने कर ही लिया होगा? किसी मामूली आदमी के घर नहीं 

    ग्राम प्रधान ,सामंत के घर वह पैदा हुआ है उसके दास दासी भी होंगे

     उसका रंग कैसा है ?कैसे वस्त्र पहनता है वह। कौन से रस में रूचि है 

    उसकी (करुण ,श्रृंगार,हास्य , …… ).षट रस भोजन करता होगा वह। अरे 

    !ओ भँवरे अगर हमसे झूठ बोला तो अपनी करनी का ऐसा फल पावोगे जो 

    ज़िन्दगी भर चैन से नहीं बैठ पावोगे। यह सुनकर उद्धव चुप हो गए। रूंआसे   

    हो गए उनकी तो सारी बुद्धि ही नष्ट हो गई। उन्हें पता नहीं था गोपियाँ 

    कृष्ण को इतना प्रेम करती हैं जाकर रोये थे सखा कृष्ण के पास। 

    ॐ शान्ति 



    उधौ मन नाहिं दस बीस

                                भ्रमर गीतसे एक और पद -सूरदास 

    उधौ मन नाहिं दस बीस ,

    एकहु  तो सो गयो श्याम संग ,

    को अराध तू ईस। (अब काहू राधे ईस ).. 

    भई अति शिथिल  सबै माधव बिनु ,

    यथा देह बिन सीस ,

    स्वासा अटक रहे ,आसा लगि ,

    जीव ही कोटि बरीस (वर्षों ). 


    तुम तो सखा श्याम सुन्दर के 

    सकल जोग के ईस !

    सूरजदास (सूर श्याम )रसिक की बतियाँ ,

    पुरबो (पूरा करो )  मन जगदीस। 

    व्याख्या :उधौ मन तो एक ही होता है कोई दस बीस तो होते नहीं (-यही  

    कहा  

    गोपियों ने उद्धव जी को निर्गुनिया ब्रह्म की उपासना का सन्देश लिए जो 

    गोपियों के पास पहुंचे थे। )एक जो मन था वह तो कृष्ण  को दे दिया अब 

    तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की उपासना हम किस मन से करें ?हम तुम्हारी तरह 

    योगी नहीं है तुम तो योग के पंडित हो ,तुम कर सकते हो निर्गुण आराधना 

    तुम्हारी और बात है हम तो प्रेम में विश्वास करती हैं ,निष्ठा में विश्वास 

    रखती हैं। एक व्रती हैं। कृष्ण के बिना तो हम ऐसे निष्प्राण हो गए हैं जैसे 

    बिना शीश के देह। निष्प्राण हो गईं हैं हम बस मरी नहीं हैं अभी। हमारे 

    सांस इस आस में अटके हैं ,कृष्ण दोबारा मिल जायेंगे।हमें पता है कृष्ण 

    वापस आयेंगे। चाहे करोड़ों बरस भी हमें ये कष्ट सहना पड़े हम सहर्ष सह 

    लेंगी।हमारे प्राण भी प्रतीक्षा करेंगे। 

    तुम तो योग के समर्थ ईश्वर हो ,कुछ भी कर सकते हो इतना ही कर दो -

    हमारे मन में उस रसिक कृष्ण की जो प्रेम भरी बातें हैं वही भर दो।वह 

    तुमको ही सुनाते रहे होंगें तुम तो उनके सखा हो।   तुम तो योग के सबसे 

    बड़े साधक हो। रसिक कृष्ण की बातों से हे उद्धव हमारे मन को तृप्त करो। 

    क्यों हमें और कष्ट पहुंचाते हो। 

    ॐ शान्ति। 



2 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

शास्वत सत्य.

रामराम.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सर्वसुलभ का कल्याण हो..