इस श्लोक में शुद्ध श्रृंगारिक वर्रण है। कहीं कोई बिम्ब नहीं है। बिम्बात्मक वरर्ण नहीं है यहाँ । यक्ष बादल से कहता है ,वह सृष्टि की पहली आद्या सुंदरी ऐसी होगी _
जिसका अधरोष्ठ बिम्बफल सरीखा लाल होगा जिसका कटि प्रदेश क्षीण होगा ,तथा जो बड़ी बड़ी आँखों वाली हरिणी सी चकित होकर इधर उधर देखती होगी जिसका कद भी आकार ,कदकाठी के अनुरूप लंबा होगा। नाभि अन्दर की तरफ बहुत गहरी होगी। जिसके स्तन भार की वजह से थोड़ा सा नीचे की और झुके होंगें।जो आँखें झुकाकर अलस भाव से आहिस्ता आहिस्ता चलती होगी। वह नितंभ भारणी (भारी नितम्बों वाली )चलते समय ऐसे लगेगी जैसे उसके नितम्ब भी उसके साथ साथ चल रहे हैं मचल मचल ,ठुमक ठुमक । जो वहां पर युवतियों के केलि कलापों में प्रवीण संभवतया ऐसी पहली युवती होगी जो तुम्हें सृष्टि की आदि(आद्य ) सुंदरी के रूप में दर्शित होगी।
सन्दर्भ -सामिग्री :मेहता वागीश से दूरभाष पर संवाद
प्रस्तुति :वीरुभाई
शुद्ध श्रृंगारिक भाव लिए है यह श्लोक कालिदास का
5 टिप्पणियां:
अति सुन्दर, अर्थ एवम् भाव
सुंदर।
"बादल यक्ष से कहता है ,वह सृष्टि की पहली आद्या सुंदरी ऐसी होगी... "दरअसल यक्ष बादल से कहता है वह सृष्टि की पहली आद्या सुंदरी ऐसी होगी!
हाँ सन्देश वाहक डाकिया तो बादल है और प्रेमी है यक्ष है शुक्रिया शुद्ध कराने के लिए।
सुन्दर अभिव्यक्ति .
सादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
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