जैसे उड़ी जहाज को पंछी,पुनि जहाज पर आवे,वैसे ही उड़ता है ये मन
दूर-दूर तक; अगम सुखों की अभिलाषा मे,
थक जाने की सीमा पर अकुला जाता है:
घायल हो कर.नीचे गिर कर`
भव- सागर की अनत राशि में ,
गडमड हो जाता, तो भी सह लेता यह मन
पर पीछा करता बंधन मोह-पाश का
और डोर जब भी खिचती है
तो पाता हूँ;
वही पुराना टूटा फूटा घर का एक उपेक्षित कोना
पहरेदारी सी करती हैं जहाँ कई मजबूर दृष्टियाँ
भाग ना जाए छोड़-छाड़ कर
सारे बंधन तोड़- ताड़ कर
इसीलिए तो लौह-शृंखलाओं में अब जकड़ा बैठा हूँ,
और एक मजबूर आह लेकर कहता हूँ:
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे ,
जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पे आवे।
कमल नैन को छांड़ी महातम ,और देव को ध्यावे ,
परम ब्रह्म को छांड़ी दिया तो ,दुरमति खूब खनावे ,
जिहिं मधुकर अम्बुज रस चाख्यो ,क्यों करील फल भावे ,
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि ,छेरी कौन दुहावे।
दूर-दूर तक; अगम सुखों की अभिलाषा मे,
थक जाने की सीमा पर अकुला जाता है:
घायल हो कर.नीचे गिर कर`
भव- सागर की अनत राशि में ,
गडमड हो जाता, तो भी सह लेता यह मन
पर पीछा करता बंधन मोह-पाश का
और डोर जब भी खिचती है
तो पाता हूँ;
वही पुराना टूटा फूटा घर का एक उपेक्षित कोना
पहरेदारी सी करती हैं जहाँ कई मजबूर दृष्टियाँ
भाग ना जाए छोड़-छाड़ कर
सारे बंधन तोड़- ताड़ कर
इसीलिए तो लौह-शृंखलाओं में अब जकड़ा बैठा हूँ,
और एक मजबूर आह लेकर कहता हूँ:
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे ,
जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पे आवे।
कमल नैन को छांड़ी महातम ,और देव को ध्यावे ,
परम ब्रह्म को छांड़ी दिया तो ,दुरमति खूब खनावे ,
जिहिं मधुकर अम्बुज रस चाख्यो ,क्यों करील फल भावे ,
सूरदास प्रभु कामधेनु तजि ,छेरी कौन दुहावे।
भावार्थ :संसार सागर में माया अगाध जल है। लोभ की लहरें हैं। काम
मगरमच्छ है।
मन को अनंत सुख चाहिये। ये शरीर अंत वाला है तो इसके सुख भी
सीमित ही होंगें। मुझे(आत्मा को ) तो आकाश की तरह व्यापक सुख
चाहिए। मन को (आत्मा की मनन शक्ति को )अखंड सुख चाहिए जो एक
मात्र परमात्मा के संसर्ग में ही संभव हैं। जैसे जहाज से उड़े पंछी को सिर्फ
जहाज पर ही विश्राम मिलेगा। संसार के हद के ,अस्थाई सुखों से अशांति
ही मिलेगी। कामधेनु को छोड़कर कौन बकरी को दुहता है। संसार का
भोग तभी तक मीठा लग रहा है जब तक उससे ज्यादा मधुर स्वाद कोई
और न चखा हो।संसार के भोग मीठे लग रहें हैं क्योंकि भगवान के पास
बैठने का स्वाद अभी हम जानते ही नहीं हैं।
जिस भौंरे ने कमल पराग का रस चख लिया हो वह करील के वृक्ष पर
क्यों
जाएगा जहां न पुष्प हैं न पत्ते।
कामधेनु (नंदिनी )कामनाओं को पूरा करने वाली गाय है। और करील एक
ऐसा वृक्ष है जिस पर फूल नहीं लगते ऐसा कहा जाता है।
ॐ शान्ति
सन्दर्भ -सामिग्री :गुरु योगी आनंद जी एवं डॉ ब्रिजेश जी।
मन को अनंत सुख चाहिये। ये शरीर अंत वाला है तो इसके सुख भी
सीमित ही होंगें। मुझे(आत्मा को ) तो आकाश की तरह व्यापक सुख
चाहिए। मन को (आत्मा की मनन शक्ति को )अखंड सुख चाहिए जो एक
मात्र परमात्मा के संसर्ग में ही संभव हैं। जैसे जहाज से उड़े पंछी को सिर्फ
जहाज पर ही विश्राम मिलेगा। संसार के हद के ,अस्थाई सुखों से अशांति
ही मिलेगी। कामधेनु को छोड़कर कौन बकरी को दुहता है। संसार का
भोग तभी तक मीठा लग रहा है जब तक उससे ज्यादा मधुर स्वाद कोई
और न चखा हो।संसार के भोग मीठे लग रहें हैं क्योंकि भगवान के पास
बैठने का स्वाद अभी हम जानते ही नहीं हैं।
जिस भौंरे ने कमल पराग का रस चख लिया हो वह करील के वृक्ष पर
क्यों
जाएगा जहां न पुष्प हैं न पत्ते।
कामधेनु (नंदिनी )कामनाओं को पूरा करने वाली गाय है। और करील एक
ऐसा वृक्ष है जिस पर फूल नहीं लगते ऐसा कहा जाता है।
ॐ शान्ति
सन्दर्भ -सामिग्री :गुरु योगी आनंद जी एवं डॉ ब्रिजेश जी।
8 टिप्पणियां:
मन को संतुष्टि और शांति मिले वो राह ही अलग है....
ज्ञान और शांति देणे वाला सुर दास की रचना -आभार
latest post नेता उवाच !!!
latest post नेताजी सुनिए !!!
सूर ज्ञान .. और आलोकिक दर्शन ... चित की खुराक तो यही है ...
राम राम जी ...
नीर पीवन हेतु गयो
सिंधु के किनारे ...
सिंधु बीच बसत ग्राह चरण धरी पछारे ...
अब तो जीवन हारे ...
सुंदर ज्ञानमई पोस्ट ....!!आभार ।
बहुत ही सारवान आलेख.
रामराम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
आपकी शुभकामनाओं के लिए आभारी हूँ.
विचार गाम्भीर्य लिए
ओम शांति.
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