सब ग्रन्थों का सार है गीता :योगीआनंदजी द्वारा दिए गए प्रवचन पर आधारित (छ :अगस्त ,२०१३ ,साउथ ब्लूमफील्ड माउनटेन्स ,पोंटियाक ट्रेल ,मिशिगन )
साधारण सी मेले ठेले में मिलने वाली बांसुरी से असाधारण स्वर निकालते हुए योगी आनंदजी ने प्रवचन संध्या को अप्रतिम माधुर्य से भर दिया था। मन्त्रों की महिमा का बखान करते हुए आपने कहा -मन्त्र न सिर्फ ईश्वर का आवाहन करते हैं हमारे ब्रेन के लिए भी एक टोनिक (आसव )का काम करते हैं। ब्रेन फ़ूड हैं मन्त्र जो दिमाग में भरे सारे कचरे को बाहर निकालने की सामर्थ्य लिए रहते हैं।
गीता के महत्व को बतलाने के लिए आपने औरंगजेब के भाई दारा शिकोह का उद्धरण दिया जो सुकून के तलाश में काशी की तरफ निकल आये थे। आप ने काशी के विद्वानों से उन्हें देवभाषा संस्कृत सिखलाने का आवाहन किया ताकी आप पुराणों में बिखरे हुए ज्ञान रत्नों का अरबी फारसी में अनुवाद कर अपने राज्य की प्रजा तक पहुंचा सकें। इस समस्त रूहानी ज्ञान से आप चमत्कृत और सम्मोहित थे। काशी के समस्त विद्वानों ने दारा को संस्कृत भाषा सिखाने से इस बिना पर इनकार कर दिया ,वह एक यवन थे।
दारा लौटने लगे अपने लोगों की तरफ मार्ग में उनका साक्षात्कार एक ऐसे सन्यासी से हुआ जो सांसारिक प्रपंचों जाति और धर्म भेद का अतिक्रमण कर चुके थे। इस सन्यासी ने दारा को संस्कृत भाषा में पारंगत बना दिया। दारा ने पूरी निष्ठा और अथक परिश्रम और लगन के साथ तकरीबन ५२ प्राचीन धर्म ग्रंथों और पुराणों का अरबी फ़ारसी में अब तक अनुवाद कर लिया था। लेकिन समय के साथ उनकी शारीरिक ऊर्जा चुकने लगी थी वह लौट ही रहे थे वह परम हंस सन्यासी उन्हें मार्ग में फिर मिल गए। दारा को अभी भी मलाल रह गया था क्योंकि धर्मग्रन्थ तो अभी अनेक थे जो अनुवादित होने के लिए शेष थे। सन्यासी को दारा ने अपने मन की व्यथा बतलाई।
सन्यासी ने कहा -बड़े अज्ञानी निकले तुम तो जीवन के इतने बरस यूं ही खराब कर दिए -सिर्फ एक गीता का अनुवाद कर देते तो सब ग्रंथों का सार समझ लेते।
कैसे हमारा जीवन सफल हो सकता है ,भरपूर और संपन्न हो सकता है यह गीता में यथार्थ विधि बतलाया गया है। इसके लिए कुछ छोड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। जो जहां हैं वहीँ ठीक है। वहीँ रहते हुए व्यक्ति हरेक बीमारी ,अनेक दुखों और नकारात्मकता से बच सकता है। बस गीता के अनुशीलन की ज़रुरत है। भागवत गीता व्यक्ति को अन्दर से शांत और स्वस्थ चित्त बना जीवन जीना सिखला देती है।
तुम्हें तुम ही से मिलवा देती है गीता। तुम कौन हो तुम्हारा असल परिचय क्या है आज का व्यक्ति यह भी नहीं जानता है। उसकी नियति उस यंत्र मानव (रोबो )सी हो गई है जो दुनिया भर के सवालों का तो ज़वाब जानता है लेकिन उस से उसका हाल पूछो तो बगलें झाँकने लगेगा।अगर जीवन जीने की कला ही हमारे पास नहीं है तो बाहर का हासिल सब कुछ सारे भौतिक सुख साधन हम अपने साथ लेकर डूबेंगे।
मन का ,आत्मा का खालीपन पैसे से नहीं खरीदा जा सकता है। परमात्मा का परिचय हमें आत्मिक संतुष्टि से भर सकता है। संसार असार नहीं है ऐसा बिलकुल नहीं है की इस भौतिक जगत का कोई मतलब नहीं है लेकिन जो ईश्वर ज्ञान है वही ईश्वर तत्व सब का संचालक है।
हम कौन हैं कहाँ से आये हैं यह ही पता नहीं है आज के आदमी को। जीवन कोई रुके हुए तालाब का जल नहीं है वेगवती नदी की तरह प्रवाहमान है। गीता सारी सूचना (सूचना प्रोद्योगिकी ,इन्फर्मेशन टेक्नालोजी )का ज्ञान छिपाए हुए है। गीता पढ़ने से आपका जीवन आसान हो जाएगा। अहंकार नहीं आयेगा। खुद तमाशबीन बन खुद को ,जीवन को दृष्टा भाव से देख सकोगे।
आनंदजी फिर एक उद्धरण देते हैं एक मदारी था जो एक के बाद एक हतप्रभ करने वाले करतब दिखलाता ही जा रहा था। लेकिन उस मदारी के झमूरे के चेहरे पर कोई भाव ही नहीं था वह निर्भाव ही था। किसी ने पूछा भाई तुम चमत्कृत दिखलाई नहीं देते। क्या मांजरा है। झमूरा बोला -मैं सब जानता हूँ। इन करतबों की सचाई मुझे मालूम है इसलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं है।
आप सिर्फ एक श्लोक गीता के हरेक अध्याय से चुन लें और इसका पारायण आरम्भ कर दें। आपको रोज़ अच्छी नींद आयेगी। घर में जगह जगह उसको प्रदर्शित करो प्ले कार्ड लगा दो श्लोक लिखके। उस श्लोक का जीवन दर्शन जानो। जीवन का सारा विज्ञान आपके सामने खुलके ठहर जाएगा।
अर्जुन ने भगवान से पूछा -भगवन ऐसा व्यक्ति जो बहुत व्यस्त रहता है वह आपको कैसे प्राप्त कर सकता है। आज ऐसे लोग हैं जिनके पास अपार संपदा है लेकिन खाने के लिए भी वक्त नहीं है।
भगवान बोले -जो तुम्हारा भटकता हुआ मन है वह मुझे दे दो। अपनी बुद्धि भी मुझे दे दो। इससे तुम मेरे अन्दर निवास करोगे। अब मन और बुद्धि कोई भौतिक वस्तु कोई फल या फूल तो है नहीं जो उठाओ और भगवान को दे दो।
भगवान फिर कहते हैं :आँख के द्वारा देखने का ,कानों द्वारा सुनने का ,जीभ द्वारा स्वाद लेने का काम तुम नहीं कोई और कर रहा है। इन्दियाँ अपने अपने स्वभाव में संलिप्त हैं यह तुम नहीं हो। अपना दिलचस्पी लेने वाला उपभोक्ता बन स्वाद लेने रूप और ध्वनि का उपभोक्ता बनने वाला स्वभाव मुझे दे दो।
इन्द्रीय सुख बोध छोड़ दो। अब जीवन निर्वाह के लिए स्वास्थ्य के लिए जीवन में व्यवस्था के लिए जीओ। देखो कौन सा भोजन तुम्हारे लिए उपयुक है स्वास्थ्यकर भोजन ही करो स्वाद के लिए नहीं। स्नान करो स्वच्छता के लिए। शरीर रुपी मंदिर को पवित्र बनाए रखने के लिए। वस्त्र पहनो मर्यादा के लिए। मंदिर जाओ तो भगवान के प्रेम से संसिक्त हो जाओ यह बतलाने दिखाने के लिए नहीं ,हम बहुत धार्मिक हैं।धर्म कर्म करने वाले हैं पूजा पाठी हैं। इस बाहरी स्वरूप से कोई प्राप्ति नहीं होने वाली है। दिखाऊँ हैं ये सब चीज़।
भगवान के साथ हर चीज़ को जोड़ दो। वह पवित्र हो जायेगी। जिस चीज़ से मन परेशानी से भरता है वह मन ही मुझसे जोड़ दो। केला हो या सेव या फिर कोई अन्य अन्न या मिष्ठान्न ईश्वर अर्पण के बाद वही प्रसाद हो जाता है।भगवान ने कहा अपनी वह बुद्धि ही मुझे दे दो जो संशय ग्रस्त बनी रहती है । इस संशय बुद्धि को ही मुझे दे दो। तुम कर्म करो निर्णय करने की शक्ति बुद्धि को हम देंगे।
जितना अधिक इन्द्रीय सुख भोग करते रहोगे उसी अनुपात में बीमार भी होते रहोगे। जीवन औषधालय हो जाएगा दवा खा खा के। जो व्यक्ति इस बुद्धि को मेरे से लगाता है वह मेरे में ही निवास करता है।
आज का आदमी कहता है यह मन और बुद्धि तो पहले ही ३६ जगह व्यस्त है आपसे कैसे लगाएं। भगवान कहते हैं यदि तुम असमर्थ हो ऐसा नहीं कर सकते तो सिर्फ अभ्यास करो। लेकिन अभ्यास निरंतर होना चाहिए। टुकड़ा आपके मुंह में ही जाता है क्योंकि बचपन से खाने का अभ्यास जो है।
नारद जी ने एकलव्य को एक मन्त्र ही दिया था। हे एकलव्य अभ्यास ही गुरु है। द्रोण ने तुम्हें धनुर्विद्या नहीं सिखलाई तो क्या। तुम्हारा अभ्यास तो तुमसे कोई नहीं छीन सकता है। इसे ही अपना गुरु बनाओ।
गीता तो हमने आपको पढ़ा दिया और अनेक लोग गीता पर बोल रहें हैं लेकिन ज्ञान को जब तक प्रयोग में नहीं लाओगे एक मेथड एक प्रोद्योगिकी में नहीं बदलोगे ज्ञान को तो उसका असर भी कैसे होगा। अर्जुन ने कहा अभ्यास के लिए समय नहीं हैं। हम सब ऐसे ही अर्जुन हैं।
गुरु आनंदजी ने कहा शान्ति से भरा भोजन ही प्राण तत्व पैदा करता है। शान्ति नहीं है क्योंकि भोजन के लिए भी पूरा समय नहीं है। अभ्यास कैसे हो भगवान ने इसके लिए भी गीता में एक युक्ति बतलाई है :
एक मन्त्र बतलाया है अभ्यास को साधने का। चलो अभ्यास भी नहीं कर सकते हो तो न सही। मेरे लिए कर्म करो। सब कुछ भगवान को ही जाता है यह सोच के कर्म करो। एक व्यक्ति घर की सफाई कर रहा है बस इतना सोच ले सफाई करते वक्त घर मेरा नहीं है भगवान का है। यह जीवन भी भगवान का है।जो भी कुछ करो भगवान को खुश करने के लिए ही करो। जितने भी दिव्यगुण हैं वह सभी भगवान को अच्छे लगते हैं। देखो तो सही -अपने जीवन से हम कितना बुराई को अलग कर पा रहे हैं। अच्छाई को कितना ग्रहण कर पा रहें हैं। तो भगवान बतलायेगा देखो मैं ये हूँ। भगवान ने स्वयम कहा गीता में -जो भी कर्म करो इस भाव से करो ,भगवान के लिए कर रहा हूँ। ऐसा करने से भगवानमय बना सकता है व्यक्ति जीवन और जगत को। हर चीज़ फिर भगवान की ही लगेगी।
आनंदजी ने बतलाया एक स्वभाव हम जन्म जन्मान्तर से लिए आ रहे हैं एक स्वभाव हमारा संग साथ बनाता है। अच्छे लोगों का संग साथ रखो। संसार की सफलता से भी कहीं श्रेष्ठ है आध्यात्मिक असफलता।
ॐ शान्ति।
साधारण सी मेले ठेले में मिलने वाली बांसुरी से असाधारण स्वर निकालते हुए योगी आनंदजी ने प्रवचन संध्या को अप्रतिम माधुर्य से भर दिया था। मन्त्रों की महिमा का बखान करते हुए आपने कहा -मन्त्र न सिर्फ ईश्वर का आवाहन करते हैं हमारे ब्रेन के लिए भी एक टोनिक (आसव )का काम करते हैं। ब्रेन फ़ूड हैं मन्त्र जो दिमाग में भरे सारे कचरे को बाहर निकालने की सामर्थ्य लिए रहते हैं।
गीता के महत्व को बतलाने के लिए आपने औरंगजेब के भाई दारा शिकोह का उद्धरण दिया जो सुकून के तलाश में काशी की तरफ निकल आये थे। आप ने काशी के विद्वानों से उन्हें देवभाषा संस्कृत सिखलाने का आवाहन किया ताकी आप पुराणों में बिखरे हुए ज्ञान रत्नों का अरबी फारसी में अनुवाद कर अपने राज्य की प्रजा तक पहुंचा सकें। इस समस्त रूहानी ज्ञान से आप चमत्कृत और सम्मोहित थे। काशी के समस्त विद्वानों ने दारा को संस्कृत भाषा सिखाने से इस बिना पर इनकार कर दिया ,वह एक यवन थे।
दारा लौटने लगे अपने लोगों की तरफ मार्ग में उनका साक्षात्कार एक ऐसे सन्यासी से हुआ जो सांसारिक प्रपंचों जाति और धर्म भेद का अतिक्रमण कर चुके थे। इस सन्यासी ने दारा को संस्कृत भाषा में पारंगत बना दिया। दारा ने पूरी निष्ठा और अथक परिश्रम और लगन के साथ तकरीबन ५२ प्राचीन धर्म ग्रंथों और पुराणों का अरबी फ़ारसी में अब तक अनुवाद कर लिया था। लेकिन समय के साथ उनकी शारीरिक ऊर्जा चुकने लगी थी वह लौट ही रहे थे वह परम हंस सन्यासी उन्हें मार्ग में फिर मिल गए। दारा को अभी भी मलाल रह गया था क्योंकि धर्मग्रन्थ तो अभी अनेक थे जो अनुवादित होने के लिए शेष थे। सन्यासी को दारा ने अपने मन की व्यथा बतलाई।
सन्यासी ने कहा -बड़े अज्ञानी निकले तुम तो जीवन के इतने बरस यूं ही खराब कर दिए -सिर्फ एक गीता का अनुवाद कर देते तो सब ग्रंथों का सार समझ लेते।
कैसे हमारा जीवन सफल हो सकता है ,भरपूर और संपन्न हो सकता है यह गीता में यथार्थ विधि बतलाया गया है। इसके लिए कुछ छोड़ने की भी आवश्यकता नहीं है। जो जहां हैं वहीँ ठीक है। वहीँ रहते हुए व्यक्ति हरेक बीमारी ,अनेक दुखों और नकारात्मकता से बच सकता है। बस गीता के अनुशीलन की ज़रुरत है। भागवत गीता व्यक्ति को अन्दर से शांत और स्वस्थ चित्त बना जीवन जीना सिखला देती है।
तुम्हें तुम ही से मिलवा देती है गीता। तुम कौन हो तुम्हारा असल परिचय क्या है आज का व्यक्ति यह भी नहीं जानता है। उसकी नियति उस यंत्र मानव (रोबो )सी हो गई है जो दुनिया भर के सवालों का तो ज़वाब जानता है लेकिन उस से उसका हाल पूछो तो बगलें झाँकने लगेगा।अगर जीवन जीने की कला ही हमारे पास नहीं है तो बाहर का हासिल सब कुछ सारे भौतिक सुख साधन हम अपने साथ लेकर डूबेंगे।
मन का ,आत्मा का खालीपन पैसे से नहीं खरीदा जा सकता है। परमात्मा का परिचय हमें आत्मिक संतुष्टि से भर सकता है। संसार असार नहीं है ऐसा बिलकुल नहीं है की इस भौतिक जगत का कोई मतलब नहीं है लेकिन जो ईश्वर ज्ञान है वही ईश्वर तत्व सब का संचालक है।
हम कौन हैं कहाँ से आये हैं यह ही पता नहीं है आज के आदमी को। जीवन कोई रुके हुए तालाब का जल नहीं है वेगवती नदी की तरह प्रवाहमान है। गीता सारी सूचना (सूचना प्रोद्योगिकी ,इन्फर्मेशन टेक्नालोजी )का ज्ञान छिपाए हुए है। गीता पढ़ने से आपका जीवन आसान हो जाएगा। अहंकार नहीं आयेगा। खुद तमाशबीन बन खुद को ,जीवन को दृष्टा भाव से देख सकोगे।
आनंदजी फिर एक उद्धरण देते हैं एक मदारी था जो एक के बाद एक हतप्रभ करने वाले करतब दिखलाता ही जा रहा था। लेकिन उस मदारी के झमूरे के चेहरे पर कोई भाव ही नहीं था वह निर्भाव ही था। किसी ने पूछा भाई तुम चमत्कृत दिखलाई नहीं देते। क्या मांजरा है। झमूरा बोला -मैं सब जानता हूँ। इन करतबों की सचाई मुझे मालूम है इसलिए मुझे कोई आश्चर्य नहीं है।
आप सिर्फ एक श्लोक गीता के हरेक अध्याय से चुन लें और इसका पारायण आरम्भ कर दें। आपको रोज़ अच्छी नींद आयेगी। घर में जगह जगह उसको प्रदर्शित करो प्ले कार्ड लगा दो श्लोक लिखके। उस श्लोक का जीवन दर्शन जानो। जीवन का सारा विज्ञान आपके सामने खुलके ठहर जाएगा।
अर्जुन ने भगवान से पूछा -भगवन ऐसा व्यक्ति जो बहुत व्यस्त रहता है वह आपको कैसे प्राप्त कर सकता है। आज ऐसे लोग हैं जिनके पास अपार संपदा है लेकिन खाने के लिए भी वक्त नहीं है।
भगवान बोले -जो तुम्हारा भटकता हुआ मन है वह मुझे दे दो। अपनी बुद्धि भी मुझे दे दो। इससे तुम मेरे अन्दर निवास करोगे। अब मन और बुद्धि कोई भौतिक वस्तु कोई फल या फूल तो है नहीं जो उठाओ और भगवान को दे दो।
भगवान फिर कहते हैं :आँख के द्वारा देखने का ,कानों द्वारा सुनने का ,जीभ द्वारा स्वाद लेने का काम तुम नहीं कोई और कर रहा है। इन्दियाँ अपने अपने स्वभाव में संलिप्त हैं यह तुम नहीं हो। अपना दिलचस्पी लेने वाला उपभोक्ता बन स्वाद लेने रूप और ध्वनि का उपभोक्ता बनने वाला स्वभाव मुझे दे दो।
इन्द्रीय सुख बोध छोड़ दो। अब जीवन निर्वाह के लिए स्वास्थ्य के लिए जीवन में व्यवस्था के लिए जीओ। देखो कौन सा भोजन तुम्हारे लिए उपयुक है स्वास्थ्यकर भोजन ही करो स्वाद के लिए नहीं। स्नान करो स्वच्छता के लिए। शरीर रुपी मंदिर को पवित्र बनाए रखने के लिए। वस्त्र पहनो मर्यादा के लिए। मंदिर जाओ तो भगवान के प्रेम से संसिक्त हो जाओ यह बतलाने दिखाने के लिए नहीं ,हम बहुत धार्मिक हैं।धर्म कर्म करने वाले हैं पूजा पाठी हैं। इस बाहरी स्वरूप से कोई प्राप्ति नहीं होने वाली है। दिखाऊँ हैं ये सब चीज़।
भगवान के साथ हर चीज़ को जोड़ दो। वह पवित्र हो जायेगी। जिस चीज़ से मन परेशानी से भरता है वह मन ही मुझसे जोड़ दो। केला हो या सेव या फिर कोई अन्य अन्न या मिष्ठान्न ईश्वर अर्पण के बाद वही प्रसाद हो जाता है।भगवान ने कहा अपनी वह बुद्धि ही मुझे दे दो जो संशय ग्रस्त बनी रहती है । इस संशय बुद्धि को ही मुझे दे दो। तुम कर्म करो निर्णय करने की शक्ति बुद्धि को हम देंगे।
जितना अधिक इन्द्रीय सुख भोग करते रहोगे उसी अनुपात में बीमार भी होते रहोगे। जीवन औषधालय हो जाएगा दवा खा खा के। जो व्यक्ति इस बुद्धि को मेरे से लगाता है वह मेरे में ही निवास करता है।
आज का आदमी कहता है यह मन और बुद्धि तो पहले ही ३६ जगह व्यस्त है आपसे कैसे लगाएं। भगवान कहते हैं यदि तुम असमर्थ हो ऐसा नहीं कर सकते तो सिर्फ अभ्यास करो। लेकिन अभ्यास निरंतर होना चाहिए। टुकड़ा आपके मुंह में ही जाता है क्योंकि बचपन से खाने का अभ्यास जो है।
नारद जी ने एकलव्य को एक मन्त्र ही दिया था। हे एकलव्य अभ्यास ही गुरु है। द्रोण ने तुम्हें धनुर्विद्या नहीं सिखलाई तो क्या। तुम्हारा अभ्यास तो तुमसे कोई नहीं छीन सकता है। इसे ही अपना गुरु बनाओ।
गीता तो हमने आपको पढ़ा दिया और अनेक लोग गीता पर बोल रहें हैं लेकिन ज्ञान को जब तक प्रयोग में नहीं लाओगे एक मेथड एक प्रोद्योगिकी में नहीं बदलोगे ज्ञान को तो उसका असर भी कैसे होगा। अर्जुन ने कहा अभ्यास के लिए समय नहीं हैं। हम सब ऐसे ही अर्जुन हैं।
गुरु आनंदजी ने कहा शान्ति से भरा भोजन ही प्राण तत्व पैदा करता है। शान्ति नहीं है क्योंकि भोजन के लिए भी पूरा समय नहीं है। अभ्यास कैसे हो भगवान ने इसके लिए भी गीता में एक युक्ति बतलाई है :
एक मन्त्र बतलाया है अभ्यास को साधने का। चलो अभ्यास भी नहीं कर सकते हो तो न सही। मेरे लिए कर्म करो। सब कुछ भगवान को ही जाता है यह सोच के कर्म करो। एक व्यक्ति घर की सफाई कर रहा है बस इतना सोच ले सफाई करते वक्त घर मेरा नहीं है भगवान का है। यह जीवन भी भगवान का है।जो भी कुछ करो भगवान को खुश करने के लिए ही करो। जितने भी दिव्यगुण हैं वह सभी भगवान को अच्छे लगते हैं। देखो तो सही -अपने जीवन से हम कितना बुराई को अलग कर पा रहे हैं। अच्छाई को कितना ग्रहण कर पा रहें हैं। तो भगवान बतलायेगा देखो मैं ये हूँ। भगवान ने स्वयम कहा गीता में -जो भी कर्म करो इस भाव से करो ,भगवान के लिए कर रहा हूँ। ऐसा करने से भगवानमय बना सकता है व्यक्ति जीवन और जगत को। हर चीज़ फिर भगवान की ही लगेगी।
आनंदजी ने बतलाया एक स्वभाव हम जन्म जन्मान्तर से लिए आ रहे हैं एक स्वभाव हमारा संग साथ बनाता है। अच्छे लोगों का संग साथ रखो। संसार की सफलता से भी कहीं श्रेष्ठ है आध्यात्मिक असफलता।
ॐ शान्ति।
4 टिप्पणियां:
सुबह सत्संग के लिए आभार वीरू भाई..
bahut hi sundar vyakya gita ki
गीता का ज्ञान सहज सरल भाषा में..आभार !
बहुत ही शांति प्रदायक आलेख,
रामराम.
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