शनिवार, 17 अगस्त 2013

विलग जनि मानो उधौ प्यारे , यह मथुरा की काजर कोठरि , जेहिं आवत तेहिं कारे।

भ्रमरगीत से एक पद और 


विलग जनि मानो उधौ प्यारे ,

यह मथुरा की काजर कोठरि ,

जेहिं आवत तेहिं कारे।

तुम कारे ,सुफलक सुत  कारे ,

कारे मधुप भंवारे।

तिन के संग अधिक छवि उपजत ,

कमल नैन मनियारे ,

रै यमुना ज्यों पखारे ,

तागुन श्याम भई कालिंदी ,

सूर श्याम गुण न्यारे।

व्याख्या :प्रसंग है जब उद्धव गोपियों के पास निर्गुण ब्रह्म की उपासना का सन्देश लेकर पहुंचे तो गोपियों ने

उनका इस  प्रकार उपहास उड़ाया। उनका सब ज्ञान हवा हो गया। गोपियाँ उद्धव से कहतीं हैं :

प्रिय उद्धव! तुम हमारी बात का बुरा मत मानना हम तो अनपढ़ गोपियाँ हैं पर हमें  तो लगता है यह मथुरा

काजल की कोठरी है जो भी उधर से आता है वह काला ही होता है। तन भी काला दिल भी काला। सब कुछ

काला ही काला होता है उसका । तुम भी ज्ञान की ही बातें कर रहे हो हमारे पास जितने भी मथुरा से संदेशे

लेकर आये हैं

उनमें से कोई गोरा आया हो तो कह देना। तुम भी काले हो और वह अकरूर (सुफलक सुत )आया था वह भी

काला ही था।  और ये  भवंरा भी जो हरजाई सा घूम रहा है जो ऐसा लगता है हमारी बातें सुन रहा है यह भी

निपट काला है। ये भी उधर से ही आया है।

अरे तुम सब कालों का जो शिरोमणि है जिसकी कमल जैसी आँखें हैं ऐसे लगता है जैसे मणि वाला काला सर्प

हो। उसी की डसी हुई हम जैसे तैसे अपने जीवन को संभाल रही हैं। तुम आपस में सारे काले काले इकठ्ठे हो

जाते हो तू सुन्दरता और  भी बढ़ जाती है। तुम बुरा न मानना हमारी बातों का। गोपियाँ व्यंग्य बाण चलाये जा

रही हैं। उपालम्भ पे उपालम्भ किये जा रहीं हैं। उद्धव हतप्रभ हैं।

तुम सबको देखकर ऐसा लगता है जैसे सबको नील के मटके में डुबो के निकाला हो और फिर गोरा करने के

लिए यमुना में धौ दिया हो। तुम तो गोरे फिर भी  नहीं हुए यमुना ही काली हो गई। तुम्हारी कालिख नहीं उतरी

यमुना

काली ज़रूर हो गई।

अरे !कालों तुम्हारी तो लीला ही निराली है। काले पे तो कोई रंग चढ़ता नहीं है। तुम पे तो किसी का असर  होगा

नहीं। तुम्हें यमुना को क्या साफ़ करना था।


ॐ शान्ति।


1 टिप्पणी:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही निर्मल.

रामराम.