शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

अर्जुन विषाद योग (गीता अध्याय -१ ,श्लोक ३ ८ -४ २ ,पूर्व पोस्ट से आगे )

अर्जुन विषाद योग (गीता अध्याय -१ ,श्लोक ३ ८ -४ २ ,पूर्व पोस्ट से आगे )

शब्द श :अनुवाद (श्लोक ३८ )

अपने कर्तव्य से भागने के लिए अर्जुन बुद्धि पूर्वक तर्क देते हुए भगवान से 

कहते हैं :इनके (कौरव कुल )के ज्ञान को लोभ ने ढ़क लिया है इसलिए ये 

खानदान के विनाश और आगे चलके उससे होने वाले दोष को नहीं देख पा 

रहे हैं। क्या हम विवेकवान लोगों को भी उनके जैसा बन जाना चाहिए। 

(३९)हमें इन पापों से बचने के लिए क्यों प्रयत्न नहीं करना चाहिए ?

(४ ० )कुल के नाश से  हमारे सनातन कुल धर्म नष्ट हो जायेंगे और धर्म के 

नष्ट हो जाने से सब तरफ पाप फ़ैल जाएगा। 

(४१ )हे !कृष्ण अधर्म के फ़ैल जाने से कुल की स्त्रियाँ व्यभिचारी हो 

जायेंगी। उनकी सुरक्षा कौन करेगा ?स्त्रियों के दूषित हो जाने से वर्ण संकर 

प्रजा उत्पन्न होगी। क्या वार्ष्णेय तुम अपने वृष्ण कुल का इस तरह 

विनाश चाहोगे ?अर्जुन प्रतिप्रश्न करते हैं भगवान से  ही। 

(४२ )जब कुल खानदान में वर्ण संकर प्रजा पैदा होगी ऐसी प्रजा  पूरे 

 खानदान को ही नर्क में ले जायेगी। उनके द्वारा किये गए पिंड  पानी 

पितरों को स्वीकार्य नहीं होंगें।इससे पूर्वजों  को अशांति ही मिलेगी। 

(४३)वर्ण संकर कुलघातियों के इन दोषों के द्वारा जो सनातन और जाति 

 धर्म हैं वह नष्ट हो जायेंगे  . हमारे पूर्वजों को कलंक लगेगा और उनका 

आगे भी फिर  पतन होता जाएगा। जाति दोष भी उत्पन्न हो जाएगा। 

जाति -वर्ण व्यवस्था टूट जायेगी समाज बिखर जाएगा। 

(४४ )हे जनार्दन !जिनका जाति धर्म कुल धर्म नष्ट हो जाता है ऐसे लोगों 

का फिर अनिश्चित काल तक नर्क में ही निवास होता है। ऐसा हमने सुना 

है। 

(४५ )अरे !कितने दुःख की बात है ,हम बुद्धिमान होते हुए भी इतना बड़ा 

पाप करने को तैयार हो गए। और वह पाप भी कैसा, हम अपने कुल के 

लोगों को मारने के लिए तैयार हो गए। नश्वर राज्य के लौकिक सुख मात्र 

के लिए। 


(४६ )अर्जुन कहते हैं :हे भगवन !यदि मुझको शस्त्र रहित और प्रतिकार न 

करने वाले व्यक्ति को धृतराष्ट्र पक्ष के लोग मार भी डालें तो मैं उसे भी 

अपने लिए बहुत कल्याण कारी मानता हूँ। 

(४७)रणभूमि में शोक से भरे मन वाला अर्जुन बाण सहित धनुष को फेंक 

कर के रथ के पिछले भाग में जाकर बैठ जाता है। 

धारणा के लिए सार और विस्तृत व्याख्या :

हमारे रोज़मर्रा के जीवन में भी व्यक्ति जिस काम को नहीं करना चाहता है उसके समर्थन में अनेक तर्क जुटा लेता है। अर्जुन वही कर रहें हैं क्योंकि वह युद्ध नहीं करना चाहते। यहाँ देखने वाली बात यह है भगवान एक बालक की तरह चुपचाप सुन रहे हैं। प्रेम पूर्वक सामने वाले की बात सुन लेने से उसकी भाव शान्ति हो जाती है। भगवान यह भलीभांति जानते हैं इसलिए सब कुछ चुपचाप सुन रहें हैं ध्यान पूर्वक।

अर्जुन तो जैसे भगवान की ही कोंसेलिंग कर रहें हैं। 

ऊंचा चढ़ने के लिए व्यक्ति को गहरी खाई से शुरुआत करनी होती है। भागवत गीता के पहले श्लोक से गीता की शुरुआत होती है। इस अध्याय का नाम ही है अर्जुन विषाद योग।अर्जुन को भी ऊंचे ते ऊंचा चढ़ना है।  

यहाँ अर्जुन अपने कर्तव्य से भागने के लिए तरह तरह की दलील दे रहें हैं। ताकि भगवान भी कह उठे -चलो छोड़ो न सही मत करो युद्ध। अर्जुन सारे तर्क बुद्धिमत्ता पूर्ण दे रहें हैं :

यदि धृत राष्ट्र पक्ष के लोग नहीं देख पा रहें हैं तो उसकी वजह उनका लोभ 

है जिसने उनके विवेक को आच्छादित कर  दिया है। जैसे सूर्य से ही बादल 

बनते हैं, सूर्य से ताप लेकर जल भाप बन उड़ जाता है ऊपर उठकर ठंडा हो 

बादल बन जाता है और फिर यह बादल सूर्य को ही आच्छादित कर देता है।

  ये लोग नहीं देख पा रहे हैं ,इससे पातक लगेगा। क्योंकि  अज्ञान ने इनके 

अंत :करण को ही ढ़क लिया है। लेकिन क्या भगवन हमें भी ऐसा ही हो 

जाना चाहिए। मित्रों से द्रोह करना इन्हें नहीं दीख रहा है। 

हमें इनके द्वारा होने वाले पापों से बचने का प्रयत्न क्यों नहीं करना चाहिए

 ?हम लोग तो समझदार हैं धार्मिक हैं। हम लोग तो देख रहे हैं युद्ध से 

हमारे ही कुल का सर्व नाश होगा। लेकिन अधर्म होने के बाद क्या नुक्सान

 होगा ,धर्म की कितनी ग्लानि होगी यह धृतराष्ट्र पक्ष के लोग आज नहीं 

देख पा रहें हैं। कुल के नाश से जो हमारे ही सनातन जो कुल धर्म हैं वह 

नष्ट हो जायेगें। सारे कुल में अधर्म पैदा हो जाएगा। क्योंकि  इसमें हमारे 

क्या आचार्य और क्या युवा सभी खत्म  जायेगें। जब कुल में पाप फ़ैल 

जाएगा तो उसका फिर क्या परिणाम होगा ज़रा यह भी समझ लो:

हे कृष्ण !अधर्म के फ़ैल जाने से कुल की जो स्त्रियाँ हैं वह व्यभिचारिणी हो 

जायेंगी। असुरक्षित हो जाने से वह पथ-भ्रष्ट  जायेंगी क्योंकि  उनके पति 

तो युद्ध में मारे जा चुके होंगें। ऐसे में कोई और उनसे संपर्क बनाएगा। 

इनसे पैदा औलाद फिर वर्णसंकर ही होगी। 

वार्ष्णेय आप वृष्ण वंशीय हो सोचो यह सब तुम्हारे साथ हो तो ?आप क्या 

चाहेंगे आपका कुल दूषित हो जाए पथ भ्रष्ट हो जाए। वृष्णि  वंश को 

निखारने वाले कृष्ण फिर क्या होगा। 

वर्ण संकर प्रजा पैदा होगी तो  क्या होगा -यह भी सुनो वार्ष्णेय !यकीनन 

यहाँ कृष्ण की जगह कोई और होता तो अर्जुन के तर्क सुनकर भाग खड़ा 

होता। अर्जुन कह रहें हैं जो वर्ण संकर प्रजा होती है वह पूरे खानदान को ही 

नर्क में ले जाने वाली सिद्ध होती है। उनका दिया पिंड पानी भी पितरों तक 

नहीं पहुंचेगा। पिंड पानी देने की पूरी परम्परा ही यूं विच्छिन्न हो जायेगी। 

इसलिए जो पितृ हैं उनका भी पतन हो जाएगा। 

इन वर्ण संकर कारक दोषों के द्वारा, कुलघातियों  के जो कुल धर्म हैं वे भी 

नष्ट हो जातें हैं। हमारे सनातन धर्म में जो जाति -वर्ण व्यवस्था बनी हुई है 

,बिखर जायेगी। समाज का ढांचा चर -मराकर टूट जाएगा-हे जनार्दन ऐसा 

हमने सुना है।देखिये यहाँ अर्जुन कैसे किम्वदंतियों का भी आसरा ले रहें 

हैं।  जिनका जाति धर्म नष्ट हो जाता है उनका अनिश्चित काल 

के लिए नर्क में ही फिर निवास होता है। भगवान कृष्ण सारी बातें घोड़े की 

लगाम पकड़ के बस सुने जा रहें हैं।सारी  बातें अर्जुन धर्म की भगवान को 

 ही बतला रहें हैं। और भगवान चुपचाप सुने जा रहे हैं। सोचते हुए चलो इसे 

कह लेने दो जो यह कहना चाहता है।  या  अल्लाह! कितने दुःख की बात है 

:हम लोग विद्वान होते हुए भी इतना बड़ा पाप करने को तत्पर हो गए। हत 

तेरे की वह भी एक बित्ता  भर के राज्य की प्राप्ति के लिए।क्षणिक सुख के 

लोभ में आकर हम अपने बंधू बांधवों को ही मारने को तैयार हो गए।  यदि 

मुझ प्रतिकार न करने वाले निहथ्थे को ये धृत राष्ट्र पक्ष के लोग मार भी

 डालें  तो भी वह मृत्यु भी मेरे लिए वरेण्य  है। मुझे इनका सामना नहीं 

करना है ,मैं ने शश्त्र भी छोड़ दिया है। वह मुझे मार डालें तो भी वह मेरे 

लिए कल्याणकारी ही होगा। अर्जुन स्वगत कथन की मानिंद बोलते जा रहें 

हैं माधव एक अच्छे श्रोता की तरह कानों से ही नहीं आँखों में आँखें डाले देह 

मुद्राओं से भी अर्जुन की सुने जा रहें हैं।सुने जा रहें हैं।  

संजय धृत राष्ट्र को बतला रहें हैं :शोक और विषाद से भरा अर्जुन इस 

प्रकार शश्त्र का त्याग करके रथ के पिछले भाग  में जाकर बैठ गया है।

अर्जुन का यह विषाद योग यहीं पर सम्पन्न होता है। पहले अध्याय में 

आपने देखा अर्जुन ने कितना तर्क किया और भगवान बस  सुनते रहे 

,सुनते रहे, सुनते रहे।

बोटम लाइन :आप जब सामने वाले की सुन लेते हैं प्रेम से भरे हुए तब वह 

भी अपने निज स्वरूप (मैं आत्मा हूँ आनंद  स्वरूप शांत स्वरूप ज्ञान 

स्वरूप )को प्राप्त होता है।   

सन्दर्भ -सामिग्री :स्काइप पर गुरु योगी आनंदजी का क्लास रूम (अगस्त 

१ ,रात्रि दस बजे ईस्टरन टाइम ,मिशिगन )


Yogi Anand Ji

"स्वदेशो भुवनत्रयम्‌"

इस जगत में जो लोग भी अपना अस्तित्व संसार से मानते हैं, उनके 

लिये ये संसार कभी ना कभी बेवफा, बेगाना अवश्य हो जायेगा, 

परन्तु जो अपना अस्तित्व एक मात्र भगवान से मानते हैं, उनके लिये 

तो यह बेगाना संसार भी भगवान का ही एक स्वरुप बन जाता है




6 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

अर्जुन विद्वानों सा बोल गए

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सहज और सरल रूप से समझाया आपने, भाषा की सहजता इसे समझने में सहायता करती है, आभार.

रामराम.

Rahul... ने कहा…

bahut behtareen tareeke se aapne samjhaaya... aabhaar aapka sharmaji..

अरुन अनन्त ने कहा…

आपकी यह रचना आज शनिवार (03-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

Anita ने कहा…

परमात्मा हमारी हर बात को सुनते हैं..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लौलिकता की दृष्टि से अर्जुन के प्रश्न सहज थे, उत्तर तो कृष्ण से ही मिलना था।