"भ्रमरगीत से "-सूरदास
निर्गुण कौन देस को वासी ,
मधुकर !हंसि समुझाय ,सौहं दै ,
बूझत सांच न हाँसी।
को है जनक ,जननि को कहियत ,
कौन नारि ,को दासी।
कैसो बरन भेस है कैसो ,
केहि रस में अभिलासी।
पावेगो पुनि कियो आपुनो ,
जो रे !कहेगो ,गांसी।
सुनत मौन भये ,रह्यो ठग्यो सो ,
सूर सबै मति नासी।
व्याख्या :निर्गुण ब्रह्म की उपासना का सन्देश लेकर जब परमयोगी उद्धव
कृष्ण के सखा गोपियों के पास पहुंचे तो गोपियों ने कुछ यूं उनका मज़ाक
उड़ाया। गोपियाँ जानती थीं उद्धव ज्ञानी हैं ज्ञान से तो इन्हें हराया नहीं जा
सकता था उपालंभ किया जा सकता था इनके साथ। तानाकशी की जा
सकती थी परिहास उड़ाया जा सकता था उद्धव का। गोपियाँ कृष्ण के प्रेम
में इतना डूब चुकीं थीं कृष्ण के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकती थीं।
इसलिए वह उद्धव जी से पूछती हैं :
यह तो बताओ तुम्हारा निर्गुनिया ब्रह्म कौन से देश का रहने वाला है।
क्या उसकी वेश भूषा रंग रूप है। नैन नक्श हैं ?वह सांवरा है या गोरा है ?
निर्गुण निराकार का उद्धव क्या वेश रंग रूप बताएं हतप्रभ रह गए।उन्होंने
कभी सोचा भी न था गोपियाँ ऐसे सरल सहज सवाल पूछेंगी।
गोपियाँ कहती गईं बताओ तो सही हम उनसे भी प्रेम कर लेंगे।
गोपियाँ पूछती ही गईं -जगह जगह अन्यत्र भी गोपियों ने उद्धव के साथ
मज़ाक किया है। कृष्ण भी काले ,उद्धव स्वयं काले ,अकरूर काला क्या
मथुरा कालों की नगरी है ?मधुकर भँवरे को कहते हैं जो काला होता है।
गोपियाँ एक तरह से उद्धव के रंग रूप का भी मज़ाक उड़ा रहीं हैं।
हँसते हुए गोपियाँ कहतीं हैं तुम भी भँवरे की तरह काले हो ,प्रेमपूर्वक हमें
समझाओ हम सच कह रहीं हैं ,तुम्हें कसम खिला रहीं हैं ,तुमसे मज़ाक
नहीं कर रहीं हैं ये बताओ तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म का देश कौन सा है। अच्छा
ये तो तुम्हें पता होगा उसके बाप का नाम क्या है। उसका पिता कौन हैं ?
शादी शुदा तो वह होगा ?हमसे प्रेम किया फिर प्रेम में हमें धोखा दिया।
विवाह तो उसने कर ही लिया होगा? किसी मामूली आदमी के घर नहीं
ग्राम प्रधान ,सामंत के घर वह पैदा हुआ है उसके दास दासी भी होंगे
उसका रंग कैसा है ?कैसे वस्त्र पहनता है वह। कौन से रस में रूचि है
उसकी (करुण ,श्रृंगार,हास्य , …… ).षट रस भोजन करता होगा वह। अरे
!ओ भँवरे अगर हमसे झूठ बोला तो अपनी करनी का ऐसा फल पावोगे जो
ज़िन्दगी भर चैन से नहीं बैठ पावोगे। यह सुनकर उद्धव चुप हो गए। रूंआसे
हो गए उनकी तो सारी बुद्धि ही नष्ट हो गई। उन्हें पता नहीं था गोपियाँ
कृष्ण को इतना प्रेम करती हैं जाकर रोये थे सखा कृष्ण के पास।
ॐ शान्ति
निर्गुण कौन देस को वासी ,
मधुकर !हंसि समुझाय ,सौहं दै ,
बूझत सांच न हाँसी।
को है जनक ,जननि को कहियत ,
कौन नारि ,को दासी।
कैसो बरन भेस है कैसो ,
केहि रस में अभिलासी।
पावेगो पुनि कियो आपुनो ,
जो रे !कहेगो ,गांसी।
सुनत मौन भये ,रह्यो ठग्यो सो ,
सूर सबै मति नासी।
व्याख्या :निर्गुण ब्रह्म की उपासना का सन्देश लेकर जब परमयोगी उद्धव
कृष्ण के सखा गोपियों के पास पहुंचे तो गोपियों ने कुछ यूं उनका मज़ाक
उड़ाया। गोपियाँ जानती थीं उद्धव ज्ञानी हैं ज्ञान से तो इन्हें हराया नहीं जा
सकता था उपालंभ किया जा सकता था इनके साथ। तानाकशी की जा
सकती थी परिहास उड़ाया जा सकता था उद्धव का। गोपियाँ कृष्ण के प्रेम
में इतना डूब चुकीं थीं कृष्ण के अलावा और कुछ सोच ही नहीं सकती थीं।
इसलिए वह उद्धव जी से पूछती हैं :
यह तो बताओ तुम्हारा निर्गुनिया ब्रह्म कौन से देश का रहने वाला है।
क्या उसकी वेश भूषा रंग रूप है। नैन नक्श हैं ?वह सांवरा है या गोरा है ?
निर्गुण निराकार का उद्धव क्या वेश रंग रूप बताएं हतप्रभ रह गए।उन्होंने
कभी सोचा भी न था गोपियाँ ऐसे सरल सहज सवाल पूछेंगी।
गोपियाँ कहती गईं बताओ तो सही हम उनसे भी प्रेम कर लेंगे।
गोपियाँ पूछती ही गईं -जगह जगह अन्यत्र भी गोपियों ने उद्धव के साथ
मज़ाक किया है। कृष्ण भी काले ,उद्धव स्वयं काले ,अकरूर काला क्या
मथुरा कालों की नगरी है ?मधुकर भँवरे को कहते हैं जो काला होता है।
गोपियाँ एक तरह से उद्धव के रंग रूप का भी मज़ाक उड़ा रहीं हैं।
हँसते हुए गोपियाँ कहतीं हैं तुम भी भँवरे की तरह काले हो ,प्रेमपूर्वक हमें
समझाओ हम सच कह रहीं हैं ,तुम्हें कसम खिला रहीं हैं ,तुमसे मज़ाक
नहीं कर रहीं हैं ये बताओ तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म का देश कौन सा है। अच्छा
ये तो तुम्हें पता होगा उसके बाप का नाम क्या है। उसका पिता कौन हैं ?
शादी शुदा तो वह होगा ?हमसे प्रेम किया फिर प्रेम में हमें धोखा दिया।
विवाह तो उसने कर ही लिया होगा? किसी मामूली आदमी के घर नहीं
ग्राम प्रधान ,सामंत के घर वह पैदा हुआ है उसके दास दासी भी होंगे
उसका रंग कैसा है ?कैसे वस्त्र पहनता है वह। कौन से रस में रूचि है
उसकी (करुण ,श्रृंगार,हास्य , …… ).षट रस भोजन करता होगा वह। अरे
!ओ भँवरे अगर हमसे झूठ बोला तो अपनी करनी का ऐसा फल पावोगे जो
ज़िन्दगी भर चैन से नहीं बैठ पावोगे। यह सुनकर उद्धव चुप हो गए। रूंआसे
हो गए उनकी तो सारी बुद्धि ही नष्ट हो गई। उन्हें पता नहीं था गोपियाँ
कृष्ण को इतना प्रेम करती हैं जाकर रोये थे सखा कृष्ण के पास।
ॐ शान्ति
16 August 2013 Murli
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मुरली सार:- “मीठे बच्चे-अभी तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो, ईश्वर की गोद पाना ही हीरे जैसा बनना है, श्रीमत तुम्हें हीरे जैसा बना देती है”प्रश्न:- सतयुग में किसी को तो ताउसी-तख्त (बादशाही) और किसी को दास-दासी या प्रजा पद मिलता है, इसका कारण क्या है?
उत्तर:- सतयुग में ताउसी तख्त उन्हें मिलता जो संगम पर ज्ञान सागर की पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ते हैं और धारण करते हैं, ज्ञान रत्नों का दान कर बहुतों को आप समान बनाते हैं और जो गफलत करते, देह-अभिमान में आकर हंगामें मचाते, उन्हें प्रजा पद मिल जाता है। पढ़ाई पर ध्यान न देने वाले ही दास-दासी बन जाते हैं।धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरू का रिगार्ड जरूर रखना है। उनकी मत पर चलना ही उनका रिगार्ड है।
2) घर का कामकाज करते स्वयं को गॉड फादर का स्टूडेन्ट समझना है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है, मुरली मिस नहीं करनी है। सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है।वरदान:- सच्ची दिल से बाप को राजी करने और सदा राजी रहने वाले राजयुक्त भव
जो बच्चे सच्ची दिल से बाप को राजी करते हैं, बापदादा उन्हें स्वयं के संस्कारों से, संगठन से सदा राजी अर्थात् राजयुक्त रहने का वरदान देते हैं। स्वयं के वा एक दो के संस्कारों के राज को जानना, परिस्थितियों को जानना, यही राजयुक्त स्थिति है। सच्चे दिल से बाप को अपना पोतामेल देने वा स्नेह की रूहरिहान करने से सदा समीपता का अनुभव होता है और पिछला खाता समाप्त हो जाता है।स्लोगन:- सच्ची दिल से दाता, विधाता, वरदाता को रा॰जी करने वाले ही रूहानी मौज में रहते हैं।
साकार वाणी (मुरली ):१६। ०८। २०१३
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Madhuban Murli LIVE - 16/8/2013 (7.05am to 8.05am IST) - YouTube
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1 hour ago - Uploaded by Madhuban Murli Brahma KumarisMurli is the real Nectar for Enlightenment, Empowerment of Self (Soul). Murli is the source of income which ...
1 टिप्पणी:
बहुत ही गूढ पर सरल भाव.
रामराम.
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