दान ,अनुदान और खानदानी दान
दान की मुत्तालिक संत तुलसीदास और अब्दुर्रहीम खानखाना के बीच हुआ संवाद उद्धृत करने योग्य है। खानखाना के दरबार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं जाता था। उनकी महिमा के चर्चे आम थे क्योंकि वह निरभिमान दानी थे।
तुलसीदास ने चमत्कृत होते हुए उनसे पूछा :
कहाँ से सीखी नवाब जू ,ऐसी देनी देन ,
ज्यों ज्यों कर ऊपर करौ ,त्यों त्यों नीचे नैन।
यानी ज्यों ज्यों दिए गये दान की राशि बढ़ती गई उसी अनुपात में उनकी विनम्रता भी बढ़ती ही गई , मानों दे नहीं ,ले रहें हैं , याचक से।
खानखाना :
देन हार कोई और है ,देत रहत दिन रैन ,
लोग भरम मोपे करैं ,ताते नीचे नैन।
गीता में कहा गया है दान के बिना आसक्ति नहीं जाती है। रोजा भी तभी कबूल होता है जब जकात (उसमें से गरीब के निमित्त अंशदान ,हिस्सा )निकाल दिया जाता है।गरीब को खिलाने के बाद ही रोजा तोड़ा जाता है।
यूं बड़े बड़े दानी विश्वपटल पर आज भी हैं जिन्होनें अपनी कमाई का बहुलांश दान कर दिया दीन दुखियों की सेवा में। लेकिन नाम और मान वहां भी बना रहा है। बिल गेट्स फ़ाउनडेशन इसकी एक मिसाल भर है उनसे भी बड़े दानी आज मौजूद हैं। लेकिन नाम मान से ऊपर कौन उठ सका है।
छोटे पैमाने पर उतरें तो पायेंगें मंदिर को एक सीलिंग फैन ,छत का पंखा देने वाला प्राणी अपनी तीन पुश्तों के नाम पंखे पे लिखवा देता है यह नहीं सोचता जब पंखा घूमेगा तीन पीढियां भी उसके साथ एक साथ घूमेंगी।
अनुदान के तो कहने ही क्या। सशर्त दान को अनुदान कहने का चलन हैं। यह अक्सर अमीर देशों द्वारा गरीब देशों को दिया जाता है।लेकिन दाता देश की कुछ शर्तों से जुड़ा रहता है मसलन कभी कृषि क्षेत्र को मिलने वाली राज्य सहायता ही निशाने पे ले ली जाती है।कभी एक कृषि पैकेज को ही खरीदना पड़ता है चाहे उसमें सत्यानाशी के बीज ही हों (केवल एक फसल देने वाले टर्मिनेटर सीड्स ).
जबकि गुप्त दान ही श्रेष्ठ दान बतलाया गया है। एक हाथ जो दे दूसरे को भी उसकी खबर न हो।
दधीची ऋषि ने तो अपनी अस्थियाँ ही दान कर दीं थीं। कर्ण ने ब्राह्मण याचक वेश में आये मायावी कृष्ण को न सिर्फ युद्ध क्षेत्र में अपना सोने का दांत ही पत्थर से तोड़ के दे दिया था अपने तरकश का आखिरी तीर भी उस दांत को धोने ,शुद्ध करने के लिए चला दिया था जिससे बाण गंगा निकली थी।क्योंकि कृष्ण ने मुख से निकला जूठा दांत लेने से इंकार कर दिया था। जब की कर्ण स्वयं मृत्यु के नजदीक खिसक आये थे।
ॐ शान्ति
2. When the children have one thought of courage, the Father
has a thousand elevated thoughts of co-operation... we, the
special souls, are co-operative in the Father’s task...we make
effort
our natural nature, and complete the task of world
transformation...we are images of experience who experience the
instant fruit of the Father’s co-operation by experiencing all
attainments as hundred-thousand fold return of one...by sitting in
the Father’s lap, we are totally ignorant of what effort is...we are
personally in front of the Father, with the Father, close to the
Father, equal to the Father, complete, and safe in the Father’s
canopy of protection...
दान की मुत्तालिक संत तुलसीदास और अब्दुर्रहीम खानखाना के बीच हुआ संवाद उद्धृत करने योग्य है। खानखाना के दरबार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं जाता था। उनकी महिमा के चर्चे आम थे क्योंकि वह निरभिमान दानी थे।
तुलसीदास ने चमत्कृत होते हुए उनसे पूछा :
कहाँ से सीखी नवाब जू ,ऐसी देनी देन ,
ज्यों ज्यों कर ऊपर करौ ,त्यों त्यों नीचे नैन।
यानी ज्यों ज्यों दिए गये दान की राशि बढ़ती गई उसी अनुपात में उनकी विनम्रता भी बढ़ती ही गई , मानों दे नहीं ,ले रहें हैं , याचक से।
खानखाना :
देन हार कोई और है ,देत रहत दिन रैन ,
लोग भरम मोपे करैं ,ताते नीचे नैन।
गीता में कहा गया है दान के बिना आसक्ति नहीं जाती है। रोजा भी तभी कबूल होता है जब जकात (उसमें से गरीब के निमित्त अंशदान ,हिस्सा )निकाल दिया जाता है।गरीब को खिलाने के बाद ही रोजा तोड़ा जाता है।
यूं बड़े बड़े दानी विश्वपटल पर आज भी हैं जिन्होनें अपनी कमाई का बहुलांश दान कर दिया दीन दुखियों की सेवा में। लेकिन नाम और मान वहां भी बना रहा है। बिल गेट्स फ़ाउनडेशन इसकी एक मिसाल भर है उनसे भी बड़े दानी आज मौजूद हैं। लेकिन नाम मान से ऊपर कौन उठ सका है।
छोटे पैमाने पर उतरें तो पायेंगें मंदिर को एक सीलिंग फैन ,छत का पंखा देने वाला प्राणी अपनी तीन पुश्तों के नाम पंखे पे लिखवा देता है यह नहीं सोचता जब पंखा घूमेगा तीन पीढियां भी उसके साथ एक साथ घूमेंगी।
अनुदान के तो कहने ही क्या। सशर्त दान को अनुदान कहने का चलन हैं। यह अक्सर अमीर देशों द्वारा गरीब देशों को दिया जाता है।लेकिन दाता देश की कुछ शर्तों से जुड़ा रहता है मसलन कभी कृषि क्षेत्र को मिलने वाली राज्य सहायता ही निशाने पे ले ली जाती है।कभी एक कृषि पैकेज को ही खरीदना पड़ता है चाहे उसमें सत्यानाशी के बीज ही हों (केवल एक फसल देने वाले टर्मिनेटर सीड्स ).
जबकि गुप्त दान ही श्रेष्ठ दान बतलाया गया है। एक हाथ जो दे दूसरे को भी उसकी खबर न हो।
दधीची ऋषि ने तो अपनी अस्थियाँ ही दान कर दीं थीं। कर्ण ने ब्राह्मण याचक वेश में आये मायावी कृष्ण को न सिर्फ युद्ध क्षेत्र में अपना सोने का दांत ही पत्थर से तोड़ के दे दिया था अपने तरकश का आखिरी तीर भी उस दांत को धोने ,शुद्ध करने के लिए चला दिया था जिससे बाण गंगा निकली थी।क्योंकि कृष्ण ने मुख से निकला जूठा दांत लेने से इंकार कर दिया था। जब की कर्ण स्वयं मृत्यु के नजदीक खिसक आये थे।
ॐ शान्ति
Madhuban Murli LIVE - 11/8/2013 Sunday (7.05am to 8.05am IST ...
www.youtube.com/watch?v=nflKYJAlNYk3 hours ago - Uploaded by Madhuban Murli Brahma KumarisMurli is the real Nectar for Enlightenment, Empowerment of Self (Soul). Murli is the source of income which ...
11-08-2013:
Independence is the birthright of you children.
Points to Churn from the Murli of August 11, 2013 (Revised 26-4-
1977)
1977)
Praise of Baba:
The Ocean of Knowledge, the Incorporeal Purifier, the Supreme
Father, and the Supreme Soul Shiv (Benefactor) Baba is.... My
Baba...Sweet Baba...Lovely Baba...Kind-hearted
Baba...Compassionate Baba...the True Father...the True
Teacher...the Unlimited Father... the Almighty Authority...the
Truth, the Living Being, the Blissful One and the Seed... the
Bestower of Salvation... Knowledge-full...
Father, and the Supreme Soul Shiv (Benefactor) Baba is.... My
Baba...Sweet Baba...Lovely Baba...Kind-hearted
Baba...Compassionate Baba...the True Father...the True
Teacher...the Unlimited Father... the Almighty Authority...the
Truth, the Living Being, the Blissful One and the Seed... the
Bestower of Salvation... Knowledge-full...
Points of Self-Respect and Soul Study:
1. If not now then never! Independence is the birthright of
spiritual life...we, the souls, the children of the Ocean of
Happiness, are master oceans of happiness...we remain stabilized
in the elevated stage of master almighty authority by going
beyond sound...with a right to all attainments, we put a stop to
waste thoughts in a second, have the courage to put every
direction into the practical form and give the donation of power
to the world...we are ever-ready instruments who remain
unshakeable in an upheaval...we are flying birds swinging in the
swing of super sensuous joy, beyond influence of vices and
attractions, and independent of the relationships, nature, and sanskars of the old body...
spiritual life...we, the souls, the children of the Ocean of
Happiness, are master oceans of happiness...we remain stabilized
in the elevated stage of master almighty authority by going
beyond sound...with a right to all attainments, we put a stop to
waste thoughts in a second, have the courage to put every
direction into the practical form and give the donation of power
to the world...we are ever-ready instruments who remain
unshakeable in an upheaval...we are flying birds swinging in the
swing of super sensuous joy, beyond influence of vices and
attractions, and independent of the relationships, nature, and sanskars of the old body...
2. When the children have one thought of courage, the Father
has a thousand elevated thoughts of co-operation... we, the
special souls, are co-operative in the Father’s task...we make
effort
our natural nature, and complete the task of world
transformation...we are images of experience who experience the
instant fruit of the Father’s co-operation by experiencing all
attainments as hundred-thousand fold return of one...by sitting in
the Father’s lap, we are totally ignorant of what effort is...we are
personally in front of the Father, with the Father, close to the
Father, equal to the Father, complete, and safe in the Father’s
canopy of protection...
3. We, the trikaldarshi souls, the masters of our creations having all rights, make matter and maya subservient... we are Pandavas, the conquerors of Maya, who take blessings from the Father every day at amritvela, and by keeping an unbreakable connection with the Father, throw Maya far away with Godly power...by remaining beyond the cleverness of Maya and becoming victorious, we are deeply loved by the Father...we are special servers who distribute the Father’s love, constantly fill everyone with zeal and enthusiasm and make our treasure store of love overflow......
Blessing: May you overflow with the treasure of love and become one who gives everyone the sustenance of love and power.
To the extent that children distribute the Father’s love to everyone, accordingly their treasure of love continues to overflow. It will be experienced as though there is a shower of love at every moment. Give love in one step and repeatedly receive love. At this time, everyone wants love and power. So, enable some to receive the Father’s love and others to receive His power through which they will constantly have zeal and enthusiasm. This is the special service of special souls.
Slogan: Those who remain beyond the cleverness of Maya are deeply loved by the Father.
2 टिप्पणियां:
सर जी बहुत सुन्दर प्रस्तुति दान से
बड़ा कोई भी पूण्य नहीं होता
दान की महिमा ही निराली है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
एक टिप्पणी भेजें