पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा कि सफेद मोतिया क्या है, उसके लक्षण कैसे होते हैं और उसका क्या उपचार संभव है। इसी कड़ी में इस पोस्ट में सफेद मोतिया के उपचार से जुडे विभिन्न बिन्दुओं पर प्रश्नवार जानकारी।
क्या है अंत: नेत्रलेंस ?
क्या है अंत: नेत्रलेंस ?
अंत: नेत्रलेंस अंत: नेत्रलेंस यानी कि आँख के अन्दर ही फिट किया जाने वाला लेंस (Intra Ocular Lens, IOL) ऐसे कृत्रिम लेंस होते हैं जिन्हें आसानी से तहा कर सफ़ेद मोतिया के शल्य के दौरान ही गंदले लेंस को हटाते ही फिट कर दिया जाता है. मेघाछान्न हो चुके (गंदले) लेंस को अल्ट्रासाउंड विधि से टुकड़ा-टुकड़ा करके आसानी से निकाल दिया जाता है. दादी नानियों को आपने ज़रूर सफ़ेद मोतिया के शल्य के बाद मोटे मोटे लेंस वाले खासे भारी चश्मे लगाए कभी देखा ज़रूर होगा. लेकिन अब ये गए वक्त की बात है. अंत: नेत्र लेंस ने इन मोटे लेंसों से छुटकारा दिलाया है.
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कौन सा इलाज़ तजवीज़ किया जाता है अब सफ़ेद मोतिया के सहज समाधान के लिए?
फेकोइम्लसीफ़िकेशन की ही अब सिफारिश करते हैं नेत्र रोगों के माहिर, ताकि गंदले हो चुके लेंस को उच्च आवृत्ति तरंगों (अतिस्वर युक्ति, अल्ट्रासाउंड) द्वारा आसानी से हटाके उनके स्थान पर आसानी से तहाके मोड़ा जा सकने वाला अंत: नेत्रलेंस फिट किया जा सके. इसका फायदा यह हुआ है जहां परम्परा गत शल्य में 12 मिलीमीटर का चीरा लगाना पड़ता था वहीँ अब 2 मिलीमीटर से भी कम का चीरा लगता है जो खुद बा खुद भर जाता है. कोई सीवन नहीं लगानी पड़ती है, कोई मरहम पट्टी भी नहीं करनी पड़ती है. अलावा इसके आँख के एक ऐसे दोष को कम करने के लिए, आँख के एक ऐसे बे-डौलपन (अ-बिन्दुकता, दृष्टि वैषम्य या अस्टिगमटिजम) को कम करने के लिए इस चीरे को कहाँ लगाया जाए इसका भी नियोजन हो सकता है ताकि एक ओर बीनाई सुधरे दूसरी और लेंसों (चश्मों) पर, ग्लासिज़ पर, निर्भरता कमतर होवे.
सर्जरी के कितने समय बाद मरीज़ देख सकता है?
कुछ मामलों में तभी हाथ के हाथ. सर्जरी के फ़ौरन बाद भी. हालाकि ज्यादातर मामलों में ऐसा होने में एक दो दिन तो लग ही जाते हैं.
Surgery, SICS, Conventional Cataract Surgery or Extra Capsular Cataract Extraction, ECCE,
कुछ मामलों में तभी हाथ के हाथ. सर्जरी के फ़ौरन बाद भी. हालाकि ज्यादातर मामलों में ऐसा होने में एक दो दिन तो लग ही जाते हैं.
क्या Phaco Surgery के बाद भी चश्मों की ज़रुरत रह जाती है?
चश्मों की ज़रुरत पड़ भी सकती है यदि आपने सर्जरी के दौरान युनिफोकल आई लेंस आँख के अन्दर फिट करवाया है. खासकर इन मामलों में नीयर विजन ग्लासिज़ की ज़रुरत पड़ती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि युनिफोकल लेंसों को डिस्टेंस विजन की ज़रुरत के मुताबिक़ तैयार किया जाता है. ऐसे में नीयर विजन (दूर की चीज़ों को देखने के लिए) के लिए चश्मे पहनने पड़ते हैं.
क्या फेको-सर्जरी के बाद गतिविधियाँ प्रतिबंधित (सीमित) हो जाती हैं?
सामन्य गतिविधियाँ शल्य के बाद ज़ारी रह सकती हैं मसलन चलना फिरना, पढ़ना-लिखना, टेलीविजन देखना आदि, लेकिन मशक्कत का काम हफ्ते भर के लिए मुल्तवी रखना पड़ सकता है. जहां तक गाड़ी (कोई भी वाहन) आदि चलाने की बात है यह इस बात पर निर्भर करता है बाद शल्य के आपका विजन कितना दुरुस्त हो चुका है? क्या सौ फीसद ? अलबत्ता खाने पीने को लेकर कोई पाबंदी आयद नहीं की जाती है.
क्या सर्जरी कराने के बाद भी दोबारा सफ़ेद मोतिया हो सकता है?
इसका सीधा सपाट उत्तर नकारात्मक (नहीं, कभी नहीं) है. अलबत्ता सर्जरी के महीनों क्या सालों बाद भी धुंधला दिखलाई देने की वजह पतले कैप्स्यूल नुमा थैले (Thin capsular bag) की झिल्ली (membrane) का गन्दला पड़ जाना बन जाता है. यह थैली ही प्रत्यारोपित लेंस को यथास्थान बनाए रहती है. लेकिन यह कोई बड़ी मुश्किल नहीं है इस गन्दला चुकी झिल्ली में से एक साफ़ सुथरा मार्ग सर्जन लेज़र की सहायता से तैयार कर लेते हैं. विजन एक बार से फिर दुरुस्त हो जाता है. इसके लिए अस्पताल में भर्ती नहीं होना पड़ता है मामूली सा प्रोसीज़र होता है यह.
दूसरी आँख की सर्जरी कब करानी चाहिए?
अमूमन दोनों आँखों का शल्य एक साथ नहीं किया जाता है लेकिन अगर पहली आँख की बीनाई दुरुस्त रहती है तब दूसरी आँख अगले दिन भी बनवाई जा सकती है. पहले आँख की सर्जरी को हमारे बुजुर्ग आँख बनवाना ही बोलते थे. हमारे दादा की आँख अलीगढ (उत्तर प्रदेश) में बनी थी. उस दौर में गुलावठी (बुलंदशहर) के पास आँखों का अस्पताल यहीं होता था. अलबत्ता इस शल्य के लिए डॉ और मरीज़ की परस्पर रजामंदी होनी चाहिए. तालमेल भी.
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वीरुभाई
कैंटन(मिशिगन )
ज़िन्दगी की खिटपिट और मोबाइल की पिट पिट से तंग
बस कुछ शब्द ही जोड़ पाया
भौतिकता में उलझी ज़िन्दगी पे खुद से कई सवाल किए
और अपने ही सवालों के आगे खुद को निरुत्तर पाया
मन ढूँढ रहा था कलम की खुशबू
और कोस रहा था मन ही मन तकनीक को भी
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?
सुन्दर है। ॐ शान्ति।
कलम की खुश्बू ,विवेक दोनों गायब हैं -
भाषा वर्तनी खाने लगी है
मोबाइल की नै वर्तनी -
व्याकरण भुलाने लगी है।
उच्चारण शाश्त्र को डेनियल जान्स के
तड़पाने लगी है -
उच्चारण शाश्त्र को डेनियल जान्स के
तड़पाने लगी है -
शेक्स्पीयर की आत्मा चिल्लाने लगी है
अंग्रेजी-
अब हिंगलिश से भी आगे जाने लगी है
स्लेंग्स की अम्मा अपनी खैर मनाने लगी है
भाषा वर्तनी खाने लगी है।
अपभ्रंश से आगे जाने लगी है।
स्लेंग्स की अम्मा अपनी खैर मनाने लगी है
भाषा वर्तनी खाने लगी है।
अपभ्रंश से आगे जाने लगी है।
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
रविवार, 4 अगस्त 2013
कलम की खुशबू
बहुत समय बाद कुछ लिखना चाहा
तो कलम की जगह अपना मोबाइल उठायाज़िन्दगी की खिटपिट और मोबाइल की पिट पिट से तंग
बस कुछ शब्द ही जोड़ पाया
भौतिकता में उलझी ज़िन्दगी पे खुद से कई सवाल किए
और अपने ही सवालों के आगे खुद को निरुत्तर पाया
मन ढूँढ रहा था कलम की खुशबू
और कोस रहा था मन ही मन तकनीक को भी
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?
लेबल: कलम की खुशबू, राजीव रंजन गिरि
4 टिप्पणियां:
सफ़ेद मोतिया के प्रभाव और उसके उपचार सम्बन्धी बहुत ही उपयोगी जानकारी साझा करने का आभार ... राम राम जी ...
बहुत ही उपयोगी जानकारी.
रामराम.
आंखों पर बहुत ही उपयोगी जानकारी दी। और राजीव रंजन गिरि की कविता भी बहुत ही विचारणीय है।
मोतियाबिंद की सर्जरी पर अच्छी जानकारी।
अब हरी पट्टी बाँध कर भी नहीं घूमना पड़ता।
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