शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की , नन्द में आनंद भयो ,जय कन्हैया लाल की।

कृष्ण कहतें हैं -मैं कोई कारो हूँ। सखियन पुतरी डारि डारि ,मोहे कारो कर डारो !ब्रह्म स्वरूप कोई कारो थोड़ी होवे। ज़ो हमारे मन को मथ  दे उसे काम कहते हैं जो काम को मथ दे उसे कृष्ण कहते हैं। जो रास की विहंगम कथा भी सुन लेता है उसके मन से काम नष्ट हो जाता है। 

जिसने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया है वही गोविन्द है।

जन्माष्टमी भगवान् के प्रागट्य का दिन है। किसी प्रवचन देने या सुनने का नहीं उनकी यादों में बसने का दिन है। इस दिन परब्रह्म पूर्ण ब्रह्म के रूप में परमात्मा को धरती पर उतरना पड़ा तो इसके कई कारण हैं :

भगवान् कृष्ण का अवतरण मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तरह कोई नीति परक अवतरण नहीं है। भगवान् राम ऐसा कह सकते हैं -

प्राण जाए पर वचन न जाई ,लेकिन कृष्ण इस धरा पर प्रेम को बचाने के लिए हैं , सबके वेलेंटाइन हैं। हमारे जीवन में यदि प्रेम नहीं है तो जीवन बड़ा नीरस हो जाता है। कृष्ण की  पूजा एक विद्वान भी करेगा एक योगी भी क्योंकि कृष्ण एक साथ दोनों हैं विज्ञ भी योगेश्वर भी। एक चोर भी करेगा क्योंकि वह चोर भी थे उन्होंने दबाके माखन चुराया। सारे वृन्दावन का माखन खा गए। एक झूठा भी कृष्ण का पूजन करेगा क्योंकि उन्होंने धर्म को बचाने के लिए झूठ भी बोला। व्यभिचारी भी कृष्ण की पूजा करेगा उन्होंने पर -स्त्रियों के साथ रास रचाया। नृत्य भी किया इस त्रिभंगी नटवर लाल ने नन्द के लाला ने। 

He is the most famous God .The greatest dancer of all .

नन्द में आनंद भयो ,जय कन्हैया लाल की ,

हाथी घोड़ा पालकी ,जय कन्हैया लाल की। 

बड़ी विकट विचित्रताओं से भरा रहा है कृष्ण का जीवन।कारावास में जन्म लेते ही जल प्लावित रात में जब घनघोर बारिश हो रही थी इन्हें अपने माँ -बाप का घर छोड़ना  पड़ा। इनके जीवन को समाप्त करने के लिए पहले पूतना आई। बाहर से ही तो इसके स्तन में विष लगा था। अन्दर तो दूध था। इन्होनें महेश का आवाहन किया जिसका काम ही है धतूरा खाना ,विष पीना ,शंकर सारा विष पी गए बाल कृष्ण दूध पी गयो। पीते पीते पूतना के प्राणन ने भी पी गयो। भागी पूतना तो वाकी पोल खुली। गोप गोपियाँ ने ही वाकी अंत्येष्टि की। 

शुक देव  महाराज  ने कृष्ण को देखा नहीं था सिर्फ उनके बारे में सुना  था उनकी बातें भर सुनी थीं।गीता का  सिर्फ एक श्लोक सुना था उनका सारा जीवन ही  बदल गया गीता का एक श्लोक सुनकर। भगवान् कृष्ण ने स्वयं गीता में अपनी कमजोरियों को बताया है। अपने ब्रह्म तत्व को खोला है इसी बिध।भगवत गीता तो स्वयं हमारा हम सबका जीवन है। जीवन से अलग नहीं है। भगवान् कहते हैं इस गीता को सर्व के प्रेम के रूप में जानो  .इस संसार को प्रेम के स्वरूप में समझो। सर्व में उसके प्रेम की लीला के रूप में ही जानो। आज कलिकाल में कृष्ण के विभिन्न रूपों के उपासक न सिर्फ बंटे हुए हैं एक दूसरे  से द्वेष भी रखें हैं। वैष्णव कथा से  शाक्त उठके चल देगा।कोई उनकी सिर्फ बाल लीला से जुड़ा है तो कोई रास लीलाओं से ,किसी को कुरुक्षेत्र वाला कृष्ण  पसंद है किसी को माखन चोर ,वस्त्र चोर ,किसी को द्रोपदी चीर वस्त्र प्रदायक (इसीलिए तो कृष्ण ने कपड़े  चुराए थे गोपियन  के।  वह कोई कपड़ों के व्यापारी थोड़ी थे । हदै  है  गई महाराज आज लोग कृष्ण के बारे में कैसी कैसी बातें कर देते हैं ). 


कहतें हैं सोलह हजार स्त्रियाँ थीं उसकी -तुम दो रखके दिखाओ  तो पता चल आ जायेगा कैसी रखी जावें दो स्त्रियाँ। हदै  है  गई महाराज। 

भगवान् कहते हैं मुझे और कुछ नहीं वस्तु वैभव कुछ भी नहीं चाहिए अपने भक्तों से जो अंतर की गहराइयों से मेरे पास बैठते हैं मुझे याद करते हैं वह मुझे अच्छे लगते हैं। 

एक बार का प्रसंग है नारद जी जिन्हें अपने पर बड़ा गुमान था नारायण नारायण करते भगवान् राम के कक्ष में पहुंचे भगवान उस वक्त एक डायरी के पन्ने पलट रहे थे। नारद औतुस्क्य में भरे बोले -जे का है। भगवान् बोले इस डायरी में मेरे भक्तों के नाम लिखें हैं। नारद जी बोले मैं देख लूं नेक जाकू। भगवन बोले देखो। नारद का नाम सबसे ऊपर था। बस जी नारद कुप्पा होक हनुमान के पास पहुंचें बोले बड़ी डींग हांकता है तू राम का सबसे बड़ा भगत कहाता है तेरा नाम तो डायरी में है नहीं। हनुमान मंद मंद मुस्काये -बोले अच्छा नहीं होगा भाई। 

दूसरी बार नारद फिर पहुंचे भगवान् के एक हाथ में आज एक छोटी सी डायरी थी। नारद ने वह भी जिद करके ले ली पूछते हुए भगवान से ये क्या है भगवान् बोले ये मेरी पर्सनल डायरी है इसमें कुछ ख़ास लोगों के नाम लिखें हैं। नारद ने पन्ने पलटे देखा  हनुमान का नाम सबसे ऊपर था। नारद का नाम कहीं नहीं था। नारद बोले भगवन ये क्या है ?भगवान् बोले इस डायरी में उन लोगन के नाम हैं जिन्हें मैं याद करता हूँ। 

तो ऐसे ही कृष्ण केवल प्रेम के भूखे हैं वस्तु के नहीं । वृक्ष से जो फल टूट के गिरेगा वह वृक्ष से बहुत दूर नहीं गिरेगा उसके पास ही कहीं गिरेगा। भगवान् को अपने प्रेमी अच्छे लगते हैं। जब तक भगवान् के प्रति हमारे दिल में सच्चा प्रेम नहीं है हम उसे प्राप्त नहीं होंगें। संसार के सारे ऐश्वर्य सुख और वैभव का मूल भी भगवान् ही हैं। भगवान् कहते हैं तुम्हारे पास मुझे चढाने के लिए कुछ भी नहीं है तो कोई बात नहीं तुम फूल पत्ते ही चढ़ा दो। 

भगवान् धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। हम अपने जीवन में धर्म की रक्षा करेंगे तो फिर धर्म भी हमारी रक्षा करेगा। हम जब अपने धर्म गर्न्थों की रक्षा के लिए आगे बढ़ेंगे भगवान् पीछे नहीं हटेगा। आज मंदिरों में देवताओं की मूर्तियाँ तो ३३ करोड़ हैं धर्म ग्रन्थ एक भी नहीं है। बाइबिल अमरीका के हर होटल में आपको मिलेगी। 

साधुता की रक्षा हम कर सकें। ज्ञान के द्वारा हम अपनी सज्जनता कार्मिकता को बचाए रहें।  दुष्टता का विनाश करने लगें इस संसार से तो समझ लो हमने भगवान् के  कार्य में ही सहयोग किया। जैसे हम बाहर से अपने आपको  प्रस्तुत करते हैं अपने को, अन्दर से भी बस वैसे ही बन जाएँ। बहु -मुखी होना छोड़ें। हिपोक्रेसी छोड़ें प्रजातंत्रीय। जो हमारे ही दो 
चेहरों  के बीच में गैप है वही दंभ है। 

जिस व्यक्ति का मन शुद्ध नहीं है स्वभाव शुद्ध नहीं है उसके लिए फिर व्रत उपवास रखने का भी कोई मतलब नहीं है। उसे ईश्वर तत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। सुख चैन भी नहीं मिलेगा। परमात्मा ने गीता में हमें जो जीवन जीने की शैली बताई है उस पर चलें तो हमारा जीवन अद्भुत हो जाएगा। ये हमारे बंधू बांधव ही सब कौरव हैं ये  हमारे सब विकार ही कौरव हैं।हर घर एक कुरुक्षेत्र बना हुआ है। ये महा भारत यहीं हो रहा है। इसी समय। 

राधा कृष्ण का शरीर है गोपियाँ वृत्तियाँ हैं जिसने इन्हें जीत लिया वह कृष्ण बन जाएगा। प्रेम का सम्बन्ध हृदय के साथ है। प्रेम के पास विवेक बुद्धि की आँख भी होनी चाहिए। अंधा प्रेम (धृत राष्ट्र प्रेम )हमें हमारी मंजिल तक नहीं पहुँचा  सकता है।भगवान् कहतें हैं तुमको मैं बुद्धि योग देता हूँ ऐसी बुद्धि देता हूँ जो हमें भोगों की तरफ न ले जाकर परमात्मा से जोड़ती  है।  हमें जीवन में सात्विक बुद्धि की शरण लेनी चाहिए जो भगवान् की तरफ ले जाती है। तामसिक बुद्धि भोगों की तरफ ले जाती है संसार के वैभवों की तरफ राजसी बुद्धि ले जाती है। ये सब अल्पकालिक हैं हद के सुख हैं। जहां बे हद का सुख है ,बे हद का आनंद हैं वहां मैं हूँ। भगवान् धीरे धीरे मौन रूप में ही आते हैं हमें खबर भी नहीं होती। 

हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की ,

नन्द में आनंद भयो ,जय कन्हैया लाल की। 

सन्दर्भ -सामिग्री :

योगी आनंद जी एवं पुण्डरीक गोस्वामी महाराजजी  का कैंटन हिन्दू टेम्पिल में दिया गया प्रवचन।  



ॐ शान्ति 

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जय कन्हैया लाल की

Anita ने कहा…

भगवान् धीरे धीरे मौन रूप में ही आते हैं हमें खबर भी नहीं होती।

घर खाली देख चला आया
उसे अकेलापन भाता है
सुंदर प्रवचन!