सुन्दर है। ॐ शान्ति।
ज़िन्दगी की खिटपिट और मोबाइल की पिट पिट से तंग
बस कुछ शब्द ही जोड़ पाया
भौतिकता में उलझी ज़िन्दगी पे खुद से कई सवाल किए
और अपने ही सवालों के आगे खुद को निरुत्तर पाया
मन ढूँढ रहा था कलम की खुशबू
और कोस रहा था मन ही मन तकनीक को भी
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?
कलम की खुश्बू ,विवेक दोनों गायब है।
भाषा वर्तनी खाने लगी है
मोबाइल की नै वर्तनी -
व्याकरण भुलाने लगी है।
शेक्स्पीयर की आत्मा चिल्लाने लगी।
अंग्रेजी-
अब हिंगलिश से भी आगे जाने लगी है
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
रविवार, 4 अगस्त 2013
कलम की खुशबू
बहुत समय बाद कुछ लिखना चाहा
तो कलम की जगह अपना मोबाइल उठायाज़िन्दगी की खिटपिट और मोबाइल की पिट पिट से तंग
बस कुछ शब्द ही जोड़ पाया
भौतिकता में उलझी ज़िन्दगी पे खुद से कई सवाल किए
और अपने ही सवालों के आगे खुद को निरुत्तर पाया
मन ढूँढ रहा था कलम की खुशबू
और कोस रहा था मन ही मन तकनीक को भी
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?
लेबल: कलम की खुशबू, राजीव रंजन गिरि
3 टिप्पणियां:
सही कहा है !!
यह तो बहुत ही बढ़िया है-
बढ़िया तारतम्य-
आभार प्रस्तुत-कर्ता
झुँझलाकर मैंने तैयारी कर ली सोने की
मोबाइल को लगाया साइलेंट मोड पर
पर ये मन लगा रहा अपने उधेड़बुन में
कि आखिर कलम की वो खुशबू कहाँ गयी ?
बहुत ही लाजवाब और सटीक कहा आपने.
रामराम.
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