भ्रमर गीतसे एक और पद -सूरदास
उधौ मन नाहिं दस बीस ,
एकहु तो सो गयो श्याम संग ,
को अराध तू ईस। (अब काहू राधे ईस )..
भई अति शिथिल सबै माधव बिनु ,
यथा देह बिन सीस ,
स्वासा अटक रहे ,आसा लगि ,
जीव ही कोटि बरीस (वर्षों ).
तुम तो सखा श्याम सुन्दर के
सकल जोग के ईस !
सूरजदास (सूर श्याम )रसिक की बतियाँ ,
पुरबो (पूरा करो ) मन जगदीस।
व्याख्या :उधौ मन तो एक ही होता है कोई दस बीस तो होते नहीं (-यही
कहा
गोपियों ने उद्धव जी को निर्गुनिया ब्रह्म की उपासना का सन्देश लिए जो
गोपियों के पास पहुंचे थे। )एक जो मन था वह तो कृष्ण को दे दिया अब
तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की उपासना हम किस मन से करें ?हम तुम्हारी तरह
योगी नहीं है तुम तो योग के पंडित हो ,तुम कर सकते हो निर्गुण आराधना
तुम्हारी और बात है हम तो प्रेम में विश्वास करती हैं ,निष्ठा में विश्वास
रखती हैं। एक व्रती हैं। कृष्ण के बिना तो हम ऐसे निष्प्राण हो गए हैं जैसे
बिना शीश के देह। निष्प्राण हो गईं हैं हम बस मरी नहीं हैं अभी। हमारे
सांस इस आस में अटके हैं ,कृष्ण दोबारा मिल जायेंगे।हमें पता है कृष्ण
वापस आयेंगे। चाहे करोड़ों बरस भी हमें ये कष्ट सहना पड़े हम सहर्ष सह
लेंगी।हमारे प्राण भी प्रतीक्षा करेंगे।
तुम तो योग के समर्थ ईश्वर हो ,कुछ भी कर सकते हो इतना ही कर दो -
हमारे मन में उस रसिक कृष्ण की जो प्रेम भरी बातें हैं वही भर दो।वह
तुमको ही सुनाते रहे होंगें तुम तो उनके सखा हो। तुम तो योग के सबसे
बड़े साधक हो। रसिक कृष्ण की बातों से हे उद्धव हमारे मन को तृप्त करो।
क्यों हमें और कष्ट पहुंचाते हो।
ॐ शान्ति।
उधौ मन नाहिं दस बीस ,
एकहु तो सो गयो श्याम संग ,
को अराध तू ईस। (अब काहू राधे ईस )..
भई अति शिथिल सबै माधव बिनु ,
यथा देह बिन सीस ,
स्वासा अटक रहे ,आसा लगि ,
जीव ही कोटि बरीस (वर्षों ).
तुम तो सखा श्याम सुन्दर के
सकल जोग के ईस !
सूरजदास (सूर श्याम )रसिक की बतियाँ ,
पुरबो (पूरा करो ) मन जगदीस।
व्याख्या :उधौ मन तो एक ही होता है कोई दस बीस तो होते नहीं (-यही
कहा
गोपियों ने उद्धव जी को निर्गुनिया ब्रह्म की उपासना का सन्देश लिए जो
गोपियों के पास पहुंचे थे। )एक जो मन था वह तो कृष्ण को दे दिया अब
तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म की उपासना हम किस मन से करें ?हम तुम्हारी तरह
योगी नहीं है तुम तो योग के पंडित हो ,तुम कर सकते हो निर्गुण आराधना
तुम्हारी और बात है हम तो प्रेम में विश्वास करती हैं ,निष्ठा में विश्वास
रखती हैं। एक व्रती हैं। कृष्ण के बिना तो हम ऐसे निष्प्राण हो गए हैं जैसे
बिना शीश के देह। निष्प्राण हो गईं हैं हम बस मरी नहीं हैं अभी। हमारे
सांस इस आस में अटके हैं ,कृष्ण दोबारा मिल जायेंगे।हमें पता है कृष्ण
वापस आयेंगे। चाहे करोड़ों बरस भी हमें ये कष्ट सहना पड़े हम सहर्ष सह
लेंगी।हमारे प्राण भी प्रतीक्षा करेंगे।
तुम तो योग के समर्थ ईश्वर हो ,कुछ भी कर सकते हो इतना ही कर दो -
हमारे मन में उस रसिक कृष्ण की जो प्रेम भरी बातें हैं वही भर दो।वह
तुमको ही सुनाते रहे होंगें तुम तो उनके सखा हो। तुम तो योग के सबसे
बड़े साधक हो। रसिक कृष्ण की बातों से हे उद्धव हमारे मन को तृप्त करो।
क्यों हमें और कष्ट पहुंचाते हो।
ॐ शान्ति।
16 August 2013 Murli
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मुरली सार:- “मीठे बच्चे-अभी तुम कौड़ी से हीरे जैसा बने हो, ईश्वर की गोद पाना ही हीरे जैसा बनना है, श्रीमत तुम्हें हीरे जैसा बना देती है”प्रश्न:- सतयुग में किसी को तो ताउसी-तख्त (बादशाही) और किसी को दास-दासी या प्रजा पद मिलता है, इसका कारण क्या है?
उत्तर:- सतयुग में ताउसी तख्त उन्हें मिलता जो संगम पर ज्ञान सागर की पढ़ाई को अच्छी रीति पढ़ते हैं और धारण करते हैं, ज्ञान रत्नों का दान कर बहुतों को आप समान बनाते हैं और जो गफलत करते, देह-अभिमान में आकर हंगामें मचाते, उन्हें प्रजा पद मिल जाता है। पढ़ाई पर ध्यान न देने वाले ही दास-दासी बन जाते हैं।धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) सुख देने वाले बाप, टीचर, सतगुरू का रिगार्ड जरूर रखना है। उनकी मत पर चलना ही उनका रिगार्ड है।
2) घर का कामकाज करते स्वयं को गॉड फादर का स्टूडेन्ट समझना है। पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना है, मुरली मिस नहीं करनी है। सचखण्ड के लिए सच्ची कमाई करनी है।वरदान:- सच्ची दिल से बाप को राजी करने और सदा राजी रहने वाले राजयुक्त भव
जो बच्चे सच्ची दिल से बाप को राजी करते हैं, बापदादा उन्हें स्वयं के संस्कारों से, संगठन से सदा राजी अर्थात् राजयुक्त रहने का वरदान देते हैं। स्वयं के वा एक दो के संस्कारों के राज को जानना, परिस्थितियों को जानना, यही राजयुक्त स्थिति है। सच्चे दिल से बाप को अपना पोतामेल देने वा स्नेह की रूहरिहान करने से सदा समीपता का अनुभव होता है और पिछला खाता समाप्त हो जाता है।स्लोगन:- सच्ची दिल से दाता, विधाता, वरदाता को रा॰जी करने वाले ही रूहानी मौज में रहते हैं।
2 टिप्पणियां:
प्रेम ने ज्ञान को कुछ सिखाकर भेज दिया।
बेहतरीन सार.
रामराम.
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