बुधवार, 21 अगस्त 2013

श्रीमदभगवत गीता श्लोक ३१ और उससे आगे

श्रीमदभगवत  गीता श्लोक ३१ और उससे आगे 

(३ १ )और अपने स्वधर्म की दृष्टि से भी तुम्हें अपने कर्तव्य से विचलित नहीं होना चाहिए ,क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर दूसरा कोई कल्याणकारी कर्म नहीं है। 

वास्तव में जो हमारा सनातन धर्म है वह वर्णाश्रम आधारित रहा है। बेशक इस पर जाति भेद के आरोप ,आक्षेप भी लगे.लेकिन जाति और नस्ल तो हर जीव और वनस्पति की होती है पशु पक्षियों की भी प्रजातियाँ और जातियां हैं। हर चीज़ जिसमें भी गति होती है उसकी जातियां मौजूद हैं। इस व्यवस्था के तहत जिनका लक्ष्य केवल ज्ञान था उन्हें ब्राह्मण कहा गया ,जिनका लक्ष्य केवल धन कमाना था ,उन्हें वैश्य कहा गया ,जिनमें चातुर्य बुद्धि बल नहीं था उन्हें शूद्र कहा गया। कहा कोई बात नहीं तुम सेवा करो। भगवान  अर्जुन को जगा रहे हैं। हे अर्जुन तुम क्षत्री हो और अगर तुम अपने धर्म को भी देखो तो तुम्हें भयभीत नहीं होना चाहिए। एक क्षत्रिय के लिए देश रक्षा ,धर्म रक्षा से बड़ा कोई और धर्म नहीं है। तू देख तू कौन है। ज़ाहिर है अर्जुन की जगह कोई ब्राह्मण होता तो भगवाना ऐसा नहीं कहते सोचते जाने दो कोई बात नहीं। नहीं लड़ता तो न सही। कहते तुम ब्राह्मण हो जाओ तुम ज्ञान अर्जन ही करो। जन्म जन्म से ही अर्जुन तू युद्ध के लिए बना है कोई एक जन्म की बात नहीं है। क्षत्री होता ही धर्म रक्षार्थ है। तुम्हारे सामने तो अपने आप युद्ध आकर खडा हो गया है। तुम उससे अब भागो मत। आज हर व्यक्ति युद्ध ही तो कर रहा है घर में दफ्तर में। घर घर में महाभारत हो रहा है सारी  दुनिया कुरुक्षेत्र हो गई है। सब जगह मनुष्य हालात से तो लड़ रहा है। 

ये चारों स्वभाव ,चारों वृत्तियाँ हर व्यक्ति में निवास करती हैं। युद्ध भी तुम्हारे लिए तो धर्म युद्ध है। धर्म युद्ध से बड़ा कोई और साधन तुम्हारे कल्याण के लिए नहीं हो सकता है। इसलिए परिणाम जो भी हो तुम युद्ध करो। कर्म करो और अपने स्वधर्म को भी तुम देखो। तुम्हें ज़रा भी भय भीत और निराश नहीं होना चाहिए। हर व्यक्ति अपनी अपनी क्षमता के साथ समाज सेवा कर रहा है आजीविका तो सबको चाहिए। तुम भी धर्म युद्ध करो। 

(३ २ )हे पृथानन्दन ,अपने आप प्राप्त हुआ युद्ध स्वर्ग के खुले द्वार जैसा है ,जो सौभाग्य शाली क्षत्रियों को ही प्राप्त होता है.वरना सब अपने अपने स्वार्थ के लिए लड़ते हैं। तुम तो जन कल्याण के लिए लड़ रहे हो। अपने कर्तव्य आगे आके करने चाहिए। जो भी चीज़, परिश्तिथि सामने से आई है उसका मुकाबला करना चाहिए। उसी स्थिति में से व्यक्ति के कल्याण का दरवाज़ा खुलेगा। बुरी या अच्छी कैसी भी परिस्थिति हो व्यक्ति को उसे छोड़कर भागना नहीं चाहिए। फिर इस तरह का युद्ध भाग्यवान क्षत्री ही प्राप्त करते हैं जो अपने आप तुम्हारी झोली में आ गिरा है। 

(३ ३ )और यदि तुम इस धर्म युद्ध को नहीं करोगे ,तो अपने स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त करोगे। व्यक्ति अपने स्वधर्म से पीछे हटेगा तो पाप का भागी बनेगा। उसका स्वधर्म तो नष्ट होगा ही अपयश भी मिलेगा। अगर हम इंसानियत को नहीं जी रहे हैं कर्तव्य को छोड़कर भाग रहे हैं ,भगवान के सम्मुख होकर सेवा नहीं कर रहे हैं ,संसार की तरफ भागे जा रहे हैं  तो यही जीवन का सबसे बड़ा पाप है। अन्दर का अन्धेरा ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है। उससे लड़ने के लिए ज्ञान की तलवार चाहिए। स्वधर्म और कीर्ति खोकर तू पाप का भागी बनेगा। 

(३ ४ )तथा सब लोग बहुत दिनों तक तुम्हारी अपकीर्ति की चर्चा करेंगे। सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बढ़कर है। क्षत्री का गहना अहंकार है भगवान् इस श्लोक में अर्जुन के अहंकार को और बढ़ा रहे हैं। ये तू जो कायरों की तरह भागने की बात कर रहा है जानता है सभी ये कहेंगे अर्जुन पहले से ही कायर था। कायर का ही उसका स्वरूप था। मर जाएगा युद्ध में तो तुम्हें यश मिलेगा भागेगा तो अपयश का भागी बनेगा। तुम्हारी अपकीर्ति की लोग देर तक चर्चा करते रहेंगे जो मरने से भी बदतर है। 

(३ ५ )जिनकी दृष्टि में तू पहले बहुत सम्मानित था उनकी ही नजरों में तू अत्यंत लघुता को प्राप्त हो जाएगा। कहाँ तू उनकी दृष्टि  में एक पराक्रमी ,महावीर था ,अब वही तुझे रणछोर भगोड़ा कहेंगे। महारथी लोग तुम्हें डरकर युद्ध से भागा हुआ मानेंगे ,जिनके लिए तुम बहुत माननीय हो उनकी दृष्टि से बहुत नीचे गिर जाओगे। 

ॐ शाति 


(३ २ )

3 टिप्‍पणियां:

Darshan jangra ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा आज { बुधवार}{21/08/2013} को
चाहत ही चाहत हो चारों ओर हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः3 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra

hindiblogsamuh.blogspot.com

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपके द्वारा लिखित इस भावार्थ को पढकर आनंदानुभुति हो रही है, बहुत शुभकामनाएं.

रामराम.

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sukhad anubhooti.....