शनिवार, 31 अगस्त 2013

कबीर प्रेम न चाखिया ,चाखि ना लिया साव , सूने घर का पाहुना ,ज्यों आवे त्यों जाव।

कबीर की कुछ विरल साखियाँ 

(१ )चली जो पुतली लोन की ,थाह सिन्धु का लैन ,

      आपुहि गलि पानी भई ,उलटी कहै को बैन। 

(२ )अकथ कहानी प्रेम की ,कहत कहि न जाय ,

      गूंगे केरी सरकरा खाय और मुसकाय। 

(३ )तू तू करता तू भया ,मुझमें रहा न हू ,

     बारि फेरी बलि गई ,जित देखू तित तू। 

(४ )प्रेमी ढूँढत मैं फिरूँ ,प्रेमी ना मिलिया कोय ,

      प्रेमी को प्रेमी मिले तब सब बिस अमृत होय। 

(५ )राम रसायन प्रेम रस ,पीवत अधिक रसाल ,

     कबीर पीवन दुर्लभ है ,मांगे सीस कलाल। 

The very powerful drug of God is nectar of love ,which is very sweet.But it is difficult to obtain ,because the seller asks for your head as its price .

No one can enter the region of God with his head on his shoulder i .e .with his ego .Only the humble devotee can drink the nectar of God's love .One has to surrender completely to God  to become a perfect devotee and to meet Him.

(६  )कबीर प्रेम  न चाखिया ,चाखि ना लिया साव ,

      सूने घर का पाहुना ,ज्यों आवे त्यों जाव। 

(७ )सुरति ढेकुली लेज लौ ,मन नील ढोलन हार ,

      कमल कुवा में प्रेम रस ,पीवै बारम्बार। 



व्याख्या :



(१ )चली जो पुतली लोन की ,थाह सिन्धु का लैन ,

      आपुहि गलि पानी भई ,उलटी कहै को बैन। 


       यहाँ समुन्दर परमात्मा की विराटता तथा नोन  (नमक )की कठपुतली आत्मा का प्रतीक है। नमक की डली की नमकीनियत भी परमात्मा से ही है। नमक प्राप्त ही समुन्दर से होता है। उस समुन्दर की थाह नोन की डली ,नोन  की गुडिया कैसे ले सकती है जो उसी का अंश  है।जो परमात्मा की याद में गोते लगाता है वह यादों के समन्दर की तलहटी तक कभी नहीं पहुंच पाता है  बीच में ही उसका मैं उसका होना उसका बींग उसकी इज नेस उसका अहंकार समाप्त हो जाता है।वह खुद उस सिमरनी  का एक मनका बन जाता है।जो उसके प्रेम में डूबने के लिए लोग जपते हैं।  यहाँ अद्वैत के दर्शन हैं। दो का अभाव है एक ही की परम सत्ता की भासना है। जल में कुम्भ कुम्भ में जल है ऊपर नीचे पानी।  

A doll of salt entered the ocean to (fathom )find its depth .It dissolved and turned into salty water . 

God is like an ocean .When a seeker wants  to find His  depth and enters into the region of God ,he himself merges into God .This duality which is necessary to give a report ,does not exist .He can thus say nothing about His depth because that is indescribable. 



(२ )अकथ कहानी प्रेम की ,कहत कहि न जाय ,

      गूंगे केरी सरकरा, खाय और मुसकाय। 



परमात्मा के प्रेम की कथा वर्रण से परे है। हरि अनंत हरि कथा अनंता। सारे समुन्दरों की स्याही और वनों की कलम बनाके भी इस वेलेंटाइन की प्रेम गाथा लिखी जाए तो कोई महाकवि लिख न सके।

परमात्म प्रेम अनुभूति और भाव गंगा का विषय है। अनुभव की बात है। मीठे से भी मीठा है उसका स्वाद गूंगे के गुड़ सा ,गूंगे की शक्कर सा खाय और खुद मीठा हो मुसकाय स्वाद कहा  न जाए। जो परमात्म भक्ति ईश्वर प्रेम का स्वाद चख लेता है उसे फिर कोई और सांसारिक पदार्थ आकर्षित नहीं करता है।उसके अन्दर अन्दर प्रेम मोदक फूटते रहतें हैं वह मुस्काता रहता है गूंगे की तरह बयाँ नहीं कर सकता उस अ -वरणीय परम अनुभूत सुख को। व्यक्ति गूंगा हो जाता है। मौन पराकाष्ठा होती है प्रेम की। प्रेम उत्कर्ष की।जहां सिर्फ परमानंद ही शेष रह जाता है।  

  

(३ )तू तू करता तू भया ,मुझमें रहा न हू ,

     बारि फेरी बलि गई ,जित देखू तित तू। 

यहाँ नाम की महिमा का बखान है। उलटा नाम जपा जप जाना बाल्मीक भये सिद्ध समाना। राम राम जपते कब मैं राम हो गया पता ही न चला। नाम का जाप व्यक्ति को भाव समाधि में ले जाता है बस मन पवित्र हो और उससे प्रेम हो। फिर व्यक्ति निरभिमान हो जाता है। हूँ हुंकारा बंद हो जाता है उसका। अब हर तरफ तू ही तू है। 

जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है ,

इधर भी तू है उधर भी तो तू है। 

रफ्ता रफ्ता वो मेरी हस्ती का सामाँ हो गए। . 

पहले जाँ फिर जानेजाँ  फिर जानेजाँ ना हो गए। 

प्रभु का नाम ही भक्त को प्रभु की तरफ ले जाता है। यह मार्ग फिर कभी नष्ट नहीं होता है। भक्त और भगवान् आखिर में एक ही हो जाते हैं। नाम की महिमा अपरम्पार है। राम से बड़ा राम का नाम अंत में पाया यही परनाम। जनम मरण से मुक्ति जीवन मुक्ति राम नाम से ही मिलती है सांसारिक वस्तुओं से नहीं। बूँद सागर में मिलके सागर ही बन जाती है। उसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है ऐसा है परमात्मा  का नाम। 

विरह प्रेम का उद्दीपन पक्ष है और भड़ कता है प्रेम परमात्म बिछोड़े में

 (विछोह में ).प्रेम विरह में ही प्रदीप्त होता है : 

लकड़ी जल कोयला भई, कोयला जल भई राख ,

मैं बिरहन ऐसी जली ,कोयला भई न राख। 

परमात्म  प्रेम  विद्युत शव दाह  में दहन होना है जहां शेष कुछ नहीं बचता 

है। पूर्ण विलय है आत्मा का परमात्मा  में । विद्युत् प्रेम का प्रतीक है। 

(४ )प्रेमी ढूँढत मैं फिरूँ ,प्रेमी ना मिलिया कोय ,

      प्रेमी को प्रेमी मिले ,तब सब बिस अमृत होय। 

आशिक और माशूक का प्रेम ही सच्चा प्रेम है जहां कोई गिला शिकवा नहीं

 होता। 

हज़ारों साल नरगिश  अपनी बे -नूरी पे रोती  है ,

तब पैदा होता है ,चमन में एक  सच्चा दीदावर। 

सच्चा प्रेम जीवन में दुर्लभ है उसे ही प्राप्त होगा जिसका मन पवित्र है बुद्धि 

का पात्र निर्मल है। जहां देने की ,समर्पित होने की व्यग्रता है।

परमात्मा को कोटो में कोई एक प्रेम करता है। जब आत्मा -परमात्मा 

आशिक और माशूक मिलते हैं तब परम आनंद की प्राप्ति होती है। उस 

सच्चे प्रेम की खुश्बू दिग दिगांतर तक मकरंद बनके फ़ैल जाती है।दुनिया 

का सबसे नशीला पदार्थ है ,प्रेम रसायन है, सच्चा प्रेम।  सच्चा प्रेमी और 

सच्चा प्रेम ,परमात्मा का ही स्वरूप होता है। परमात्मा दिव्य प्रेम का 

सागर है ,जो आत्मा रुपी नदी का सारा विष पी लेता है। 

विष का प्याला राणा जी ने भेजा ,

पीवत मीरा हांसी रे। 

पानी में मीन प्यासी रे ,मोहे सुन सुन आवत हांसी रे। 

(५ )राम रसायन प्रेम रस ,पीवत अधिक रसाल ,

     कबीर पीवन दुर्लभ है ,मांगे सीस कलाल।

जिसने परमात्म प्रेम का रस चख लिया उसे फिर दुनिया के सारे रस 

निर्स्वाद लगते हैं। दास्य भाव की भक्ति चाहिए तब प्राप्त होता है यह 

अमृत रस  . बात सिर्फ एहम के विसर्जन तक सीमित नहीं है यहाँ सम्पूर्ण 

समर्पण की बात है।जो मन और प्राण दोनों को समिधा बनावे  को राजी है 

उसे ही यह नारायणी नशा देने वाला पदार्थ मिलेगा।भगवान् खुद अपने 

ऐसे भक्तों के लिए प्रेम रस से भरा कटोरा लेके हाज़िर होते हैं।  


(६  )कबीर प्रेम  न चाखिया ,चाखि ना लिया साव ,

      सूने घर का पाहुना ,ज्यों आवे त्यों जाव। 

कबीर कहते हैं जिसने ईश्वर प्रेम का अनुभव ही जीवन में  नहीं किया जिसे 

परमात्मा प्रेम का स्वाद ही नहीं पता समझो फिर उसने ये जीवन व्यर्थ कर 

दिया। 

उसके लिए फिर यह सारा संसार एक खाली घर की तरह हैं जहां रहने आने 

का फिर कोई मतलब नहीं है। जीवन बड़ा अनमोल है इसमें ईश्वर भक्ति 

नहीं की परमात्मा से प्रेम नहीं किया तो समझो फिर कुछ नहीं किया। फिर 

ऐसा व्यक्ति, आत्मा रुपी मुसाफिर  इस संसार रुपी मुसाफ़िर खाने से 

जाते 

समय मलाल ही साथ ले जाएगा। समझो वह उस खाली मकान में रहके 

चला गया जहां  कोई मेज़बान नहीं था। सन्देश यही है संसार के सुख भोगों 

में जीवन व्यर्थ न करो बाद में पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रहेगा। 


(७ )सुरति ढेकुली लेज लौ ,मन नील ढोलन हार ,

      कमल कुवा में प्रेम रस ,पीवै बारम्बार। 

प्रभु का प्रेम ,प्रभु का ध्यान जहां  उत्तोलक की तरह है ऐसे उत्तोलक 

(लीवर) 

की तरह जिसकी डोरी प्रेम से 

बंधी हैं वहां मन बाल्टी है जो जल भरके लायेगी। इस सहस्र कमल दल 

वाले 

कूएं में दिव्य  प्रेम का रस जल है  जिसे भक्त बारहा पीता है। 

परमात्म चिंतन में हज़ारों  हज़ार कमल दल वाला स्थान परमात्मा प्रेम से 

प्लावित हो जाता है। 

पाकीज़ा हो जातीं  है उस कमल की पंखुड़ियां  परमात्मा की भक्ति से। 

मस्जिद कहते ही उस जगह को हैं जहां नमाज़ी नमाज़ पढ़ता किसी खाली 

इमारत का नाम नहीं है मस्जिद। 

ॐ शान्ति 





   





       

6 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

लोगों की बोली भाषा में ज्ञान का अद्भुत संचार किया कबीर ने

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अहा, ज्ञान सागर में उतरने में आनन्द आ गया

Rahul... ने कहा…

कबीर कहते हैं जिसने ईश्वर प्रेम का अनुभव ही जीवन में नहीं किया, जिसे परमात्मा प्रेम का स्वाद ही नहीं पता, समझो फिर उसने ये जीवन व्यर्थ कर दिया।
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अद्भुत, अलौकिक पर सहज ज्ञान की दिलकश दुनिया...दिलकश इसीलिए कह रहा हूँ की परमात्मा प्रेम के स्वाद में जो नशा है, वो अन्यत्र किसी और में नहीं....

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ ने कहा…

क्या बात वाह!

रविकर ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुतीकरण-
गहरे भाव-
आभार आपका-

पुरुषोत्तम पाण्डेय ने कहा…

हरि अनन्त हरि कथा अनंता.
लिखते रहिये, सुनाते रहिये. साधुवाद है.