गीता का दूसरा अध्याय
श्लोक (१ -३ ):
(१)
संजय धृत राष्ट्र को बतलाते हैं -भगवान उस अर्जुन से बोले जिसकी आँखें बड़े बड़े आंसुओं से भरी हुई थी और जो रो रहा था ,दया और करुणा से भरकर ,हे अर्जुन दया और करुणा सैनिक का गुण नहीं है जैसे कंजूस होना अमीर का गुण नहीं है भले गरीब के लिए वह गुण है। वैसे ही युद्ध क्षेत्र में आकर तुम अहिंसा की बात नहीं कर सकते।
अर्जुन ये बातें अपने घर में बैठकर करता तो ठीक था ग्रहस्थ के लिए तो करुणा और दया करना ठीक है बोर्डर पर एक सैनिक के लिए यह दुर्गुण है। कोई भी योद्धा बोर्डर पर जाकर यह नहीं कह सकता अहिंसा परमोधर्म :
जो आतताई हैं धर्म के दुश्मन हैं उन्हें तो दंड मिलना ही चाहिए। जैसे कोई जल्लाद अपने पुत्र को फांसी के फंदे पर आया देखकर पुत्र मोह में फंसकर यह नहीं कह सकता -फांसी अच्छी चीज़ नहीं है वैसे ही अर्जुन ऐसा नहीं कर सकते करुणा और दया से भरे जो वह कर रहे हैं।यही अर्जुन युद्ध के मैदान में किन्ही और लोगों के सामने होते तो ऐसा न करते। वास्तव में अर्जुन को निमित्त बनाकर भगवान ने यह तीर सबकी तरफ फैंका है।अपनों का मोह मनुष्य आत्मा को मोह ग्रस्त बना देता है विवेक हीन कर देता है। गीता का कोई भी शब्द ऐसा नहीं है जिसमे कोई सन्देश न हो।
(२ ) वेद व्यास जी ने "श्री" शब्द सिर्फ भगवान के नाम के साथ लगाया है श्री अर्जुन या श्री संजय नहीं कहा है। आजकल तो ऐसे महात्मा आ गए हैं जो अपने नाम के आगे कई कई श्री लगाते हैं। अर्जुन ,धृतराष्ट्र आदि जीवों के
लीडर हैं। "श्री "बोले तो सफलता ,श्री बोले तो संसार का सारा वैभव सौन्दर्य और एश्वर्य संसार की वह हर चीज़ जिसे पाने के लिए हमारा मन लालायित रहता है ,है ही सिर्फ परमात्मा के पास। यदि उसे पाना है तो भगवान के माध्यम से ही पाना पड़ेगा । वरना वह सारा वैभव आगे पीछे नष्ट हो जाएगा। ईश्वर के बिना सारा सौन्दर्य भी बेकार हो जाएगा। आपने देखा गणेश के साथ लक्ष्मी का पूजन ज़रूरी है इसके प्रतीकात्मक अर्थ हैं लक्ष्मी जब आपके पास आती है तो उसे कहाँ खर्च करें कैसे खर्च करें इसके लिए विवेक की ज़रुरत रहती है। गणेश विवेक के देवता हैं और लक्ष्मी धन की। केवल धन को साधने से धन नहीं सधेगा। संसार की सुन्दरता भी झील में चांद की तरह हैं।झील में विवेक हीन होकर छलांग लगा दोगे तो वहां चाँद नहीं मिलेगा। जितनी भी "श्री " है वह भगवान के पास हैं उनके ही सानिद्य में स्मृति में रहके उसे प्राप्त करो।
भगवान यह सन्देश दे रहें हैं ऐसी विषम परिश्थिति में जब विवेक का सहारा लेना चाहिए अर्जुन अज्ञान की बातें कर रहा है। तुम्हारे अन्दर यह अज्ञान कहाँ से आ गया जब समझदारी से काम लेने का समय है तब तुम्हारे अन्दर यह अज्ञान कहाँ से आ गया अर्जुन ।
इस दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं :
कुछ कीर्ति के लिए अच्छा काम करते हैं कुछ स्वर्ग की कामना के लिए तथा कुछ अच्छाई को जीवित रखने के लिए अच्छा काम करते हैं। अर्जुन तुम्हारा आचरण इन तीनों में से किसी भी वर्ग में नहीं आता। ये अनार्य आचरण ये नाटक जो तुम कर रहे हो यह स्वर्ग देने वाला भी नहीं है।यह ऐसे ही है अर्जुन जैसे आपरेशन थियेटर में कोई सर्जन जाकर कहे यह हिंसा है मैं चीड़ फाड़ नहीं करता। स्केल्पल नहीं चलाता। जबकि जो अंग खराब हो चुका है कैंसर ग्रस्त हो चुका है उसे काटके फेंकना एक दम से ज़रूरी है। यही सन्देश है गीता का यहाँ आम औ ख़ास के लिए अर्जुन के बहाने।
(३) भगवान कहते हैं :हे पार्थ तू नपुंसकता को प्राप्त न हो। ये तुम्हें शोभा नहीं देता है तुम क्षत्रीय हो। तुम्हारे हृदय की कमजोरी ही इसका कारण बन रही है। यह एक निम्न दर्जे की कमजोरी है। मन की दुर्बलताओं को छोड़कर एक पल में अलग खड़े हो जाओ अर्जुन।
अर्जुन ने भगवान की तरफ देखा जिसका मतलब यह था यह हमारे साथ ही क्यों हो रहा है। जब सुबह पांच बजे उठना ज़रूरी हो और मन न मानें तो गीता का यही श्लोक पढ़ लेना चाहिए। मन की कमजोरी दूर हो जाएगी । ये आलस्य ये प्रमाद भी कमजोरी का ही एक रूप है। चोरी करना ,झूठ बोलना किसी को भी शोभता नहीं है लोग ऐसा आचरण जो धर्म विपरीत है समाज विपरीत है करने से पहले सोचते नहीं है।यह उनके मन की कमजोरी ही तो होती है जिसकी गिरिफ्त में आकर वह ऐसा कर लेते हैं। जैसे यह निम्न दर्जे की कमजोरी तो सबको छोड़ ही देनी चाहिए ऐसे ही अर्जुन तुम्हें हृदय की तुच्छ कमजोरी फ़ौरन छोड़ देनी चाहिए।
एक दर्शन होता है और एक प्रदर्शन होता है अब अगर कोई शौर्यवान व्यक्ति कायरता की बात कर रहा है तो यही कहा जाएगा नाटक छोड़ो।
अर्जुन तुम यह सब नाटक क्यों कर रहे हो -मैं भिक्षा मांगके पेट भर लूंगा। अपने हृदय की दुर्बलता की शल्य चिकित्सा करो। तुम तो शत्रुओं को तपाने वाले हो और ये तो राष्ट्र के समाज के धर्म के नीति के शत्रु हैं। इनके सामने तुम काँप रहे हो। अगर कोई विकार आये मसलन गुस्सा आये लोभ आये मोह आये उसे कल पे टाल दो लेकिन अच्छी चीज़ को कल पे न टालो। यही गीता का यहाँ सन्देश है।
ॐ शान्ति
सन्दर्भ -सामिग्री :योगी आनंदजी का स्काइप पे क्लास (२। ८। २०१३ रात्रि ८ :३० ईस्टर्न टाइम )
श्लोक (१ -३ ):
(१)
संजय धृत राष्ट्र को बतलाते हैं -भगवान उस अर्जुन से बोले जिसकी आँखें बड़े बड़े आंसुओं से भरी हुई थी और जो रो रहा था ,दया और करुणा से भरकर ,हे अर्जुन दया और करुणा सैनिक का गुण नहीं है जैसे कंजूस होना अमीर का गुण नहीं है भले गरीब के लिए वह गुण है। वैसे ही युद्ध क्षेत्र में आकर तुम अहिंसा की बात नहीं कर सकते।
अर्जुन ये बातें अपने घर में बैठकर करता तो ठीक था ग्रहस्थ के लिए तो करुणा और दया करना ठीक है बोर्डर पर एक सैनिक के लिए यह दुर्गुण है। कोई भी योद्धा बोर्डर पर जाकर यह नहीं कह सकता अहिंसा परमोधर्म :
जो आतताई हैं धर्म के दुश्मन हैं उन्हें तो दंड मिलना ही चाहिए। जैसे कोई जल्लाद अपने पुत्र को फांसी के फंदे पर आया देखकर पुत्र मोह में फंसकर यह नहीं कह सकता -फांसी अच्छी चीज़ नहीं है वैसे ही अर्जुन ऐसा नहीं कर सकते करुणा और दया से भरे जो वह कर रहे हैं।यही अर्जुन युद्ध के मैदान में किन्ही और लोगों के सामने होते तो ऐसा न करते। वास्तव में अर्जुन को निमित्त बनाकर भगवान ने यह तीर सबकी तरफ फैंका है।अपनों का मोह मनुष्य आत्मा को मोह ग्रस्त बना देता है विवेक हीन कर देता है। गीता का कोई भी शब्द ऐसा नहीं है जिसमे कोई सन्देश न हो।
(२ ) वेद व्यास जी ने "श्री" शब्द सिर्फ भगवान के नाम के साथ लगाया है श्री अर्जुन या श्री संजय नहीं कहा है। आजकल तो ऐसे महात्मा आ गए हैं जो अपने नाम के आगे कई कई श्री लगाते हैं। अर्जुन ,धृतराष्ट्र आदि जीवों के
लीडर हैं। "श्री "बोले तो सफलता ,श्री बोले तो संसार का सारा वैभव सौन्दर्य और एश्वर्य संसार की वह हर चीज़ जिसे पाने के लिए हमारा मन लालायित रहता है ,है ही सिर्फ परमात्मा के पास। यदि उसे पाना है तो भगवान के माध्यम से ही पाना पड़ेगा । वरना वह सारा वैभव आगे पीछे नष्ट हो जाएगा। ईश्वर के बिना सारा सौन्दर्य भी बेकार हो जाएगा। आपने देखा गणेश के साथ लक्ष्मी का पूजन ज़रूरी है इसके प्रतीकात्मक अर्थ हैं लक्ष्मी जब आपके पास आती है तो उसे कहाँ खर्च करें कैसे खर्च करें इसके लिए विवेक की ज़रुरत रहती है। गणेश विवेक के देवता हैं और लक्ष्मी धन की। केवल धन को साधने से धन नहीं सधेगा। संसार की सुन्दरता भी झील में चांद की तरह हैं।झील में विवेक हीन होकर छलांग लगा दोगे तो वहां चाँद नहीं मिलेगा। जितनी भी "श्री " है वह भगवान के पास हैं उनके ही सानिद्य में स्मृति में रहके उसे प्राप्त करो।
भगवान यह सन्देश दे रहें हैं ऐसी विषम परिश्थिति में जब विवेक का सहारा लेना चाहिए अर्जुन अज्ञान की बातें कर रहा है। तुम्हारे अन्दर यह अज्ञान कहाँ से आ गया जब समझदारी से काम लेने का समय है तब तुम्हारे अन्दर यह अज्ञान कहाँ से आ गया अर्जुन ।
इस दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं :
कुछ कीर्ति के लिए अच्छा काम करते हैं कुछ स्वर्ग की कामना के लिए तथा कुछ अच्छाई को जीवित रखने के लिए अच्छा काम करते हैं। अर्जुन तुम्हारा आचरण इन तीनों में से किसी भी वर्ग में नहीं आता। ये अनार्य आचरण ये नाटक जो तुम कर रहे हो यह स्वर्ग देने वाला भी नहीं है।यह ऐसे ही है अर्जुन जैसे आपरेशन थियेटर में कोई सर्जन जाकर कहे यह हिंसा है मैं चीड़ फाड़ नहीं करता। स्केल्पल नहीं चलाता। जबकि जो अंग खराब हो चुका है कैंसर ग्रस्त हो चुका है उसे काटके फेंकना एक दम से ज़रूरी है। यही सन्देश है गीता का यहाँ आम औ ख़ास के लिए अर्जुन के बहाने।
(३) भगवान कहते हैं :हे पार्थ तू नपुंसकता को प्राप्त न हो। ये तुम्हें शोभा नहीं देता है तुम क्षत्रीय हो। तुम्हारे हृदय की कमजोरी ही इसका कारण बन रही है। यह एक निम्न दर्जे की कमजोरी है। मन की दुर्बलताओं को छोड़कर एक पल में अलग खड़े हो जाओ अर्जुन।
अर्जुन ने भगवान की तरफ देखा जिसका मतलब यह था यह हमारे साथ ही क्यों हो रहा है। जब सुबह पांच बजे उठना ज़रूरी हो और मन न मानें तो गीता का यही श्लोक पढ़ लेना चाहिए। मन की कमजोरी दूर हो जाएगी । ये आलस्य ये प्रमाद भी कमजोरी का ही एक रूप है। चोरी करना ,झूठ बोलना किसी को भी शोभता नहीं है लोग ऐसा आचरण जो धर्म विपरीत है समाज विपरीत है करने से पहले सोचते नहीं है।यह उनके मन की कमजोरी ही तो होती है जिसकी गिरिफ्त में आकर वह ऐसा कर लेते हैं। जैसे यह निम्न दर्जे की कमजोरी तो सबको छोड़ ही देनी चाहिए ऐसे ही अर्जुन तुम्हें हृदय की तुच्छ कमजोरी फ़ौरन छोड़ देनी चाहिए।
एक दर्शन होता है और एक प्रदर्शन होता है अब अगर कोई शौर्यवान व्यक्ति कायरता की बात कर रहा है तो यही कहा जाएगा नाटक छोड़ो।
अर्जुन तुम यह सब नाटक क्यों कर रहे हो -मैं भिक्षा मांगके पेट भर लूंगा। अपने हृदय की दुर्बलता की शल्य चिकित्सा करो। तुम तो शत्रुओं को तपाने वाले हो और ये तो राष्ट्र के समाज के धर्म के नीति के शत्रु हैं। इनके सामने तुम काँप रहे हो। अगर कोई विकार आये मसलन गुस्सा आये लोभ आये मोह आये उसे कल पे टाल दो लेकिन अच्छी चीज़ को कल पे न टालो। यही गीता का यहाँ सन्देश है।
ॐ शान्ति
सन्दर्भ -सामिग्री :योगी आनंदजी का स्काइप पे क्लास (२। ८। २०१३ रात्रि ८ :३० ईस्टर्न टाइम )
"स्वदेशो भुवनत्रयम्"
इस जगत में जो लोग भी अपना अस्तित्व संसार से मानते हैं, उनके
इस जगत में जो लोग भी अपना अस्तित्व संसार से मानते हैं, उनके
लिये ये संसार कभी ना कभी बेवफा, बेगाना अवश्य हो
जायेगा, परन्तु जो अपना अस्तित्व एक मात्र भगवान से मानते हैं,
उनके लिये तो यह बेगाना संसार भी भगवान का ही एक स्वरुप
बन जाता है ।
Posted: 02 Aug 2013 11:03 PM PDT
View- 03-08-2013@@ KI MURLI HINDI ME
View- 03-08-2013@@ MURLI IN ENGLISH English MurliEssence: Sweet children, when you go into the lap of the Father, this world ends. Your next birth will be in the new world and this is why there is the saying, “When you die, the world is dead to you.”Question: On the basis of which one custom can you prove the incarnation of the Father? Answer: The custom of feeding departed spirits every year has continued in Bharat. They invoke a soul into a brahmin priest and speak to that soul. They ask the departed soul if he has any desires. The body doesn’t come back, just the soul comes back. This too is fixed in the drama. Just as a soul can enter, in the same way, God’s incarnation takes place. You children can explain and prove this. Song: To live in Your lane and to die in Your lane. Essence for dharna: 1. Follow the mother and father and do the service of making others like yourselves. Become spinners of the discus of self-realisation and make others the same. 2. In order to become a garland around the neck of the Father, remember the Father with your intellect. Don’t make any sound. Constantly stay in remembrance. Blessing: May you remain constantly happy by merging all treasures within yourself and remain free from becoming disheartened or jealous BapDada has given all of you children all the treasures equally. However, some are unable to merge those attainments in themselves or they do not know how to use those attainments at the right time and so success is therefore not visible to them and they then become disheartened with themselves and think that perhaps their fortune is like that. Then, seeing the speciality or fortune of others, they become jealous. Those who become disheartened or jealous in this way can never be happy. In order to remain constantly happy, become free from both of these things. Slogan: Only those who serve with a true heart and without any selfish motives are pure and clean souls. Hindi Murliमुरली सार:- “मीठे बच्चे – जब तुम बाप की गोद में आते हो तो यह दुनिया ही ख़त्म हो जाती है, तुम्हारा अगला जन्म नई दुनिया में होता है इसलिये कहावत है – आप मुये मर गई दुनिया”प्रश्न:- किस एक रस्म के आधार पर बाप के अवतरण को सिद्ध कर सकते हो? उत्तर:- भारत में हर वर्ष पित्र खिलाने की रस्म चली आई है, किसी ब्राह्मण में आत्मा को बुलाते हैं, फिर उनसे बातें करते हैं, उसकी आश पूछते हैं। अब शरीर तो आता नहीं, आत्मा ही आती है। यह भी ड्रामा में नूँध है। जैसे आत्मा प्रवेश कर सकती है वैसे ही परमात्मा का भी अवतरण होता है, यह तुम बच्चे सिद्ध कर समझा सकते हो। गीत:- मरना तेरी गली में….. धारणा के लिए मुख्य सार :- 1) मात-पिता को फालो कर आप समान बनाने की सेवा करनी है। स्वदर्शन चक्रधारी बनना और बनाना है। 2) बाप के गले का हार बनने के लिये बुद्धि से बाप को याद करना है, आवाज नहीं करनी है। याद की धुन में रहना है। वरदान:- सर्व खजानों को स्वयं में समाकर, दिलशिकस्त-पन वा ईर्ष्या से मुक्त रहने वाले सदा प्रसन्नचित भव बापदादा ने सभी बच्चों को समान रूप से सब खजाने दिये हैं लेकिन कोई उन प्राप्तियों को स्वयं में समा नहीं सकते व समय पर कार्य में लगाना नहीं आता तो सफलता दिखाई नहीं देती फिर स्वयं से दिलशिकस्त हो जाते हैं, सोचते हैं शायद मेरा भाग्य ही ऐसा है। उन्हें फिर दूसरों की विशेषता वा भाग्य को देख ईर्ष्या उत्पन्न होती है। ऐसे दिलशिकस्त होने वा ईर्ष्या करने वाले कभी प्रसन्न नहीं रह सकते। सदा प्रसन्न रहना है तो इन दोनों बातों से मुक्त रहो। स्लोगन:- स्वार्थ के बिना सच्चे दिल से सेवा करने वाले ही स्वच्छ आत्मा हैं। |
9 टिप्पणियां:
उस सर्वशक्तिमान से बढ़कर कौन...?
गहराई से समझाते हुवे -
आभार भाई जी-
दर्शन से सुदर्शन की ओर बढ़ते हुए ...प्रदर्शन का विनाश करता हुआ ....सुंदर ज्ञानवर्धक आलेख ।
आभार .
geeta gyan ...
जो अपना अस्तित्व एक मात्र भगवान से मानते हैं,
उनके लिये तो यह बेगाना संसार भी भगवान का ही एक स्वरुप
बन जाता है ।
सुंदर वचन ! आभार!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (04-08-2013) के चर्चा मंच 1327 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
सुंदर कथामृत.
रामराम.
हर बार इतना संतुष्ट हो जाते हैं कि आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं।
समाधान करती व्याख्या - आभार !
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